शिशु

नवजात शिशु में पीलिया का इलाज कैसे करें

यह जानकर कि आपके नवजात शिशु को जॉन्डिस यानी पीलिया है, आप परेशान हो सकती हैं। हालांकि, न्यूबॉर्न बच्चों को पीलिया होना अब एक आम बात है। फिर भी, कभी-कभी यह ज्यादा गंभीर हो जाने पर बच्चे को हॉस्पिटल में निगरानी में रखा जाता है और उसे जल्दी ठीक करने के लिए उपचार किए जाते हैं। एक्सचेंज ट्रांसफ्यूजन एक ऐसी मेडिकल प्रक्रिया है जो गंभीर पीलिया हो जाने या रक्त से संबंधित कोई बीमारी होने पर बच्चे की जान बचाने का काम करता है। उपचार के इस तरीके में बच्चे के खून को स्वस्थ खून से रिप्लेस किया जाता है। 

जॉन्डिस और एक्सचेंज ट्रांसफ्यूजन के लाभ

जन्म के बाद पहले सप्ताह के दौरान नवजात शिशुओं में पीलिया होना काफी कॉमन है। इससे बच्चे की त्वचा और आँखों में पीलापन नजर आने लगता है और ये तब होता है जब बच्चे के शरीर में बिलीरुबिन नामक केमिकल की मात्रा ज्यादा हो जाती है। 

हालांकि यह खतरनाक और जानलेवा हो सकता है, इसलिए आपके डॉक्टर एक्सचेंज ट्रांसफ्यूजन की मदद से इस समस्या को जल्दी ठीक करने प्रयास करते हैं । इस प्रोसेस में सबसे पहले कैथेटर की मदद से बच्चे के शरीर में मौजूद खून निकाला जाता है  और फिर या तो डोनर का स्वस्थ खून चढ़ाया जाता है या प्लाज्मा का आईवी ट्रांसफ्यूजन किया जाता है। इस तरीके का उपयोग रक्त असामान्यता जैसे सिकल सेल एनीमिया जैसी समस्या वाले वयस्कों और बड़े बच्चों में किया जाता है। 

एक्सचेंज ट्रांसफ्यूजन की प्रक्रिया – ब्लड ट्रांसफ्यूजन ट्रीटमेंट

इस बात का खास ध्यान रखें कि हॉस्पिटल या क्लिनिक में ये प्रक्रिया किसी एक्सपर्ट प्रोफेशनल द्वारा ही की जानी चाहिए। डॉक्टर बच्चे की हाथ की नस के अंदर कैथेटर डालते हैं। एक साइकिल के अनुसार रक्त निकाला जाता है। हर साइकिल के बाद, हेल्दी ब्लड या प्लाज्मा को बच्चे के शरीर के अंदर दूसरे ट्यूब से पंप किया जाता है।

शिशुओं में एक्सचेंज ट्रांसफ्यूजन से जुड़े जोखिम

इस पूरी प्रक्रिया में आमतौर पर साइड इफेक्ट्स होते नहीं हैं और यदि हों भी तो ट्रांसफ्यूजन के छह महीने के अंदर होते हैं। अच्छी बात यह है कि इस तरीके को आमतौर पर जॉन्डिस का इलाज करने के लिए उपयोग किया जाता है और बहुत कम ही ऐसा होता है कि ये बच्चे के लिए घातक साबित हो।

  • जहाँ बच्चे को सुई लगाई गई हो, वहाँ हल्के घाव हो सकते हैं और इन्हें ठीक होने में कुछ दिन लग सकते हैं।
  • बच्चे को बुखार, मतली, छाती में दर्द या एलर्जिक रिएक्शन की समस्या पैदा हो सकती हैं। ऐसे मामलों में डॉक्टर ट्रांसफ्यूजन को तुरंत रोक देते हैं। वह इस ट्रीटमेंट को कुछ समय बाद दोबारा शुरू भी कर सकते हैं और नहीं भी।
  • बहुत ही दुर्लभ मामलों में, अगर सावधानीपूर्वक जांच न की गई हो, बच्चे को एचआईवी से संक्रमित किसी व्यक्ति के रक्त या हेपेटाइटिस बी या हेपेटाइटिस सी जैसी बीमारी से पीड़ित व्यक्ति का खून चढ़ाया जा सकता है।
  • एक्सचेंज ट्रांसफ्यूजन की प्रक्रिया से गुजरने वाले बच्चे में आयरन ज्यादा होने का जोखिम भी हो सकता है। यह बच्चे के लिवर, हार्ट और फेफड़ों को नुकसान पहुँचा सकता है।

न्यूबॉर्न बच्चों को एक्सचेंज ट्रांसफ्यूजन के बाद क्या किया जाता है

एक बार जब डॉक्टर एक्सचेंज ट्रांसफ्यूजन की प्रक्रिया को पूरा कर लेते हैं, तो वह बच्चे का ब्लडप्रेशर, तापमान और हार्ट बीट चेक करते हैं। यदि ये सभी रीडिंग नॉर्मल आती है, तो बच्चे के शरीर से ट्यूब निकाल दिया जाता है। डॉक्टर कुछ दिनों तक बच्चे के ब्लड को मॉनिटर करते हैं, जिसके दौरान उसे ऑब्जर्वेशन के लिए हॉस्पिटल में रहना पड़ता है।

एक्सचेंज ट्रांसफ्यूजन द्वारा पीलिया का उपचार करने में लंबा समय लगता है और बच्चे और पेरेंट्स दोनों के लिए यह एक मुश्किल समय हो सकता है। हालांकि, एक बार जब ये प्रोसेस अच्छी तरह से जाए, तो आप राहत की सांस ले सकती हैं, क्योंकि अब आपके बच्चे की सेहत पूरी तरह से ठीक है। अगर बच्चे का पीलिया का निदान किया गया है, तो डॉक्टर से परामर्श करें और याद रखें कि आप एक्सचेंज ट्रांसफ्यूजन का ऑप्शन हमेशा अपना सकती हैं।

यह भी पढ़ें:

नवजात बच्चों को होने वाले इन्फेक्शन
शिशुओं की 15 आम स्वास्थ्य समस्याएं और बीमारियां
नवजात शिशुओं में पीलिया के लिए 10 प्राकृतिक उपचार

समर नक़वी

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