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एक गर्भवती महिला को प्रेगनेंसी के दौरान बहुत सारे मेडिकल चैलेंजेस का सामना करना पड़ता है, लो प्लेटलेट काउंट या थ्रोम्बोसाइटोपेनिया की समस्या भी उनमें से एक चैलेंज है। प्रेगनेंसी के दौरान गर्भवती महिला का शरीर कई फिजिकल और इमोशनल बदलावों से गुजरता है, जिसकी वजह से उन्हें थ्रोम्बोसाइटोपेनिया जैसी समस्या का सामना करना पड़ सकता है।
प्रेगनेंसी के दौरान प्लेटलेट्स की अहम भूमिका होती है और यह ब्लड क्लॉटिंग के लिए भी जिम्मेदार होती है। जो महिला प्रेग्नेंट नहीं है उनका एवरेज नॉर्मल प्लेटलेट काउंट 150,000 से 400,000 प्रति माइक्रोलीटर ब्लड के बीच होना चाहिए। गर्भावस्था के दौरान एक महिला की प्लेटलेट काउंट 116,000 प्रति माइक्रोलीटर ब्लड के हिसाब कम हो सकता है। हालांकि, अगर यह 116,000 से भी कम होता है, तो इस स्थिति को थ्रोम्बोसाइटोपेनिया कहा जाता है।
अगर आपके प्लेटलेट काउंट में बहुत ही कम गिरावट आती है, तो आपके लिए यह कोई बड़ी चिंता का विषय नहीं है, क्योंकि इससे आप और आपके बच्चे को कोई खतरा नहीं होता है। हालांकि, आपके डॉक्टर या आपकी देखभाल करने वाले आपके प्लेटलेट काउंट को मॉनिटर करते रहेंगे, ताकि यह पता चल सके कि प्लेटलेट में और गिरावट तो नहीं आई है। अगर आपके प्लेटलेट काउंट में भारी गिरावट देखने को मिलती है तो यह आपके लिए एक गंभीर समस्याओं का कारण बन सकती हैं और इसलिए आपको तुरंत मेडिकल हेल्प लेनी चाहिए।
गर्भावस्था के दौरान थ्रोम्बोसाइटोपेनिया या लो प्लेटलेट काउंट, एनीमिया के बाद दूसरा सबसे कॉमन ब्लड डिसऑर्डर है। ऐसा देखा गया है कि प्रेगनेंसी के दौरान लगभग 5 से 8 प्रतिशत महिलाओं को लो प्लेटलेट काउंट के लिए डायग्नोस किया जाता है। जरूरी नहीं है कि थ्रोम्बोसाइटोपेनिया के सभी मामले गंभीर हों, लेकिन बेहतर होगा अगर आप थ्रोम्बोसाइटोपेनिया से होने वाले कॉम्प्लिकेशन का सामना करने के लिए आपको खुद को तैयार करें।
प्रेगनेंसी के दौरान लो प्लेटलेट काउंट के कुछ कारण आपको नीचे बताए गए हैं:
यदि आपको गर्भावस्था से पहले ही थ्रोम्बोसाइटोपेनिया की समस्या होती है, तो काफी संभावना है कि यह आपकी पहले से मौजूद किसी मेडिकल कंडीशन की वजह से है या फिर आपकी जो दवाएं चल रही हैं उसके कारण से है। इस कंडीशन का पता आपको प्रेगनेंसी के शुरूआती टेस्ट में ही मालूम चल जाता है, वैसे शरीर में लो प्लेटलेट काउंट करने के लिए कोई विशेष रूप से डायग्नोस्टिक टेस्ट नहीं है। आपके डॉक्टर आपकी कंडीशन की लगातार जाँच करते रहेंगे और चेक करेंगे कि आपकी प्लेटलेट काउंट में गिरावट तो नहीं आ रही है।
यदि गर्भावस्था के अंतिम चरणों में लो प्लेटलेट काउंट की समस्या होती है, तो इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं जैसे प्री-एक्लेमप्सिया या हेल्प सिंड्रोम आदि। आपका इलाज आपकी कंडीशन और लक्षण के अनुसार किया जाएगा।
जेस्टेशनल थ्रोम्बोसाइटोपेनिया के मामले में, आपको किसी भी इलाज की जरूरत नहीं होती है। हालांकि, इसके बावजूद भी आपके डॉक्टर लगातार आपकी हेल्थ पर नजर बनाए रखेंगे।
गर्भावस्था के दौरान लो प्लेटलेट काउंट की वजह से डिलेवरी के समय या उसके बाद ब्लीडिंग होने का खतरा बढ़ सकता है। गर्भावस्था के दौरान गर्भाशय में ब्लड सप्लाई बढ़ जाती है और इसकी वजह से सर्जरी के दौरान मेजर ब्लड वेसल्स को काटने की जरूरत पड़ जाती है। जिन महिलाओं को थ्रोम्बोसाइटोपेनिया की समस्या होती है उनमें अधिक मात्रा में ब्लड लॉस का खतरा होता है। वजाइनल डिलीवरी की तुलना में सीजेरियन डिलीवरी के मामले में यह खतरा ज्यादा होता है।
यदि थ्रोम्बोसाइटोपेनिया से ग्रसित महिला को एपिड्यूरल दिया जाता है, तो इससे उन्हें स्पाइनल एपिड्यूरल हीमेटोमा का खतरा हो सकता है, यह एक ऐसी स्थिति जिसकी वजह से रीढ़ में एक्सीडेंटल पंचर हो सकता है और इससे हमेशा के लिए परैलिसिस भी हो सकता है।
प्रेगनेंसी के दौरान लो प्लेटलेट काउंट का ट्रीटमेंट इस बात पर निर्भर करता है कि आपकी कंडीशन कितनी सीरियस है। अगर प्लेटलेट काउंट में थोड़ी बहुत गिरावट आती है तो इसके लिए किसी विशेष इलाज की जरूरत नहीं होती है, हालांकि आपके डॉक्टर लगातार आपकी कंडीशन को मॉनिटर करते रहेंगे। लेकिन अगर मामला गंभीर है जैसे प्री-एक्लेमप्सिया, हेल्प, एसएलई आदि मेडिकल कंडीशन होती है, जिसके वजह से प्लेटलेट्स कम होने लगती है तो ऐसे हालातों में आपको इलाज की जरूरत होती है।
आप नीचे बताए गए इन नेचुरल तरीकों का पालन करके अपना लो प्लेटलेट काउंट बढ़ा सकती हैं:
हालांकि, यह और भी बेहतर होगा अगर आप अपनी डाइट में उन खाद्य पदार्थों को शामिल करें जो आपकी प्लेटलेट काउंट को बढ़ाने में मदद करें, लेकिन अपनी डाइट में किसी भी प्रकार का बदलाव लाने से पहले आपको अपने डॉक्टर से सलाह ले लेनी चाहिए।
थ्रोम्बोसाइटोपेनिया के ज्यादातर मामले इतने गंभीर नहीं होते हैं जो आप या आपके के लिए खतरा पैदा कर सके। हालांकि, अगर आपको यह समस्या है तो आपको इसका सही इलाज करना जरूरी है। समय पर इलाज हो जाने से स्थिति को ज्यादा बिगड़ने से रोका जा सकता है और इससे आगे आने वाले कॉम्प्लिकेशन के चांसेस को भी कम किया जा सकता है।
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