गर्भावस्था

गर्भावस्था के दौरान सिक्वेंशियल टेस्ट

जब तक आप अपनी सही देखभाल करती हैं और सावधानी बरतती हैं, तब तक आपकी प्रेगनेंसी में शायद ही कोई खतरा पैदा होने की संभावना होती है। हालांकि, बहुत ही रेयर केस में यह भी संभावना है कि फीटस में सीरियस मेंटल और फिजिकल डिफेक्ट देखे जाएं। यही कारण है कि आपका डॉक्टर कभी-कभी आपके बच्चे में पाई जाने वाली अब्नोर्मलिटी की जाँच करने के लिए कुछ स्पेशल टेस्ट करने के लिए कहते हैं जिसे सिक्वेंशियल स्क्रीनिंग या सिक्वेंशियल जेनेटिक टेस्टिंग कहते हैं। यह टेस्ट इस कंडीशन का निदान करने के लिए नहीं होता है, बल्कि यह आपको इसके कॉम्प्लिकेशन व्यापक रूप से दिखाता हैं। यह लेख में आपको गर्भावस्था के दौरान सिक्वेंशियल टेस्ट, उसका प्रोसेस, एक्यूरेसी साथ ही साथ इसके रिजल्ट को समझने में कैसे डील करना है आदि अहम जानकारियां भी आपको दी गई हैं।

सिक्वेंशियल टेस्ट क्या है?

सिक्वेंशियल स्क्रीनिंग प्रीनेटल टेस्ट का एक सेट होता है, जो जेनेटिक या न्यूरल ट्यूब डिफेक्ट की जाँच करता है। इस टेस्ट के दो स्टेज हैं, और यह बच्चे के डेवलपमेंट डिफेक्ट से होने वाले कॉम्प्लिकेशन के साथ बच्चे को जन्म देने के जोखिमों का पता लगाता है। इनमें डाउन सिंड्रोम जैसी जेनेटिक अब्नोर्मलिटी भी शामिल हैं, जो क्रोमोसोम 21 की थर्ड कॉपी की उपस्थिति के कारण होता है। यही कारण है कि इसे ट्राइसॉमी 21 भी कहा जाता है। डाउन सिंड्रोम वाले बच्चों की ग्रोथ देर से होती है, जिसमें टिपिकल फेशियल फीचर के साथ मेंटल डिसेबिलिटी भी देखी जाती है।

इसी तरह, ट्राइसॉमी 18, या एडवर्ड्स सिंड्रोम, क्रोमोसोम 18 की एक्स्ट्रा कॉपी की मौजूदगी के कारण होती है। इस कंडीशन के साथ पैदा हुए बच्चों का साइज बहुत छोटा होता है, और वो हार्ट कंडीशन का अभी अनुभव कर सकते हैं, शरीर के अंग खराब हो सकते हैं और मेंटल डिसेबिलिटी पाई जा सकती है। अन्य समस्याओं में ओपन न्यूरल ट्यूब डिफेक्ट शामिल हैं जैसे कि एनेंसेफली और स्पाइना बिफिडा। एनेंसेफली तब होता है जब मस्तिष्क का एक हिस्सा गायब होता है, जिसके वजह से स्टिलबॉर्न या जन्म के कुछ समय बाद बच्चे की मृत्यु हो जाती है। स्पाइना बिफिडा तब होता है जब वर्टिब्रल कॉलम स्पाइनल कॉर्ड को पूरी तरह से सील नहीं करता है। इससे प्रभावित शिशुओं को मोबिलिटी से संबंधित समस्या, लेग प्रॉब्लम और लेटेक्स से एलर्जी का अनुभव हो सकता है। सिक्वेंशियल टेस्ट कराना जरूरी नहीं हैं, क्योंकि कई लोग ऐसे डिटेल को नहीं जानना चाहते हैं और असहज महसूस कर सकते हैं।

सिक्वेंशियल स्क्रीनिंग टेस्ट कब और कैसे किया जाता है?

सिक्वेंशियल स्क्रीनिंग टेस्ट के दो स्टेज होते हैं। पहला स्टेज आमतौर पर गर्भावस्था के ग्यारहवें और तेरहवें सप्ताह के बीच, पहली तिमाही के दौरान किया जाता है। अगर पहले टेस्ट में थोड़ा रिस्क नजर आता है, तो गर्भावस्था के सोलहवें और बीसवें सप्ताह के बीच, दूसरी तिमाही के दौरान दूसरे स्टेज को परफॉर्म किया जाता है। पहले और दूसरे दोनों स्टेज के रिजल्ट रिस्क पॉसिबिलिटी हो सकती है, नीचे आपको इन स्टेज के बारे में बताया गया है, जो इस प्रकार हैं:

1. सिक्वेंशियल स्टेज वन

पहले स्टेज में एक अल्ट्रासाउंड शामिल है, जो नचल ट्रांसलुसेंसी (एन.टी) को मेजर करता है। यह क्रोमोसोमल अब्नोर्मलिटी जैसे ट्रिपलॉयड के जोखिम का पता लगाता है। दूसरे और बहुत महत्वपूर्ण स्टेप में माँ ब्लड लिया जाता है और प्रोटीन लेवल को टेस्ट किया जाता है।

ब्लड टेस्ट

गर्भावस्था के दौरान प्लेसेंटल प्रोटीन माँ के रक्त में प्रवेश करते हैं और ये प्रोटीन क्रोमोसोमल डिफेक्ट वाले बच्चों में अधिक मात्रा में मौजूद होता है। सिक्वेंशियल स्क्रीनिंग ब्लड टेस्ट प्रोटीन की प्रेसेंस और कंसंट्रेशन की जाँच करता है। रिस्क फैक्टर आपके शरीर के वजन, डायबिटीज स्टेटस, स्मोकिंग स्टेटस, कितने फीटस हैं, ऐज और फीटस की उम्र के आधार पर तय होता है। इसमें शामिल होने वाले दो मुख्य प्रोटीन आपको नीचे बताए गए हैं।

पीएपीपी-ए

PAPP-A या गर्भावस्था से जुड़े प्लाज्मा प्रोटीन ए, एक प्लेसेंटल प्रोटीन है जो माँ के ब्लड फ्लो में पाया जाता है। यदि आपके पीएपीपी-ए का लेवल कम है, तो आपके बच्चे को ट्राइसॉमी 18 या डाउन सिंड्रोम है होने की संभावना बढ़ जाती है। इसके अलावा, यह आपकी प्रेगनेंसी के लिए कई तरह से बुरा प्रभाव डाल सकता है, जैसे  हाई ब्लड प्रेशर, मिस्कैरज, स्टिलबर्थ और लो बर्थ वेट। हालांकि, कई हेल्दी प्रेगनेंसी में भी अक्सर पीएपीपी-ए लेवल कम देखा गया है, इसलिए यदि आपके अन्य टेस्ट रिजल्ट ठीक हैं, तो आपको बहुत ज्यादा चिंतित होने की आवश्यकता नहीं है।

एचसीजी

एचसीजी या ह्यूमन कोरियोनिक गोनाडोट्रोपिन एक महत्वपूर्ण प्लेसेंटल प्रोटीन है जो कई अहम प्रेगनेंसी प्रोसेस को गाइड करने में मदद करता है। एचसीजी लेवल उन फीटस में कम होता है जिनमें ट्राइसॉमी 18 है, लेकिन डाउंस वाले बच्चों में अधिक होता है। चूंकि विभिन्न प्रकार के एचसीजी होते हैं, इसलिए इन सभी को स्क्रीनिंग से गुजरना पड़ता है ताकि माँ के ब्लड फ्लो में पूरे कंसंट्रेशन का अनुमान लगाया जा सके।

2. सिक्वेंशियल स्टेज टू

सिक्वेंशियल स्क्रीनिंग टेस्ट में दूसरे स्टेज में दूसरी तिमाही के दौरान ब्लड फ्लो में डिफरेंट प्रोटीन लेवल की जाँच  की जाती है। इस स्टेज में चार सबसे ज्यादा पाए जाने वाले प्रोटीन इस प्रकार हैं:

एएफपी

अल्फा-फाइटोप्रोटीन, जिसे एएफपी के रूप में भी जाना जाता है, फीटल के लिवर में संश्लेषित (सिंथेसाइज्ड) होता है। एएफपी की मात्रा धीरे-धीरे बढ़ जाती है क्योंकि गर्भावस्था जारी रहती है। हालांकि, अगर बच्चे को स्पाइना बिफिडा है या ओपन न्यूरल ट्यूब डिफेक्ट है तो यह प्रोटीन माँ के ब्लड फ्लो में उच्च मात्रा में पाया जाता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि डिफेक्ट फीटस की त्वचा पर ओपनिंग क्रिएट करते हैं, जिससे एएफपी माँ के ब्लड में मिल जाती है। इसके विपरीत, डाउन और ट्राइसॉमी 18 इम्प्लिकेट हो जाता है, यदि माँ के ब्लड में एएफपी लेवल नॉर्मल से कम होता है।  

एचसीजी

एचसीजी, जो पहले से ही पहली तिमाही सिक्वेंशियल स्क्रीनिंग में टेस्ट किया गया था, उसकी फिर से जाँच की जाती है। रिजल्ट वही रहेंगे: लो एचसीजी लेवल ट्राइसॉमी 18 का सजेस्ट करता है, वहीं हाई एचसीजी लेवल डाउन सिंड्रोम की ओर इशारा करता है।

क्वाड्रपल

अनकंजुगेटेड एस्ट्रिऑल प्लेसेंटा द्वारा और फीटल लिवर द्वारा प्रोड्यूस किया जाता है। जैसे-जैसे गर्भावस्था आगे बढ़ती है, वैसे-वैसे यह प्रोटीन बढ़ता जाता है, लेकिन यदि फीटस में ट्राइसॉमी 18 या डाउन सिंड्रोम देखा जाता है, तो इसका कंसंट्रेशन नॉर्मल से कम हो जाता है।

डिमेरिक इनहिबिन ए

डायमरिक इनहिबिन ए एक प्लेसेंटल प्रोटीन है जिसका लेवल दूसरे तिमाही के बीच में कम या ज्यादा होता है। डिमरिक इनहिबिन का नॉर्मल अमाउंट से अधिक होना इस बात का संकेत है कि बच्चे को डाउन सिंड्रोम हो सकता है, लेकिन कम मात्रा में ट्रिसोमी 18 का स्नाकेट हो सकता है।

सिक्वेंशियल स्क्रीनिंग कितनी सटीक है?

स्टेज वन में, ट्राइसॉमी 18 और डाउन सिंड्रोम होने की संभावना लगभग अस्सी प्रतिशत होती है। स्टेज टू में  क्रोमोसोमल डिफेक्ट होने की नब्बे प्रतिशत संभावना होती है और ओपन न्यूरल ट्यूब डिफेक्ट होने की अस्सी प्रतिशत संभावना होती है। डाउन सिंड्रोम और स्पाइना बिफिडा हर 1000 शिशुओं में एक बच्चे को होता है, जबकि ट्राइसॉमी 18 – 7000 शिशुओं में से एक बच्चे में दिखाई देता है। हालांकि, याद रखें कि ये टेस्ट डाउन सिंड्रोम से जुड़े सभी केस की पहचान नहीं कर सकते हैं, जिसका अर्थ है कि लो रिस्क वाले रिजल्ट के कारण अभी भी डाउन के साथ बच्चा पैदा हो सकता है। इसके अलावा, सिक्वेंशियल स्क्रीनिंग टेस्ट आपको गलत पॉजिटिव रिजल्ट भी डे सकता है, यह बच्चे में फीटल डिफेक्ट दिखा सकता है, जो वास्तव में नहीं होता है।

सिक्वेंशियल स्क्रीनिंग के टेस्ट रिजल्ट?

फाइनल सिक्वेंशियल स्क्रीनिंग रिजल्ट पहले और दूसरे स्टेज को कंबाइन करने बाद आता है, जो या तो पॉजिटिव या नेगेटिव हो सकता है।

1. पॉजिटिव

सभी महिलाओं का लगभग एक प्रतिशत स्टेज वन टेस्ट के बाद पॉजिटिव रिजल्ट दिखाता है, जो अब्नोर्मलिटी को डिटेक्ट करता है। यदि टेस्ट में  लो रिस्क दिखाई देता है, तो आपका डॉक्टर आपको टेस्ट के दूसरे स्टेज के लिए सलाह देंगे।

2. नेगेटिव

दोनों स्टेजों के बाद एक नेगेटिव रिजल्ट आने का मतलब है कि फीटस में जेनेटिक अब्नोर्मलिटी लो है, लेकिन अभी भी इसके होने की संभावना हो सकती है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

नीचे आपको सिक्वेंशियल टेस्ट से जुड़े कुछ अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्नों के उत्तर दिए गए हैं, आइए इसके बारे में जानते हैं।

1. टेस्ट रिजल्ट आने में कितने दिन लगते हैं?

आपके ब्लड सैंपल लिए जाने के बाद टेस्ट के रिजल्ट आने में लगभग एक सप्ताह का समय लगता है।

2. क्या होगा यदि सिक्वेंशियल टेस्ट एब्नार्मल रिजल्ट दिखाता है?

यदि आपको किसी भी तरह की अब्नोर्मलिटी के साथ पॉजिटिव रिजल्ट मिलते हैं, तो आपके डॉक्टर आपके जोखिमों को समझने और सभी आवश्यक जानकारी व सलाह प्राप्त करने के लिए जेनेटिक काउंसेलर से परामर्श करने का सुझाव दे सकते हैं। वे आगे के पॉसिबल टेस्ट के बारे में भी बात कर सकते हैं, जैसे कि कोरियोनिक विलस सैंपलिंग, एमनियोसेंटेसिस, सेकेंडरी अल्ट्रासाउंड और सेल-फ्री डीएनए।

3. क्या होगा यदि सिक्वेंशियल स्क्रीनिंग नॉर्मल रिजल्ट दिखाता है?

यहाँ तक ​​कि अगर आपको नेगटिव या नॉर्मल रिजल्ट मिलता है, तो आपका डॉक्टर प्रीनेटल अपॉइंटमेंट के दौरान आपको करीब से मॉनिटर कर सकता है।

4. क्या सिक्वेंशियल स्क्रीनिंग प्रोसेस सभी गर्भवती महिलाओं के लिए अनुशंसित है?

हाँ, गर्भवती महिलाओं के लिए सभी सिक्वेंशियल स्क्रीनिंग प्रोसेस अनुशंसित हैं, लेकिन विशेष रूप से यह उनके लिए हैं जिनकी प्रेगनेंसी कॉम्प्लिकेटेड है। इसमें वे महिलाएं शामिल हैं जो चालीस से ज्यादा उम्र की हैं, जिनकी फैमिली हिस्ट्री में बर्थ प्रॉब्लम हो, डायबिटीज, रेडिएशन के संपर्क में आना और बहुत मेडिकेशन लेना आदि।

5. क्या स्क्रीनिंग ट्विन्स के लिए सटीक रिजल्ट देती हैं ?

सिक्वेंशियल स्क्रीनिंग टेस्ट जुड़वां बच्चों के साथ भी किया जा सकता है, लेकिन यह प्रक्रिया उतनी सिंपल नहीं है। आपका डॉक्टर या तो प्रत्येक बच्चे में की अब्नोर्मलिटी टेस्ट अलग-अलग करेगा या सिंगल जाँच करेगा।

फीटस में पाए जाने वाले डिफेक्ट या कॉम्प्लिकेशन को टेस्ट करने के कई मेथड हैं, जिसमें सिक्वेंशियल टेस्ट भी शामिल हैं। इन टेस्ट के रिजल्ट को आपके लिए मैनेज करना मुश्किल हो सकता है, यदि इसके रिजल्ट पॉजिटिव आते हैं तो आप इमोशनल सपोर्ट के लिए परिवार, दोस्तों और अपने पार्टनर की मदद लें।

 यह भी पढ़ें:

गर्भावस्था के दौरान डबल मार्कर टेस्ट
गर्भावस्था के दौरान क्वाड्रपल मार्कर टेस्ट
गर्भावस्था के दौरान ट्रिपल मार्कर स्क्रीन टेस्ट

समर नक़वी

Recent Posts

मिट्टी के खिलौने की कहानी | Clay Toys Story In Hindi

इस कहानी में एक कुम्हार के बारे में बताया गया है, जो गांव में मिट्टी…

4 days ago

अकबर-बीरबल की कहानी: हरा घोड़ा | Akbar And Birbal Story: The Green Horse Story In Hindi

हमेशा की तरह बादशाह अकबर और बीरबल की यह कहानी भी मनोरंजन से भरी हुई…

4 days ago

ब्यूटी और बीस्ट की कहानी l The Story Of Beauty And The Beast In Hindi

ब्यूटी और बीस्ट एक फ्रेंच परी कथा है जो 18वीं शताब्दी में गैब्रिएल-सुजैन बारबोट डी…

4 days ago

गौरैया और घमंडी हाथी की कहानी | The Story Of Sparrow And Proud Elephant In Hindi

यह कहानी एक गौरैया चिड़िया और उसके पति की है, जो शांति से अपना जीवन…

2 weeks ago

गर्मी के मौसम पर निबंध (Essay On Summer Season In Hindi)

गर्मी का मौसम साल का सबसे गर्म मौसम होता है। बच्चों को ये मौसम बेहद…

2 weeks ago

दो लालची बिल्ली और बंदर की कहानी | The Two Cats And A Monkey Story In Hindi

दो लालची बिल्ली और एक बंदर की कहानी इस बारे में है कि दो लोगों…

2 weeks ago