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गर्भावस्था के दौरान एलर्जी होना आम है और यह कई महिलाओं को होता है। यदि आपको पहले भी एलर्जी हो चुकी है तो इससे आपको गर्भावस्था के दौरान भी विभिन्न प्रकार की एलर्जी हो सकती हैं। दूसरी तरफ गर्भावस्था होने के कारण महिलाओं को एलर्जी की समस्याएं जल्दी हो सकती हैं। गर्भवती महिलाओं को कुछ सामान्य प्रकार की एलर्जी हो सकती हैं, जैसे त्वचा में एलर्जी, एलर्जिक रायनाइटिस, आँखों में एलर्जी और इत्यादि।
गर्भावस्था के दौरान विभिन्न प्रकार की एलर्जी होने के कारण और ट्रीटमेंट के विकल्प जानने से इसे प्रभावी रूप से ठीक करने में मदद मिल सकती है।
गर्भावस्था के दौरान एलर्जी होना आम है और लगभग 25% गर्भवती महिलाओं को मौसम या खाने की वजह से इस समय एलर्जी हो जाती है। गर्भवती महिलाएं अक्सर एलर्जी के स्तर को कम करने के लिए घरेलू उपचारों को उपयोग करती हैं। हालांकि यदि आपको गंभीर रूप से एलर्जी होती है तो आप शरीर में एलर्जी की प्रतिक्रिया को कम करने के लिए एंटी-हिस्टामिन ले सकती हैं।
गर्भावस्था के दौरान एलर्जी होने का कोई भी निश्चित कारण नहीं है। अक्सर नॉन एलर्जिक चीजों के प्रति हाइपरसेंसिटिविटी जैसे पॉलन और मोल्ड की वजह से एलर्जिक रिएक्शन होता है और यह गर्भवती महिलाओं में आनुवांशिक रूप से भी होता है। स्टडीज के अनुसार शुरूआत में बार-बार एलर्जेंस के संपर्क में भी आने से सेंसिटिविटी को नियंत्रित किया जा सकता है। मौसम बदलने की वजह से भी एलर्जी होती है, जैसे गर्भावस्था के दौरान बुखार, हे फीवर और रायनाइटिस होना।
गर्भावस्था के दौरान हे फीवर होने से नाक बहने, कंजेस्शन, छींक, सिर में भारीपन या दर्द और आँखों में खुजली जैसे लक्षण होते हैं। कुछ महिलाओं को खाने की चीजों से भी एलर्जी होती है और उन्हें त्वचा लाल होने या खुजली होने का अनुभव होता है। इससे कभी-कभी चेहरे पर सूजन भी आ सकती है। आमतौर पर गर्भावस्था के दौरान पेट पर खुजली होना आम है और डायग्नोसिस करने से पहले यह जानना जरूरी है कि यह त्वचा में एलर्जी होने से बिलकुल अलग है।
एलर्जी की जांच आमतौर पर शरीर में एलर्जी होने का कारण पता करने के लिए की जाती है। इसके लिए संभावित एलर्जेंस को चुनकर त्वचा पर पैच बनाकर इंजेक्ट किया जाता है। यदि इससे त्वचा लाल हो जाती है या रिएक्शन होता है तो इसका अर्थ है कि उस चीज से आपको एलर्जी है। इससे एलर्जी का कारण पता करने में मदद मिलती है और आप इससे बचने के उपाय भी कर सकती हैं।
यदि शरीर में एलर्जिक रिएक्शन के लक्षण दिखाई देते हैं तो ब्लड टेस्ट से इसके स्तर का पता लगाया जा सकता है।
गर्भावस्था के दौरान नाक बंद होना बहुत आम है क्योंकि इस समय हॉर्मोनल बदलावों के कारण म्यूकस का स्राव बढ़ जाता है। हालांकि यह एक एलर्जिक रिएक्शन है इसलिए बंद नाक होने के साथ-साथ आँखों में खुजली, लालपन और लगातार स्नीजिंग भी होती है।
यदि प्राकृतिक होम रेमेडीज से आपको आराम नहीं मिलता है तो आप डॉक्टर की सलाह लेकर एलर्जी के लिए सुरक्षित दवाओं का उपयोग भी कर सकती हैं। यहाँ कुछ दवाएं बताई गई हैं जो गर्भावस्था के दौरान प्रभावी रूप से मदद कर सकती हैं, आइए जानें;
सेलाइन सोल्यूशन विशेष रूप से नेजल ड्रॉप्स के रूप में उपलब्ध है जिससे बंद नाक में आराम मिलता है। गर्भावस्था के दौरान रेस्पिरेटरी एलर्जी के लक्षणों को ठीक करने के लिए यह एक सुरक्षित तरीका है।
ओरल एंटी-हिस्टामिन जैसे स्टिरिजाइन, डिफेनहाइड्रामाइन, फेक्सोफेनाडाइन और लोरैटैडाइन बहुत सुरक्षित एंटी-एलर्जिक दवाइयां हैं जो शरीर में उस चीज के प्रति इम्यून की प्रतिक्रिया को रोकता है जिससे एलर्जी हो सकती है।
डिकंजेस्टेंट्स में फिनाइलफेरिन या स्यूडोएफेड्रीन है जो बंद नाक को ठीक करता है। यद्यपि यह महिला को सांस लेने में मदद करता है पर इसके कुछ साइड इफेक्ट्स भी होते हैं, जैसे गर्भ में बच्चे तक खून का प्रवाह बंद हो सकता है। इसलिए सलाह दी जाती है कि आप इसे डॉक्टर की सलाह के बाद ही लें।
गर्भावस्था के दौरान यदि महिलाओं को एलर्जी होती है तो इसे ठीक करने के लिए वे प्राकृतिक तरीकों का उपयोग करें क्योंकि एलोपैथिक दवाओं के साइड इफेक्ट्स भी हो सकते हैं। यहाँ उपयोगी और टेस्ट की हुई रेमेडीज बताई गई हैं, आइए जानें;
रोजाना प्राणायाम करने से भी छींक और बंद नाक ठीक हो सकती है। यदि आप इसका अभ्यास लगातार करती हैं तो इससे शरीर में होने वाली एलर्जी भी ठीक हो जाएगी।
नाक साफ करने के लिए नेटी पॉट का उपयोग एक आयुर्वेद का एक पुराना तरीका है और इसे अक्सर योग का अभ्यास करने वाले लोग सीखते हैं। यह माना जाता है कि इससे साइनस की एलर्जी कम हो सकती है। इसका एक स्पेशल पॉट होता है जिसमें आप सेलाइन पानी डालकर उपयोग कर सकती हैं। यह सेलाइन सलूशन की तरह ही काम करता है और इससे बंद नाक ठीक हो जाती है।
युकलिप्टस के तेल में विशेष रूप से चिकित्सीय गुण होते हैं जिससे सीने की जकड़न और नेजल कंजेशन कम होता है। आप इसे स्टीम द्वारा भांप के रूप में ले सकती हैं या फिर साधारणतः आप इसे साइनस होने की जगह पर भी लगा लें। रात में सांस लेने में समस्या न हो इसलिए आप बिस्तर, चादर व तकिए में इसकी कुछ बूंदें छिड़क दें।
हल्दी एक नेचुरल एंटीसेप्टिक है और हल्दी के पानी की भांप लेने से नाक की सूजन कम हो जाती है। यदि आप नियमित रूप से आहार में हल्दी लेती हैं तो इससे शरीर की इम्युनिटी भी बढ़ती है।
शरीर में एप्पल साइडर विनेगर के बहुत सारे फायदे होते हैं और गर्भावस्था के दौरान इसका सेवन करना सुरक्षित भी है। दिन में एक चम्मच एप्पल साइडर विनेगर लेने से शरीर का पीएच बैलेंस नियंत्रित रहता है और यह म्यूकस के स्राव को भी नियंत्रित करता है।
गर्भावस्था के दौरान ज्यादा से ज्यादा पानी पीने से टॉक्सिन्स बाहर निकल जाते हैं और इससे शरीर हाइड्रेटेड व पोषित रहता है। यदि आप नियमित रूप से पर्याप्त मात्रा में पानी पीती हैं तो इससे आपके शरीर से सभी प्रकार के एलर्जेंस और टॉक्सिन्स बाहर निकल जाते हैं।
बिलकुल ठीक कहा गया है कि रोकथाम इलाज से बेहतर है। इसलिए यहाँ हमने गर्भवती महिलाओं के लिए कुछ तरीके बताए हैं जिनकी मदद से एलर्जी से बचाव किया जा सकता है, आइए जानें;
गर्भवती महिलाओं में एलर्जी से संबंधित यहाँ अक्सर पूछे जाने वाले कुछ सवालों के जवाब दिए हुए हैं, आइए जानें;
ज्यादातर मामलों में एलर्जी से गर्भावस्था पर कोई भी प्रभाव नहीं पड़ता है। गर्भावस्था के दौरान कई महिलाओं को एलर्जी हुई है पर बच्चा स्वस्थ पैदा हुआ है। एलर्जी के लिए सुरक्षित दवाइयां भी उपलब्ध हैं जिन्हें आप गर्भावस्था के दौरान भी ले सकती हैं ताकि आपका बच्चा हेल्दी व सुरक्षित रहे। कुछ मामलों में एलर्जी की वजह से यदि आपको सांस लेने में कठिनाई होती है तो इससे बच्चे तक ऑक्सीजन की आपूर्ति नहीं होगी जिसकी वजह से आपको डॉक्टर की मदद लेनी पड़ सकती है।
गर्भावस्था की वजह से आपकी एलर्जी की समस्याएं बढ़ भी सकती हैं और कम भी हो सकती हैं। यह आपकी समस्याओं पर निर्भर करता है इसका कोई भी सामान्य पैटर्न नहीं है।
यदि आपको गंभीर रूप से एलर्जी हुई है और इसे सिर्फ इंजेक्शन से ही ठीक किया जा सकता है तो गर्भावस्था के दौरान आप यह लेना जारी रख सकती हैं। हालांकि यदि इससे आपको रिएक्शन होते हैं तो आप इसे लेना पूरी तरह से बंद कर दें। वैसे अब तक बच्चे में इसका कोई भी प्रभाव या एलर्जी के प्रमाण नहीं दिखाई दिए हैं।
यद्यपि किसी भी आयु में एलर्जी होना बहुत आम है इसलिए यह सलाह दी जाती है कि विशेषकर गर्भावस्था के दौरान आप ज्यादा सावधानी बरतें ताकि बच्चे पर इसके विपरीत प्रभाव न पड़ें।
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