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जन्मजात विकार वैसे दोष होते हैं जो शिशु अपने साथ लेकर पैदा होते हैं, या सरल शब्दों में कहा जाए तो इसे ‘जन्म विकार या दोष’ कहा जाता है। अधिकांश समय, जन्मजात विकारों का इलाज नहीं किया जा सकता है। हालांकि, अगर आपके बच्चे को ऐसे कोई विकार है और उसके जन्म से पहले ही इसका पता लगा लिया जाए तो निश्चित रूप से उनके विकार को कम करने में बहुत सहायक हो सकता है। इसलिए, डाइग्नोसिस टेस्ट बच्चे के जन्मजात दोषों की पहचान करने के लिए बनाया गया है। ऐसा ही एक परीक्षण है न्यूकल ट्रांसलुसेंसी (एनटी) स्कैन।
न्यूकल ट्रांसलुसेंसी (एनटी) स्कैन एक प्रसव पूर्व स्क्रीनिंग टेस्ट है। यह गर्भवती महिलाओं को मुख्य रूप से ये बताने में मदद करता है कि डाउंस सिंड्रोम जैसे विकार के साथ पैदा होने पर आपके बच्चे को किस प्रकार के जोखिम का सामना करना पड़ सकता है। डाउन सिंड्रोम एक जन्मजात दोष है जिसमें एक बच्चा क्रोमोसाम संख्या 21 के तीन प्रतियों के साथ पैदा होता है जबकि सामान्य रूप से 2 प्रतियों को होना चाहिए ।
इसके साथ ही, एनटी स्कैन यह भी पता लगाने में मदद करता है कि क्या आपके बच्चे में अन्य क्रोमोसाम संबंधी असामान्यताएं तो नहीं है (विशेष रूप से क्रोमोसाम संख्या 13 और 18 में), इसके अलावा ये हृदय की समस्याओं जैसे कुछ अन्य जन्मजात विकार की भी जाँच करता है।
याद रखें कि एनटी स्कैन केवल एक ‘स्क्रीनिंग’ परीक्षण है। यह 100% सटीकता के साथ दावा नहीं कर सकता है कि आपका बच्चा डाउन सिंड्रोम के साथ पैदा होगा या नहीं। यह केवल आपको इतना बताने में मदद करता है कि किस हद तक बच्चे को ‘जोखिम’ हो सकता है । दूसरे शब्दों में कहा जाए, तो एनटी स्कैन आपके बच्चे की डाउन सिंड्रोम विकसित होने की ‘संभावना’ को दर्शाता है। एनटी स्कैन के परिणामों के आधार पर (जिसकी व्याख्या इस लेख में आगे की जाएगी) आपके स्त्रीरोग चिकित्सक शायद आपको डाइग्नोसिस टेस्ट कराने की सलाह दे सकते है। एक डाइग्नोसिस टेस्ट आपको निश्चित रूप से यह जानने में मदद करता है कि आपके शिशु में डाउन सिंड्रोम विकसित हो सकता है या नहीं।
न्यूकल ट्रांसलुसेंसी परीक्षण में उस फ्लूइड के ट्रांसलुसेंसी डिग्री का पता लगाया जाता है जो बच्चे पीछे या उसकी गर्दन के पीछे वाले भाग में पाया जाता है, इस टेस्ट को तब किया जाता है, जब वो अपनी माँ के गर्भ में वृद्धि और विकास कर रहा होता है । तरल का निर्माण एक सामान्य प्रक्रिया होती है। हालांकि, इस तरल पदार्थ की संरचना- विशेष रूप से इसका गाढ़ापन और ट्रांसलुसेंसी – क्रोमोसाम असामान्यताओं से प्रभावित हो सकती है, जैसे कि ये बच्चे में डाउन सिंड्रोम के लिए जिम्मेदार हो सकता है।
एनटी स्कैन बस एक सोनोग्राफी है। ये एक ट्रांसएब्डोमिनल या ट्रांसवेजाइनल अल्ट्रासाउंड के रूप में किया जाता है।
एनटी स्कैन मूल रूप से एक अल्ट्रासाउंड सोनोग्राफी है। इसलिए कोई भी योग्य सोनोग्राफर इस परीक्षण को सफलतापूर्वक कर सकता है। किसी अच्छे और विश्वसनीय सोनोग्राफर के बारे में आप अपनी स्त्रीरोग चिकित्सक से सलाह ले सकती हैं, वो आपको बेहतर राय दे सकेंगी। हालांकि यह प्रक्रिया बहुत कठिन नहीं है, लेकिन फिर भी इस परीक्षण के लिए आप सिर्फ एक तकनीशियन और उनके सहायक पर भरोसा नहीं कर सकती हैं।
एनटी स्कैन आमतौर पर 11वें और 13वें हफ्ते के बीच किया जाता है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि तब तक आपके बच्चे की गर्दन पारदर्शी होती है। गर्भावस्था के 13वें सप्ताह और 6 दिनों के बाद एनटी स्कैन करना संभव नहीं होता है- इसलिए बेहतर है कि आप 11वें से 13वें में एनटी स्कैन करा लें ।
एनटी स्कैन एक गैर-आक्रामक विधि है। इस परीक्षण को करने के लिए किसी रक्त के नमूने की आवश्यकता नहीं होती है, आपके शरीर के किसी भी हिस्से में कोई सुइयां नहीं डाली जाती हैं, न ही आपको किसी तरह के विकिरण से गुजरना पड़ता है। ये आप और आपके बच्चे पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं डालता है, इसलिए एनटी स्कैन को एक बहुत ही सुरक्षित प्रक्रिया माना जाता है।
एनटी स्क्रीनिंग में एकमात्र जोखिम पाया जाता है, जो मनोवैज्ञानिक स्तर पर होता है – माँ का चिंता करना, घबराहट होना और भय उनकी मानसिक स्थिति को काफी प्रभावित कर सकता है। हालांकि, आपको इस बात को समझना होगा कि एनटी स्कैन आपके बच्चे की बेहतरी के लिए किया जाता है, ताकि वह स्वस्थ और विकार मुक्त पैदा हो। सकारात्मक रहें और परीक्षण के बारे में अपने स्त्रीरोग चिकित्सक और सोनोग्राफर से बात करें, ताकि आप अपने सवालों के जवाब उनसे प्राप्त कर सकें।
सामान्य भ्रूणों में, न्यूकल ट्रांसलुसेंसी लगभग 2 मिमी होती है और इससे ज्यादा न्युकल ट्रांसलुसेंसी होने पर आमतौर पर ये डाउन सिंड्रोम के उच्च जोखिम का संकेत देता है।
हालांकि,न्यूकल ट्रांसलुसेंसी का एक निश्चित ‘कट-ऑफ’ मान निर्धारित करना मुश्किल होता है। ये बहुत सारे कारकों पर निर्भर करता है जैसे भ्रूण का आकार, माँ की उम्र और अन्य कारक आदि। कई बार ऐसा भी होता है कि जिन भ्रूण में डाउंस सिंड्रोम पाया जाता है वो भी अधिक न्यूकल तरल उत्पन्न करते हैं, इस तरह के मामले में जोखिम कारक को सटीक रूप से निर्धारित करना संभव नहीं होता है।
यही कारण है कि डॉक्टर और भी संकेतों पर नजर रखते हैं: नाक की हड्डी का विकास। यदि नाक की हड्डी का विकास नहीं हुआ है तो ये बच्चे में डाउन सिंड्रोम के उच्च जोखिम की ओर इशारा करती है ।
जिन माओं ने पहले डाउन सिंड्रोम वाले बच्चे को जन्म दिया है, उन्हें अपनी दूसरी गर्भावस्था में भी ऐसा होने का बहुत ज्यादा जोखिम होता है। ऐसी महिलाओं के लिए एनटी स्कैन कराना बेहद जरूरी है।
बच्चों में डाउन सिंड्रोम होने का खतरा माँ की उम्र पर भी निर्भर करता है। जैसे जैसे आपकी आयु बढ़ती हैं वैसे वैसे आपकी गर्भावस्था में इसका जोखिम बढ़ता जाता है। अगर देखा जाए तो जो महिलाएं 20 से 30 साल की उम्र में गर्भधारण करती हैं, उन महिलाओं से पैदा हुए 1500 शिशुओं में से 1 को डाउंस सिंड्रोम होने की संभावना होती है, ये आकड़े 40 से ज्यादा उम्र वाली महिलाओं में और भी बढ़ने की संभावना होती है। जो महिलाएं 40 साल की उम्र में गर्भधारण करती हैं उनमें 100 में से 1 डाउन सिंड्रोम वाले बच्चे को जन्म देने की संभावना होती है।जबकि 45 वर्षीय महिलाओं में, ये जोखिम 50 में से 1 हो जाता है। होने वाली माँ को उसकी उम्र के अनुसार एनटी स्क्रीनिंग टेस्ट कराने की सलाह दी जाती है।
एक माँ के रूप में आप सारे परीक्षणों को कराने के दौरान चिंतित महसूस कर सकती हैं । जब भी आपको कोई परीक्षण के लिए कहा जाएगा तो आप अपने बच्चे की सुरक्षा को लेकर पहले चिंतित हो जाएंगी और फिर अपने सुरक्षा के बारे में सोचेंगी। वैसे तो ऊपर इस लेख में आपको एनटी स्कैन के सेफ्टी टिप्स के बारे में बताया गया है। लेकिन अभी भी यह सवाल शेष है कि आपको न्यूकल ट्रांसलुसेंसी अल्ट्रासाउंड क्यों करवाना चाहिए?
एनटी स्कैन – यह डाउन सिंड्रोम के लिए जोखिम कारक की पहचान करने के साथ-साथ कई अन्य चीजों का पता लगा सकता है:
एनटी स्कैन एक प्रकार आपको यह तय करने में मदद करता है कि आप अपनी गर्भावस्था को जारी रखना चाहती हैं या नहीं।
नोट: मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971, एक महिला को अपनी गर्भावस्था के 20वें सप्ताह तक चिकित्सीय रूप से समाप्त करने की (यानी की एक गर्भपात कराने की) अनुमति देता है, बशर्ते कि गर्भावस्था जारी रखना उसके या बच्चे के लिए घातक साबित न हो, या अगर बच्चे के पैदा होने के बाद उसको शारीरिक और / या मानसिक बाधा का सामना करना पड़ सकता है, जो उसे गुणवत्तापूर्ण जीवन जीने से रोकेगा। तो आपको ये कठोरता से सलाह दी जाती है कि आप कोई भी कदम उठाने से पहले कानूनी परामर्श और मार्गदर्शन जरूर कर लें।
ज्यादातर मामलों में, माँ को इस तरह के कठोर निर्णय लेने की आवश्यकता नहीं होती – प्रकृति के पास इस तरह की स्थिति की देखभाल करने का अपना एक अलग तरीका होता है। लगभग 50% भ्रूण जिन्हें डाउंस सिंड्रोम होता है, वे 9 महीने की इस अवधि को पूरी नहीं कर पाते हैं और उनका स्वाभाविक रूप से अचानक गर्भपात हो जाता है। इसलिए आपके द्वारा डाउन सिंड्रोम वाले बच्चे को जन्म देने की संभावना बहुत कम होती है।
हालांकि, अगर आपकी गर्भावस्था सफलतापूर्वक जारी रहे और आप डाउन सिंड्रोम वाले बच्चे को जन्म देने का फैसला करती हैं, तो डाउन सिंड्रोम के लिए प्रसवपूर्व जाँच कराना, बच्चे के बेहतर पालन-पोषण में आपकी मदद करता है। डाउन सिंड्रोम वाले बच्चे को संभालना काफी चुनौतीपूर्ण होता है, खासकर उन माता-पिता के लिए जिन्हे इस तरह के बच्चे को संभालने का कोई पूर्व अनुभव नहीं रहा हो, यही कारण है कि समय रहते आपको न्यूकल ट्रांसलुसेंसी परीक्षण करने की सलाह दी जाती है, ताकि आप बच्चे के भविष्य का फैसला सोच समझ के कर सकें ।
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