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जिस भी महिला ने शुरूआती दिनों में बच्चे को ब्रेस्टफीडिंग कराना छोड़ दिया था और बाद में गलत महसूस करने के कारण वह खुद को दूसरा मौका देना चाहती है वह रिलैक्टेशन करती है। यदि आप बच्चे के लिए दूध उत्पन्न कर सकती हैं तो फिर से ब्रेस्टफीडिंग कराना संभव है और आप बच्चे को दूध पिलाने के सभी फायदों का आनंद ले सकती हैं। रिलैक्टेशन के बारे में अधिक जानने के लिए आगे पढ़ें।
कुछ कारणों से ब्रेस्टफीडिंग बंद करने के बाद दोबारा शुरू करने की प्रक्रिया को रिलैक्टेशन कहते हैं। क्या आपने ब्रेस्टफीडिंग कराना बंद कर दिया था और अब इसे फिर से शुरू करना चाहती हैं? यदि हां तो परेशान न हों क्योंकि आप खुद को दोबारा मौका दे सकती हैं। रिलैक्टेशन एक ऐसी प्रोसेस है जिसमें एक गैप के बाद बच्चे के लिए दूध की आपूर्ति बढ़ाकर ब्रेस्टफीडिंग दोबारा शुरू की जा सकती है। एक महिला कई दिनों, कई सप्ताह और सालों के लिए बच्चे को ब्रेस्टफीड नहीं कराती है पर रिलैक्टेशन की मदद से इसकी शुरूआत दोबारा हो सकती है। ब्रेस्टफीडिंग दोबारा शुरू करने की प्रक्रिया के दो भाग हैं – इंड्यूसिंग या दोबारा से दूध की आपूर्ति होना और बच्चे को दोबारा से दूध पिलाना शुरू करना। बच्चे को थोड़ा सा दूध पिलाने के बाद आप एक बार फिर से बच्चे को दूध पिलाने का रूटीन या पैटर्न बनाएं। सीधे शब्दों में कहें तो यह बहुत कम या स्तनपान बंद करने के बाद मां और बच्चे के रिश्ते में फिर से ब्रेस्टफीडिंग का रूटीन या पैटर्न स्थापित करना होता है।
पहले भी बताया गया है कि जो मां किसी भी कारण से एक बार ब्रेस्टफीडिंग बंद करने के बाद बच्चे को दोबारा से दूध पिलाना शुरू करना चाहती है वह रिलैक्टेशन स्टिमुलेट कर सकती है। ब्रेस्टफीडिंग रोकने के कई कारण हो सकते हैं, जैसे दूध की आपूर्ति कम होना, बच्चे में ब्रेस्ट चूसने की क्षमता न होना, काम पर वापस जाना आदि। कोई भी कारण हो पर आप बिना किसी वजह से सभी चिंताओं को एक तरफ रख कर बच्चे को दोबारा से दूध पिलाना शुरू कर सकती हैं। रिलैक्टेशन उन महिलाओं के लिए रेकमेंडेड है जो नीचे दी गई श्रेणी में आती हों;
यह वहम कि एक बार ब्रेस्टफीडिंग बंद करने के बाद या दूध की आपूर्ति सूखने के बाद दोबारा ब्रेस्टफीडिंग नहीं कराई जा सकती है रिलैक्टेशन 70% से 80% मामलों में प्रमाणित होने के बाद मिटाया जा चुका है। ब्रेस्ट मिल्क में विटामिन और न्यूट्रिएंट्स होते हैं जिससे बच्चे को इम्युनिटी मजबूत करने के लिए कुछ आवश्यक इंग्रेडिएंट्स मिलते हैं। ब्रेस्ट मिल्क में एंटीबॉडीज भी होती हैं जो वायरस और बैक्टीरिया से लड़ती हैं व इंफेक्शन, रेस्पिरेटरी से संबंधित बीमारी व डायरिया से बचाती हैं। इसके अलावा ब्रेस्टफीडिंग से बच्चे व माँ के बीच एक भावनात्मक रिश्ता बनता है।
ब्रेस्ट को उत्तेजित करने से दूध के प्रोडक्शन को बढ़ाया जा सकता है। ब्रेस्टफीडिंग डिमांड और आपूर्ति के आधार पर होती है। रिलैक्टेशन प्रोसेस के दो भाग हैं – बच्चे को ब्रेस्ट चूसने देना और उसे संतुष्ट होने के लिए पर्याप्त मात्रा में दूध का उत्पादन। दोनों चीजें एक दूसरे पर निर्भर हैं – बच्चा ब्रेस्ट को जितना ज्यादा चूसेगा उतना ही ज्यादा दूध निकलेगा और यदि ज्यादा दूध निकलता है तो बच्चे को तुरंत दूध पिलाएं।
इस बारे में पहले भी चर्चा हुई है कि रिलैक्टेशन पूरी तरह से प्रोसीजर के दो भागों पर निर्भर करता है, इसके सफल होने के कुछ फैक्टर्स निम्नलिखित हैं, आइए जानें;
यद्यपि ऊपर बताए गए फैक्टर्स से रिलैक्टेशन को प्रेरित किया जा सकता है पर यह इसके बगैर भी प्रभावी हो सकता है।
यद्यपि रिलैक्टेशन पर बहुत कम रिसर्च हुई है पर उपलब्ध स्टडीज के अनुसार रिलैक्टेशन सफल होने की दर बढ़ती जा रही है। एक्सपर्ट से उचित सपोर्ट लेकर प्रोसीजर का प्लान बनाने के बाद और इसे सभी स्टेप्स के साथ करने से सफलता की पूरी संभावना है। एक्सपर्ट्स का मानना है कि रिलैक्टेशन के लिए मांओं का प्लान एक महीने में सफल हो सकता है। इसके अलावा आप हार न मानें और जब भी जरूरी हो तो आवश्यक सलाह लेती रहें।
रिलैक्टेशन का सबसे पहला स्टेप है दूध की आपूर्ति को स्टिमुलेट करना। रिलैक्टेशन में मदद के लिए डॉक्टर आपको सप्लीमेंट्स देंगे या दवा प्रिस्क्राइब करेंगे। यदि आपने बच्चे को गोद लिया है या पहले कभी दूध नहीं पिलाया है तो ऐसा हो सकता है। दूध की आपूर्ति में सुधार करने के लिए यहां कुछ प्रमाणित टिप्स बताए गए हैं, आइए जानें;
यदि बच्चा दूध पीने को तैयार है तो आप उसे लगातार दूध पिलाएं। हर 24 घंटे में 10-12 बार दूध पिलाना सही है। इस बात का ध्यान रखें कि बच्चा दोनों ब्रेस्ट से दूध पिए और उन्हें अच्छी तरह से खाली कर दे।
यदि बच्चा ब्रेस्ट से दूध नहीं पीता है तो आप दूध की आपूर्ति को बढ़ाने के लिए ब्रेस्ट पंप का उपयोग भी कर सकती हैं। आप हर तीन घंटे में पंप इस्तेमाल करें। दोनों तरफ एक समान पंप उपयोग करने से अधिक प्रभाव पड़ता है। बच्चे को दूध पिलाने के बाद भी पंप का उपयोग करें क्योंकि इससे यह पता लग जाता है कि ब्रेस्ट पूरी तरह से खाली हो गया है और दूध की आपूर्ति बढ़ गई है। शेड्यूल बनाकर पंपिंग करने और दिन में एक बार पावर पंपिंग की सलाह दी जाती है।
इस बात का ध्यान रखें कि बच्चा ब्रेस्ट को अपने मुंह में पूरा लेता है और अच्छी तरह से चूसता है। आपको पूरी सुविधा मिलना बहुत जरूरी है। हल्की फुल्की लैचिंग या दर्द का यह अर्थ है कि बच्चा ठीक महसूस नहीं कर रहा है। इस समस्या को तुरंत ठीक करने के लिए डॉक्टर की मदद लें।
ब्रेस्ट को खाली करने के लिए पंपिंग या फीडिंग के दौरान इसे कंप्रेस करें ताकि यदि बच्चा ब्रेस्टफीडिंग के दौरान ही सो जाता है तो वह काफी दूध पी चुका हो।
एसएनएस का विचार करें, जो बच्चे को स्तन पर फार्मूला सप्लीमेंट प्राप्त करने की अनुमति देता है, जबकि दूध का प्रोडक्शन नर्सिंग द्वारा उत्तेजित होता है। बोतल के अलावा फीडिंग के तरीकों, जैसे कप, चम्मच, एसएनएस से रिलैक्टेशन बढ़ता है। बच्चे को ब्रेस्ट तक वापिस लाने के लिए आप बोतल से दूध पिलाने के बजाय निप्पल से धीमे फ्लो में बच्चे को दूध पिलाएं।
ग्लैंडुलर और हॉर्मोन की वजह से दूध की आपूर्ति कम होने पर हर्बल सप्लीमेंट्स और प्रिस्क्राइब की हुई दवा काफी मदद करती है। यद्यपि गैलेक्टगॉग त्वचा से त्वचा के संपर्क, ब्रेस्ट को उत्तेजित करने, बच्चे को लगातार दूध पिलाने, बेबी के लैचिंग करने आदि के बिना काम नहीं करता है पर यदि इससे आपको फायदा हो रहा है तो आपको इस बारे में एक बार डॉक्टर से बात जरूर करनी चाहिए।
रिलैक्टेशन में बच्चे से लैचिंग कराना भी जरूरी है। बेबी को ब्रेस्टफीड करने में मदद के लिए यहाँ कुछ टिप्स बताए गए हैं, आइए जानें;
जितना संभव हो उतना आप बच्चे की त्वचा से अपनी त्वचा का संपर्क बनाए रखें। स्किन कॉन्टैक्ट की गर्माहट से बॉन्डिंग बढ़ती है और दूध की आपूर्ति होती है।
रिसर्च में यह प्रमाणित हुआ है कि बच्चों को ब्रेस्टफीडिंग की समझ नेचुरल तरीके से होती है और वे यह गुण लंबे समय तक याद रखते हैं। आप ब्रेस्टफीडिंग के पैटर्न को बनाने के लिए सही पोजीशन का उपयोग करें, बच्चे को दूध पिलाते समय उसे रिफ्लेक्स कराएं या यहां तक कि बच्चे को साथ में नहलाएं जिससे ब्रेस्टफीडिंग का पैटर्न फिर से स्थापित हो सके।
आप बेबी को तब फीडिंग कराने का प्रयास करें जब दूध की आपूर्ति बहुत ज्यादा हो – यह रात में या सुबह के समय में हो सकता है। सुविधा के लिए आप उसे तब ब्रेस्ट दें जब वह सो रहा हो या उसका पेट भरा हो।
यदि बच्चे को भूख लगने पर थोड़ा सा फॉर्मूला दूध पिला दिया जाता है तो वह और अच्छी तरह से ब्रेस्टफीड करता है। बच्चा अपना भूख शांत करने के लिए लैचिंग करेगा।
स्टडीज के अनुसार पूरे सपोर्ट से मांएं आधा या पूरा रीलैक्टेट करती हैं जिससे दोबारा ब्रेस्टफीडिंग करा पाना संभव हो पाता है। यह लगभग 75% – 98% तक सफल है। हालांकि इसकी दर अलग-अलग मामलों में विभिन्न रहती है। कई सफल मामलों में मांओं ने सही गाइडेंस और सपोर्ट के साथ इस प्रक्रिया को किया है।
रिलैक्टेशन के दौरान निम्नलिखित कुछ जरूरी बातों पर ध्यान दें, जैसे;
दूध की आपूर्ति बढ़ने के साथ ही बच्चा सप्लीमेंट्स नहीं लेगा, उसका वजन बढ़ने लगेगा और उसे ज्यादा पॉटी होने लगेगी। आपको अपनी भावनाओं और पीरियड्स में भी बदलाव महसूस होगा।
दूध उत्पन्न होने की मात्रा बता पाना कठिन है। हालांकि थोड़ा हो या भरपूर, ब्रेस्टमिल्क फायदेमंद ही होता है।
रिलैक्टेशन के दौरान हो या बेबी की डिलीवरी के बाद हो, लैक्टेशन प्रेरित करते समय ब्रेस्टमिल्क एक जैसा ही रहता है। हालांकि जो मांएं गर्भवती नहीं हुई हैं उनमें कोलोस्ट्रम उत्पन्न नहीं होता है और उनका दूध मैच्योर ब्रेस्ट मिल्क जैसा होता है।
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