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मेडिकल रिपोर्ट्स के अनुसार, ये देखा गया है कि हर 1000 नवजात शिशुओं में से 2 या 3 बच्चे सुनाई न देने की समस्या से पीड़ित होते हैं। जिसकी वजह से नवजात शिशुओं में हियरिंग स्क्रीनिंग टेस्ट करवाना बहुत जरूरी होता है। अगर बच्चे में सुनने की क्षमता को लेकर किसी भी प्रकार की समस्या देखी गई तो इसमें विशेष रूप से दो टेस्ट किए जाते हैं – ओएई (ओटाकॉस्टिक एमिशन) टेस्ट और एएबीआर (ऑटोमेटेड ऑडिटरी ब्रेनस्टेम रेस्पॉन्स) टेस्ट। न्यूबॉर्न हियरिंग स्क्रीनिंग टेस्ट क्या होता है और इसकी आवश्यकता कब और कैसे होती है यह जानने के लिए इस लेख को पूरा पढ़ें।
बच्चे को सुनाई न देना या बहरापन होना बच्चे के डेवलपमेंट को गंभीर रूप से प्रभावित करता है। क्योंकि शिशु सुनकर ही बोलना सीखता है। बच्चे अपने आसपास के वातावरण से सीखते हैं। हालांकि जिन बच्चों को हियरिंग प्रॉब्लम होती है वो चीजों को देखकर सीख सकते हैं, लेकिन बोलने में असमर्थ होंगे क्योंकि वे अपने आसपास की आवाज सुन और समझ नहीं सकते हैं। माँ द्वारा कुछ बोलने पर उसे कुछ समझेगा नहीं बल्कि कुछ शोर सा लगेगा। कुल मिलाकर सुनने की समस्या से बच्चे की स्पीच एबिलिटी यानी बोलने की क्षमता भी प्रभावित होती है।
एक हियरिंग टेस्ट से पता चल सकता है कि बच्चे को सुनने में कोई प्रॉब्लम है या नहीं और इसके आधार पर बच्चे को स्पीच थेरेपी के लिए भेजा जा सकता है। ऑडियोलॉजिस्ट के अनुसार, समय रहते बच्चे में हियरिंग लॉस की समस्या का उपचार कराने से बच्चे को बोलने, भाषा के स्किल, पढ़ने और लिखने में कोई परेशानी नहीं होती है।
छोटे बच्चों के लिए होने वाले हियरिंग टेस्ट में ओटाकॉस्टिक एमिशन टेस्ट (ओएई) और ऑटोमेटेड ऑडिटरी ब्रेनस्टेम रिस्पॉन्स टेस्ट (एएबीआर) शामिल हैं। किस टाइप का टेस्ट किया जाना है ये ज्यादातर हॉस्पिटल पर निर्भर करता है। कुछ हॉस्पिटल में दोनों टेस्ट कराए जाते हैं, जो ज्यादा बेहतर होते हैं, लेकिन महंगे पड़ते हैं। बाकि केस में पहले ओएई स्क्रीन टेस्ट किया जाता है और अगर यह पता लगाने में विफल हो जाता है, तो डॉक्टर एएबीआर टेस्ट कराने के लिए बोलते हैं।
स्क्रीनिंग टेस्ट जल्द से जल्द किया जा सकता है और वैसे आमतौर पर बच्चे के पैदा होने के बाद उसे हॉस्पिटल से डिस्चार्ज करने पहले ही यह टेस्ट कर लिया जाता है। एक्सपर्ट का सुझाव है कि बच्चे का टेस्ट तब किया जाना चाहिए, जब शिशु लगभग एक महीने का हो जाए, क्योंकि इस समय तक वह साउंड के बीच स्पष्ट रूप से अंतर कर सकता है। हालांकि, टेस्ट को कुछ समय के बाद किए जाने में कोई बुराई नहीं है, आप तीन महीने के अंदर बच्चे का हियरिंग टेस्ट करा सकती हैं।
जैसा कि पहले भी बताया गया है, बच्चे के लिए दो टाइप के हियरिंग टेस्ट किए जाते हैं एएबीआर और ओएई, तो आइए जानते हैं ये टेस्ट कैसे किए जाते हैं:
नवजात शिशुओं में ओटाकॉस्टिक एमिशन टेस्ट बच्चे के कान के अंदरूनी हिस्से में साउंड वेव के मूवमेंट का पता लगाने के लिए किया जाता है। जिसके लिए उसके कानों में एक ध्वनि पारित की जाती है और बच्चे का रिस्पॉन्स चेक किया जाता है।
टेस्ट तब किया जाता है जब बच्चा शांत और सो रहा होता है। बेहतर रिजल्ट पाने के लिए, बच्चे को फीड कराएं या उसे अपनी गोद में लिए रहें ताकि वो कंफर्टेबल महसूस करे।
एएबीआर टेस्ट में सेंसर की मदद से बच्चे के ब्रेन को कंप्यूटर से कनेक्ट किया जाता है। छोटे सॉफ्ट इयरफोन का उपयोग करके क्लिकिंग के साउंड को ट्रांसमिट करके यह ब्रेनवेव एक्टिविटी टेस्ट किया जाता है।
एक बार जब ओएई टेस्ट कामयाब हो जाता है, जिसमें 5 से 10 मिनट से ज्यादा का समय नहीं लगता है, तो इसका रिजल्ट आने में लगभग तीस सेकंड लगते हैं जो स्क्रीन पर दिखाई देगा।
एएबीआर टेस्ट में लगभग दो घंटे तक का समय लग सकता है। टेस्ट पूरा होने के तुरंत बाद रिजल्ट आपसे शेयर कर दिया जाता है।
डेसीबल हियरिंग लेवल (डीबी एचएल ) में हियरिंग को मापा जाता है। ओएई टेस्ट के लिए, 30 डीबी एचएल की रेंज को अपर लिमिट माना जाता है। अगर एक नवजात शिशु में 30 डीबी एचएल से अधिक की रीडिंग आती है, तो यह माना जाता है कि कुछ हद तक हियरिंग लॉस की समस्या बच्चे में देखी गई है।
एएबीआर एक स्क्रीनिंग टेस्ट है और ये बच्चे में किस हद तक हियरिंग लॉस है उसकी पुष्टि नहीं करता है। यह बस टेस्ट के पास या फेल होने की जानकारी देता है जहाँ कंप्यूटर सेंसर अपनी कैलकुलेशन के आधार पर दो रिजल्ट में से कोई एक रिजल्ट देता है।
जब नवजात शिशु ओएई टेस्ट दौरान रिपॉन्स नहीं करता है, तो डॉक्टर फिर से टेस्ट करते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि ओएई हियरिंग टेस्ट परफेक्ट हियरिंग में फेल हो सकता है। टेस्ट फेल हो जाने का कारण ये हो सकता है कि बच्चे के ईयर कैनाल में जमाव हो, शोर वाली जगहों पर टेस्ट करना या अगर बच्चा रोने लगता है, तो ये सभी बातें टेस्ट के रिजल्ट को प्रभावित कर सकती हैं। यह देखा गया है कि जो बच्चे पहली बार टेस्ट में असफल होते हैं, उनका दूसरा टेस्ट कामयाब रहता है।
यदि आपका बच्चा दूसरी बार ओएई टेस्ट में विफल रहता है, तो ऑडियोलॉजिस्ट बच्चे का एएबीआर टेस्ट करेगा ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वास्तव में बच्चे को सुनने में समस्या हो रही है। इसके बाद, फॉलोअप टेस्ट किए जाते हैं जिसमें अन्य स्पेशलिस्ट शामिल होते हैं जैसे पेडिएट्रिक ऑडिओलॉजिस्ट और एक ईएनटी फिजिशियन।
उन बच्चों के इलाज के लिए बहुत सारे विकल्प हैं जो हियरिंग लॉस की समस्या से पीड़ित हैं। स्पेशलिस्ट जो विशेष रूप से उन बच्चों के साथ डिटेल में काम करते हैं जिन्हे हियरिंग लॉस की समस्या हो, उनकी गाइडेंस से बच्चे का वीक पॉइंट सामने आता है जिसे मजबूत करने पर काम किया जाता है। यह ट्रीटमेंट मेडिकल की तुलना में ज्यादा डेवलपमेंटल है। पेडिएट्रिक ऑडिओलॉजिस्ट जो हियरिंग लॉस के मेडिकल पहलुओं को देखता है और उसे ठीक करने का प्रयास करता है और कुछ केस में सर्जरी की भी सलाह दी जा सकती है।
ऊपर बताए गए टेस्ट केवल सुनने की समस्या को चेक करने में मदद करते हैं जो जन्म से ही बच्चे में होता है। यह गर्भावस्था से संबंधित इशू या जेनेटिक्स के कारण भी हो सकता है। हालांकि, इसका मतलब यह नहीं है कि बच्चे ने हियरिंग टेस्ट पास कर लिया है, तो भविष्य कोई परेशानी नहीं हो सकती है। सिर पर चोट लगने, लगातार तेज म्यूजिक सुनने और कान का इंफेक्शन बच्चे में हियरिंग लॉस की समस्या का कारण बन सकते हैं।
स्क्रीनिंग टेस्ट नियमित रूप से बच्चे के हर मेडिकल चेकअप के दौरान किया जाना चाहिए। कोई भी संदेह होने पर एक्सपर्ट या ऑडिओलॉजिस्ट से मिलें और आगे क्या करना होगा, इस विषय पर उनसे बात करें।
निष्कर्ष: हियरिंग लॉस से बच्चे को काफी परेशानी हो सकती है, क्योंकि यह उसे सामजिक और शैक्षिक रूप से सक्षम होने से रोक सकता है। कम उम्र में एक स्क्रीनिंग टेस्ट पेरेंट्स को सही कदम उठाने में मदद कर सकता है। शुरुआत में ही स्पीच थेरेपी और माइनर सर्जरी जैसे उपचार किए जाने से बच्चे में सुनने की समस्या को ठीक किया जा सकता है।
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