In this Article
हर माता-पिता एक स्वस्थ और सुरक्षित गर्भावस्था की कामना करते हैं, लेकिन दुर्भाग्य से, कभी-कभी कुछ ऐसे कॉम्प्लिकेशन होते हैं जो आपकी इस उम्मीद को तोड़ सकते हैं। जब कोई बच्चा समय से पहले यानी प्रीमैच्योर पैदा होता है, तो उसे बहुत सी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है और ऐसे हालात से सबसे पहले पेरेंट्स का तैयार होना जरूरी होता है, क्योंकि बच्चे को जितना समय गर्भ में बिताना चाहिए था वो आवश्यक समय उसने पूरा नहीं किया और इसलिए उसका विकास पूरी तरह से नहीं हो पाता, क्योंकि जिस समय वो पैदा हुआ उस दौरान उसका डेवलपमेंट हो ही रहा था। प्रीमैच्योरिटी की एपनिया भी एक ऐसी समस्या जिसका सामना कई प्रीमैच्योर बच्चे करते हैं और यहाँ हमने इससे संबंधित ऐसी जानकारी आपको दी गई हैं, जो आपके लिए बहुत उपयोगी हो सकता है ।
पैदा होने के बाद बच्चे ने लगातार सांस लेनी चाहिए, लेकिन प्रीमैच्योर बच्चों को बिना किसी समस्या के लगातार सांस लेने के लिए जरूरी अपने सेंट्रल नर्वस सिस्टम को विकसित करने का पर्याप्त समय नहीं मिल पाता, और इस तरह के मामले में यह उनके लिए संभव नहीं होता है। जब प्रीमैच्योर बच्चा पंद्रह से बीस सेकंड से अधिक समय के लिए अपनी सांस रोक लेता है या उससे कम समय के लिए भी रोकता है, लेकिन उसका ऑक्सीजन लेवल कम होता है या हार्ट बीट धीमी हो जाती है, तो इसका मतलब है कि उसे प्रीमैच्योरिटी का एपनिया है। यह आमतौर पर कुछ हफ्तों में अपने आप ठीक हो जाता है और ज्यादातर मामलों में यह एक बार ठीक होने के बाद, फिर से नहीं होता है।
हालांकि एपनिया होने का मुख्य कारण सेंट्रल नर्वस सिस्टम के पूरी तरह से मैच्योर न होने के कारण हो सकता है, लेकिन बच्चे को अन्य कारणों से भी सांस लेने में समस्या हो सकती है। सेंट्रल एपनिया दिमाग के ब्रीदिंग कंट्रोल सेंटर के हस्तक्षेप और ऑब्सट्रक्टिव एपनिया के कारण होता है जिससे वायुमार्ग ब्लॉक हो जाते हैं। दूसरे अंगों में समस्या होने पर भी एपनिया हो सकता है।
यहाँ हम उन विभिन्न कारणों पर चर्चा करेंगे जो प्रीमैच्योरिटी के एपनिया का कारण हैं:
वैसे तो हर बच्चे में इसके अलग-अलग लक्षण दिखाई दे सकते है, लेकिन यहाँ आपको कुछ आम लक्षणों के बारे में इस प्रकार बताया गया है:
सबसे पहले, आपको यह जानना होगा कि बच्चे को सांस लेने में समस्या क्यों हो रही है। ऐसी ही एक और स्थिति है जिसमें बच्चे को सांस लेने में परेशानी होती है जो समय से जन्मे बच्चों और प्रीमैच्योर बच्चों दोनों में हो सकती है, इसे पीरियॉडिक ब्रीदिंग कहा जाता है। इसमें सांस लेने का एक पैटर्न होता है एक शार्ट पॉज होता है जो तेज तेज सांस लेने की प्रक्रिया में किया जाता है। जबकि पीरियॉडिक ब्रीदिंग को ब्रीदिंग का एक नॉर्मल प्रकार माना जाता है जो बच्चों में देखा जाता है, वहीं प्रीमैच्योरिटी एपनिया एक अधिक गंभीर समस्या है जिसके लिए डॉक्टर को दिखाने की आवश्यकता होगी।
डॉक्टर बच्चे के बॉडी सिस्टम को चेक करेंगे ताकि एपनिया के होने के कारण क्या हैं, यह पता चल सके। डाईग्नोस्टिक प्रक्रिया में कुछ चीजें शामिल हैं:
प्रीमैच्योरिटी के एपनिया का इलाज आपके बच्चे की गर्भ की आयु, मेडिकल हिस्ट्री, उसकी संपूर्ण सेहत, स्थिति और कुछ प्रकार की दवाइयों के प्रति उसकी सहनशक्ति, थेरेपी और प्रक्रिया के आधार पर निर्धारित किया जाएगा। प्रीमैच्योरिटी के एपनिया वाले ज्यादातर बच्चों का इलाज निम्न प्रकार से किया जाता है:
एपनिया तब खत्म हो जाता है जब बच्चा हॉस्पिटल से डिस्चार्ज होने के लिए तैयार हो जाता, हालांकि, कुछ को बीच-बीच में एपनिया की समस्या हो सकती है। ऐसे मामले में आपका डॉक्टर यह तय करेगा कि क्या बच्चे को होम एपनिया मॉनिटर करने की आवश्यकता है या नहीं ।
होम एपनिया मॉनिटर के दो मुख्य भाग होंगे। एक बेल्ट होगी जिसमें सेंसरी वायर होंगे और इसे आपके बच्चे की छाती के चारों ओर रखा जाएगा। यह आपके बच्चे के छाती के मूवमेंट और सांस लेने की दर को मॉनिटर करेगा। दूसरी मॉनिटरिंग यूनिट में अलार्म होगा। यह यूनिट सेंसरों द्वारा दी जाने वाली रेट्स को निरंतर रिकॉर्ड करता रहेगा।
आपके बच्चे को डिस्चार्ज देने से पहले, एनआईसीयू की मेडिकल टीम आपके साथ यूनिट की फंक्शनिंग करेगी और आपको निर्देश देगी कि इसका उपयोग कैसे किया जाए। वे आपको यह भी सिखाएंगे कि अलार्म का जवाब कैसे देना है और सीपीआर कैसे करना है और आपको ट्रेन किया जाएगा, हालांकि वास्तव में शायद ही इसकी आवश्यकता हो। डॉक्टर से अपने किसी भी संदेह के बारे में बात करें ताकि आप घर पर स्थिति को संभाल सकें।
यदि आपके बच्चे को घर पर एपनिया की समस्या होती है, तो आपको स्टाफ के निर्देशों का पालन करना होगा और अपने बच्चे को सांस लेने में मदद करने के लिए उसकी पीठ, हाथ या पैर को रगड़ना होगा। अगर कोई भी तरीका काम नहीं कर रहा है और आप देख रही हैं कि आपके बच्चे की त्वचा नीली पड़ रही है, तो आपको तुरंत सीपीआर शुरू करना चाहिए और इमरजेंसी नंबर पर कॉल करना चाहिए।
याद रखें कि स्थिति कितनी भी मुश्किल क्यों न हो, आपको अपने बच्चे को जगाए रखने के लिए उसे कभी भी जोर से हिलाना नहीं चाहिए!
बच्चों में प्रीमैच्योरिटी के एपनिया की समस्या आमतौर पर अपने आप ही दूर हो जाएगी और जिन स्वस्थ बच्चों को एक हफ्ते के दौरान दोबारा एपनिया की समस्या नहीं होती है, वो इस स्थिति से पूरी तरह रिकवर कर चुके होते हैं। यहाँ कुछ टिप्स दिए गए हैं, जो आपको अपने बच्चे को संभालते समय मदद करेंगे:
यह आपके लिए बहुत तनावपूर्ण समय हो सकता है जब आपका बच्चा अपने जीवन में इतनी नाजुक पोजीशन में होता है और उसे सांस लेने के लिए संघर्ष करते हुए देखना बहुत मुश्किल समय होता है, खासकर जब हममें से ज्यादातर लोगों ने इस स्थिति के बारे में कोई कल्पना नहीं की होती है। इसलिए यदि आप किसी भी समय निराश महसूस करती हैं, तो एनआईसीयू के वर्कर से बात करें क्योंकि वे न केवल बच्चे की देखभाल करने के लिए वहाँ मौजूद होते हैं, बल्कि माता-पिता को भी आश्वस्त करने और सपोर्ट देने में मदद करते हैं। समय से पहले पैदा होने वाले बच्चों में स्थिति सामान्य होती है, लेकिन बच्चों को इससे परेशानी होती है क्योंकि वे अभी भी अंडरडेवलप होते हैं। बस आपको थोड़ा हिम्मत बनाए रखने की जरूरत है और जल्दी ही आपका बच्चा इस समस्या से बाहर आ जाएगा व नॉर्मल बच्चों की तरह ही हो जाएगा।
यह भी पढ़ें:
समय से पूर्व जन्मे शिशु का वज़न बढ़ाने के उपाय
घर पर प्रीमैच्योर बच्चे की देखभाल करने के 10 टिप्स
माइक्रो प्रीमि – अगर आपका शिशु माइक्रो प्रीमैच्योर है तो आपको क्या जानना चाहिए
हिंदी वह भाषा है जो हमारे देश में सबसे ज्यादा बोली जाती है। बच्चे की…
बच्चों को गिनती सिखाने के बाद सबसे पहले हम उन्हें गिनतियों को कैसे जोड़ा और…
गर्भवती होना आसान नहीं होता और यदि कोई महिला गर्भावस्था के दौरान मिर्गी की बीमारी…
गणित के पाठ्यक्रम में गुणा की समझ बच्चों को गुणनफल को तेजी से याद रखने…
गणित की बुनियाद को मजबूत बनाने के लिए पहाड़े सीखना बेहद जरूरी है। खासकर बच्चों…
10 का पहाड़ा बच्चों के लिए गणित के सबसे आसान और महत्वपूर्ण पहाड़ों में से…