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गर्भधारण की खबर सुनना किसी भी जोड़े के लिए सबसे कीमती पलों में से एक होता है, और इस दिन का उन्हें बेसब्री से इंतजार भी रहता है। लेकिन आजकल हमारी जीवनशैली में हो रहे बदलाव व अन्य कारणों की वजह से महिलाओं की प्रजनन क्षमता में कमी आ रही है और जिस कारण कई विवाहित जोड़े प्राकृतिक रूप से गर्भधारण नहीं कर पा रहे हैं, जिस वजह से उन्हें कई तरह के उपचार व चिकित्सकीय मदद लेने की जरूरत पड़ रही है।
गर्भधारण के लिए कुछ महिलाएं प्रजनन उपचार का सहारा लेती हैं जिसे अंग्रेजी में फर्टिलिटी ट्रीटमेंट कहते हैं और इस प्रक्रिया के दौरान उन्हें कुछ दवाएं और इंजेक्शन लेने पड़ते हैं जिससे वो जल्दी गर्भधारण कर सकें। लेकिन कभी कभी इन दवाओं का कुछ महिलाओं में दुष्प्रभाव भी देखा जाता है जिससे उन्हें ओवेरियन हाइपरस्टिम्यूलेशन सिंड्रोम (ओएचएसएस) नाम की समस्या हो सकती है। ओएचएसएस की समस्या में प्रजनन क्षमता बढ़ाने के लिए दी जाने वाली दवाओं के कारण ओवरी बड़ी हो जाती है या उसमें सूजन आ जाती है और अंडाशय में कई छोटे-छोटे गाठें जिन्हें हम सिस्ट भी कहते हैं वो बन जाती हैं। ज्यादातर देखा जाए तो ओएचएसएस एक आम समस्या होती है, लेकिन कुछ मामलों में यह गंभीर भी हो सकता है, इसलिए सावधानी बरतना जरूरी है।
ओवेरियन हाइपरस्टिम्यूलेशन सिंड्रोम क्या है, इसके लक्षणों की पहचान कैसे करें, साथ ही इसका उपचार क्या है आदि जानने के लिए इस लेख को पूरा पढ़ें।
जैसे कि ऊपर बताया गया है प्राकृतिक रूप से गर्भधारण न कर पाने पर कुछ महिलाओं को उनकी प्रजनन क्षमता बढ़ाने के लिए कुछ दवाएं व इंजेक्शन दिए जाते हैं, कभी-कभी जिसके दुष्प्रभाव से महिला के अंडाशय यानि ओवरी में सूजन आ जाती है और उसमें कई छोटे-छोटे गाठें बन जाती हैं, इस स्थिति को ‘ओवेरियन हाइपरस्टिम्यूलेशन सिंड्रोम’ कहा जाता है। जब प्रजनन के लिए दी जाने वाली हार्मोनल दवाओं की मात्रा ज्यादा हो जाती है, तब महिला को ओवेरियन हाइपरस्टिम्यूलेशन सिंड्रोम होने का खतरा बढ़ जाता है। इसमें अंडाशय बड़े हो जाते हैं जिसकी वजह से आपको काफी दर्द भी महसूस होता है। हालांकि ज्यादातर मामलों में यह स्थिति बहुत खतरनाक नहीं होती है, लेकिन कुछ महिलाओं में यह स्थिति गंभीर रूप भी ले सकती है, जिसमें वजन बढ़ना, पेट में दर्द, उल्टी और सांस लेने में तकलीफ जैसे लक्षण नजर आ सकते हैं।
नीचे ऐसे कुछ मुख्य कारण दिए गए हैं जो महिलाओं में ओवरी हाइपरस्टिम्यूलेशन सिंड्रोम (ओएचएसएस) का खतरा बढ़ा सकते हैं:
एचसीजी (ह्यूमन कोरियोनिक गोनाडोट्रोपिन) एक ऐसा हार्मोन है, जो गर्भधारण में मदद करता है। इसे उन महिलाओं को दिया जाता है जिनमें एचसीजी हार्मोन की कमी होती है और इस हार्मोन के कम होने के कारण महिला की प्रजनन क्षमता पर भी प्रभाव पड़ता है। लेकिन, अगर इस हार्मोन की मात्रा अधिक हो जाए, तो उसकी वजह से ओवेरियन हाइपरस्टिम्यूलेशन सिंड्रोम हो सकता है। ओएचएसएस केवल अंडाशय से अंडे निकलने (ओव्यूलेशन) के बाद होता है। यह स्थिति किन हालातों में देखी जा सकती है यह आपको नीचे बताया गया है जो कुछ इस प्रकार है
आईवीएफ के इलाज के बाद लगभग 3 से 6% महिलाएं ओएचएसएस से प्रभावित हो सकती हैं।
आमतौर पर डिम्बग्रंथि हाइपरस्टिम्यूलेशन सिंड्रोम गर्भधारण का उपचार करने के 10 दिन बाद भी विकसित हो सकता है, जिनके लक्षण कुछ इस प्रकार हैं:
आमतौर पर ओवेरियन हाइपरस्टिम्यूलेशन सिंड्रोम का खतरा बहुत गंभीर नहीं होता है। लेकिन अंडाशय को उत्तेजित करने वाले इलाज से गुजरने वाली लगभग 100 में से 1 महिला में ओएचएसएस का मामला गंभीर हो सकता है। आइए जानते हैं गंभीर स्थिति में आपको किस तरह की जटिलताओं का सामना करना पड़ सकता है, जो कुछ इस प्रकार दी गई हैं:
ओएचएसएस का निदान करने के लिए चिकित्सक आपके लक्षणों की जांच करेंगे जिसके लिए उन्हें कुछ परीक्षण करवाते हैं। इनमें खून की जांच और भी अल्ट्रासाउंड शामिल होता है। अगर आपका वजन अचानक से बढ़ रहा है, कमर का आकार बढ़ रहा है, पेट में दर्द हो रहा है, सांस लेने में परेशानी हो रही है या पेशाब में समस्या हो रही है, तो इन लक्षणों के पाए जाने पर चिकित्सक तुरंत ओएचएसएस की जांच करवाने के लिए कह सकते हैं।
आपको इसके लिए योनि अल्ट्रासाउंड करवाने की जरूरत पड़ सकती है, जिसमें अंडाशय बड़े दिखते हैं और तरल से भरी कई सारी छोटी छोटी गांठ साफ तौर पर नजर आती है। अगर आपको ओएचएसएस की समस्या हुई तो इस जांच में आपको बीटा एचसीजी का स्तर भी बहुत ज्यादा बढ़ा हुआ नजर आ सकता है। परीक्षण में आए गुर्दे की खराब कार्यक्षमता भी ओएचएसएस की पुष्टि करने में आपकी मदद कर सकती है।
ओवेरियन हाइपरस्टिम्यूलेशन सिंड्रोम के छोटे मामलों में आप आमतौर पर निदान के एक हफ्ते के अंदर ही अपनी स्थिति में सुधार पाएंगी। लेकिन इसके लिए आपको खास डाइट की जरूरत होगी जो आपको जल्दी ठीक करने मदद करेगी है। इस समय आपको प्रोटीन युक्त आहार लेने की सलाह दी जाती है। किसी भी नए आहार को शुरू करने से पहले अपने चिकित्सक से सलह जरूर लें। हालांकि ओएचएसएस के गैर भीर मामले में भी चिकित्सक की बारीकी से निगरानी जरूरी है। इसके अलावा आपको यह भी सुझाव दिया जाता है कि इस समय आप पर्याप्त मात्रा में तरल पदार्थ का सेवन करें, ताकि आपको डिहाइड्रेशन की समस्या न हो।
गंभीर ओएचएसएस के मामलों में आपको अस्पताल में भर्ती होना पड़ सकता है ताकि आपको बेहतर रूप से इलाज मिल सके। इस दौरान आपको शरीर में नस के माध्यम से तरल पदार्थ देना (आइवी फ्ल्यूड), एंटीकोएगुलेंट्स (खून पतला करने वाली दवाएं), इलेक्ट्रोलाइट का संतुलन बनाएं रखना जरूरी है। साथ ही इसमें कार्डियोवैस्कुलर संबंधी और ओएचएसएस रेडियोलॉजी का ध्यान रखना बेहद आवश्यक हो जाता है।
ओएचएसएस के इलाज के लिए कोई वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित घरेलू उपाय नहीं हैं। हाँ, लेकिन इस स्थिति में आपको कोई एंटी-इंफ्लेमेटरी दवाएं जैसे एस्पिरिन लेने से बचने की सलाह दी जाती है, क्योंकि यह आपकी किडनी को प्रभावित कर सकता है। इसके अलावा, खून के थक्के बनने के जोखिम को कम करने के लिए अपने पैरों को समय-समय पर हिलाते रहें।
ओवेरियन हाइपरस्टिम्यूलेशन सिंड्रोम को रोकने के लिए कुछ चिकित्सीय उपाय किए जा सकते हैं। विशेष रूप से उन महिलाओं में जिनमें पीसीओएस (पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम) का इतिहास रहा हो। जो कुछ इस प्रकार हैं:
अगर आपको अपने अंदर कोई असामान्य लक्षण दिखाई देते हैं, जैसे पेट में दर्द, पेशाब में समस्या या अस्वस्थता महसूस हो, तो तुरंत अपने स्त्री रोग विशेषज्ञ से संपर्क करें।
ओवेरियन हाइपरस्टिम्यूलेशन सिंड्रोम आमतौर पर प्रजनन के इलाज का एक साइड इफेक्ट होती है, इसलिए इसका जल्द पता लगाना और समय पर इलाज करना जरूरी है। अगर शुरुआती चरणों में इसका निदान हो जाए, तो इसे रोका जा सकता है। आप इस बात का खास ध्यान रखें कि किसी भी लक्षण के संदेह महसूस होने पर अपने चिकित्सक को तुरंत बताएं।
ओएचएसएस का प्रभावी इलाज गाइनोकॉलजिस्ट और एक्पर्ट फिजिशियन की देख-रेख में ही किया जा सकता है, इसलिए हमारा सुझाव है कि आप भी किसी अच्छे पेशेवर से ही अपना निदान और उपचार कराएं।
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