गर्भावस्था

नॉर्मल डिलीवरी में एपिसियोटोमी (भगछेदन) की जरूरत

बच्चे को जन्म देना एक बहुत जटिल प्रक्रिया होती है। सामान्य प्रसव के दौरान भी कभी-कभी मामला गंभीर हो जाता है जैसे बच्चे का आकार बड़ा होना, उसका सिर अटकना या कभी बच्चे को साँस लेने में तकलीफ होती है आदि मामलों में बच्चे को बाहर निकालने में थोड़ी दिक्कत आती है। तब माँ के गर्भ से बच्चे को दुनिया में सुरक्षित रूप से लाना सबसे महत्वपूर्ण होता है। ऐसे में एपिसियोटोमी करनी पड़ती है। जब बच्चे को बाहर निकालने के लिए महिला की योनि के निचले हिस्से में चीरा लगाया जाता है तो उसे एपिसियोटोमी या भगछेदन कहा जाता है। आम बोलचाल की भाषा में महिलाएं इसे छोटा ऑपरेशन भी कहती हैं।

एपिसियोटोमी (भगछेदन) क्या है?

बच्चे के जन्म से ठीक पहले, योनि और गुदा के बीच के मांसपेशी वाले हिस्से में छेद को बड़ा करने के लिए एक चीरा लगाया जाता है। इस प्रक्रिया को एपिसियोटोमी कहा जाता है। यह प्रसव का रास्ता बड़ा कर देता है ताकि बच्चा सुरक्षित रूप से बाहर आ सके।

एपिसियोटोमी की जरुरत क्यों पड़ती है?

नीचे बताई गई स्थितियों में एपिसियोटोमी करने की आवश्यकता पड़ सकती है:

  • जन्म के समय शिशु के सिर को समायोजित करने के लिए पेरिनियम धीरे-धीरे फैलता है। कभी-कभी प्रसव जल्दी होने लगता है और पेरिनियम को पूरी तरह से फैलने के लिए पर्याप्त समय नहीं मिलता। तब इस स्थिति में एपिसियोटोमी करनी पड़ती है।
  • यदि शिशु के दिल की धड़कन कम हो जाए तो यह फीटल डिस्ट्रेस यानी भ्रूण संकट को दर्शाता है, इसका मतलब यह हुआ कि बच्चा प्रसव की प्रक्रिया झेल नहीं पा रहा है। ऐसे मामलों में, तुरंत डिलीवरी करने की जरूरत होती है और शिशु को जल्दी से बाहर निकालने के लिए पेरिनियम में एक चीरा लगाया जाता है। इस तरह की डिलीवरी में या तो फोरसेप्स उपयोग होता है या फिर वैक्यूम की मदद से प्रसव कराया जाता है।
  • यदि शिशु का सिर काफी समय तक बाहर निकलने के बजाय पेरिनियम से अंदर की ओर धकेला जा रहा हो और इससे फीटल ट्रॉमा यानी भ्रूण को आघात का खतरा हो, तो डॉक्टर एपिसियोटोमी की सलाह दे सकते हैं।

एपिसियोटोमी कैसे की जाती है?

जब एपिसियोटोमी करने का निर्णय ले लिया जाता है, तो आपको लोकल एनेस्थीसिया दिया जाता है यानी उस जगह को सुन्न कर दिया जाता है। बच्चे के जन्म से ठीक पहले सर्जिकल कैंची के इस्तेमाल से पेरिनियम में एक छोटा चीरा लगाया जाता है। हालांकि, यदि शिशु के सिर के दबाव के कारण पेरिनियम पहले से ही सुन्न हो गया हो, या यदि आपको एपिड्यूरल दिया गया हो, तो बिना एनेस्थीसिया दिए एपिसियोटोमी की जाती है।

चीरे की गहराई के आधार पर एपिसियोटोमी अलग-अलग प्रकार की होती है। यह चीरा ऊपरी भी हो सकता है जिसमें केवल त्वचा कटती है, या यह गहरा भी लग सकता है।

  • जब केवल त्वचा को काटा जाता है, तो इसे पहली डिग्री की एपिसियोटोमी कहा जाता है।
  • यदि नीचे का टिश्यू भी कट जाता है तो यह दूसरी डिग्री की एपिसियोटोमी होती है।
  • अगर गुदा के आसपास की मांसपेशी कटती है, तो यह तीसरी डिग्री की एपिसियोटोमी हुई।
  • यदि चीरा मलाशय म्यूकोसा तक चला जाता है, तो इसे चौथी डिग्री की एपिसियोटोमी कहा जाएगा।

शिशु के जन्म के बाद, एक और एनेस्थीसिया यह सुनिश्चित करने के लिए दिया जाता है कि आपका शरीर पूरी तरह से सुन्न हो, और इसके बाद चीरे को सिल दिया जाता है।

चीरा दो प्रकार का हो सकता है:

  • खड़ा चीरा जिसे मिडलाइन या मीडियन कट कहते हैं – यह योनि से मलाशय तक का चीरा होता है। यह चीरा आसानी से ठीक हो सकता है, लेकिन यह चीरा के गुदा तक फैलने की संभावना ज्यादा होती है।
  • कोणीय चीरा जिसे मीडिओ-लेटरल कट कहा जाता है – यह चीरा लगभग 3-4 सेमी का होता है। यह योनि से शुरू होता है लेकिन मलाशय से दूर तिरछा जाता है। इस प्रकार के चीरे से गुदा का हिस्सा प्रभावित होने की संभावना कम होती है, लेकिन यह आसानी से ठीक नहीं हो सकता है और दर्दनाक हो सकता है।

एपिसियोटोमी से जुड़े जोखिम

जैसा कि पहले ही बताया गया है, एपिसियोटोमी एक चीरा होता है, और सभी सर्जिकल प्रक्रियाओं की तरह, इसमें भी कुछ जोखिम होते हैं। कुछ मामलों में, एपिसियोटोमी से होने वाली जटिलताएं इस प्रकार हो सकती हैं:

  • चीरे के आसपास संक्रमण हो सकता है।
  • जहां चीरा लगा है उस जगह पर नील पड़ना और सूजन हो सकती है जिससे रक्तस्राव हो सकता है।
  • घाव को ठीक होने में ज्यादा समय लग सकता है।
  • घाव में दर्द हो सकता है जिससे संभोग से कुछ समय तक दूर रहना पड़ सकता है।
  • इससे भविष्य में मल मूत्र त्याग करने पर अनियंत्रण का खतरा हो सकता है।

एपिसियोटोमी इन्फेक्शन

यहाँ एपिसियोटोमी संक्रमण के उन लक्षणों के बारे में बताया गया है, जिन पर आपको ध्यान देना चाहिए:

  1. टांकों के पास सूजन
  2. घाव के पास ज्यादा लालिमा
  3. घाव से पस या खून आना
  4. घाव के आसपास गर्माहट महसूस होना
  5. घाव से बदबू आना
  6. दर्द का लगातार बढ़ना
  7. 100.4 डिग्री या उससे ज्यादा का बुखार
  8. ग्रंथियों में सूजन के लक्षण

पेरिनियम फटने से बचने के लिए आपको क्या करना चाहिए?

इसका उपाय यह है कि आपके पेरिनियम को शिशु को समायोजित करने के लिए धीरे-धीरे फैलने दिया जाए। प्रसव की गति धीमी और नियंत्रित होनी चाहिए जिससे पेरिनियम को धीरे-धीरे फैलने में मदद मिलेगी और इसके फटने से बचाव होगा। जब शिशु का सिर बाहर आने लगे तो हो सकता है कि आपको जोर लगाने की इच्छा पर नियंत्रण रखना पड़े।

पेरिनियम को फटने से बचाने के लिए आप ये उपाय कर सकती हैं:

  • बच्चे को बाहर पुश करते समय खड़ी रहें या स्क्वाट की स्थिति में बैठें।
  • जोर से धकेलने के बजाय, 5 से 7 सेकंड के छोटे अंतराल पर धक्का दें।
  • डॉक्टर को पेरिनियम पर उल्टा दबाव डालने को कहें ताकि इसे सहारा मिले और जब शिशु का सिर दिखने लगे तो यह फटे नहीं।
  • संतुलित आहार और प्रसवपूर्व विटामिन लेने से पेरिनियम के फटने की संभावना को कम किया जा सकता है।
  • प्रसव के दूसरे चरण के आखिर में पेरिनियम की जगह पर गर्म सिकाई करें। इससे जोर लगाकर बच्चे को बाहर निकालने के बाद पेरिनियम के फटने की संभावना कम हो जाती है।

वैसे तो डॉक्टर पूरी कोशिश करते हैं कि चीरा लगाने की आवश्यकता ना पड़ें। लेकिन आपको यह समझना चाहिए कि कुछ मामलों में यह आपके नियंत्रण से परे हो सकता है और तब चीरा लगाने के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं हो सकता। यदि आपके शिशु का आकार बड़ा हो या वह किसी जटिल स्थिति में हो या यदि आपका पेरिनियम नाजुक हो, तब उस स्थिति में चीरा लगाना अपरिहार्य हो जाता है।

एपिसियोटोमी के बाद आप पूरी तरह ठीक कब होती हैं?

यदि आपकी एपिसियोटोमी होती है तो आपको चलने या बैठने में दर्द हो सकता है क्योंकि घाव आपके शरीर की बेहद नाजुक जगह पर है। सीधा सा नियम है कि चीरा जितना गहरा होगा, ठीक होने में उतना ही समय लगेगा। अगर चीरा बड़ा है तो आपको कुछ दिनों तक या हो सकता है कि एक महीने तक तकलीफ हो। सामान्यतः एपिसियोटोमी में लगने वाले टांकें अपने आप घुलने वाले होते हैं और एक महीने के अंतराल में आप ठीक हो जाती हैं।

यहां एपिसियोटोमी से जल्दी उबरने के लिए कुछ उपाय बताए गए हैं:

नोट: आप डॉक्टर द्वारा बताए गए उपायों को ही अपनाएं, हम यहाँ आपको कुछ सामान्य जानकारी दे रहे हैं।

  • बच्चे के जन्म के तुरंत बाद और अगले 12 घंटों तक रुक-रुक कर घाव पर बर्फ से सिकाई करें।
  • पेशाब करते समय आप योनि पर गुनगुना पानी डाल सकती हैं, और पेशाब होने के बाद स्क्वीज बोतल का इस्तेमाल करके धो सकती हैं।
  • मल त्याग के दौरान घाव पर एक साफ पैड रखें।
  • बैठते समय सावधानी बरतें, नीचे होते समय कूल्हों को भींच लें और किसी मुलायम तकिए या गद्देदार रिंग पर बैठें।
  • आप डॉक्टर की लिखी दवाएं, दर्द निवारक या मल को नरम करने वाली दवाएं ले सकती हैं। आमतौर पर एपिसियोटोमी के घाव पर दर्द निवारक मलहम या क्रीम का असर नहीं होता है।
  • नहाने के पानी में एसेंशियल लैवेंडर तेल की कुछ बूंदें मिलाएं। यदि डॉक्टर हाँ कहें, तो आप गुदा और योनि के बीच के टिश्यू पर लैवेंडर एसेंशियल तेल लगा सकती हैं।
  • जैसे-जैसे घाव ठीक होगा, आपकी तकलीफ कम होने लगेगी। कभी-कभी उस जगह पर मवाद या आपको तेज दर्द के साथ बुखार आ सकता है। ऐसा होने पर तुरंत डॉक्टर से मिलें क्योंकि इसका कारण संक्रमण हो सकता है।
  • गीले शरीर को पोंछते समय आगे से पीछे की ओर पोंछें ताकि मलाशय से घाव की तरफ जाकर कोई कीटाणु इन्फेक्शन न पैदा कर सके।
  • जितना हो सके घाव को हवा लगने दें।
  • कब्ज से बचने के लिए ढेर सारे तरल पदार्थ पिएं और आहार में पर्याप्त रेशेदार पदार्थ लें।

आप फिर से सेक्स कब शुरू कर सकती हैं?

ध्यान रखिए कि एपिसियोटोमी के बाद यौन संबंध बनाने की कोशिश तभी करनी चाहिए जब पेरिनियम पूरी तरह से ठीक हो जाए। आमतौर पर इसमें प्रसव के बाद लगभग चार से छह हफ्ते लगते हैं। उसके बाद, बस डॉक्टर की मंजूरी आवश्यक होती है। यदि घाव गंभीर या गहरा है, तो किसी भी समस्या से बचने के लिए यौन संबंध बनाने से पहले पूरी तरह से ठीक होना जरूरी है।

शुरुआत में थोड़ा कसाव और परेशानी हो सकती है। गुनगुने पानी से नहाएं और भरपूर फोरप्ले करें। संभोग के लिए वह स्थिति चुनें जो आपके लिए आरामदायक हो, जैसे या तो ऊपर रहें पर या बगल में जहां से आप अपने हिसाब से संसर्ग कर सकें।

जितना हो सके सहज रहें। स्तनपान से एस्ट्रोजन हार्मोन का स्तर कम हो जाता है, और इससे योनि में चिकनाहट कम हो सकती है। आप पानी में घुलनशील लुब्रिकेंट का उपयोग कर सकती हैं। कई महिलाएं सेक्स के दौरान लुब्रिकेंट का इस्तेमाल तब तक करती रहती हैं जब तक कि वे दूध पिलाना बंद नहीं कर देतीं।

यदि फिर भी संभोग के दौरान दर्द हो डॉक्टर से बात करें। हो सकता है कि आपको पेल्विक रिहैबिलिटेशन की जरूरत हो और इसके लिए किसी विशेषज्ञ को दिखाना पड़ सकता है।

जैसा कि आप जानती ही हैं, सावधानी हटी, दुर्घटना घटी! जीवन के इतने महत्वपूर्ण मुद्दे पर समझौता न करना ही बेहतर है। एपिसियोटोमी करवाने से पहले देख लें कि सभी सावधानियों का ध्यान रखा गया हो। यदि प्रसव के बाद ज्यादा समय तक दर्द बना रहे तो इसका डॉक्टर से मिलकर उपचार लें।

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श्रेयसी चाफेकर

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