गर्भावस्था के पूरे चक्र में प्रसव की नियत तिथि के अंतिम सप्ताह तक एक गर्भस्थ शिशु विकास व वृद्धि के कई चरणों को पार करता है। हालांकि, कभी-कभी ऐसी स्थिति भी हो सकती है कि शिशु का पूरी तरह से विकास हुए बिना ही उसका जन्म हो गया हो। कई बार अन्तर्निहित या बाह्य कारणों से गर्भावस्था के 9 माह पूर्ण हुए बिना भी प्रसव को या तो प्रेरित किया जाता है या प्राकृतिक रूप से प्रसव पीड़ा शुरू हो जाती है और शिशु का जन्म हो जाता है।
समय से पूर्व जन्म क्या है
यदि गर्भावस्था के 37 सप्ताह पूरे होने से पहले शिशु का जन्म हो जाता है, तो इसे आमतौर पर समय से पूर्व जन्म, और शिशु को प्री-टर्म या प्री-मैच्योर शिशु भी कहा जाता है।
यदि गर्भावस्था के 35वें सप्ताह के आसपास शिशु का जन्म होता है, तो इसमें आमतौर पर कोई गंभीर समस्या नहीं है। हालांकि कुछ शिशुओं को श्वसन संबंधी कठिनाइयां हो सकती हैं।
यदि गर्भावस्था के 28 सप्ताह पूर्ण हो चुके हैं किंतु शिशु का जन्म 35वें सप्ताह से पहले हुआ है तो उस स्थिति में शिशु के आंतरिक अंग पूरी तरह से विकसित नहीं होते हैं और उसे अपने जीवन के लिए संघर्ष करना पड़ सकता है। इस स्थिति में जन्मा शिशु अत्यधिक कमजोर हो सकता है और उसे सांस लेने में बेहद कठिनाई भी हो सकती है।
यदि गर्भावस्था के 28 सप्ताह पूरे होने से पहले शिशु का जन्म होता है, तो उसके जीवित रहने की संभावना बहुत कम होती है। यहाँ तक कि यदि शिशु जीवित भी रहता है तो उसमें अनेक शारीरिक जटिलताएं होने की संभावनाएं होती हैं या वह विकलांग भी हो सकता है जिसके कारण आगे आने वाले समय में शिशु अत्यधिक दुर्बल हो सकता है।
यह कितना आम है
भारत में समय से पूर्व जन्म लेने वाले शिशुओं की संख्या 100 में से लगभग 13 है। पूरी दुनिया की तुलना में भारत में प्री-मैच्योर शिशुओं की संख्या लगभग एक चौथाई है।
समय से पूर्व प्रसव के कारण
शिशु का समय से पूर्व जन्म चिकित्सीय, सामाजिक कारणों के साथ-साथ एक गर्भवती महिला किस प्रकार की जीवनशैली का चयन करती है, इस कारण से भी हो सकता है। इसके लिए कोई एक कारण निर्धारित करना मुश्किल है। निम्नलिखित में से किसी भी कारण से यह समस्या उत्पन्न हो सकती है, आइए जानते हैं।
- गर्भाशय में जुड़वां बच्चों की उपस्थिति समय से पहले जन्म की संभावना को थोड़ा बढ़ा सकती है।
- कमजोर गर्भाशय ग्रीवा को भी समय से पूर्व प्रसव का कारण माना जाता है।
- यदि गर्भवती महिला की योनि में कोई बैक्टीरियल संक्रमण है तो यह भी समय से पहले जन्म के लिए प्रेरित कर सकता है।
- यदि गर्भावस्था के दौरान महिला को अत्यधिक मात्रा में रक्तस्राव होता है, तो समय से पूर्व प्रसव हो सकता है।
- गर्भाशय की कुछ असामान्यताएं भी समय से पूर्व जन्म का संभावित कारण हो सकती हैं।
- अगर पहले गर्भपात हो चुका हो, तो यह भी समय से पहले जन्म होने का एक आम कारण है।
- यदि पहले गर्भावस्था के शुरुआती चरण में माँ का गर्भपात हो चुका है, तो यह वर्तमान की गर्भावस्था में समय से पूर्व जन्म का संकेत हो सकता है।
- पानी की थैली का जल्दी टूटना भी एक संकेत है।
- यदि गर्भवती महिला घरेलू हिंसा का सामना कर चुकी है, तो समय से पहले जन्म की संभावना थोड़ी अधिक हो सकती है।
- यदि कोई महिला पहले धूम्रपान या शराब पीती थी तो अपनी गर्भावस्था में उसे समय से पूर्व प्रसव का सामना करना पड़ सकता है।
- यदि गर्भावस्था के दौरान भी गर्भवती महिला शारीरिक रूप से कोई कठिन कार्य करती है तो इस कारण से समय से पूर्व शिशु जन्म की संभावना 3 गुना अधिक बढ़ जाती है।
- महिला का वजन कम या अधिक होने पर समय से पूर्व प्रसव सहित अन्य जटिलताओं का खतरा और भी बढ़ जाता है।
समय से पूर्व प्रसव के संकेत और लक्षण
शिशु में निम्नलिखित असामान्य संकेतों के कारण समय से पहले प्रसव को पहचाना जा सकता है, आइए जानते हैं;
- शिशु का शरीर बहुत छोटा व सिर बहुत बड़ा होता है और इस वजह से शिशु के शरीर का अनुपात समान नहीं होता है।
- शिशु के चेहरे को देखकर तुरंत उसके नैन-नक्श का अंदाजा लगाया जा सकता है। यह बच्चे की वृद्धि के लिए आवश्यक वसा की कमी के कारण होता है, जिससे उसके चेहरे के अंग अधिक स्पष्ट दिखाई देते हैं।
- शिशु का शरीर बालों से ढका होता है।
- चूंकि बच्चे के शरीर में वसा की मात्रा में कमी होती है, इसलिए विशेषकर जन्म के बाद उसके शरीर का तापमान तुलनात्मक रूप से कम होता है।
- इस दौरान शिशु को सांस लेने में तकलीफ होती है या उसे ऑक्सीजन की आवश्यक मात्रा को खींचने में कठिनाई हो सकती है।
- समय से पूर्व प्रसव के बाद शिशु को दूध चूसने व निगलने में अधिक कठिनाई हो सकती है या वह इसके लिए अक्षम हो सकता है । यह आगे चलकर शिशु को दूध पिलाने में बहुत अधिक कठिनाइयों का कारण बनता है।
समय से पूर्व प्रसव का निदान
ज्यादातर मामलों में, डॉक्टर आपकी वर्तमान गर्भावस्था के साथ-साथ पिछली गर्भावस्था के इतिहास को पूरी तरह से जानना चाहेंगे। गर्भावस्था के विभिन्न शारीरिक कारकों की जांच के लिए डॉक्टर कुछ परीक्षण, जैसे मूत्र परीक्षण, योनि स्वैब, रक्त परीक्षण, एम्नियोटिक परीक्षण कर सकते हैं।
डॉक्टर गर्भाशय ग्रीवा की जांच यह देखने के लिए कर सकते हैं कि क्या इसने खुलना शुरू कर दिया है। यदि एक बार प्रसव पीड़ा शुरू हो गई तो इसे डॉक्टर द्वारा या आराम करने पर भी रोका नहीं जा सकता है। यदि आपने गर्भावस्था के 34 सप्ताह पूरे नहीं किए हैं, तो प्रसव को कुछ समय तक रोकने के लिए दवा दी जा सकती है।
गर्भस्थ शिशु के फेफड़ों को ठीक से विकसित करने के लिए स्टेरॉयड की एक खुराक शायद दी जा सकती है। चूंकि गर्भावस्था के 36 सप्ताह पूरे होने तक फेफड़े पूरी तरह से विकसित नहीं होते हैं, इसलिए समय से पहले प्रसव होने से शिशु को सांस लेने में तकलीफ होती है। स्टेरॉयड की खुराक शिशु के फेफड़ों को कम समय पर विकसित होने में मदद करती है।
समय से पूर्व प्रसव की जटिलताएं
प्री-टर्म डिलीवरी के कारण निम्नलिखित समस्याएं हो सकती हैं, आइए जानें;
1. अल्पकालिक जटिलताएं
- शिशु की कमजोर श्वसन प्रणाली के परिणामस्वरूप उसे सांस लेने में समस्या हो सकती है। यदि फेफड़ों में विस्तार और संकुचन के लिए सर्फेक्टेंट नामक आवश्यक पदार्थ की कमी है, तो शिशु को श्वसन संबंधी समस्याएं हो सकती हैं। यह फेफड़ों के विकारों को भी विकसित कर सकता है या शिशु की सांसों के बीच लंबा ठहराव आ सकता है जिसे ‘एपनिया’ कहा जाता है।
- समय से पूर्व जन्मे शिशु को हृदय संबंधित समस्याएं हो सकती हैं। शिशु में कुछ दोष, जैसे पी.डी.ए. हो सकता है जिसमें बड़ी धमनी और फेफड़ों की धमनी के बीच मौजूद छेद अपने आप बंद नहीं होते हैं व कुछ मामलों में अन्य अनुपचारित दोष हृदय की गति रुक जाने का कारण बन सकते हैं। शिशुओं में कम रक्तचाप हो सकता है, जिस कारण से उन्हें आई.वी. इंजेक्शन द्वारा तरल पदार्थ, दवाइयां या खून चढ़ाना पड़ सकता है।
- यदि शिशु का जन्म समय से बहुत पहले हो जाता है, तो उसे मस्तिष्क के आंतरिक हिस्से में अत्यधिक रक्तस्राव का खतरा हो सकता है। हालांकि ज्यादातर रक्तस्राव हल्का होता है जिससे अधिक प्रभाव नहीं पड़ता है किंतु आंतरिक रूप से अत्यधिक रक्तस्राव शिशु के मस्तिष्क में स्थाई क्षति पहुँचा सकता है।
- समय से पूर्व जन्मे शिशुओं में वसा की कमी होती है जो ऊर्जा को उत्पन्न करने और शारीरिक गर्मी बनाए रखने के लिए आवश्यक है। इसलिए शिशु के सही तापमान को बनाए रखने में कठिनाई होती है और यह तापमान कभी-कभी बहुत कम हो सकता है और हाइपोथर्मिया का कारण बन सकता है।इससे भविष्य में सांस की समस्याएं हो सकती हैं और रक्त शर्करा के स्तर में कमी होती है। कभी-कभी, शिशु के शारीरिक तापमान को बनाए रखने में सारी ऊर्जा लग जाती है जिससे उनमें अन्य विकास नहीं हो पाते हैं। ऐसे मामलों में, शिशु के लिए एक इनक्यूबेटर का उपयोग किया जाता है ताकि उसे उचित शारीरिक तापमान के स्तर को बनाए रखने में मदद मिल सके।
- गैस्ट्रिक सिस्टम विकसित न होने के कारण, समय से पूर्व जन्मे शिशु की आंतों में कोशिका की परत के क्षतिग्रस्त होने का खतरा होता है। दूध पीने की शुरुआत करते समय शिशुओं में यह समस्या गंभीर हो सकती है । माँ के दूध में मौजूद गुण इसकी संभावना को कम करने में मदद कर सकते हैं।
- समय से पहले जन्मे अधिकांश नवजात शिशु एनीमिया या पीलिया से पीड़ित होते हैं क्योंकि उनमें लाल रक्त कोशिकाओं की कमी होती है। इसके अलावा, रक्त में अधिक बिलीरुबिन होने के कारण शिशु की त्वचा और आँखें पीले रंग की हो सकती हैं।
- समय से पूर्व जन्मे शिशु में अनुचित मेटाबोलिज्म होने के कारण वे हाइपोग्लाइकेमिया से पीड़ित हो सकते हैं। पूरी तरह से विकसित शिशुओं की तुलना में, समय से पहले जन्मे शिशुओं के शरीर में ग्लूकोज की मात्रा कम होती है। इस स्थिति में शरीर में संग्रहित ग्लूकोज सक्रिय नहीं हो पाता है जो मेटाबॉलिज्म की गतिविधियों के लिए आवश्यक है।
- इम्युनिटी सिस्टम कमजोर होने के कारण समय से पूर्व जन्मे शिशुओं को संक्रमण का अधिक खतरा होता है। कोई भी संक्रमण रक्तप्रवाह के माध्यम से तुरंत पूरे शरीर में फैल सकता है।
2. दीर्घकालिक जटिलताएं
- शिशु के मस्तिष्क में रक्त प्रवाह की कमी होने के कारण मस्तिष्क में आवश्यकतानुसार विकास नहीं हो पाता है जिसके परिणामस्वरूप शिशु सेरेब्रल पाल्सी से ग्रसित हो सकता है। यह समस्या शिशु की शारीरिक गति, मांसपेशियों और उसकी सामान्य मुद्रा को भी प्रभावित कर सकती है। यह किसी संक्रमण या मस्तिष्क में चोट के परिणामस्वरूप भी हो सकता है।
- समय से पूर्व जन्मे अधिकांश शिशुओं में सीखने की क्षमता कम होती है, अतः वे अपनी उम्र के बच्चों की अपेक्षा धीरे सीखते हैं।
- समय से पहले जन्मे कुछ बच्चों में ‘रेटिनोपैथी’ नामक एक समस्या होती है। इसमें रक्त वाहिकाएं रेटिना के पीछे प्रकाश से संवेदनशील क्षेत्र में अत्यधिक मात्रा में बढ़ती हैं। समय के चलते इससे रेटिना में चोट लग सकती है या इसे अलग कर सकती है। यदि इस समस्या अनुपचारित छोड़ दिया गया तो इससे पूर्ण दृष्टि की हानि हो सकती है, जिससे अंधापन हो सकता है।
- समय से पूर्व जन्मे लगभग सभी शिशुओं को सुनने से संबंधित समस्याओं की जांच करवाने की आवश्यकता होती है क्योंकि यह समस्या इन शिशुओं में सबसे आम है।
- समय से पूर्व जन्मे शिशुओं में दाँतों से संबंधित समस्याओं का अधिक खतरा होता है, जैसे दाँत देर से निकल सकते हैं, उनके दाँतों का रंग बिगड़ सकता है या उनके दाँत गलत तरीके से निकल सकते हैं।
- समय से पूर्व जन्मे शिशुओं में शारीरिक व मानसिक समस्याएं हो सकती हैं जो बाद में उनके विकास के दौरान उत्पन्न हो सकती हैं।
- समय से पूर्व जन्मे ज्यादातर बच्चे मुख्य रूप से कमजोर इम्युनिटी के कारण संक्रमण से बार-बार बीमार पड़ते हैं और अस्थमा से पीड़ित होते हैं। कुछ शिशुओं में एस.आई.डी.एस. (सडन इन्फेंट डेथ डिसऑर्डर) का खतरा भी हो सकता है, यह सिंड्रोम शिशु की अचानक मृत्यू से संबंधित है जिसके लिए अस्पताल में तत्काल देखभाल की आवश्यकता होती है।
उपचार
समय से पूर्व जन्मे शिशु की देखभाल, उपचार, सर्जरी और दवाओं से संबंधित जानकारी निम्नलिखित है, आइए जानते हैं;
1. देखभाल में सहायता
- इनक्यूबेटर यह सुनिश्चित करता है कि शिशु, शरीर का स्वस्थ तापमान को बनाए रखने में सक्षम हो।
- विभिन्न सेंसर का उपयोग करके शिशु में महत्वपूर्ण संकेतों को जांचा जाता है। सांस लेने की समस्याओं के मामले में बच्चे के लिए वेंटिलेटर का उपयोग किया जा सकता है।
- शिशु को ट्यूब द्वारा दूध या तरल पदार्थ पिलाया जा सकता है। जब तक शिशु अपने आप चूसने या निगलने में सक्षम नहीं हो जाता तब तक उसमें माँ के दूध की आपूर्ति ट्यूब द्वारा नसों के माध्यम से बाहरी रूप से की जा सकती है।
- शिशु की क्षमता में वृद्धि न होने तक ट्यूब के माध्यम से ही उसमें तरल पदार्थ व मिनरल को संतुलित रखा जाता है और उसकी देखभाल की जाती है।
- यदि आपका शिशु पीलिया से पीड़ित है, तो उसे बिलीरुबिन विशेष रोशनी में रखा जा सकता है। यह आपके बच्चे के रक्त में अतिरिक्त बिलीरुबिन के प्रभाव को कम करने में मदद करता है। इस रोशनी में सुलाते समय शिशु को मास्क पहनाया जा सकता है।
- यदि डॉक्टर ने अनेक रक्त परीक्षण किए हैं या शिशु में रक्त-प्रवाह से संबंधित समस्याएं हैं तो शिशु को खून चढ़ाया जा सकता है।
2. दवाएं
- फेफड़े को सामान्य रूप से कार्य करने में मदद के लिए सरफेक्टेंट दिया जा सकता है।
- एरोसोलाइज्ड मिस्ट और आइ.वी. का उपयोग शिशु की हृदय गति को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है।
- यदि शिशु बीमार और संक्रमित है, तो एंटीबायोटिक दवाएं दी जा सकती हैं।
- मूत्र से संबंधित समस्याओं के लिए डाइयूरेटिक्स दवाओं का उपयोग किया जा सकता है।
- रेटिनोपैथी को होने से रोकने के लिए आँखों में दवा डाली जा सकती है।
- हृदय के विकारों को ठीक करने के लिए कुछ दवाएं भी दी जा सकती हैं।
3. सर्जरी
कुछ जटिलताओं के इलाज के लिए डॉक्टर आपको बच्चे की सर्जरी करने की सलाह दे सकते हैं। हर प्रक्रिया से जुड़े जोखिम और उसकी आवश्यकता को समझना जरूरी है।
4. घर पर शिशु की देखभाल कैसे करें
यदि शिशु में सांस लेने की समस्या ठीक हो गई है, उसका शारीरिक तापमान भी नियंत्रित हो गया है, उसे स्तनपान में भी समस्या नहीं हो रही है, शिशु का वजन बढ़ने लगा है और आपका शिशु अब स्वस्थ है तो डॉक्टर आपके बच्चे को घर ले जाने की अनुमति दे सकते हैं। घर पर रहने की व्यवस्था, बच्चे के भाई-बहन यदि कोई हो, अन्य रिश्तेदारों से संबंधित कुछ सावधानियां और अतिरिक्त चिकित्सीय देखभाल की जानकारी के लिए डॉक्टर से संपर्क करें।
समय से पहले प्रसव के खतरे को कम कैसे किया जा सकता है
समय से पूर्व जन्म को रोकने के सटीक तरीकों से भले ही आप अज्ञात हों किंतु कुछ सावधानियां हैं जो इसकी संभावनाओं को कम करने में मदद कर सकती हैं।
- छोटा गर्भाशय या समय से पूर्व प्रसव का इतिहास होने पर फिर से वैसा ही होने के खतरे को कम करने के लिए प्रोजेस्टेरोन की खुराक के उपयोग की आवश्यकता हो सकती है।
- डॉक्टर सर्जिकल प्रक्रिया जिसे सर्वाइकल सरक्लेज कहा जाता है, करवाने की सलाह दे सकते हैं। इस प्रक्रिया में गर्भाशय को अधिक सहायता प्रदान करने के लिए गर्भाशय ग्रीवा को बंद कर दिया जाता है।
विभिन्न गर्भकालीन अवस्थाओं में प्रीमैच्योर बच्चे
लड़कों के लिए
गर्भकालीन आयु | वजन | लंबाई | सिर की परिधि |
40 सप्ताह | 3.6 किलोग्राम | 51 सेंटीमीटर | 35 सेंटीमीटर |
35 सप्ताह | 2.5 किलोग्राम | 46 सेंटीमीटर | 32 सेंटीमीटर |
32 सप्ताह | 1.8 किलोग्राम | 42 सेंटीमीटर | 29.5 सेंटीमीटर |
28 सप्ताह | 1.1 किलोग्राम | 36.5 सेंटीमीटर | 26 सेंटीमीटर |
24 सप्ताह | 0.65 किलोग्राम | 31 सेंटीमीटर | 22 सेंटीमीटर |
लड़कियों के लिए
गर्भकालीन आयु | वजन | लंबाई | सिर की परिधि |
40 सप्ताह | 3.4 किलोग्राम | 51 सेंटीमीटर | 35 सेंटीमीटर |
35 सप्ताह | 2.4 किलोग्राम | 45 सेंटीमीटर | 31.5 सेंटीमीटर |
32 सप्ताह | 1.7 किलोग्राम | 42 सेंटीमीटर | 29 सेंटीमीटर |
28 सप्ताह | 1.0 किलोग्राम | 36 सेंटीमीटर | 25 सेंटीमीटर |
24 सप्ताह | 0.60 किलोग्राम | 32 सेंटीमीटर | 21 सेंटीमीटर |
स्रोत: https://www.mayoclinic.org/diseases-conditions/premature-birth/symptoms-causes/syc-20376730 source
समय से पूर्व प्रसव या प्री-टर्म से बचना आपके हाथ में नहीं है । हालांकि, कुछ सावधानियों व उपायों के साथ किसी भी अप्रत्याशित परिणाम से बचा जा सकता है और शिशु की स्वस्थ डिलीवरी सुनिश्चित की जा सकती है ताकि उसे को सामान्य जीवन जीने में मदद मिल सके।
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