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गर्भावस्था के दौरान हॉर्मोन्स में उतार-चढ़ाव के कारण महिलाओं में कई शारीरिक बदलाव होते हैं। वैसे तो शरीर सभी बदलावों को एडजस्ट करना शुरू कर देता है पर फिर भी यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन होने का खतरा बढ़ सकता है। इसकी वजह से महिलाओं की किडनी में इन्फेक्शन या पायलोनेफ्राइटिस भी हो सकता है।
यदि आसान शब्दों में कहा जाए तो पायलोनेफ्राइटिस का मतलब किडनी में इन्फेक्शन होता है। यह एक बैक्टीरियल इन्फेक्शन है। पायलोनेफ्राइटिस दो प्रकार के होते हैं – एक्यूट और सबएक्यूट या क्रोनिक। एक्यूट पायलोनेफ्राइटिस इन्फेक्शन किडनी में अचानक से व गंभीर होता है और यह समस्या गर्भवती महिलाओं में अक्सर देखी जा सकती है। यह इन्फेक्शन कई कारणों से हो सकता है जिसमें सबसे मुख्य कारण हॉर्मोन्स में उतार-चढ़ाव है।
यदि इ.कोली इन्फेक्शन की वजह से किडनी और पेल्विस में सूजन होती है तो आपको पायलोनेफ्राइटिस भी हो सकता है। इसके निम्नलिखित कारण भी हो सकते हैं, आइए जानें;
गर्भावस्था के दौरान प्रोजेस्ट्रोन बहुत ज्यादा मात्रा में रिलीज होता है जिसकी वजह से मांसपेशियां ढीली हो जाती हैं और गर्भ में बढ़ते बच्चे व प्लेसेंटा को सपोर्ट देने के लिए गर्भाशय बढ़ने लगता है। इससे यूरिन का फ्लो कम हो जाता है और कुछ मामलों में यह किडनी में ही ठहर जाता है या वापस लौट जाता है। इसके बाद किडनी बढ़ती है जिसकी वजह से बैक्टीरिया उत्पन्न होते हैं और इससे इन्फेक्शन हो जाता है।
गर्भावस्था के दौरान गर्भाशय यानि यूटरस, युरेटर और ब्लैडर में दबाव डालता है जिसकी वजह से गर्भवती महिलाओं को यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन या यूटीआई हो सकता है। यह इन्फेक्शन युरेटर में पहुँच सकता है और इससे किडनी में भी इन्फेक्शन हो सकता है।
इन्फेक्शन होने के बाद महिलाओं में पायलोनेफ्राइटिस के संकेत अक्सर दिखाई देने लगते हैं। इसके लक्षण इस बात पर निर्भर करते हैं कि आपको एक्यूट पायलोनेफ्राइटिस हुआ है या सुबएक्यूट पायलोनेफ्राइटिस। किडनी में इन्फेक्शन के कुछ लक्षण निम्नलिखित हैं, आइए जानें;
एक्यूट पायलोनेफ्राइटिस का डायग्नोसिस करने से पहले डॉक्टर आपकी मेडिकल हिस्ट्री की जांच करेंगे। इसके बाद ही वे आपको डायग्नोसिस के कुछ तरीकों की सलाह दे सकते हैं, वे इस प्रकार हैं;
शरीर की जांच करने के बाद यदि डॉक्टर को लगता है कि आपकी किडनी में समस्याएं हैं तो वे आपको यूरिन टेस्ट करवाने के लिए भी कह सकते हैं। यदि आपको इन्फेक्शन हुआ है तो उसके लक्षण इस टेस्ट में दिख जाएंगे।
डॉक्टर यूरिनरी ट्रैक्ट में समस्याओं का कारण जानने के लिए आपको इमेजिंग टेस्ट करवाने की सलाह दे सकते हैं। इस टेस्ट के माध्यम से मूत्र में ठहराव की वजह पता चलती है। इस टेस्ट में सिस्ट या ट्यूमर की संभावनाएं भी पता चलती है।
डॉक्टर इन्फेक्शन की गंभीरता जानने के लिए आपको खून की जांच करवाने की सलाह भी दे सकते हैं। एक बार ब्लड टेस्ट हो जाने के बाद ही डॉक्टर आपका ट्रीटमेंट कर सकता है।
गर्भावस्था के दौरान यदि आपको एक्यूट पायलोनेफ्राइटिस होता है तो इसके लिए जल्द से जल्द सही मेडिकल ट्रीटमेंट करवाने की जरूरत है। यदि आप इसका इलाज नहीं करवाती हैं तो इससे आपको निम्नलिखित कॉम्प्लीकेशंस हो सकती हैं, आइए जानें;
गर्भावस्था के दौरान यदि आपके टेस्ट में पायलोनेफ्राइटिस निकलता है तो डॉक्टर आपको हॉस्पिटल में एडमिट होने के लिए कह सकते हैं जहाँ पर आपका सबसे पहला ट्रीटमेंट IV एंटीबायोटिक्स होगा। यदि इस ट्रीटमेंट से आपको कोई भी फायदा नहीं होता है तो इन्फेक्शन को खत्म करने के लिए आपको स्ट्रौंग एंटीबायोटिक्स दी जा सकती हैं।
हालांकि, यदि आपको किसी समस्या की वजह से यह इन्फेक्शन होता है, जैसे किडनी में स्टोन्स (पथरी) तो डॉक्टर किडनी में दबाव को कम करने के लिए ट्रीटमेंट कर सकते हैं।
यदि आप हॉस्पिटल से डिस्चार्ज हो भी जाती हैं तो भी आपको अगले 10 दिनों तक ओरल एंटीबायोटिक्स लेनी चाहिए। गर्भावस्था में यदि आपको पायलोनेफ्राइटिस हो जाता है तो इसके दोबारा होने की संभावनाएं अधिक हो सकती हैं। जब तक गर्भाशय का दबाव कम नहीं हो जाता है तब तक डॉक्टर आपको पूरी गर्भावस्था में रोजाना कम डोसेज की एंटीबायोटिक्स लेने की सलाह दे सकते हैं।
ट्रीटमेंट होने के बाद भी किडनी के इन्फेक्शन को मॉनिटर करने की जरूरत है। यहाँ पर बताया गया है कि ट्रीटमेंट के बाद आपको इन्फेक्शन की जांच और देखभाल किस प्रकार से करनी चाहिए, आइए जानें;
पायलोनेफ्राइटिस का ट्रीटमेंट होने के बाद भी डॉक्टर आप में इन्फेक्शन के दोबारा होने की संभावनाओं को जानने के लिए गर्भवस्था की जांच के साथ आपकी स्क्रीनिंग कर सकते हैं। इसमें गर्भ में पल रहे बच्चे के स्वास्थ्य और यूरिन की जांच भी शामिल है।
डिलीवरी के बाद भी डॉक्टर किडनी में दोबारा से इन्फेक्शन होने की संभावनाओं को जानने के लिए आपकी स्क्रीनिंग कर सकते हैं। यद्यपि इस दौरान गर्भाशय यूरिनरी ट्रैक्ट पर दबाव नहीं डालता है और हॉर्मोन्स का स्तर भी सामान्य रहता है पर फिर भी, पहले हुए इन्फेक्शन की गंभीरता और इसका ट्रीटमेंट कितनी जल्दी हो गया था, इसके अनुसार आपको दोबारा से किडनी में इन्फेक्शन होने की संभावना हो सकती है।
यदि पायलोनेफ्राइटिस का ट्रीटमेंट समय पर नहीं हुआ तो इस इन्फेक्शन से एमनियोटिक सैक पर प्रभाव पड़ सकता है जिसकी वजह से आपकी प्रीटर्म डिलीवरी हो सकती है। ऐसे मामलों में डॉक्टर शुरूआती महीनों में बच्चे के स्वास्थ्य की जांच बहुत करीब से करते हैं। इसमें डॉक्टर बच्चे के शरीर के सभी सिस्टम व इम्यून सिस्टम के पूर्ण विकास की जांच के साथ-साथ अन्य समस्याओं का भी पता लगाते हैं।
यद्यपि इस दौरान इन्फेक्शन की देखभाल के लिए आपको मेडिकल ट्रीटमेंट की आवश्यकता है पर फिर भी कुछ घरेलू उपचार हैं जिनका उपयोग आप कर सकती हैं। वे कौन से हैं, आइए जानें;
गर्भावस्था के दौरान किडनी में इन्फेक्शन से बचने के लिए आप बहुत सारे तरीके अपना सकती हैं। कुछ यहाँ बताए गए हैं, आइए जानें;
यदि आपको पहले भी यूटीआई हुआ है तो इस बारे में डॉक्टर से जरूर बताएं। वह आपको गर्भावस्था के दौरान यूटीआई की जांच के लिए कई बार यूरिन टेस्ट करवाने की सलाह दे सकते हैं।
यदि आपको पहले भी यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन हुआ है, आपको डायबिटीज है या आप ओवरवेट हैं तो आपको इसका खतरा बढ़ सकता है।
इन्फेक्शन के लिए एंटीबायोटिक्स देने के बाद आपको अगले तीन दिनों में इसके ठीक होने के संकेत मिलने लगेंगे। हालांकि यह बहुत जरूरी है कि आपका एंटीबायोटिक्स लेती रहें और इन्फेक्शन को पूरी तरह से खत्म करने के लिए इसका पूरा कोर्स करें।
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