शिशु

प्रीमैच्योर बेबी के दिमाग का विकास – जन्म से पहले और बाद में

गर्भावस्था के 37वें सप्ताह से पहले जन्म लेने वाले शिशुओं को प्रीमैच्योर कहा जाता है। इसकी वजह से बच्चों में सेहत व विकास से जुड़ी कई समस्याएं हो सकती हैं। ज्यादातर प्रीमैच्योर बच्चों के दिमाग पर प्रभाव पड़ने से उनमें सीखने की व बौद्धिक समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। इसके अलावा बच्चे में कम्युनिकेशन, व्यावहारिक, जैसे एडीएचडी और न्यूरोलॉजिकल समस्याएं, जैसे सेरेब्रल पाल्सी हो सकती हैं। 

प्रीमैच्योर बेबी का विकास

गर्भ में बच्चे के आते ही उसके दिमाग का विकास शुरू हो जाता है। यदि बेबी का जन्म 37 सप्ताह के बाद हुआ है तो उसका दिमाग 100 से ज्यादा न्यूरॉन्स के साथ पूरी तरह से विकसित हो चुका होगा। हालांकि यदि बेबी का जन्म नियत तारीख से बहुत पहले हुआ है तो उसका दिमाग पूरी तरह से विकसित नहीं होगा और जन्म के साथ ही उसमें स्वास्थ्य संबंधी कई समस्याएं और साथ ही विकलांगताएं भी हो सकती हैं। 

1. गर्भ के अंदर

गर्भ के अंदर शिशु का दिमाग तेजी से विकसित होता है। गर्भधारण के तीसरे सप्ताह के भीतर दिमाग के तीन भाग बन जाते हैं। पहला महीना खत्म होने तक दिमाग का फंक्शन शुरू हो जाता है। दूसरी तिमाही में शिशु का दिमाग शरीर के अन्य भागों से जुड़ने लगता है। तीसरी तिमाही में दिमाग के साथ-साथ सिर का विकास सबसे ज्यादा तेजी से होने लगता है। हालांकि चूंकि प्रीमैच्योर बच्चे इस महत्वपूर्ण चरण से पहले ही जन्म ले लेते हैं इसलिए उनका दिमाग पूरी तरह से विकसित नहीं होता है। 

2. गर्भ के बाहर

चूंकि प्रीमैच्योर बेबी का दिमाग पूरी तरह से विकसित नहीं हो पाया है इसलिए उसे स्वास्थ्य व न्यूरोलॉजिकल संबंधित कई समस्याएं होती है और दिमाग डैमेज भी हो जाता है जिसके परिणामस्वरूप कई बीमारियां हो सकती हैं। जन्म के बाद भी बच्चों का दिमाग लगातार विकसित हो रहा होता है। जहाँ एक तरफ पूर्ण अवधि वाले बच्चों का दिमाग माँ के गर्भ के अंधेरे में आंख बंद किए हुए विकसित होता है जहाँ मुश्किल से एमनियोटिक फ्लूइड के बहने की आवाज सुनाई देती है। वहीं दूसरी ओर प्रीमैच्योर बेबी का दिमाग डेवलपमेंट के दौरान कई सारी आवाजों, स्पर्श और समझ से उत्तेजित होता रहता है। यह दिमाग के लिए बिल्कुल भी सही नहीं है। 

प्रीमैच्योर जन्म से बेबी के दिमाग पर क्या प्रभाव पड़ता है?

प्रीमैच्योर बच्चों में ब्रेन डैमेज से गंभीर और आजीवन रहने वाली दिमागी, व्यावहारिक और विकासात्मक विकलांगता हो सकती है। चूंकि प्रीमैच्योर बेबी का जन्म अविकसित दिमाग के साथ होता है इसलिए यह सामान्य रूप से काम नहीं कर पाता है। दिमाग की ब्लड वेसल्स 32वें सप्ताह के बाद ही विकसित और मजबूत होती हैं। इसलिए इस समय से पहले जन्म लेने वाले बच्चों के दिमाग में ब्लीडिंग हो सकती है। ऐसे बच्चों को निम्नलिखित चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है, जैसे;

  • हो सकता है कि प्रीमैच्योर बेबी के शरीर का विकास अन्य सामान्य बच्चों की तरह न हो।
  • प्रीमैच्योर बेबी को सीखने में कठिनाई का सामना करना पड़ सकता है।
  • प्रीटर्म बच्चों को बोलने में कठिनाई हो सकती है और उन्हें अन्य लोगों से बातचीत करने में भी दिक्कत हो सकती है।
  • प्रीमैच्योर बच्चे अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर (एडीएचडी) जैसी व्यवहार संबंधी समस्याओं से पीड़ित हो सकते हैं।
  • सेरेब्रल पाल्सी जिसमें दिमाग, रीढ़ की हड्डी और नर्व्स प्रभावित होती हैं। इसके कारण बच्चा शारीरिक रूप से अक्षम हो सकता है और उसे इधर-उधर घूमने में कठिनाई हो सकती है।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल

यहाँ पर प्रीमैच्योर बेबीज के दिमाग के विकास से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले सवालों के जवाब दिए हुए हैं, आइए जानें;

1. क्या ब्रेस्टफीडिंग से प्रीमैच्योर बच्चे के दिमाग का डेवलपमेंट बूस्ट होता है?

न्यूबॉर्न बच्चों को ब्रेस्टफीडिंग कराना बहुत जरूरी है। माँ के दूध में बहुत सारे न्यूट्रिएंट्स होते हैं जिससे शिशु की इम्युनिटी मजबूत होती है। इसके अलावा यह भी देखा गया है कि फॉर्मूला दूध पीने वाले प्रीमैच्योर बच्चों की तुलना में ब्रेस्टफीडिंग करने वाले प्रीमैच्योर बच्चों का दिमाग जल्दी डेवलप होता है। 

2. क्या प्रीमैच्योर बच्चे में जन्म के बाद से ही सभी समस्याएं व कठिनाइयां उभरने लगती हैं?

नहीं, समय से पहले जन्म के कारण दिमाग डैमेज होने से कुछ समस्याएं और कठिनाइयां बचपन में और यहाँ तक कि बड़े होने के बाद भी उत्पन्न हो सकती हैं।

होने वाली मांओं के लिए यह आवश्यक है कि वे अपनी डाइट में सावधानी बरतते हुए समय से पहले डिलीवरी से बचें और गर्भावस्था के दौरान किसी भी परेशानी का अनुभव होने पर तुरंत डॉक्टर से सलाह लें। थोड़ी सी सावधानी एक स्वस्थ और फुल टर्म बच्चे को जन्म देने में मदद कर सकती है।

यह भी पढ़ें: 

घर पर प्रीमैच्योर बच्चे की देखभाल करने के 10 टिप्स
प्रीमेच्योर बच्चे में इंफेक्शन – संकेत, पहचान और इलाज
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सुरक्षा कटियार

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