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गर्भावस्था के दौरान महिलाओं में शारीरिक और भावनात्मक बदलाव भी होते हैं जो उनके लिए उतना अच्छा अनुभव नहीं है। एक तरफ अगर आपकी गर्भावस्था की खुशी को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है तो दूसरी तरह इस दौरान कुछ ऐसी समस्याएं भी हैं जो गर्भावस्था का एक मुख्य भाग होती हैं, जैसे स्ट्रेच मार्क्स, रैशेज और त्वचा से संबंधित अन्य समस्याएं जिन्हें आप कभी नहीं चाहेंगी।
गर्भावस्था के दौरान रैशेज होना त्वचा से संबंधित समस्या है जो इस अवधि में अपने आप ही हो जाते हैं। रैशेज में अक्सर महिलाओं को खुजली और इरिटेशन होती है। गर्भवती महिलाओं में यह समस्या अलग-अलग कारणों से विभिन्न रूपों में होती है। यदि आपको रैशेज हो भी जाते हैं तो इसे ठीक करने के लिए आप तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।
गर्भवती महिलाओं को अक्सर कई कारणों से रैशेज हो सकते हैं। गर्भावस्था के दौरान कुछ प्रकार के रैशेज होने का कोई मुख्य कारण अभी तक पता नहीं चला है पर महिलाओं को कुछ प्रकार के रैशेज निम्नलिखित कारणों से भी हो सकते हैं, आइए जानें;
गर्भावस्था के दौरान यदि एलर्जी या इन्फेक्शन होने से शरीर प्रभावित होता है तो इस पर इम्युनिटी सिस्टम की प्रतिक्रिया होने की वजह से ‘हिस्टामाइन या हिस्टामिन ‘(यह ऑर्गेनिक नाइट्रोजेनस कंपाउंड है जिसकी वजह से खुजली और सूजन जैसी प्रतिक्रियाएं होती हैं) नामक एक कंपाउंड उत्पन्न होता है। यह कंपाउंड महिलाओं की त्वचा पर रैशेज या बंप्स के रूप में दिखाई देता है।
गर्भवती महिलाओं के शरीर में हॉर्मोन्स के बढ़ने से कोल्सटेसिस (यह एक ऐसी समस्या है जिसमें लिवर से बाइल यानी पित्त का प्रवाह कम या बंद हो जाता है) जैसी समस्याएं होती हैं जो गॉल ब्लैडर के फंक्शन को प्रभावित करने के साथ-साथ खुजली का कारण भी बनती हैं।
शोधों के अनुसार गर्भ में पल रहे बच्चे के सेल्स का प्रभाव माँ की त्वचा पर पड़ता है जिसकी वजह से महिलाओं में बंप्स व रैशेज होते हैं और साथ ही खुजली भी होती है।
गर्भावस्था के दौरान वजन बढ़ने की वजह से पेट बढ़ता है और इसके साथ ही टिश्यू स्ट्रेच होते हैं। इसमें कई टिश्यू नष्ट हो जाते हैं जिसकी वजह से महिलाओं की त्वचा पर रैशेज हो सकते हैं। ऐसा अक्सर उन महिलाओं के साथ होता है जिनके गर्भ में एक से अधिक बच्चे हों।
गर्भावस्था के दौरान महिलाओं को कई प्रकार के रैशेज हो सकते हैं और इसकी वजह से यह शरीर में कहीं भी हो सकते हैं, जैसे पेट, पीठ, जांघें, ब्रेस्ट इत्यादि।
गर्भ में पल रहे बच्चे पर कुछ प्रकार के रैशेज का कोई भी प्रभाव नहीं पड़ता है, जैसे पीयूपीपीपी (गर्भावस्था में प्रुरिटिक अर्टिकारियल और प्लेक्स)। पर महिलाओं की त्वचा पर कुछ प्रकार के रैशेज या अन्य समस्याएं भी होती हैं जिसे यदि समय पर ठीक न किया गया तो यह बच्चे व माँ के लिए घातक भी हो सकती हैं।
गर्भावस्था के दौरान महिलाओं को कई प्रकार के आम रैशेज भी होते हैं और यह रैशेज अलग-अलग रूप से गंभीर हो सकते हैं। महिलाओं में होने वाले कुछ रैशेज के बारे में नीचे बताया गया है, आइए जानते हैं;
कई गर्भवती महिलाओं को गर्भावस्था में प्रुरिटिक अर्टिकारियल और प्लेक्स हो जाता है जो रैशेज की एक आम समस्या है। यह समस्या लगभग 150 महिलाओं में से किसी एक को होती है और यह अक्सर गर्भावस्था के 34वें सप्ताह में होती है। इस समस्या में गर्भवती महिला के शरीर पर लाल रंग के चकत्ते/स्पॉट्स और उभरे हुए बंप्स दिखाई दे सकते हैं जिनमें खुजली भी होती है। कुछ रिसर्चर्स के अनुसार यह माना जाता है कि माँ की त्वचा पर पीयूपीपीपी रैशेज गर्भ में पल रहे बच्चे के सेल्स के प्रभाव से होते हैं। यह रैशेज अक्सर सबसे पहले महिला के पेट पर होते हैं और फिर उसकी जांघों, ब्रेस्ट, हाथों और हिप्स तक फैलते हैं।
पीयूपीपीपी रैशेज से माँ व बच्चे को कोई भी हानि नहीं होती है और यह डिलीवरी के बाद अपने आप गायब हो जाते हैं। इन रैशेज पर ऑइंटमेंट लगाने से भी इसे ठीक किया जा सकता है।
इस समस्या को एक्जिमा भी कहा जा सकता है और यह महिलाओं को अक्सर गर्भावस्था की दूसरी तिमाही में होती है। यह समस्या गर्भवती महिलाओं के हाथ, पैरों, छाती और शरीर के अन्य भाग में लाल रंग के छोटे-छोटे चकत्ते के रूप में दिखाई देती है और इसमें खुजली भी बहुत होती है। यह स्पॉट्स पीयूपीपीपी की तरह ही लगते हैं पर यह चकत्ते सूखकर पैच में बदल जाते हैं और इसकी वजह से त्वचा ड्राई होकर निकलने लगती है, जैसे एक्जिमा में होता है। यह समस्या एटॉपिक डर्माटाइटिस (बच्चों में एक्जिमा और खुजली की समस्या) की तरह ही होती है पर कन्फ्यूज न हों क्योंकि दोनों समस्याएं अलग-अलग हैं।
गर्भावस्था की तीसरी तिमाही में कुछ महिलाओं को कोलेस्टासिस होता है और यह लगभग 1000 गर्भवती महिलाओं में से किसी एक को प्रभावित करता है। यह समस्या गर्भावस्था के दौरान हॉर्मोन्स में वृद्धि होने के कारण होती है जो महिलाओं के लिवर में बाइल को प्रभावित कर सकती है। यदि महिला में बाइल का बहाव धीमा हो गया है तो इससे यह पता चलता है कि यह लिवर में इकट्ठा हो रहा है और समय रहते यह खून में भी लीक हो सकता है। इससे महिलाओं के शरीर में लगातार खुजली हो सकती है पर हाथ और पैरों में मुख्य रूप से खुजली होती है। इस समस्या के अन्य लक्षण भी हैं, जैसे गर्भवती महिला को हल्के पीले रंग की पॉटी आना, गाढ़े रंग का पेशाब होना, हल्का जॉन्डिस होना और त्वचा का रंग फीका होना (त्वचा और आँखों का रंग पीला पड़ना)।
कोलेस्टासिस की वजह से महिला के गर्भ में पल रहे बच्चे को कॉम्प्लीकेशंस हो सकते हैं और यहाँ तक कि इससे प्री-टर्म डिलीवरी भी हो सकती है या मृत बच्चा पैदा हो सकता है। इसलिए अगर बच्चे के लंग्स पूरी तरह से विकसित हो गए हैं और उसके बाद ही डिलीवरी होती है तो उसे अन्य कोई भी कॉम्प्लीकेशंस नहीं होंगे। खून में बाइल के स्तर को कम करने के लिए डॉक्टर आपको कुछ दवाएं लिख कर दे सकते हैं और समय से पहले डिलीवरी होने की संभावना को जांचने के लिए वे आपको गर्भ में पल रहे बच्चे का लगातार चेक अप करवाने की सलाह भी दे सकते हैं।
पेम्फिगॉइड जेस्टेशनाईज एक ऑटोइम्यून रोग (इम्युनिटी सिस्टम से होने वाला रोग) है जो अक्सर महिलाओं को गर्भावस्था की तीसरी तिमाही में होता है पर यह कभी-कभी दूसरी तिमाही से भी शुरू हो सकता है। इस समस्या में इम्यूनोग्लोबिन टाइप – जी ऑटो-एंटीबॉडीज, त्वचा के सेल्स को हानि पहुँचाते हैं। इसमें महिलाओं के पेट पर तोंदी के आस-पास लाल रंग के बंप्स होते हैं और यह बाद में उनके हाथ, पीठ और हिप्स तक भी फैल सकते हैं। महिलाओं को इन बंप्स में बहुत खुजली होती है और जैसे-जैसे यह बंप्स बढ़ते हैं इनमें पस भर जाता है और यह छाले बन जाते हैं या साधारण से पैच की तरह भी दिख सकते हैं।
यह समस्या ज्यादातर महिलाओं को डिलीवरी के बाद होती है। हालांकि कई महिलाओं में यह डिलीवरी के कुछ महीनों के बाद तक भी रहती है। इससे बच्चे को कोई भी हानि नहीं होती है पर कुछ दुर्लभ मामलों में इसकी वजह से बच्चे का समय से पहले जन्म हो सकता है या उसे भी छाले हो सकते हैं जो कुछ महीनों के बाद ठीक भी हो जाते हैं।
यद्यपि यह समस्या एक दुर्लभ व घातक भी है। इसमें गर्भवती महिला के पेट व जांघों के बीच में, कोहनी व घुटनों के पास छाले हो जाते हैं। इन छालों से गर्भावस्था के शुरूआती समय में महिलाओं को रैशेज भी हो सकते हैं। इस समस्या के अन्य लक्षण भी हैं, जैसे मतली व उल्टी, डायरिया, बुखार, ठंड लगना और लिम्फ नोड्स में समस्याएं। यह छाले महिलाओं में एक साथ होते हैं व इनमें पस भी होता है। यह कुछ दिनों में अपने आप ही सूखकर गिर जाते हैं और उनकी जगह पर अन्य नए छाले निकलने लगते हैं। गर्भावस्था के दौरान यदि आप को यह समस्या होती है तो शुरूआत में ही डॉक्टर से इसकी जांच करवाएं और अच्छी तरह से इलाज करवाएं। यदि इसका इलाज नहीं करवाया गया तो मृत बच्चा पैदा हो सकता है या इसमें माँ की मृत्यु भी हो सकती है।
प्रुरिटिक फॉलिकुलाइटिस रैशेज अक्सर गर्भावस्था की दूसरी या तीसरी तिमाही में होते हैं। इसमें गर्भवती महिला को एक्ने जैसे छोटे-छोटे दाने होते हैं। अक्सर लोग इसे बैक्टीरियल फॉलिकुलाइटिस मानाने की गलती कर देते हैं। इस प्रकार के रैशेज से भी माँ या बच्चे को कोई हानि नहीं होती है और यह डिलीवरी के बाद अपने आप ही ठीक हो जाते हैं।
गर्भावस्था के दौरान महिलाओं को रैशेज होने पर ज्यादातर कोर्टिकोस्टेरोइड ही लगाने की सलाह दी जाती है जिससे यह ठीक हो जाते हैं। यदि आपको प्रोलिटिक फॉलिकुलिटिस हुआ है तो आप इसमें बेंजोईल पेरोक्साइड लगा सकती हैं। खुजली पर आराम के लिए आप एंटी-हिस्टामिन्स जैसे क्लोरफेनामीन लगा सकती हैं। कभी-कभी बहुत दुर्लभ मामलों में डॉक्टर आपको ओरल कॉर्टिकोस्टेरॉइड, जैसे प्रेडनिसोन भी दे सकते हैं। त्वचा को फटने और रूखा होने से बचाने के लिए आप रैशेज पर ऐसा ऑइंटमेंट लगा सकती हैं जिससे त्वचा को मुलायम और मॉइस्चराइज्ड रहे।
यदि गर्भावस्था के दौरान आपको रैशेज हुए हैं तो आप इन्हें ठीक करने के लिए कुछ घरेलू उपचारों का उपयोग भी कर सकती हैं। यद्यपि यह उपचार वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित नहीं हैं पर कई महिलाओं को इससे मदद मिली है। गर्भावस्था में रैशेज को ठीक करने के लिए कुछ घरेलू उपचार निम्नलिखित हैं, आइए जानते हैं;
गर्भावस्था के दौरान महिलाओं को कई प्रकार से रैशेज हो सकते हैं और इसकी गंभीरता भी अलग-अलग तरीके से होती है। इसलिए आप अपनी और अपने बच्चे की सुरक्षा के लिए जैसे ही आपको रैशेज के लक्षण दिखाई दें, आप तुरंत डॉक्टर से मिलें और इसका इलाज करवाएं।
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