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गर्भ में बच्चे का विकास एक बहुत ही जटिल प्रक्रिया होती है। गर्भ में रहने के दौरान, बच्चे का विकास कई तरह की बातों पर निर्भर करता है। इसमें मां के द्वारा लिए जाने वाले सही आहार से लेकर माता-पिता के जींस की बनावट तक, हर फैक्टर बच्चे के विकास पर प्रभाव डालता है। इस नाजुक समय के दौरान, बच्चे को डिसऑर्डर या बीमारियों का खतरा होता है, जो कि बच्चे के प्राकृतिक विकास को नुकसान पहुंचा सकते हैं और इसके नतीजे के रूप में बच्चा बर्थ डिफेक्ट के साथ जन्म ले सकता है।
स्पाइना बिफिडा एक न्यूरल ट्यूब डिफेक्ट और एक कंजेनिटल समस्या है, जो कि एंब्रायोनिक न्यूरल ट्यूब की अधूरी क्लोजिंग के कारण होती है। यह एक ऐसी स्थिति है, जिसमें स्पाइनल कॉर्ड वर्टेब्रल कॉलम में हड्डियों से पूरी तरह ढका हुआ नहीं होता है और खुला रह जाता है।
स्पाइना बिफिडा मुख्यतः दो प्रकार का होता है – स्पाइना बिफिडा ऑकल्टा और स्पाइना बिफिडा सिस्टिक। स्थिति की गंभीरता, बहुत गंभीर से लेकर बहुत सौम्य भी हो सकती है, जो कि मुश्किल से नजर आए।
स्पाइना बिफिडा के सटीक कारण की कोई जानकारी नहीं है। हालांकि संभावना यही है, कि यह अनुवांशिक, वातावरण संबंधी और न्यूट्रीशनल तत्वों के कॉन्बिनेशन के कारण होता है। यहां पर कुछ कारण दिए गए हैं, जो कि गर्भ में रहने के दौरान शिशु में स्पाइना बिफिडा का कारण बन सकते हैं:
जहां ये सभी इस स्थिति के होने के कुछ संभावित कारणों में शामिल हैं, वहीं ऐसे किसी भी कारण की जानकारी नहीं है, जो कि बच्चे में इस स्थिति के लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार हो।
स्पाइना बिफिडा के लक्षण, इस दोष की गंभीरता पर निर्भर करते हैं। इस दोष के सौम्य प्रकार के साथ जन्म लेने वाले बच्चों को इससे कोई समस्या नहीं होती है और उनमें इसके कोई लक्षण नहीं दिखते हैं।
वहीं इस दोष के सबसे गंभीर स्वरूप के साथ जन्म लेने वाले बच्चों में स्पाइन और मस्तिष्क की समस्याएं हो सकती हैं, जिससे कई तरह की गंभीर दिक्कतें हो सकती हैं। शिशुओं में स्पाइना बिफिडा के निम्नलिखित लक्षण शामिल हैं:
माइलोमेनिगोसिल स्पाइना बिफिडा का सबसे गंभीर स्वरूप है। इस स्वरूप के लक्षण निम्नलिखित हैं:
स्पाइना बिफिडा दो प्रकार के होते हैं – स्पाइना बिफिडा ऑकल्टा और स्पाइना बिफिडा सिस्टिक।
ऑकल्टा एक लेटिन शब्द है, जिसका मतलब होता है छुपा हुआ। ऐसी स्थिति में प्रभावित जगह त्वचा की एक परत, बाल के एक पैच आदि से ढक जाती है। इसकी कोई भी गंभीर जटिलताएं नहीं होती हैं, जिसके कारण ज्यादातर पेरेंट्स को यह पता भी नहीं चलता है, कि उनके बच्चे को कोई बीमारी है।
स्पाइना बिफिडा सिस्टिका की पहचान एक गांठ या सिस्ट की मौजूदगी से होती है। बच्चे की पीठ पर एक बड़ा ब्लिस्टर होता है, जो कि त्वचा की पतली परत से ढका होता है। स्पाइना बिफिडा सिस्टिका दो प्रकार के होते हैं।
यह तरल पदार्थ से भरी एक बड़ी गांठ होती है, जो कि बच्चे की पीठ से बाहर की ओर निकल रही होती है और यह स्पाइनल कॉर्ड में होती है। कभी-कभी बच्चे के जन्म के दौरान यह गांठ फट जाती है, जिससे स्पाइन और नर्व दिखने लगते हैं।
यह स्पाइना बिफिडा का सबसे दुर्लभ प्रकार है और यह माइलोमेनिगोसिल से कम गंभीर होता है। इस स्थिति के साथ जन्म लेने वाले बच्चों में उनके सिर, गर्दन और पीठ पर तरल पदार्थ से भरी हुई गांठें होती हैं। ये गांठें एक अंगूर जितनी छोटी और संतरे जितनी बड़ी भी हो सकती हैं। जिन बच्चों में यह स्थिति होती है, उनमें बॉवेल मूवमेंट को नियंत्रित करने में समस्या आती है और उन्हें पैरालिसिस का खतरा भी हो सकता है।
इस स्थिति की पहचान के लिए मां गर्भावस्था के दौरान स्पाइना बिफिडा टेस्ट करवा सकती है।
प्रेगनेंसी में अल्ट्रासाउंड स्कैन के दौरान स्पाइना बिफिडा के ज्यादातर मामलों की पहचान हो जाती है।
मेटरनल सीरम अल्फा फेटोप्रोटीन (एमएसएएफपी) टेस्ट एक ऐसा टेस्ट है, जो कि गर्भ में पल रहे शिशु में स्पाइना बिफिडा की स्थिति का संकेत दे सकता है। यह एक ब्लड टेस्ट होता है, जो कि अल्फा फेटोप्रोटीन (एएफपी) के स्तर को समझ सकता है। यह गर्भस्थ शिशु द्वारा उत्पन्न किया गया एक प्रोटीन होता है, जो कि मां के खून में पाया जाता है।
अगर मां के खून में एएफपी पाया जाता है, तो यह दर्शाता है, कि बच्चे में असामान्य प्रोटीन का एक असामान्य स्तर है और संभवतः न्यूरल ट्यूब डिफेक्ट है, जो कि स्पाइना बिफिडा या एनेन्सेफैली हो सकता है, जो कि एक ऐसी स्थिति है, जिसके कारण अधूरी खोपड़ी और अविकसित मस्तिष्क जैसी स्थितियां बन सकती हैं।
एएफपी की मौजूदगी अपने आप में ही स्पाइना बिफिडा का संकेत नहीं होती है। डॉक्टर आगे ब्लड टेस्ट और अल्ट्रासाउंड स्कैन की सलाह देंगे, ताकि एएफपी के हाई लेवल के कारणों और स्पाइना बिफिडा के संकेतों को पहचाना जा सके।
एमनियोसेंटेसिस टेस्ट से भी बच्चे में स्पाइना बिफिडा की पहचान में मदद मिलती है।
स्पाइना बिफिडा की स्थिति स्पाइनल कॉर्ड और नर्वस सिस्टम को प्रभावित करती है और वह बच्चे में निम्नलिखित जटिलताओं का कारण बन सकती है।
स्पाइना बिफिडा की कुछ जटिलताएं जीवन भर रह सकती हैं और उन्हें उचित देखभाल की जरूरत होती है।
इस स्थिति का इलाज इसकी गंभीरता पर निर्भर करता है:
स्पाइना बिफिडा एक ऐसी स्थिति है, जिसमें क्वालिफाइड हेल्थ केयर प्रोफेशनल से सपोर्ट की जरूरत होती है, ताकि जटिल सर्जरी की जा सके और सर्जरी के बाद बच्चे के स्वास्थ्य पर नजर रखी जा सके। इसलिए, यह जरूरी है, कि जब तक यह स्थिति ठीक नहीं हो जाती या जरूरी सुरक्षात्मक कदम नहीं लिए जाते, तब तक डॉक्टरों की टीम आपके बच्चे की देखभाल करे।
स्पाइना बिफिडा के प्रभावों से निपटने के लिए, बच्चे को एक न्यूरो सर्जन की लगातार देखभाल की जरूरत होती है। विशेषकर अगर बच्चा माइलोमेनिगोसिल या हाइड्रोसिफेलस से प्रभावित है तो।
इस स्थिति से जूझ रहे बच्चे को सपोर्ट की जरूरत होती है। पैरालिसिस से ग्रस्त बच्चों को व्हील चेयर, लेग ब्रेसेस या वॉकर की जरूरत होती है। बच्चों को स्कूल में सीखने में भी समस्या होती है और उन्हें विशेष अटेंशन की जरूरत होती है।
लक्ष्य यही है, कि बच्चे को विकलांगता के डर के बिना, एक सामान्य और एक्टिव जीवन जीने के लिए सशक्त किया जाए। इसे केवल माता-पिता और डॉक्टर के द्वारा लगातार देखभाल से ही किया जा सकता है।
अगर महिला गर्भधारण करने से पहले 400 माइक्रोग्राम फोलिक एसिड का सेवन करती है और इसे पहली तिमाही तक लगातार लेती रहती है, तो स्पाइना बिफिडा से बचा जा सकता है। फोलिक एसिड के स्रोतों में संतरे का रस, अंडे और हरी पत्तेदार सब्जियां शामिल हैं।
गर्भावस्था के दौरान न्यूरल ट्यूब दोष की पहचान के लिए टेस्ट करवाने से भी इस स्थिति का जल्द से जल्द पता लगाने में मदद मिल सकती है और जरूरी सुरक्षात्मक कदम उठाए जा सकते हैं।
जहां इस स्थिति को सर्जरी के द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है, वहीं, मेनिगोसिल या माइलोमेनिगोसिल के साथ जन्मे बच्चों को लंबे समय तक देखभाल की जरूरत होती है, ताकि स्पाइना बिफिडा के कारण पैदा होने वाली किसी स्थिति के इलाज में मदद मिल सके। सही समय पर स्थिति की पहचान करने से डॉक्टर जरूरी सुरक्षात्मक कदम उठा सकते हैं और यह सुनिश्चित कर सकते हैं, कि बच्चे को कम से कम खतरा हो या कोई खतरा न हो।
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