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दुनिया में ज्यादातर बच्चे अच्छी हेल्थ के साथ पैदा होते हैं, लेकिन कभी-कभी कुछ बच्चे ऐसे नहीं होते हैं। गर्भ में रहने के दौरान और जन्म के बाद शुरूआती समय में बच्चे का इम्यून सिस्टम डेवलप हो रहा होता है और इसीलिए कमजोर होता है। कमजोर इम्युनिटी होने के कारण नवजात शिशु को इन्फेक्शन होने का ज्यादा खतरा होता है। यही कारण है कि न्यूबॉर्न बच्चों को कुछ आम इन्फेक्शन्स होने की संभावना बहुत ज्यादा होती है। यहाँ इसी संबंध में आपकी जानकारी के लिए कुछ जरूरी बातें बताई गई हैं।
नवजात बच्चों में होने वाले सबसे कॉमन इन्फेक्शन
न्यूबॉर्न बेबीज में किसी प्रकार के इन्फेक्शन से जुड़ी बीमारी गर्भ के अंदर या पैदा होने के बाद दोनों ही मामलों में हो सकती है। यहाँ नवजात शिशु में होने वाले इन्फेक्शन के बारे में आपको बताया गया है और साथ ही इसके होने के कारण, लक्षण और जोखिम भी बताए गए हैं।
1. ग्रुप बी स्ट्रेप्टोकोकल डिजीज
ग्रुप बी स्ट्रेप्टोकोकल डिजीज एक इन्फेक्शन है, इसमें बच्चा माँ के गर्भ में ही इस इन्फेक्शन के संपर्क में आ जाता है।
यह क्या है?
ये वजाइना या रेक्टम में मौजूद एक बैक्टीरिया के कारण होता है, जो बच्चे के जन्म से ठीक पहले उसे इन्फेक्टेड कर देता है।
लक्षण
इस इन्फेक्शन के लक्षण हैं-
- असावधानी
- कर्कश रवैया
- फीडिंग से जुड़ी समस्याएं
- तेज बुखार
- सांस लेने मे तकलीफ
जोखिम
इस बीमारी से जुड़े जोखिमों में शामिल हैं-
- निमोनिया
- मेनिंजाइटिस
- बैक्टेरिमिया (ब्लड इन्फेक्शन)
निदान और उपचार
आपके बच्चे के डॉक्टर ब्लड, यूरिन सेरेब्रोस्पाइनल फ्लूइड सैंपल लें सकते हैं ताकि कल्चर के बारे पता लगाया जा सके। हॉस्पिटल के अंदर बच्चे को ध्यान से मॉनिटर किया जाता है और ट्रीटमेंट के तौर पर एंटीबायोटिक दवाएं दी जा सकती हैं।
2. लिस्टेरियोसिस
बच्चों को लिस्टेरियोसिस तभी होता है जब गर्भावस्था के दौरान माँ इस बैक्टीरिया से संक्रमित होती है।
यह क्या है?
लिस्टेरियोसिस मोनोसाइटोजेन्स एक इन्फेक्शन है जो निमोनिया, सेप्सिस और मेनिंजाइटिस जैसी अन्य बीमारियों का कारण बनता है। लिस्टेरियोसिस मुख्य रूप से अपाश्चुरीकृत भोजन और ठीक तरह से खाना न पके होने के कारण उत्पन्न होता है।
लक्षण
ये ग्रुप बी स्ट्रेप्टोकोकल डिजीज (जीबीएस) के समान ही होता है और इसमें शामिल होने वाले लक्षण इस प्रकार हैं:
- बुखार
- मांसपेशियों में दर्द
- डायरिया
जोखिम
लिस्टेरियोसिस के जोखिम इस प्रकार हैं-
- प्रीमैच्योर डिलीवरी
- स्टिलबर्थ
- निमोनिया
- सेप्सिस
- मेनिंजाइटिस
निदान और उपचार
इसके निदान के लिए ब्लड सैंपल लिया जाता है। इसके ट्रीटमेंट के लिए आमतौर पर शिशुओं में बैक्टीरिया को खत्म करने के लिए एंटीबायोटिक दवाओं का उपयोग किया जाता है।
3. मेनिंजाइटिस
मेनिंजाइटिस एक बीमारी है जो नवजात अवस्था के दौरान या जन्म के बाद होती है। यह बैक्टीरिया, फंगस और अन्य वायरस के जरिए बच्चे में पहुँच सकती है।
यह क्या है?
मेनिंजाइटिस एक इन्फेक्शन है जो मेम्ब्रेन की सूजन का कारण बनता है जो रीढ़ और बच्चे के दिमाग से घिरा होता है। कमजोर इम्यून सिस्टम वाले बच्चे जर्म्स के संपर्क में आने से इस बीमारी से पीड़ित हो सकते हैं।
लक्षण
मेनिंजाइटिस की पहचान नीचे बताए गए लक्षणों के माध्यम से की जा सकती है, जो इस प्रकार हैं-
- रोना
- सुस्त पड़ना
- बहुत ज्यादा सोना
- फीडिंग के दौरान समस्या होना
- शरीर का टेम्परेचर अनियमित होना
- सांस लेने में परेशानी होना
- रैशेज
- पीलिया
- डायरिया
जोखिम
मेनिंजाइटिस से जुड़े जोखिम इस प्रकार हैं-
- मृत्यु
- सीखने में समस्या होना
- किडनी डैमेज
- मेमोरी प्रॉब्लम
- सुनने में परेशानी
निदान और उपचार
डॉक्टर बच्चे का ब्लड सैंपल ले सकते हैं, या मेनिंजाइटिस के निदान के लिए एमआरआई या सीटी स्कैन कर सकते हैं। इसका ट्रीटमेंट बच्चे में होने वाले मेनिंजाइटिस के टाइप और डिग्री पर निर्भर करेगा। मेनिंजाइटिस के ज्यादातर मामलों में एंटीबायोटिक, एंटीवायरल मेडिसिन के कॉम्बिनेशन के साथ इसे ठीक किया जाता है।
4. ई-कोलाई इन्फेक्शन
ई-कोलाई इन्फेक्शन को एस्चेरिया-कोलाई इन्फेक्शन के रूप में जाना जाता है। यह ई-कोलाई बैक्टीरिया से उत्पन्न होता है जो हर इंसान में पाया जाता है।
यह क्या है?
यह एक इन्फेक्शन है जो नवजात शिशुओं और छोटे बच्चों में यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन का कारण बनता है, यह तब होता जब बच्चे का जन्म बर्थिंग कैनल के माध्यम से होता है। ई-कोलाई इन्फेक्शन के दौरान घर में हॉस्पिटल जैसा एनवायरमेंट बनाकर रखना पड़ता है।
लक्षण
ई-कोलाई इन्फेक्शन के लक्षणों में शामिल हैं-
- बुखार
- भूख की कमी
- उदासी
- चिड़ाचिड़ापन
जोखिम
इस इन्फेक्शन से जुड़े जोखिमों में शामिल हैं-
- आंतों की दीवार का डैमेज हो जाना
- जानलेवा किडनी फेल होना
निदान और उपचार
ई-कोलाई इन्फेक्शन का निदान करने के लिए बच्चे की पॉटी का सैंपल लिया जाता है और इसका पता लगाया जाता है। फिलहाल इस इन्फेक्शन के लिए अभी कोई ट्रीटमेंट उपलब्ध नहीं है, बस देखभाल के तौर पर ज्यादा से ज्यादा आराम करना और हाइड्रेटेड रहना जरूरी है।
5. कंजंक्टिवाइटिस
कंजंक्टिवाइटिस को ‘पिंक आई‘ के रूप में भी जाना जाता है और यह एक संक्रामक बीमारी है जो दूसरे बच्चों में भी फैल सकती है।
यह क्या है?
जब वायरल या बैक्टीरियल इन्फेक्शन के कारण आपकी बच्चे की आँखों में सूजन आ जाती है, तो इसे कंजंक्टिवाइटिस कहा जाता है।
लक्षण
बच्चों में कंजंक्टिवाइटिस के लक्षण कुछ इस प्रकार हैं-
- आँखों में सूजन होना
- आँखें लाल हो जाना
- आँखों से डिस्चार्ज
जोखिम
कंजक्टिवाइटिस के मामले में नजर जाने का खतरा रहता है, अगर इसका ट्रीटमेंट न किया जाए तो खासकर तब।
निदान और उपचार
आमतौर पर, कंजंक्टिवाइटिस का निदान लैब टेस्ट के माध्यम से किया जाता है जो आँखों से निकलने वाले डिस्चार्ज का सैंपल लेकर किया जाता है। इसके ट्रीटमेंट में ज्यादातर एंटीबायोटिक दवाओं और आई ड्रॉप का इस्तेमाल किया जाता है। गंभीर मामलों में, बच्चे को हॉस्पिटल में भर्ती भी कराया जाता है।
6. कैंडीडायसिस
नवजात शिशु में कैंडीडायसिस वजाइनल डिलीवरी के कारण हो सकता है या जब वो ब्रेस्टफीडिंग करते हैं। यह शरीर में पाए जाने वाले कैंडिडा यीस्ट की बहुत ज्यादा वृद्धि के कारण होता है।
यह क्या है?
कैंडीडायसिस एक इन्फेक्शन है जो बच्चों में डायपर रैशेज या ओरल थ्रश के रूप में प्रकट होता है।
लक्षण
कैंडीडायसिस के लक्षण इस प्रकार हैं-
- योनि में रैशेज
- योनि में दर्द
- योनि में जलन और खुजली होना
- योनि से सफेद, गाढ़ा, गंधहीन डिस्चार्ज होना या पानीदार डिस्चार्ज होना
जोखिम
इस इन्फेक्शन से जुड़े जोखिम हैं-
- कमजोर इम्यून सिस्टम
- नैपी रैश
निदान और उपचार
डॉक्टर इस इन्फेक्शन का निदान करने के लिए बच्चे के मुँह में स्वाब डालकर सैंपल लेते हैं और इसे लैब टेस्ट के लिए भेज देते हैं। बच्चों को फीडिंग बाद मिकोनाजोल और निस्टैटीन जैसे ऐंटिफंगल दवाएं दी जाती हैं।
7. सेप्सिस
सेप्सिस एक इन्फेक्शन है जो पूरे शरीर में फैल जान का खतरा पैदा कर सकता है। कमजोर इम्यून सिस्टम वाले बच्चे इसके ज्यादा शिकार होते हैं।
यह क्या है?
जब शरीर में रिलीज केमिकल इन्फेक्शन से लड़ने में विफल हो जाते हैं और अंदर सूजन पैदा करने लगते हैं, तो अलग-अलग ऑर्गन फेल होना शुरू हो जाते हैं जिसकी वजह से सेप्सिस की समस्या पैदा होती है। सेप्सिस, के गंभीर मामलों में, बच्चे की जान तक जा सकती है।
लक्षण
सेप्सिस के लक्षण हैं-
- पेशाब में कमी
- मूड स्विंग होना या अचानक साइकोलॉजिकल चेंजेस होना
- सांस लेने में परेशानी होना
- अनियमित धड़कन
- पेट में दर्द
जोखिम
सेप्सिस से जुड़े जोखिम हैं-
- कई अंगों का फेल हो जाना
- ब्लड क्लॉट
- सेप्सिस शॉक
- ब्लड प्रेशर कम होना
- मृत्यु
निदान और उपचार
सेप्सिस का निदान करने के लिए डॉक्टर ब्लड और यूरिन सैंपल ले सकते हैं। इसके अलावा हो सकता है कुछ एक्स रे, यूरिन और ब्लड टेस्ट किए जाएं ताकि ब्लड क्लॉट और ऑर्गन फेलियर को देखा जा सके। ट्रीटमेंट के लिए हॉस्पिटल में अर्ली स्टेज सेप्सिस का ट्रीटमेंट शुरू कर दिया जाता है और निदान की पुष्टि होने से पहले ही एंटीबायोटिक दवाएं देना शुरू कर दी जाती हैं, फिर अगर जरूरत हुई तो ब्लड प्रेशर की दवाएं और आईवी फ्लूइड दिया जाता है।
8. इन्फ्लुएंजा
इन्फ्लुएंजा संक्रामक बीमारी है और जो एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैल सकती है। यदि आपका शिशु किसी इन्फ्लूएंजा से ग्रसित व्यक्ति के संपर्क में आता है या उस वायरस से संक्रमित वस्तुओं को छूता है, तो उसे इन्फ्लूएंजा होने का खतरा होता है।
इन्फ्लुएंजा क्या है?
इन्फ्लुएंजा को बच्चों में ’फ्लू’ के रूप में जाना जाता है और इसमें हल्के बुखार से लेकर तेज बुखार तक हो सकता है। गंभीर मामलों में, यह कंडीशन कॉम्प्लिकेशन पैदा कर सकती है, इसलिए बच्चों को इससे बचाना बहुत जरूरी है।
लक्षण
इन्फ्लूएंजा के लक्षणों में शामिल हैं-
- नाक बहना
- मांसपेशियों में दर्द
- शरीर का कांपना या ठंडा लगना
- बुखार
- थकान
जोखिम
बच्चों के लिए इन्फ्लूएंजा से जुड़े जोखिम इस प्रकार हैं-
- हाइड्रेटेड न रहना
- भूख में कमी
- चिड़चिड़ापन
- सांस लेने में परेशानी
- बुखार और रैशेज
निदान और उपचार
इन्फ्लुएंजा का निदान इसके शारीरिक लक्षणों के अनुसार होता है, जैसे 2 सप्ताह या उससे अधिक समय तक बुखार रहना। ऐसे में आपके डॉक्टर तुरंत बच्चे के ट्रीटमेंट के लिए एंटीवायरल दवाएं लिख सकते हैं। ऑप्शनल में आप बच्चे को फ्लू शॉट भी दिला सकती हैं ताकि आप इससे बचाव के लिए एक्स्ट्रा प्रोटेक्शन ले सकें।
9. नवजात में होने वाला हर्पीस
नवजात में होने वाला हर्पीस सीरियस इन्फेक्शन होता है जो वजाइनल बर्थ के जरिए माँ से बच्चे में पारित हो जाता है। अगर आपको गर्भावस्था में 6 सप्ताह में इन्फेक्शन हो गया था, तो बच्चे के भी इससे इंफेक्टेड होने के चांसेस हैं।
यह क्या है?
नवजात में होने वाला हर्पीस एक इन्फेक्शन है जो कमजोर इम्यून सिस्टम वाले बच्चों को ज्यादा प्रभावित करता है। इससे न्यूबॉर्न बच्चा सुस्त रहता है और उसे फीडिंग की इच्छा नहीं होती है।
लक्षण
इस इन्फेक्शन के लक्षण हैं-
- ठीक से दूध न पीना
- सांस तेज हो जाना
- सांस लेने में परेशानी होना
- जीभ और त्वचा का नीला पड़ना
- रैशेज
- सुस्ती
- उदासी
जोखिम
इस इन्फेक्शन से जुड़े जोखिम में शामिल है-
- अंधापन
- मृत्यु
- सीखने में परेशानी
- दौरे
- स्पास्टिसिटी
निदान और उपचार
डॉक्टर हर्पीस का निदान करने के लिए ब्लिस्टर और स्पाइनल फ्लूइड का सैंपल ले सकते हैं। यूरिन और ब्लड टेस्ट के साथ आगे के निदान के लिए एमआरआई स्कैन भी शामिल है।
हर्पीस के माइल्ड केस में, एसाइक्लोविर का उपयोग अर्ली ट्रीटमेंट के तौर पर किया जाता है ताकि इन्फेक्शन को फैलने से रोका जा सके। गंभीर मामले में, इसका ट्रीटमेंट हॉस्पिटल में ही किया जाता है।
10. जर्मन मीजल्स
जर्मन मीजल्स को आमतौर पर ‘रूबेला’ के रूप में जाना जाता है और यह रूबेला वायरस के कारण होता है। यह एक माइल्ड इन्फेक्शन है जो इम्यून सिस्टम डेवलप कर रहे बच्चों को प्रभावित करता है।
यह क्या है?
जर्मन मीजल्स एक वायरल इन्फेक्शन है, जो इससे इन्फेक्टेड व्यक्ति के नवजात शिशु के संपर्क में आने से फैलता है।
लक्षण
इसके लक्षण इस प्रकार हैं-
- गुलाबी या लाल रैशेज होना
- मांसपेशियों में दर्द
- सिरदर्द
- भरी हुई नाक या बहती हुई नाक
- हल्का बुखार (102 डिग्री फॉरेनहाइट से नीचे)
- आँखों का लाल होना
- लिम्फ नोड्स में सूजन
- गर्दन अकड़ना
- कान में दर्द
जोखिम
इससे होने वाले जोखिम में शामिल है-
- दिल से संबंधित समस्या
- ग्रोथ डिफेक्ट होना
- इंटेलेक्चुअल डिफेक्ट
- अंगों का ठीक से काम न करना
- स्टिलबर्थ
निदान और उपचार
डॉक्टर ब्लड सैंपल लेकर लैब टेस्ट के जरिए इस वायरस का पता लगाते हैं। गर्भवती माँओं के लिए, उपचार घर पर किया जाता है और हाइपरइम्यून ग्लोब्युलिन जैसी एंटीबॉडी ट्रीटमेंट के तौर पर दी जाती है। रूबेला वायरस से प्रभावित होने वाले बच्चों को हॉस्पिटल में ट्रीटमेंट की जरूरत होती है।
11. कंजेनिटल सिफलिस
कंजेनिटल सिफलिस प्रेगनेंसी के दौरान गर्भ के अंदर होता है। यह बहुत संक्रामक होता है और नवजात शिशुओं को प्रभावित करता है।
यह क्या है?
यह एक जानलेवा इन्फेक्शन है जो मांओं से शिशुओं को हो सकता है।
लक्षण
इसके लक्षणों में शामिल हैं-
- बुखार
- चिड़चिड़ापन
- वजन न बढ़ना
- भरी नाक
- रैशेज
जोखिम
इसके जोखिम इस प्रकार हैं-
- गंभीर न्यूरोलॉजिकल डिफेक्ट
- मिस्कैरेज
- स्टिलबर्थ
निदान और उपचार
इस इन्फेक्शन के निदान के लिए ब्लड टेस्ट किया जाता है। इस इन्फेक्शन के लिए एकमात्र ट्रीटमेंट ऑप्शन पेनिसिलिन इंजेक्शन है।
क्या न्यूबॉर्न बच्चों में इन्फेक्शन को रोकना संभव है?
हाँ। बच्चे को इन्फेक्शन से बचाने के लिए फ्लू शॉट्स या एंटीबॉडी दिए जाने की सलाह दी जाती है। इन इन्फेक्शन का पता लगाने के लिए प्रेगनेंसी के दौरान हॉस्पिटल में अपनी जांच कराएं। नवजात शिशु को इन्फेक्शन से बचाने के लिए कुछ अन्य टिप्स –
- सुरक्षित संभोग
- होने वाली माँ की जांच व परीक्षण
- उचित रूप से पका हुआ और पाश्चुरीकृत खाना
- भोजन से पहले और बाद में हाथ धोना
- एक पौष्टिक आहार और हेल्दी लाइफस्टाइल
- इनमें से किसी भी इन्फेक्शन से प्रभावित लोगों के संपर्क से बचना
हेल्दी लाइफस्टाइल और साफ-सफाई का ध्यान रखने से बच्चे को इन्फेक्शन से बचाया जा सकता है। इन इन्फेक्शन से सावधान रहें और प्रेगनेंसी के दौरान डॉक्टर से अपॉइंटमेंट ले कर अपना चेकअप कराती रहें।
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