गर्भावस्था

नेचुरल डिलीवरी – चरण, फायदे और तैयारियां

In this Article

अगर आप मां बनने वाली हैं, तो आप डिलीवरी के विभिन्न विकल्पों में से किसी एक को चुन सकती हैं। सबसे पहले नेचुरल डिलीवरी और असिस्टेड डिलीवरी के बीच किसी एक को चुनना होता है और मां बनने वाली ज्यादातर महिलाएं डिलीवरी के लिए जहां तक हो सके प्राकृतिक तरीका ही चुनना पसंद करती हैं। इसमें बच्चे को जन्म देने से ठीक पहले कोई भी दर्द निवारक दवा न लेना भी शामिल है। रिलैक्स होने और सांस कंट्रोल करने जैसी कुछ प्राकृतिक तकनीकें बिना किसी दवा के आपको बच्चे को जन्म देने में मदद कर सकती हैं। 

इस लेख से आपको प्राकृतिक डिलीवरी यानी सामान्य प्रसव की प्रक्रिया, इसके फायदे और नुकसान के साथ-साथ प्राकृतिक तरीके से बच्चे के जन्म के लिए खुद को तैयार करने के तरीकों के बारे में पूरी जानकारी मिलेगी। 

प्राकृतिक प्रसव क्या है?

आसान शब्दों में, प्राकृतिक तरीके से बच्चे को जन्म देने की प्रक्रिया को नेचुरल डिलीवरी यानी सामान्य या प्राकृतिक प्रसव कहते हैं। इसमें दर्द से राहत पाने के लिए किसी भी दवा के इस्तेमाल के बिना लेबर और डिलीवरी से गुजरना शामिल होता है, जिसमें एपिड्यूरल भी शामिल है। अक्सर जिन महिलाओं की प्रेगनेंसी में कम खतरा होता है, वे बच्चे के जन्म के लिए नेचुरल तरीके का चुनाव करती हैं। 

नेचुरल डिलीवरी में आपकी स्थिति आरामदायक होना और आपकी डिलीवरी की प्रक्रिया पर आपका पूरा नियंत्रण होना जरूरी है। 

प्राकृतिक डिलीवरी के चरण

नेचुरल डिलीवरी जिसे वेजाइनल डिलीवरी भी कहा जाता है, आमतौर पर 14 घंटों तक चलती है। हालांकि यह इससे लंबी या इससे छोटी भी हो सकती है। मां बनने वाली महिला होने के नाते आपको नेचुरल डिलीवरी के 3 चरणों के बारे में जानकारी होनी चाहिए, जिनका वर्णन नीचे दिया गया है। 

1. सर्वाइकल डायलेशन

यह प्राकृतिक डिलीवरी का पहला चरण है और यह आमतौर पर 6 से 10 घंटों तक चलता है (पहली प्रेगनेंसी के दौरान)। सर्वाइकल डायलेशन के शुरुआती पड़ाव में आप हल्के या गंभीर दर्द का अनुभव कर सकती हैं। इस दौरान सर्विक्स 0 से 3 या 4 सेंटीमीटर तक फैलता है।

दूसरे या अधिक एक्टिव चरण में आप अधिक लेबर पेन का अनुभव कर सकती हैं, क्योंकि इसमें सर्विक्स 4 से 7 सेंटीमीटर तक फैलता है। पहली डिलीवरी के दौरान यह चरण लगभग 3 से 6 घंटे तक चलता है और अगली डिलीवरी में यह समय आधा हो जाता है। 

सर्वाइकल डायलेशन का अंतिम चरण ट्रांजिशन फेज होता है। इस दौरान सर्विक्स 8 से 10 सेंटीमीटर तक फैलता है। पहली डिलीवरी के दौरान यह चरण आमतौर पर 20 मिनट से लेकर अधिकतम 2 घंटे तक चलता रहता है और आगे की गर्भावस्था में कम होता जाता है। 

2. बेबी का बाहर आना

प्राकृतिक डिलीवरी का दूसरा स्तर सर्विक्स के पूरी तरह से फैलने के बाद शुरू होता है और पहली गर्भावस्था के दौरान यह डेढ़ से दो घंटों तक चलता है। इस पड़ाव के दौरान आप अपने बच्चे को बाहर धकेलने की बहुत अधिक इच्छा का अनुभव करेंगी और इसके बाद आपकी थकावट और सांस की कमी बढ़ेगी। आप अपने वेजाइनल क्षेत्र के इर्द-गिर्द तेज दर्द का भी अनुभव करेंगे, क्योंकि बच्चे का सिर वजाइना से बाहर आ रहा होता है। 

3. प्लेसेंटा डिलीवरी

प्लेसेंटा डिलीवरी का तीसरा पड़ाव (जिसे आफ्टर बर्थ भी कहा जाता है) बच्चे के जन्म के बाद ही होता है। सामान्यतः यह केवल कुछ मिनटों के लिए रहता है। ज्यादातर मांओं को यह समय याद नहीं रहता है, क्योंकि वे अपने बच्चे को  अपनी छाती के पास पकड़ने में खो चुकी होती हैं। 

प्लेसेंटा डिलीवरी के साथ नेचुरल चाइल्डबर्थ की प्रक्रिया पूरी हो जाती है। 

प्राकृतिक डिलीवरी के फायदे

जहां प्राकृतिक डिलीवरी इस बात का टेस्ट होता है, कि आप इस तेज दर्द को किस हद तक सह सकती हैं, वहीं इसके कई फायदे भी होते हैं, जो कि नीचे दिए गए हैं:

  • ब्रीदिंग एक्सरसाइज जैसे रिलैक्सेशन तकनीक जिन्हें आप नेचुरल डिलीवरी के दौरान सीखती हैं, उसका इस्तेमाल आप बाद में किसी तरह के पोस्टपार्टम डिप्रेशन से राहत पाने में भी कर सकती हैं या फिर बच्चे की देखभाल से संबंधित तनाव में भी इससे आपको मदद मिल सकती है।
  • चूंकि डिलीवरी की प्रक्रिया के दौरान आपके पति आपके साथ रहते हैं, ऐसे में आपके और आपके बच्चे के साथ उनका संबंध भी गहरा होता है।
  • नेचुरल डिलीवरी के बाद मां का बच्चे के साथ तुरंत संपर्क होने के कारण मां और बच्चे का संबंध बेहतर होता है, खासकर ब्रेस्टफीडिंग इससे काफी आसान हो जाती है। इससे बच्चे को अच्छी नींद मिलती है, उसका वजन अच्छी तरह से बढ़ता है और उसके दिमाग का विकास भी बेहतर होता है।
  • जहां एपिड्यूरल के इस्तेमाल से आपके बेड रेस्ट की अवधि बढ़ जाती है, वहीं प्राकृतिक डिलीवरी से गुजरने वाली महिलाएं लेबर के दौरान और डिलीवरी के तुरंत बाद भी घूमने फिरने में सक्षम होती हैं।

दवाएं न लेने के नुकसान

जहां प्राकृतिक डिलीवरी के कई फायदे होते हैं, वहीं मां बनने वाली महिलाओं को इसके नुकसान की जानकारी भी होनी चाहिए, जो कि नीचे दी गई हैं: 

1. अत्यधिक दर्द

इसके फायदों के बावजूद प्राकृतिक दर्द निवारक तकनीकें तेज दर्द को पूरी तरह से खत्म नहीं कर सकती हैं, जिन्हें सहने में आप पूरी तरह से सक्षम नहीं हो सकती हैं। खासकर अगर आपको कोई मेडिकल समस्या हो या गर्भावस्था से संबंधित जटिलताएं हो या आपका लेकर काफी लंबा हो। 

2. नियोनेटल मृत्यु का खतरा

अगर आप अस्पताल के बजाय घर पर या किसी अन्य जगह पर बच्चे को जन्म दे रही हैं, तो नवजात की मृत्यु का खतरा बढ़ जाता है। अस्पताल की तुलना में अन्य मेडिकल फैसिलिटी में डिलीवरी के दौरान आने वाली जटिलताओं के लिए जरूरी इलाज हमेशा उपलब्ध हों, ऐसा जरूरी नहीं होता है। 

प्राकृतिक डिलीवरी के लिए विभिन्न विकल्प

आपके घर के आसपास उपलब्ध मेडिकल फैसिलिटी के आधार पर प्राकृतिक रूप से बच्चे को जन्म देने के लिए आप उनमें से किसी एक को चुन सकती हैं: 

1. होम बर्थ

घर के प्राकृतिक और अपनेपन के माहौल में, बच्चे को जन्म देना एक बेहतरीन विकल्प हो सकता है और यह केवल उन महिलाओं को ही रेकमेंड किया जाता है, जिनकी गर्भावस्था सामान्य होती है और खतरा कम होता है। जहां घर पर डिलीवरी करना केवल उन महिलाओं के लिए अच्छा है, जिनका शारीरिक स्वास्थ्य बेहतरीन होता है और उन्हें किसी तरह की परेशानी नहीं होती है, वहीं आपको यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि मेडिकल फैसिलिटी आपकी पहुंच के अंदर हो, ताकि डिलीवरी के दौरान किसी तरह की जटिलता होने पर आप उनसे संपर्क कर सकें। 

2. बर्थ सेंटर

बिना किसी खतरे के स्वस्थ गर्भावस्था वाली महिलाओं के लिए बर्थ सेंटर भी एक अन्य बेहतरीन विकल्प है। बर्थ सेंटर किसी इमरजेंसी की स्थिति में एक अनुभवी मिडवाइफ या नर्स की सुविधा भी मुहैया कराता है। बर्थ सेंटर में प्रीनेटल केयर और पोस्टपार्टम चेकअप के लिए बेसिक मेडिकल सुविधाएं भी उपलब्ध होती हैं। 

3. हॉस्पिटल

कुछ हॉस्पिटल, नेचुरल हॉस्पिटल बर्थ का विकल्प भी उपलब्ध कराते हैं। मिडवाइफ की उपलब्धता के अलावा हॉस्पिटल में अलग से बर्थ सेंटर फैसिलिटी भी होती हैं, जो कि खासकर प्राकृतिक डिलीवरी के लिए होती हैं। दवाएं और प्रेगनेंसी उपकरण भी उपलब्ध होते हैं और इनका इस्तेमाल केवल जरूरत पड़ने पर ही किया जाता है। 

प्राकृतिक डिलीवरी से गुजरने वाली महिला के लिए मिडवाइफ का महत्व

बच्चे के जन्म में मदद करने के अलावा, प्राकृतिक डिलीवरी का चुनाव करने वाली महिलाओं के लिए भी सर्टिफाइड मिडवाइफ (या नर्स) जरूरी हैं और वे गर्भवती महिला को कई तरह की सुविधाएं भी उपलब्ध कराती हैं, जिनमें गाइनेकोलॉजिकल चेकअप के साथ-साथ, डिलीवरी से पहले और डिलीवरी के बाद की देखभाल भी शामिल हैं। जिन गर्भवती महिलाओं को गर्भावस्था से संबंधित कोई जटिलताएं या बीमारियां नहीं होती हैं, वे एक सर्टिफाइड और अनुभवी मिडवाइफ की सुविधा ले सकती हैं, जो कि प्रेगनेंसी केयर और प्राकृतिक डिलीवरी से संबंधित सलाह दे सके। 

प्राकृतिक डिलीवरी की जटिलताएं

जहां प्राकृतिक डिलीवरी लगभग सुरक्षित होती है, ऐसे में जटिलताएं केवल तभी दिखती हैं, अगर आप:

  • अपने डॉक्टर या मेडिकल स्पेशलिस्ट की सलाह को न अपनाएं।
  • डिलीवरी के दौरान किसी तरह की जटिलता होने पर मेडिकल इंटरवेंशन या दवा का चुनाव करने में सक्षम न हों या ऐसा करने से मना कर दें।

प्राकृतिक डिलीवरी के लिए तैयारी कैसे करें

प्राकृतिक डिलीवरी की संभावना को बढ़ाने के लिए लेबर में प्रवेश करने से पहले पूरी जानकारी होना और तैयार रहना जरूरी है। यहां पर कुछ तरीके दिए गए हैं, जिनके द्वारा आप तैयारी कर सकती हैं: 

1. अपने डॉक्टर या गाइनेकोलॉजिस्ट से बात करें

प्राकृतिक डिलीवरी का चुनाव करने से पहले यह जरूरी है, कि आप अपने विश्वसनीय और अनुभवी मेडिकल प्रैक्टिशनर से इस बारे में बात करें, कि नेचुरल डिलीवरी आपके लिए सुरक्षित है या नहीं। 

2. डिलीवरी के लिए सही फैसिलिटी या वातावरण का चुनाव

चाहे आपका घर हो, बर्थ सेंटर हो या हॉस्पिटल हो, आपको सही फैसिलिटी या वातावरण का चुनाव करना जरूरी है, जहां आप नेचुरल डिलीवरी के द्वारा सबसे आरामदायक महसूस कर सकें। 

3. प्राकृतिक डिलीवरी के बारे में जानकारी लेना

नेचुरल डिलीवरी के बारे में अच्छी तरह से समझने के लिए इंटरनेट पर उपलब्ध सामग्री पढ़ें। आप अपने किसी मित्र या परिवारिक सदस्य से भी बात कर सकती हैं, जो प्राकृतिक डिलीवरी से गुजरी हो। रिलैक्सेशन तकनीक सीखने वाली क्लासेस भी आपके लिए फायदेमंद हो सकती हैं, जो कि नेचुरल डिलीवरी के दौरान काफी उपयोगी होती हैं। 

4. दर्द सहने के लिए प्राकृतिक तकनीकें सीखना

डिलीवरी की तारीख के कुछ सप्ताह या महीने पहले, उपलब्ध विभिन्न प्रकार की पेन (दर्द) मैनेजमेंट तकनीक को सीखें और उनकी प्रैक्टिस करें। इनमें मसाज थेरेपी, रिलैक्सिंग और ब्रीदिंग एक्सरसाइज, अरोमाथेरेपी, रिफ्लेक्सोलॉजी और अन्य कई तकनीक शामिल हैं। 

5. मेडिकल इंटरवेंशन के लिए तैयार रहना

पूरी तैयारी के बावजूद, प्रेगनेंसी के किसी भी पड़ाव के दौरान या डिलीवरी के दौरान जटिलताएं सामने आ सकती हैं। किसी भी तरह के खतरे या जटिलता से बचने के लिए (विशेषकर लेबर के दौरान) मेडिकल इंटरवेंशन का चुनाव के लिए तैयार रहना चाहिए। 

क्या प्राकृतिक डिलीवरी आपके लिए सही है?

जहां केवल एक सर्टिफाइड और अनुभवी मेडिकल प्रैक्टिशनर ही आपको यह बता सकता है, कि आपको प्राकृतिक डिलीवरी का चुनाव करना चाहिए या नहीं, वहीं यहां पर कुछ बिंदु दिए गए हैं, जो कि आपके लिए नेचुरल डिलीवरी की योग्यता का संकेत दे सकते हैं:

  • आपके गर्भ में केवल एक शिशु होना चाहिए, एक से अधिक नहीं।
  • आपका वजन जरूरत से ज्यादा नहीं होना चाहिए या फिर गर्भावस्था के दौरान आपका वजन बहुत अधिक नहीं बढ़ा होना चाहिए।
  • आप अपनी गर्भावस्था के पूरे 37 सप्ताह से गुजरने के लिए तैयार हैं।
  • आपके शरीर का आकर अच्छा है, आप नियमित एक्सरसाइज करती हैं और रेकमेंड की गई प्रेगनेंसी डाइट को फॉलो करती हैं।
  • आपको आपके परिवार या दोस्तों का पूरा सहयोग है।
  • आपमें दर्द सहने की क्षमता बहुत अच्छी है।

प्राकृतिक डिलीवरी कैसे होती है?

यहां पर डिलीवरी के 2 आम तरीके दिए गए हैं, जिससे आप यह समझ पाएंगी कि दर्द के बिना प्राकृतिक रूप से बच्चे को जन्म कैसे दिया जा सकता है:

  • लैमेज मेथड, जिसमें दर्द से राहत पाने के लिए दवाओं का हल्का इस्तेमाल किया जाता है। इस तरीके के द्वारा लेबर से गुजर रही महिला को यह तय करने का पूरा नियंत्रण होता है, कि वह दर्द निवारक दवाएं लेना चाहती है या नहीं।
  • ब्रैडली मेथड (इसे हस्बैंड कोच्ड बर्थ के नाम से भी जानते हैं) जिसमें बर्थ कोच की बड़ी हिस्सेदारी होती है। इस तरीके में दवाओं के इस्तेमाल की सख्त मनाही होती है और केवल अति आवश्यक होने पर ही इसका इस्तेमाल किया जाता है। इस तरीके में प्रेगनेंसी के दौरान एक्सरसाइज और अच्छे पोषण पर भी ध्यान दिया जाता है। इनके साथ ही प्रभावी रिलैक्सेशन तकनीकों और गर्भावस्था की जटिलताओं के लिए क्लास भी अटेंड किए जाते हैं।

प्राकृतिक रूप से बच्चे को जन्म देने में कितना समय लगता है?

प्राकृतिक डिलीवरी के लिए कोई तय समय सीमा नहीं होती है। और यह हर महिला में अलग भी हो सकता है। कुछ गर्भवती महिलाओं की डिलीवरी 2 घंटों में हो जाती है, वहीं अन्य महिलाओं में यह पूरे दिन या उससे अधिक भी चल सकता है। 

प्राकृतिक डिलीवरी में कैसा महसूस होता है?

हर महिला के लिए प्राकृतिक डिलीवरी का अनुभव अलग हो सकता है और एक ही महिला में पहली और उसके बाद की गर्भावस्थाओं में अलग अनुभव हो सकते हैं। विभिन्न महिलाओं में लेबर पेन भी अलग तरह का हो सकता है। जहां कुछ महिलाओं को यह पीरियड्स के दर्द जैसा महसूस होता है, वहीं कुछ महिलाओं को यह डायरिया के दर्द जैसा लग सकता है। 

प्राकृतिक डिलीवरी के लिए क्या नहीं करना चाहिए?

नेचुरल डिलीवरी के लिए क्या नहीं करना चाहिए, उन बातों के सूची यहां पर दी गई है:

  • नेचुरल डिलीवरी के बारे में सकारात्मक बातों पर ध्यान देना अच्छा है, लेकिन इसकी नकारात्मक कहानियों पर अधिक ध्यान न दें।
  • अपनी तरफ से हर संभव प्रयास करें, लेकिन अगर आप प्राकृतिक डिलीवरी के द्वारा बच्चे को जन्म नहीं दे पाते हैं, तो खुद पर इल्जाम न लगाएं। हमेशा याद रखें, कि डिलीवरी के प्रकार से ज्यादा जरूरी है बच्चे का स्वस्थ होना।
  • बहुत सी महिलाएं दवाओं के इस्तेमाल को चुनना चाहती हैं, खासकर तेज लेबर पेन के दौरान। अगर आपको भी ऐसा करने की इच्छा हो, तो खुद के बारे में नकारात्मक मत सोचें।
  • बच्चे को पुश करने के दौरान पॉटी आने की भारी संभावना के बावजूद, अपनी पूरी प्रेगनेंसी के दौरान अच्छा और संतुलित भोजन जरूर लें।

बच्चे को प्राकृतिक रूप से जन्म देने के लिए टिप्स

यहां पर कुछ टिप्स दिए गए हैं, जिनके द्वारा आप नेचुरल डिलीवरी की संभावना को बढ़ा सकती हैं:

  • दर्द को मैनेज करने के लिए आपने जो रिलैक्सेशन तकनीक और ब्रीदिंग एक्सरसाइज सीखी हैं, उन पर फोकस करें।
  • हर मिनट अपने दर्द को मैनेज करें, क्योंकि ज्यादातर लेबर कॉन्ट्रैक्शन केवल 1 मिनट तक ही रहते हैं।
  • प्राकृतिक रूप से बच्चे के बाहर आने की विजुअलाइजेशन तकनीक का इस्तेमाल करें।
  • अपने डिलीवरी के कमरे में अधिक लोगों की भीड़ जमा न करें, इससे आपका ध्यान नहीं भटकेगा।

हिप्नोसिस

दर्द के सेंसेशन को कम करने के लिए कुछ महिलाएं सेल्फ हिप्नोसिस का इस्तेमाल कर सकती हैं, ताकि लेबर के दौरान उनकी मांसपेशियों को आराम मिल सके। इस तरीके में प्रेगनेंसी के दिनों के दौरान बहुत सारी और ट्रेनिंग की जरूरत पड़ती है। 

हाइड्रोथेरेपी

हाइड्रोथेरेपी या पानी के इस्तेमाल को नेचुरल डिलीवरी के दौरान लेबर पेन को कम करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। कई बर्थ सेंटर और हॉस्पिटल लेबर में महिला को मदद करने के लिए बड़े-बड़े बाथटब उपलब्ध कराते हैं। पानी के अंदर जाने से (बॉडी टेंपरेचर या उससे कम तापमान का) पूरे शरीर का दबाव कम हो सकता है, मांसपेशियां रिलैक्स हो सकती हैं और आपका दर्द भी कम हो सकता है। 

एक्यूपंक्चर और एक्यूप्रेशर

जहां एक्यूपंक्चर और एक्यूप्रेशर के प्रभाव को लेकर अधिक रिसर्च नहीं की गई हैं, वहीं डॉक्टर ऐसा मानते हैं, कि कुछ खास बिंदुओं में इन तकनीकों के इस्तेमाल से दिमाग तक जाने वाले पेन इंपल्स को ब्लॉक किया जा सकता है। इसके साथ ही शरीर में प्राकृतिक पेन रिलीविंग एंडोर्फिंस रिलीज किए जा सकते हैं। 

चूंकि केवल कुछ डॉक्टर और मिडवाइफ ही इन तकनीकों में प्रशिक्षित होते हैं, ऐसे में लेबर के दौरान मदद के लिए आप सर्टिफाइड और स्किल्ड एक्यूपंक्चर या एक्यूप्रेशर स्पेशलिस्ट की सुविधाएं ले सकते हैं। 

डिलीवरी के बाद क्या होता है?

प्राकृतिक डिलीवरी के बाद आप नीचे दिए गए एहसासों में से कुछ का या सबका अनुभव कर सकती हैं:

  • अत्यधिक थकावट, जिसके साथ अत्यधिक नींद का एहसास।
  • डिलीवरी के बाद ठंड लगना या कंपकपी भी सामान्य है।
  • शरीर में दर्द, जिसमें आपके वजाइना के आसपास दर्द या गर्भाशय के क्षेत्र के आसपास क्रैम्प शामिल हैं।
  • अत्यधिक उल्लास का अहसास

जहां प्राकृतिक डिलीवरी के कई फायदे होते हैं, वहीं आपको यह हमेशा याद रखना चाहिए, कि वास्तविक लेबर के दौरान अगर आप दवाओं का इस्तेमाल करना चाहती हैं या अपना फैसला बदल देती हैं, तो यह बिल्कुल सामान्य है और इसमें कुछ भी अनुचित नहीं है। 

चाहे आप दवाओं का इस्तेमाल करें या ना करें, बच्चे का जन्म आपके जीवन का सबसे सुंदर और प्रफुल्लित करने वाला अनुभव होता है। 

यह भी पढ़ें: 

नॉर्मल डिलीवरी के लिए बेहतरीन योगासन
मां और बेबी के लिए नॉर्मल डिलीवरी के फायदे
सामान्य प्रसव – लक्षण, लाभ, प्रक्रिया एवं सुझाव

पूजा ठाकुर

Recent Posts

अ अक्षर से शुरू होने वाले शब्द | A Akshar Se Shuru Hone Wale Shabd

हिंदी वह भाषा है जो हमारे देश में सबसे ज्यादा बोली जाती है। बच्चे की…

1 day ago

6 का पहाड़ा – 6 Ka Table In Hindi

बच्चों को गिनती सिखाने के बाद सबसे पहले हम उन्हें गिनतियों को कैसे जोड़ा और…

1 day ago

गर्भावस्था में मिर्गी के दौरे – Pregnancy Mein Mirgi Ke Daure

गर्भवती होना आसान नहीं होता और यदि कोई महिला गर्भावस्था के दौरान मिर्गी की बीमारी…

1 day ago

9 का पहाड़ा – 9 Ka Table In Hindi

गणित के पाठ्यक्रम में गुणा की समझ बच्चों को गुणनफल को तेजी से याद रखने…

3 days ago

2 से 10 का पहाड़ा – 2-10 Ka Table In Hindi

गणित की बुनियाद को मजबूत बनाने के लिए पहाड़े सीखना बेहद जरूरी है। खासकर बच्चों…

3 days ago

10 का पहाड़ा – 10 Ka Table In Hindi

10 का पहाड़ा बच्चों के लिए गणित के सबसे आसान और महत्वपूर्ण पहाड़ों में से…

3 days ago