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गर्भावस्था की शुरुआत के साथ आप अपनी आंतरिक शक्ति को जागृत करती हैं। इस दौरान आपको अपना पूरा खयाल रखना होता है ताकि आपके गर्भ में पल रहा शिशु जन्म लेने के बाद स्वस्थ रहे और बाहरी दुनिया की सभी परिस्थितियों से लड़ने में सक्षम हो सके। इस अवस्था के लिए एक आयुर्वेदिक प्रक्रिया है ‘गर्भ संस्कार’ जो धीरे-धीरे लोकप्रिय होता जा रही है।
हर माता-पिता अपने बच्चे के लिए सर्वोत्तम ही चाहते हैं। एक स्वस्थ गर्भावस्था जन्म के बाद भी बच्चे के अच्छे स्वास्थ्य को सुनिश्चित करती है। बच्चे के मानसिक व शारीरिक विकास के लिए गर्भ संस्कार ने भरपूर लोकप्रियता हासिल की है।
गर्भ संस्कार का उल्लेख प्राचीन काल से होता आया है और यह आयुर्वेद का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। गर्भ संस्कृत का एक शब्द है जिसका तात्पर्य गर्भ में पल रहे शिशु से है और संस्कार का मतलब है मानसिक विद्या। इसलिए गर्भ संस्कार अजन्मे बच्चे की मानसिक विद्या की प्रक्रिया को अनुवादित करता है। पारंपरिक रूप से यह माना जाता है कि बच्चे का मानसिक व शारीरिक विकास गर्भ में शुरू हो जाता है क्योंकि एक माँ के गर्भ में पल रहा बच्चा उसकी भावनात्मक स्थिति से प्रभावित होता है। यह प्रक्रिया हिन्दू संस्कृति का एक भाग है जैसा कि पौराणिक समय की कुछ कथाएं यह बताती हैं। अभिमन्यु, अष्टावक्र और प्रह्लाद के उदाहरण हैं, जिन्होंने अपनी माँ के गर्भ में ही शिक्षा प्राप्त कर ली थी।
यह सुनने में थोड़ा अजीब हो सकता है किंतु किसी माँ से पूछें और वह निश्चित रूप से इस बात को बताएगी कि एक माँ और बच्चे का अटूट संबंध उसके गर्भवती होते ही बन जाता है। इसलिए आपने देखा होगा अक्सर मांएं अपने गर्भ में पल रहे बच्चे से बात करती हैं या यहाँ तक कि वे सकारात्मक सोचने का प्रयास करती हैं या वे कुछ ऐसे कार्य करती हैं जो बच्चे के लिए सुविधाजनक हों। यद्यपि ज्यादातर मांएं खुद को अच्छा महसूस करवाने के लिए करती हैं किंतु गहराई में इसके कई लाभ हैं।
लगातार बढ़ते हुए वैज्ञानिक प्रमाण गर्भ संस्कार से संबंधित अभ्यास को और गर्भस्थ शिशु पर पड़ते इसके प्रभावों का समर्थन करते हैं। आधुनिक शिक्षा ने यह सिद्ध किया है कि गर्भ में पल रहा शिशु बाहरी उत्तेजना पर प्रतिक्रिया करता है। यहाँ तक कि एक माँ के विचारों से उत्तेजित हॉर्मोनल स्राव भी गर्भ में पल रहे शिशु पर प्रभाव डालता है।
जैसा कि माना जाता है, गर्भ संस्कार शिशु के लिए लाभकारी है, यह पूरी तरह से बच्चे पर केंद्रित नहीं है। गर्भ संस्कार का यह अभ्यास सुनिश्चित करता है कि बच्चे के साथ-साथ माँ भी स्वस्थ है और वह एक सकारात्मक मानसिक स्थिति में है। गर्भ संस्कार का अभ्यास करते समय गर्भवती महिलाओं को अपने आहार व जीवनशैली में कुछ बदलाव करने होते हैं।
गर्भ संस्कार सिर्फ गर्भावस्था के दौरान देखभाल के लिए नहीं है किन्तु इसकी तैयारी गर्भधारण करने से लगभग 1 वर्ष पहले ही शुरू हो जाती है। गर्भ संस्कार में गर्भावस्था से पहले, गर्भावस्था के दौरान और यहाँ तक कि स्तनपान की अवधि भी शामिल होती है। साथ ही यह प्रक्रिया बच्चे के 2 वर्ष की आयु तक माता-पिता का मार्गदर्शन करती है।
प्राचीन हिन्दू ग्रंथों और वेदों में गर्भ संस्कार को संदर्भित किया गया है, किन्तु यह अभ्यास सिर्फ भारत में ही प्रसिद्ध नहीं है। दुनिया की विभिन्न संस्कृतियां एक माँ और गर्भ में पल रहे शिशु के अटूट संबंध को प्रोत्साहित करती हैं जो प्रसवपूर्व शिक्षा के समान ही है। पश्चिमी देशों में मांएं अपने बच्चे को अविश्वसनीय रूप से फुर्तीला व स्मार्ट बनाने के लिए अक्सर मास्टर मोजार्ट का शास्त्रीय संगीत सुनना पसंद करती हैं।
गर्भ संस्कार के ज्ञान का आकलन इस तथ्य से किया जाता है कि विभिन्न आधुनिक प्रसवपूर्व कक्षाएं इसी तथ्य से प्रेरित हैं;
आयुर्वेद के अनुसार गर्भ संस्कार एक स्वस्थ बच्चे को जन्म देने का सर्वोत्तम तरीका है। यह एक माँ के मस्तिष्क की ध्वनि तरंगों को ही नहीं बल्कि शारीरिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक स्थितियों को भी नियंत्रित करता है। गर्भवती महिला के लिए आयुर्वेदिक गर्भ संस्कार कुछ सुझाव प्रदान करते हैं, वे इस प्रकार हैं;
स्वस्थ आहार गर्भावस्था का एक महत्वपूर्ण भाग है क्योंकि एक भ्रूण का विकास माँ के पोषण व स्वास्थ्य पर निर्भर करता है। आयुर्वेद के अनुसार आहार-रस, जिसे पोषण व ऊर्जा कहा जाता है और यह एक माँ के आहार से परिवर्तित होता है जो एक माँ को, शिशु को और माँ के दूध के निर्माण की तैयारी को पोषित करने में मदद करता है। अंततः इसके लिए विटामिन व मिनरल से परिपूर्ण संतुलित आहार का सेवन करने की सलाह दी जाती है। गर्भावस्था के दौरान गर्भ संस्कार आहार में कैल्शियम, फोलिक व आयरन की संतुलित मात्रा होनी चाहिए।
गर्भावस्था के दौरान गर्भ संस्कार में सात्विक आहार शामिल होता है जिसे पोषण-युक्त ताजे खाद्य पदार्थों से तैयार किया जाता है और इसमें सभी 5 स्वाद शामिल होते हैं, जैसे मीठा, खट्टा, नमकीन, कड़वा और तीखा। आयुर्वेद के अनुसार गर्भवती महिलाओं को पंचामृत का सेवन करना चाहिए जो ऊर्जा व इम्युनिटी को बढ़ाने में मदद करते हैं। इसे 1-1 चम्मच दही, शहद, चीनी और 2 चम्मच घी में 8 चम्मच दूध मिश्रित करके बनाया जाता है। इस अवधि में नशीले पदार्थों से परहेज करने की सलाह दी जाती है।
गर्भावस्था आपको मूडी व चिड़चिड़ा बना सकती है। गर्भ संस्कार आपको अपनी भावनाओं को नियंत्रित करने में मदद करता है जो एक माँ व गर्भस्थ शिशु के लिए अच्छा है। आप अपने लिए कोई नई रुचि को अपना सकती हैं या सिर्फ वह कर सकती हैं जो आपको खुश रखे।
गर्भ संस्कार गर्भवती महिलाओं को अपने शारीरिक स्वास्थ्य व शिशु के स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए कुछ हल्के व्यायाम या योग करने की सलाह देता है। यहाँ व्यायाम करने के कुछ लाभ दिए हुए हैं, आइए जानते हैं;
गर्भ संस्कार में ध्यान करना आवश्यक है और यह शरीर के लिए फायदेमंद है और मन को तनाव-मुक्त करता है। यह मन के स्तर को शून्य की ओर ले जाता है जिसकी मदद से आपको शांति, धैर्य व एकाग्रता प्राप्त होती है।ध्यान करते समय बच्चे के बारे में अच्छी कल्पनाएं, माँ व बच्चे के संबंध को बेहतर बनाने और सकारात्मक सोचने का एक सर्वोत्तम तरीका है।
प्रार्थना करना गर्भ संस्कार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और यह माना जाता है कि यह बच्चे के आध्यात्मिक विकास के लिए अच्छा है। पौराणिक ग्रंथों में कुछ ऐसे मंत्र व श्लोक दिए हुए हैं जो एक गर्भस्थ शिशु के लिए लाभकारी होते हैं। इस दौरान जो भी प्रार्थनाएं की जाती हैं वे बच्चे की अच्छी सेहत व नैतिक मूल्य के लिए की जाती हैं और यह आध्यात्मिक विश्वास का एक भाग है।
गर्भ संस्कार के अनुसार गर्भ में पल रहा शिशु बाहरी संगीत पर भी प्रतिक्रिया देता है। असल में पौराणिक ग्रंथ यह भी कहते हैं कि गर्भावस्था के 7वें माह से शिशु सुनने व प्रतिक्रिया देने में सक्षम होता है। इसलिए एक गर्भवती महिला को कोई ऐसा संगीत सुनना चाहिए जो उसे शांति प्रदान करे। ऐसा कहा जाता है कि माँ व शिशु के लिए सौम्य व आध्यात्मिक गीत या मंत्र व श्लोक लाभकारी होते हैं।
गर्भ संस्कार के अनुसार गर्भवती महिला को आध्यात्मिक किताबें पढ़नी चाहिए जिनसे उसे संतुष्टि और शांति प्राप्त हो सकती है। असल में गर्भ संस्कार इस बात का भी समर्थन करता है कि गर्भावस्था के दौरान ज्ञान की किताबें पढ़ने से गर्भ में पल रहे शिशु का व्यक्तित्व आकार लेता है। यह भी माना जाता है कि गर्भावस्था के दौरान पढ़ने से अजन्मे शिशु में ज्ञान के विकास में मदद मिलती है। इस दौरान नैतिक मूल्यों पर आधारित या पौराणिक किताबें पढ़ने की सलाह दी जाती है किंतु आप चाहें तो अपनी पसंद के अनुसार कोई और किताब भी चुन सकती हैं।
गर्भ संस्कार के अनुसार गर्भवती महिलाओं को ऐसे कार्यों में व्यस्त नहीं होना चाहिए जो उन्हें तनाव से ग्रसित कर सकते हैं। गर्भावस्था के दौरान अत्यधिक तनाव में रहने या डरावनी चीजें पढ़ने व देखने या चिंता करने की सलाह नहीं दी जाती है क्योंकि यह आपके शिशु पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकते हैं। अपने बच्चे के लिए गर्भावस्था के 9 महीनों तक भावनात्मक, आध्यात्मिक, मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ रहें।
आयुर्वेद के अनुसार गर्भावस्था के चौथे, 5वें, 7वें, 8वें और 9वें महीने में घर पर बनाए हुए गाय के दूध के घी का सेवन करना चाहिए। यह कहा जाता है कि गर्भस्थ शिशु के मानसिक व शारीरिक विकास के लिए यह अत्यधिक प्रभावी होता है और यह जन्मजात समस्याओं से शिशु का बचाव भी करता है। आयुर्वेद में यह भी बताया गया है कि शुद्ध व जैविक घी सामान्य प्रसव में गर्भवती महिलाओं की मदद करता है। हालांकि डॉक्टर से सलाह लें क्योंकि प्रत्येक स्त्री की गर्भावस्था समान नहीं होती है।
गर्भावस्था के दौरान रचनात्मक रहना सिर्फ आपके मन को व्यस्त रखने का तरीका ही नहीं है बल्कि गर्भ संस्कार के अनुसार आपकी रचनात्मकता गर्भस्थ शिशु को भी प्रभावित करती है। बुनना, कला, बागबानी और यहाँ तक कि मिट्टी के बर्तन बनाना, यह सभी रुचियां आपके तनाव को कम कर सकती हैं और आपको खुश रखती हैं।
शिशु के पहले विचार को आकार एक माँ देती है। सकारात्मक सोच व सकारात्मक मनोभाव माँ के शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य को लंबे समय के लिए सुनिश्चित करता है जो गर्भस्थ शिशु के अच्छे स्वास्थ्य से भी जुड़ा हुआ है। गर्भ संस्कार माँ व गर्भस्थ शिशु के बीच एक अलौकिक संबंध को विकसित करने में मदद करता है।
वैसे तो विशेषज्ञ मांओं के अच्छे स्वास्थ्य के लिए गर्भ संस्कार का अभ्यास करने की सलाह देते हैं किंतु इसमें गर्भस्थ शिशु के लिए लंबे समय तक लाभ छिपे हुए हैं जो शायद इतनी जल्दी समझ नहीं आएंगे। शिशु से संवाद को गर्भ संवाद भी कहा जाता है जो उसके मानसिक विकास में मदद करता है और माँ व शिशु के बीच एक मजबूत रिश्ते बनाता है।
अपने शिशु के लिए संगीत सुनने व पढ़ने से भविष्य में शिशु को बेहतर नींद में मदद मिलती है। आपका बच्चा अधिक सतर्क, जानकार व आत्मविश्वासी भी बन सकता है। बच्चा बेहतर प्रतिक्रिया दे सकता है, अधिक सक्रिय रह सकता है और जानकार भी हो सकता है। माँ और शिशु के बेहतर रिश्ते से आपका बच्चा और अच्छी तरह से स्तनपान कर सकता है।
ऐसा माना जाता है कि विशेषकर 7वें माह से भ्रूण बाहरी ध्वनियों पर प्रतिक्रिया देता है, इसलिए गर्भ संस्कार के अनुसार शिशु पर संगीत का चिकित्सीय प्रभाव एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। गर्भ में पल रहे शिशु की सबसे करीब ध्वनि उसके माँ की धड़कन होती है और इसलिए बच्चे के रोने पर यदि माँ उसे सीने से लगाकर चुप कराए तो वह जल्द ही चुप हो जाता है। जैसे ही शिशु किसी अपने की ध्वनि सुनता है तो वह शांति महसूस करता है। बिलकुल ऐसा ही संगीत के साथ भी होता है और हृदय की धड़कन के समान ही संगीत की धुन शिशु में शांति प्रभाव का अनुभव प्रदान करती है।
गर्भ संस्कार यह मानता है कि वीणा, तारों वाले वाद्य और बांसुरी में वह धुन समाहित है जो मन व आत्मा को शांति प्रदान करती है। असल में इन दिनों गर्भ संस्कार से संबंधित अनेक प्रकार के गीत इंटरनेट व सी.डी. में उपलब्ध हैं।
यहाँ कुछ टिप्स दिए हुए हैं जो एक माँ व उसके शिशु के संबंध को पोषित करने में मदद कर सकते हैं, आइए जानते हैं;
यद्यपि शुरुआत में ये सभी कार्य आपके लिए अजीब हो सकते हैं, किन्तु ये टिप्स आपके व शिशु के संबंध को विकसित करने में मदद करेंगे।
गर्भ संस्कार की जड़ें प्राचीन काल से हमारी संस्कृति में हैं। यह माँ के स्वास्थ्य व शिशु के स्वस्थ विकास पर ही केंद्रित है। किंतु इससे ज्यादा गर्भ संस्कार माँ व शिशु के संबंध को बेहतर बनाने के लिए भी केंद्रित है। गर्भ संस्कार का सबसे महत्वपूर्ण भाग है स्वस्थ आहार, सकारात्मक विचार, नियमित व्यायाम और प्यार। गर्भ संस्कार के सरल सिद्धांतों को व्यवहार में लाएं और इससे मिलने वाली शांति का अनुभव करें।
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