शिशुओं की 15 आम स्वास्थ्य समस्याएं और बीमारियां

शिशुओं की 15 आम स्वास्थ्य समस्याएं और बीमारियां

जन्म के तुरंत बाद शिशु सबसे ज्यादा नाजुक होते हैं। वे कुछ जन्मजात समस्याओं के साथ पैदा हो सकते हैं या फिर आसानी से संक्रमित हो सकते हैं। अगर आप एक नए पैरंट हैं, तो आपको शिशुओं में होने वाली आम स्वास्थ्य समस्याओं और उनसे निपटने के बारे में जानकारी होनी चाहिए, ताकि आप अपने शिशु की देखभाल सबसे बेहतर संभव तरीके से कर सकें। 

नवजात शिशुओं और छोटे बच्चों में आम स्वास्थ्य समस्याएं

चूंकि नवजात शिशु मां के गर्भ की सुरक्षा से, इस दुनिया में प्रवेश करते हैं, इसलिए वे जन्म के तुरंत बाद काफी नाजुक होते हैं। यह वह समय होता है, जब वे सांस लेना, पेट भरना और ऐसे ही दूसरी चीजें सीखते हैं। इस समय उनके फेफड़े, हृदय, दिमाग, किडनी, लीवर आदि भी तालमेल बनाना सीखते हैं। किसी तरह की असुविधा होने पर वे केवल रो कर ही दूसरों को बता सकते हैं। एक पैरंट होने के नाते, आपको अपने बच्चे की असुविधा के कारण को समझने की कोशिश करनी चाहिए और अपने बच्चे के डॉक्टर से तुरंत संपर्क करना चाहिए। 

1. बर्थ इंजरी (जन्म के समय चोट)

कभी-कभी डिलीवरी के दौरान बच्चे को शारीरिक चोट लग सकती है। इसे बर्थ इंजरी या बर्थ ट्रॉमा कहते हैं। बर्थ इंजरी शिशु को बर्थ-कैनल से बाहर निकालने के दौरान फोरसेप के इस्तेमाल से भी हो सकती है। अधिकतर बच्चे चाइल्डबर्थ के ट्रौमा से जल्दी ही ठीक हो जाते हैं। सामान्य डिलीवरी से पैदा होने वाले बच्चों में वैक्युम के कारण सिर की त्वचा पर सूजन हो सकती है, उन्हें भी फोरसेप के इस्तेमाल के कारण चोट लग सकती है। 

2. जौंडिस

नवजात शिशुओं और बच्चों में जौंडिस बहुत आम होता है। यह तब होता है, जब बच्चे के खून में बिलीरुबिन की मात्रा अधिक होती है। इससे त्वचा का रंग पीला पड़ जाता है। यह समस्या बहुत ही आम है, क्योंकि बहुत सारे बच्चे निओनेटल जॉन्डिस के साथ पैदा होते हैं। यह इसलिए होता है, क्योंकि बच्चे का लीवर अपरिपक्व होता है और वह खून में मौजूद अतिरिक्त बिलीरुबिन को निकालने में सक्षम नहीं होता है। निओनेटल जौंडिस आमतौर पर समय के साथ ठीक हो जाता है। अधिकतर मामलों में बच्चे के जन्म के 2 से 3 सप्ताह के अंदर इसे ठीक हो जाना चाहिए। हालांकि, अगर यह 3 सप्ताह से अधिक समय तक बना रहे, तो यह किसी छुपी हुई समस्या का एक संकेत हो सकता है और ऐसे में माता-पिता को बच्चे के डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। 

3. कोलिक

कोलिक शिशुओं में होने वाली एक बहुत ही आम समस्या है, पर आम होना इसे माता-पिता के लिए आसान नहीं बनाता। जब एक बच्चा बिना किसी कारण, विशेषकर शाम के समय, लगातार रोता रहता है, तो उसे कोलिक हो सकता है। कोलिक के किसी सटीक कारण की जानकारी नहीं है और इसके पीछे की कुछ थ्योरी बताती है, कि यह गैस, पेट का दर्द पैदा करने वाले हॉरमोंस, रोशनी और आवाज से ओवरस्टिमुलेशन या एक बढ़ते हुए डाइजेस्टिव सिस्टम के कारण हो सकता है। फुलटर्म बच्चों में कोलिक एक-दो सप्ताह की उम्र में शुरू होता है और बच्चे की उम्र 3 महीने की होने तक इसे ठीक हो जाना चाहिए। लेकिन अगर यह स्थिति बनी रहती है, तो यह मिल्क फार्मूला के इनटोलरेंस या किसी दूसरी छुपी हुई स्थिति के कारण हो सकता है। इस स्थिति की जांच के लिए डॉक्टर से संपर्क करना सही होता है। 

4. एब्डोमिनल डिस्टेंशन

एब्डोमिनल डिस्टेंशन नवजात और स्वस्थ शिशु में हो सकता है। शिशुओं में एब्डोमिनल डिस्टेंशन के सबसे खास कारणों में अत्यधिक हवा का निगलना हो सकता है। एक पैरंट होने के नाते आपको अपने शिशु के पेट का अवलोकन करना चाहिए। नवजात शिशुओं के पेट मुलायम और बाहर की ओर निकले हुए होते हैं। अगर आपके बच्चे का पेट छूने पर सख्त और फूला हुआ महसूस हो, तो यह गैस या कब्ज के कारण हो सकता है। जब बच्चे का शरीर दूध को एडजस्ट करना शुरू कर देता है, तो यह समस्या ठीक हो जानी चाहिए। लेकिन अगर एक नीलापन बना रहता है और पेट में सूजन बनी रहती है, तो यह अंदरूनी अंगों की कोई छिपी हुई गंभीर समस्या हो सकती है। 

5. नीली त्वचा और एपनिया

नवजात शिशुओं के हाथ और पैर नीले हो सकते हैं। हालांकि, शरीर में ब्लड सरकुलेशन बेहतर होने पर यह नीला रंग ठीक हो जाता है। लेकिन अगर आप बच्चे के मुंह के आसपास नीलापन देखते हैं और यह लंबे समय तक बना रहता है और इसके साथ ही सांस लेने में दिक्कत आती है, तो इसका मतलब हो सकता है, कि बच्चे के दिल और फेफड़े अच्छी तरह से काम नहीं कर रहे हैं। अगर बच्चे की त्वचा नीलापन लिए हुए है और उसकी सांसें 15-20 सेकेंड के लिए रुक जाती हैं, तो उसे एपनिया हो सकता है। यह हृदय की किसी छुपी हुई समस्या का संकेत हो सकता है, जिसे तुरंत मेडिकल अटेंशन और इलाज की जरूरत होती है। 

6. उल्टी

कभी-कभी बच्चे पिए गए दूध को उल्टी करके निकाल देते हैं, जो कि एक आम बात है। यही कारण है, कि माँएं बच्चों की उल्टी रोकने के लिए बच्चों की डकार करवाती हैं। लेकिन, अगर दूध पिलाने के बाद आपका बच्चा उल्टी कर देता है और आप उसमें हरा रंग देखते हैं और उसके बाद भी उसकी उल्टियां जारी रहती हैं, तो इसके पीछे कोई गंभीर समस्या हो सकती है। शिशु आसानी से डिहाइड्रेटेड हो सकते हैं और उन्हें मेडिकल मदद और इलाज की जरूरत हो सकती है। लेक्टोज और ब्रेस्ट मिल्क इनटोलरेंस भी एक आम समस्या है, जिसमें मेडिकल सपोर्ट और देखरेख की जरूरत होती है। लगातार उल्टियां और दूध फेंकना किसी छुपे हुए इंफेक्शन या पाचन संबंधी किसी समस्या के कारण हो सकता है। 

7. खांसी

अगर दूध का बहाव बहुत तेज हो, तो दूध पीने के दौरान बच्चे को खांसी हो सकती है। दूध पीने के दौरान लगातार होने वाली खांसी, फेफड़ों या पाचन तंत्र की किसी समस्या को दर्शाती है। रात के समय लगातार खांसी करना हूपिंग कफ (काली खांसी) या रेस्पिरेट्री प्रॉब्लम का संकेत हो सकता है। अगर आपका बच्चा दूध पीने के दौरान या रात के समय खांसी करता है, तो आपको जितनी जल्दी हो सके उसे डॉक्टर के पास ले जाना चाहिए। 

8. सांस लेने में तकलीफ

यह तब होता है, जब नाक की नली में ब्लॉकेज के कारण बच्चे को पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिल पाता है। ऑक्सीजन की कमी के कारण बच्चे की त्वचा नीली हो सकती है। नवजात शिशु को सामान्य रूप से सांस लेना सीखने में कुछ घंटे लग सकते हैं। एक बार जब सामान्य सांसे स्थापित हो जाती हैं, तो यह नीली रंगत ठीक हो जानी चाहिए। अगर घरघराहट या त्वचा का नीलापन लगातार बना रहे, तो डॉक्टर से संपर्क करना जरूरी हो जाता है। 

9. एनीमिया

जिन माँओं को एनीमिया होता है, उनके बच्चे भी एनीमिया के साथ पैदा होते हैं। एनीमिया एक ऐसी स्थिति है, जिसमें लाल रक्त कोशिकाएं बच्चे की आयु के अनुसार सामान्य से कम होती हैं। हिमोग्लोबिन की कमी को एनीमिया कहते हैं। यह खून में ऑक्सीजन के निचले स्तर और खून के गाढेपन को दिखाती है। एनीमिया का अगर इलाज ना किया जाए, तो यह जानलेवा हो सकता है। इसलिए इसका इलाज किया जाना जरूरी है। 

10. बुखार

बुखार एक संकेत होता है, कि शरीर किसी संक्रमण से लड़ रहा है। हालांकि नवजात शिशुओं और बच्चों में 101 डिग्री से तेज और लगातार रहने वाला बुखार, बेहोशी और दिमाग की खराबी का कारण बन सकता है। अगर आपके बच्चे को तेज बुखार है, तो आपको उसे डॉक्टर के पास ले कर जाना चाहिए और जरूरी दवाएं देनी चाहिए। 

11. स्किन प्रॉब्लम

डायपर रैश और क्रैडल कैप जैसी समस्याएं, त्वचा की आम समस्याएं होती हैं, जो कि शिशु के लिए दर्दनाक हो सकती हैं। लंबे समय तक गीले डायपर या गंदे डायपर पहने रहने के कारण या डायपर में मौजूद पदार्थों और रंगों के एलर्जी रिएक्शन के कारण, बच्चे में डायपर रैश हो सकता है। डायपर को समय-समय पर बदलने और एक अच्छी डायपर रैश क्रीम लगाने की सलाह दी जाती है। अगर बच्चे को क्रैडल कैप की समस्या है, तो यह हेयर फॉलिकल्स के आसपास की स्किन ग्लैंड के द्वारा अधिक तेल के उत्पादन के कारण हो सकती है। क्रैडल कैप का मुख्य लक्षण है, सिर की त्वचा पर पपड़ी का बनना। आप बच्चे की सिर की त्वचा की पपड़ी को निकालने या उसे हल्का करने के लिए, नियमित रूप से सौम्य शैंपू से बच्चे की बालों को साफ कर सकते हैं। यह स्थिति कुछ महीनों में ठीक हो जाती है, लेकिन अगर ऐसा ना हो तो बच्चे के डॉक्टर से संपर्क करें। 

12. कान के इंफेक्शन

शिशुओं में कान के इंफेक्शन आम होते हैं। जब एक बच्चे को ईयर इंफेक्शन होता है, तो वह अपने प्रभावित कान को खींचता है और चिड़चिड़ा रहता है। वायरल इनफेक्शन आम होते हैं, लेकिन ये कुछ दिनों में ठीक हो जाते हैं।  वहीं, बैक्टीरियल इनफेक्शन लंबे समय तक रह सकते हैं और इससे सुनने की क्षमता में कमी आ सकती है और इसमें एंटीबायोटिक की जरूरत हो सकती है। 

13. ओरल थ्रश

ओरल थ्रश, शिशु के मुंह में होने वाला एक इंफेक्शन है। इसे ओरल कैंडीडायसिस के नाम से भी जाना जाता है और यह संक्रमण शिशुओं में आम होता है। इस स्थिति में जीभ या गालों के अंदरूनी हिस्से में सफेद परत बन जाती है।  अगर आपके बच्चे को ओरल थ्रश है और वह इतना गंभीर है, कि उसमें एंटीफंगल दवाओं की जरूरत है, तो उसकी जांच डॉक्टर से करवाएं। 

14. सर्दी और फ्लू

सर्दी-जुकाम लगभग हर नवजात शिशु और बच्चे को प्रभावित करता है, क्योंकि वह बाहरी दुनिया से संतुलन बनाने की कोशिश कर रहा होता है। हालांकि, सर्दी और फ्लू गंभीर प्रतीत नहीं होते हैं, लेकिन इन्हें हल्के में नहीं लेना चाहिए, क्योंकि इनसे शिशुओं और नवजात बच्चों में निमोनिया और दूसरी गंभीर बीमारियां हो सकती हैं। 

15. डायरिया

शिशुओं में डायरिया एंटीबायोटिक और इन्फेक्शन का एक आम रिएक्शन होता है। अगर आपके बच्चे को डायरिया है, तो उसे ओरल सलाइन और पानी देकर अच्छी तरह से हाइड्रेटेड रखें। साथ ही, उसकी पॉटी पर भी नजर रखें। अगर आप उसके रंग और टेक्सचर में कोई बदलाव महसूस करते हैं, तो डॉक्टर से संपर्क करें। डायरिया की तरह ही कब्ज भी नवजात शिशु और बच्चों में एक आम समस्या होती है। अगर आपका बच्चा 3 दिन से अधिक समय से कब्ज का शिकार है, तो बच्चे के डॉक्टर से संपर्क करें। 

अक्सर जैसे-जैसे बच्चे मजबूत होते जाते हैं और समस्याओं से लड़ना सीखते जाते हैं, वैसे-वैसे नवजात शिशुओं और बच्चों में होने वाली बीमारियां और स्वास्थ्य समस्याएं अपने आप ही ठीक होती जाती हैं। लेकिन माता-पिता को सावधान रहना चाहिए। अपने बच्चे को नियमित रूप से पीडियाट्रिशियन से चेकअप करवाएं, साफ सफाई का ध्यान रखें और सबसे जरूरी बात, अपने दिमाग को ठंडा और शांत रखें। अगर आपके बच्चे को किसी तरह की असुविधा है, तो अपने डॉक्टर से संपर्क करें। इसी बीच अपने बच्चे के साथ उसके आगमन और संतुलन बनाने की प्रक्रिया का आनंद लें। हर खांसी या हर छींक गंभीर नहीं होती है। 

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