In this Article
प्रोजेरिया बच्चों को प्रभावित करने वाली एक दुर्लभ जेनेटिक बीमारी है। इस जेनेटिक बीमारी में बच्चे की उम्र समय से पहले ही बढ़ जाती है। जीवन के शुरुआती 2 वर्षों से ही तेज गति से उम्र बढ़ने के कारण प्रोजेरिया से ग्रस्त बच्चे केवल 10 वर्ष की उम्र में भी बूढ़े लग सकते हैं और बुढ़ापे से संबंधित बीमारियों का अनुभव भी कर सकते हैं।
जहां इस बीमारी का कोई इलाज नहीं है, वहीं उचित दवाओं और देखभाल से इस बीमारी के लक्षण ठीक हो सकते हैं और आगे इस बीमारी की प्रगति धीमी भी पड़ सकती है।
प्रोजेरिया क्या है?
प्रोजेरिया जिसे हचिंसन गिलफोर्ड प्रोजेरिया सिंड्रोम भी कहते हैं, एक दुर्लभ जेनेटिक डिसऑर्डर है, जिसमें नवजात शिशुओं में समय से पहले तेज गति से उम्र बढ़ने लगती है। इस बीमारी की शुरुआत आमतौर पर 18 से 24 महीने की उम्र में होती है। इस प्रोग्रेसिव डिसऑर्डर के साथ जन्म लेने वाले बच्चे जन्म के समय बिल्कुल सामान्य दिखते हैं और लगभग 18 महीने की उम्र में उनके लक्षण दिखने शुरू होते हैं। यह आनुवांशिक नहीं होता है और परिवार में वंशानुगत रूप से आगे नहीं बढ़ता है।
प्रोजेरिया सिंड्रोम के प्रकार
हचिंसन गिलफोर्ड प्रोजेरिया सिंड्रोम, प्रोजेरिया का सबसे आम प्रकार है, जो कि 1 से 2 वर्ष की उम्र के बच्चों में मौजूद हो सकता है।
विएडेमन-रौटेनस्ट्रोच सिंड्रोम, प्रोजेरिया सिंड्रोम का एक अन्य प्रकार है, जो कि गर्भ में होने के दौरान भी बच्चे के शरीर में मौजूद होता है।
वर्नर सिंड्रोम प्रोजेरिया का एक और प्रकार है, जो कि थोड़ी देर से, यानी कि लगभग टीनएज के दौरान शुरू होता है। इस सिंड्रोम से ग्रस्त लोग 40 से 50 वर्ष की उम्र तक जीवित रह सकते हैं।
प्रोजेरिया का एक और प्रकार भी है, जो कि बौनापन या अन्य असामान्य विकास संबंधी फीचर्स के साथ दिखता है और इसे हॉलर्मैन-स्ट्रेफ फ्रांसिओस सिंड्रोम कहते हैं।
प्रोजेरिया के कारण
प्रोजेरिया नवजात शिशु के एलएमएनए जीन में जेनेटिक म्यूटेशन के कारण होता है। एलएमएलए जीन न्यूक्लियस की संरचना को सपोर्ट करने के लिए प्रोटीन बनाता है। लेकिन जेनेटिक म्यूटेशन के कारण एलएमएनए प्रोजेरिया नामक एक प्रोटीन बनाता है, जो कि सेल्स को आसानी से तोड़ता है और उन्हें अस्थिर बनाता है। इसके कारण एचजीपीएस से ग्रस्त बच्चों में तेज गति से उम्र बढ़ने लगती है।
प्रोजेरिया के लक्षण
प्रोजेरिया के लक्षण स्पष्ट होते हैं और इन्हें आसानी से पहचाना जा सकता है। लेकिन ये जन्म के समय नहीं दिखते हैं और बच्चे के पहले या दूसरे वर्ष के दौरान ही दिखते हैं। प्रोजेरिया के कुछ लक्षण इस प्रकार हैं:
- पहले वर्ष में विकास में रुकावट या विकास न होना
- आइब्रो और पलकें ना होना
- गंजापन व बालों की कमी
- चेहरे पर झुर्रियां होना
- चेहरे और सिर की त्वचा पर ब्लड वेसल का दिखना
- मैक्रोसेफली या चेहरे की तुलना में सिर का आकार बड़ा होना
- पतली त्वचा जो कि देखने से सूखी और पपड़ीदार लगे
- छोटा जबड़ा और पतले होंठ
- तेज आवाज
- बड़ी और बाहर की ओर उभरी हुए आंखें और पूरी तरह से पलकों को बंद करने में अक्षमता
- जोड़ों में कसावट
- बॉडी फैट और मांसपेशियों की कमी
- बाहर की ओर निकले हुए कान
पहचान
अधिक संभावना यही होती है, कि डॉक्टर बच्चे की ओर देखकर इस बीमारी को पहचान लेते हैं। लेकिन एक शारीरिक जांच की जाती है, जिसमें बच्चे की नजर और सुनने की शक्ति को चेक किया जाता है। इसके साथ ही पल्स और ब्लड प्रेशर भी मापा जाता है। बच्चे का वजन और कद भी लिया जाता है और उस उम्र के सामान्य कद और वजन के साथ तुलना की जाती है।
अगर प्रोजेरिया का संदेह हो, तो इस स्थिति की पुष्टि करने के लिए बहुत सारे लैब टेस्ट किए जाते हैं, जिसमें इंसुलिन रेजिस्टेंस, कोलेस्ट्रॉल और ट्राइग्लिसराइड के स्तर की जांच भी शामिल है। ब्लड टेस्ट और जेनेटिक टेस्टिंग भी एलएमएनए जीन में म्यूटेशन को पहचान सकते हैं।
जटिलताएं
प्रोजेरिया की जटिलताओं में आमतौर पर बुढ़ापे में होने वाली बीमारियां शामिल होती हैं, जैसे:
- कार्डियोवैस्कुलर बीमारियां और दिल की बीमारियां (हार्ट अटैक)
- सेरेब्रोवैस्कुलर समस्याएं, जैसे स्ट्रोक
- स्क्लेरोडर्मा नामक बीमारी, जिसमें कनेक्टिव टिशू सख्त और टाइट हो जाते हैं
- एक सीमा तक सुनने की कमी
- दांत बनने में देरी
- बहुत ही कमजोर हड्डियां और हड्डियों की ढांचे की असामान्य बनावट
- इन्सुलिन रेजिस्टेंस
- हिप डिसलोकेशन
- मोतियाबिंद
- एक्यूट अर्थराइटिस
- ऑस्टियोपोरोसिस
- एथेरोसिलेरोसिस
प्रोजेरिया का इलाज
प्रोजेरिया के लिए कोई इलाज उपलब्ध नहीं है, लेकिन बच्चे के लक्षणों का उपचार किया जा सकता है। इनमें ब्लड कोलेस्ट्रॉल को कम करने वाली और ब्लड क्लॉट बनने से रोकने वाली दवाएं शामिल हैं। हार्ट अटैक और स्ट्रोक से बचने के लिए हर रोज कम मात्रा में एस्पिरिन का प्रिसक्रिप्शन दिया जा सकता है।
चूंकि विकास की कमी इसका एक प्रमुख लक्षण है, ऐसे में, ग्रोथ हॉर्मोन भी दिए जा सकते हैं, ताकि बच्चे का कद और वजन बढ़ने में मदद की जा सके। अगर बच्चा जोड़ों में कसावट से ग्रस्त है, तो गतिविधि को शुरू करने के लिए फिजिकल थेरेपी की सलाह दी जा सकती है। साथ ही, चूंकि दिल की बीमारी होने की संभावना बहुत अधिक होती है, ऐसे में कुछ बच्चे कोरोनरी बाईपास या एंजियोप्लास्टी जैसी सर्जरी करवा सकते हैं, ताकि बीमारी के फैलाव को रोका जा सके।
फार्नेसाइलट्रांसफेरेस इन्हेबिटर्स या एफटीआई नामक कैंसर की एक प्रकार की दवा में खराब हो चुके सेल्स को ठीक करने की क्षमता हो सकती है। प्रोजेरिया से ग्रस्त बच्चों के इलाज के लिए अधिक व्यावहारिक इलाज के विकल्प उपलब्ध कराने के लिए अभी भी रिसर्च की जा रही है।
घरेलू उपचार
प्रोजेरिया एक जेनेटिक डिसऑर्डर है और इस स्थिति के लक्षणों या स्थिति को ठीक करने के लिए प्रभावी होम रेमेडीज उपलब्ध नहीं हैं। यहां पर इसके लक्षणों से राहत पाने के कुछ तरीके दिए गए हैं:
- यह सुनिश्चित करना बहुत जरूरी है, कि प्रोजेरिया से ग्रस्त बच्चा अच्छी तरह से हाइड्रेटेड हो, क्योंकि उसमें तुरंत डिहाइड्रेशन होने की संभावना बहुत अधिक होती है।
- थोड़े-थोड़े अंतराल पर थोड़ा-थोड़ा खाना अच्छा होता है। इससे उसे विकास के लिए जरूरी सभी पोषक तत्व अच्छी तरह मिल पाते हैं।
- उन्हें मुलायम, कुशन वाले जूते, इंसर्ट दें, ताकि उनकी असुविधा कम हो सके।
प्रोजेरिया से ग्रस्त लोगों के लिए दृष्टिकोण
प्रोजेरिया से ग्रस्त बच्चों का औसत जीवन लगभग 13 वर्षों का होता है। लेकिन कुछ लोग इससे थोड़ा अधिक, लगभग 20 वर्षों तक जीवित रह सकते हैं। लेकिन, चूंकि प्रोजेरिया का कोई इलाज नहीं है और इसके साथ कई तरह की बीमारियां जुड़ी होती हैं, ऐसे में यह बीमारी जानलेवा हो जाती है। कई बच्चे जो कि प्रोजेरिया से ग्रस्त हैं, उनमें दिल की बीमारियों का खतरा बहुत अधिक होता है।
डॉक्टर से कब मिलना चाहिए?
प्रोजेरिया के लक्षण काफी स्पष्ट होते हैं। अगर आपको आपके बच्चे में इसके लक्षण दिखते हैं, तो एक पेशेवर सलाह के लिए डॉक्टर से परामर्श लें। शारीरिक परीक्षण और लैब टेस्ट के आधार पर डॉक्टर आपके संदेह को कंफर्म कर पाएंगे।
प्रोजेरिया सिंड्रोम एक ऐसी बीमारी है, जिसका अब तक कोई इलाज नहीं मिला है। लेकिन उचित देखभाल और इलाज के साथ इसके लक्षणों को कुछ हद तक कम किया जा सकता है और बच्चों को एक लंबी जिंदगी मिलने में मदद की जा सकती है। प्रोजेरिया के कोई जोखिम नहीं होते हैं और यह आनुवांशिक रूप से नहीं फैलता है। अगर आपका बच्चा इस बीमारी से ग्रस्त है, तो उसकी देखभाल के लिए सबसे बेहतर तरीका यही है, कि उसके सभी उपचार समय-समय पर करते रहें और नियमित रूप से डॉक्टर से जांच करवाते रहें, ताकि किसी आकस्मिक जटिलता का पता लगाया जा सके।
यह भी पढ़ें:
शिशुओं में एडवर्ड सिंड्रोम होना
टर्नर सिंड्रोम – कारण, लक्षण और इलाज
ग्रे बेबी सिंड्रोम – कारण, लक्षण, इलाज और अन्य जानकारी