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गर्भावस्था के दौरान डॉक्टर आपको कई जांच करवाने की सलाह दे सकते हैं। इसमें से कुछ जांच नियमित होती हैं और इनके लिए सभी गर्भवती महिलाओं को सलाह दी जाती है। जबकि कुछ जांच महिलाओं की स्वास्थ्य स्थिति के आधार पर करवाने की सलाह दी जाती है, जैसे गर्भवती महिला की आयु, माता–पिता का स्वास्थ्य इतिहास या अनुवांशिक असामान्यताओं के खतरे। भ्रूण में असामान्यताएं हैं या नहीं और यदि हैं तो कितनी हैं, इन सभी जानकारियों को प्राप्त करने के लिए अल्फा फेटोप्रोटीन (ए.एफ.पी.) टेस्ट अत्यधिक उपयोगी है।
यह एक रक्त जांच होती है जिसके माध्यम से गर्भवती महिलाओं के शरीर में अल्फा–फेटोप्रोटीन (ए.एफ.पी.) के स्तर का पता लगाया जाता है। ए.एफ.पी. आपके गर्भ में पल रहे भ्रूण के लिवर से निर्मित होता है और आपके रक्त में इस पदार्थ की मात्रा यह दर्शाती है कि आपका बच्चा स्वास्थ्य से संबंधित समस्याओं से ग्रसित है या नहीं, जैसे स्पाइना बिफिडा और अभिमस्तिष्कता (शिशु के मस्तिष्क का अपूर्ण विकास)। यह ट्रिपल स्क्रीन या क्वैड स्क्रीन का एक अंश है जो आमतौर पर गर्भावस्था की दूसरी तिमाही में होता है ।
ए.एफ.पी. टेस्ट डॉक्टर को यह निर्णय लेने में मदद करता है कि गर्भावस्था के दौरान आपको अन्य जांच या स्क्रीनिंग की आवश्यकता तो नहीं है। गर्भावस्था के 16वें या 18वें सप्ताह में यह टेस्ट करवाने से लगभग सही परिणाम मिलते हैं और साथ ही यह मुख्य रूप से भ्रूण में जन्म दोषों के बारे में भी जानकारी देता है। आपको ए.एफ.पी. जांच करवाने की आवश्यकता क्यों पड़ सकती है, इसके कुछ कारण निम्नलिखित हैं।
ए.एफ.पी. जांच के लिए कोई तैयारी करने की आवश्यकता नहीं होती है।रक्त निकलने से पहले आपका वजन मापा जाएगा क्योंकि यह इसके परिणाम का एक अभिन्न हिस्सा है। इस टेस्ट के लिए आपसे आयु और आप कितने सप्ताह से गर्भवती हैं, यह पूछा जा सकता है।
यह साधारण रक्त परीक्षण होता है जो आमतौर एक नैदानिक प्रयोगशाला में किया जाता है और इसके परिणाम एक–दो सप्ताह में उपलब्ध होते हैं। निम्लिखित तरीके से जांच के लिए आपका रक्त निकाला जाएगा:
यह प्रक्रिया दर्द रहित होती है और जब आपकी भुजा पर सुई लगाई जाएगी तो ज्यादा से ज्यादा आपको हल्का सा डंक लगने की तरह ही महसूस होगा। इसमें सिर्फ कुछ मिनट ही लगते हैं। क्योंकि इसके परिणाम कुछ दिनों के बाद ही आएंगे तो प्रतीक्षा के दौरान आपको शिशु के बारे में जानने की थोड़ी उत्सुकता व चिंता हो सकती है।
ए.एफ.पी. परीक्षण से संबंधित लगभग कोई भी खतरे नहीं हैं। बस आपको थोड़ी बहुत असुविधाएं हो सकती हैं जैसा एक नियमित रक्त परीक्षण में होता है, वही निम्नलिखित समस्या आपको भी अनुभव हो सकती है;
आपके रक्त में मौजूद अल्फा फेटोप्रोटीन की मात्रा यह बताती है कि क्या आपके गर्भस्थ शिशु में कोई समस्या है या नहीं और यदि है तो वह कौन सी समस्याएं हैं। ए.एफ.पी. के स्तर को 3 भागों में विभाजित किया गया है, जैसे सामान्य, उच्च और कम स्तर।
ए.एफ.पी. का सामान्य स्तर प्रयोगशाला के अनुसार भिन्न हो सकता है और यह शिशु की आयु पर भी निर्भर करता है। अल्फा–फेटोप्रोटीन के सामान्य स्तर में आमतौर पर निम्नलिखित अनुमान लगाया जा सकता है;
वर्ग | ए.एफ.पी. स्तर – नैनोग्राम/मिलीलीटर |
सामान्य वयस्क महिला | 0-40 एनजी/एमएल |
15-18 सप्ताह तक की गर्भवती महिला | 10-150 एनजी/एमएल |
ए.एफ.पी. के असामान्य रूप से उच्च स्तर पर ध्यान देने से पहले आपको अपनी व्यक्तिगत परिस्थिति व स्वास्थ्य पर ध्यान देने की आवश्यकता है। ए.एफ.पी. के उच्च स्तर का तात्पर्य निम्नलिखित में से एक हो सकता है;
असामान्य रूप से ए.एफ.पी. के कम स्तर का मतलब निम्नलिखित में से एक हो सकता है;
कुछ कारक हैं जो इस जांच के परिणामों को प्रभावित कर सकते हैं और आपको गलत जानकारी दे सकते हैं। ऐसे इसलिए हो सकता है क्योंकि;
इसे मैटरनल सीरम अल्फा फेटोप्रोटीन (एम.एस.ए.एफ.पी.) जांच भी कहा जाता है । यह सिर्फ एक स्क्रीनिंग टेस्ट है और कोई निदान नहीं है। यह ध्यान में रखना आवश्यक है कि यह जांच, जन्म के समय बच्चे में कम या अधिक खतरों के स्तर व जन्म–दोष को दर्शाती है। इसमें निश्चित परिणाम नहीं मिलते हैं, इस जांच को करवाते समय निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखें;
ए.एफ.पी. के असामान्य स्तर का – चाहे वह उच्च हो या कम – यह तात्पर्य नहीं है कि आपके शिशु को जन्म–दोष है। इसका सिर्फ यही मतलब है कि डॉक्टर ने आपको अन्य जांच करवाने की सलाह दी हैं, जैसे निदान के लिए अल्ट्रासाउंड। यह कोई आवश्यक जांच नहीं है आप चाहें तो इसे करवाएं या न करवाएं। यद्यपि इस जांच से लगभग 70-90% शिशुओं में तंत्रिका नली से संबंधित दोष देखे जा सकते हैं इसलिए यह जांच आपके भविष्य की योजनाओं में मदद कर सकती है। अन्य जांच आपको निश्चित निदान बता सकते हैं जिसकी मदद से आप
अतिरिक्त जांच आपको निदान की पुष्टि दे सकती हैं जिसके बाद आप यह पता लगा सकती हैं कि क्या कोई चिकित्सीय हस्तक्षेप संभव है या शिशु से संबंधित आवश्यकताओं की आपूर्ति के लिए जीवनशैली में बदलाव करना शुरू करें।
डिस्क्लेमर: इस जानकारी को सिर्फ एक मार्गदर्शिका के रूप में लें और यह डॉक्टर की सलाह का कोई विकल्प नहीं है।
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