गर्भावस्था के दौरान डायबिटीज

प्रेगनेंसी के दौरान डायबिटीज

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गर्भावस्था के दौरान 9 महीनों के अंतराल में एक गर्भवती महिला कई परिवर्तनों से प्रभावित होती है। इस अवधि में महिलाओं के शरीर में हॉर्मोन के स्तर में बदलाव के अलावा अनेक शारीरिक समस्याएं भी होती हैं, जैसे गर्भावस्था के दौरान रक्त शर्करा का स्तर बढ़ना जिसे जेस्टेशनल डायबिटीज या गर्भकालीन मधुमेह भी कहा जाता है। वास्तव में महिलाओं में गर्भकालीन मधुमेह एक सामान्य समस्या है।

गर्भावस्था के दौरान डायबिटीज क्या है

गर्भावस्था के कारण कुछ महिलाओं में रक्त शर्करा (ब्लड शुगर) का स्तर बढ़ जाता है, जिस कारण से उनमें गर्भकालीन मधुमेह जैसी समस्या होती है। गर्भावस्था के दौरान कुछ महिलाओं में इंसुलिन का स्तर कम हो सकता है, जिससे रक्त शर्करा का स्तर बढ़ जाता है। शरीर के प्राकृतिक इंसुलिन का स्तर, शरीर में रक्त शर्करा के स्तर को सामान्यतः नियंत्रण में रखता है।

गर्भकालीन डायबिटीज उन महिलाओं को भी हो सकता है, जिन्हें आमतौर पर कभी भी डायबिटीज की बीमारी न हुई हो और साथ ही प्रसव के बाद इसका उपचार भी हो सकता है। गर्भावस्था के दौरान महिलाओं को उनकी दूसरी और तीसरी तिमाही में डायबिटीज के होने का खतरा अधिक होता है। 

गर्भावस्था के दौरान डायबिटीज के कारण

गर्भावस्था के दौरान महिलाओं के शरीर में इंसुलिन के उतार-चढ़ाव से भी गर्भकालीन डायबिटीज हो सकता है। पाचन प्रक्रिया के दौरान खाया हुआ भोजन कार्बोहाइड्रेट से ग्लूकोज में बदल जाता है और शारीरिक ऊर्जा प्रदान करता है। हमारा शरीर इस ऊर्जा को दैनिक गतिविधियों को करने के लिए उपयोग करता है। सामान्यतः अग्न्याशय (Pancreas) में उत्पादित इंसुलिन इस शर्करा को कोशिकाओं तक ले जाने में मदद करता है और शरीर में शर्करा के स्तर को बढ़ने से रोकता है।

गर्भावस्था के दौरान, गर्भनाल का निर्माण होता है जो माँ से विकसित होते शिशु तक ऑक्सीजन और पोषक तत्वों की आपूर्ति को पूर्ण करता है। हालांकि, गर्भनाल अपने कार्य के साथ कई हॉर्मोन को भी उत्तेजित करती है जो माँ के प्राकृतिक हार्मोनल तंत्र में हस्तक्षेप करते हैं। इसे इंसुलिन के उत्पादन को बाधित करने और हस्तक्षेप करने के लिए जाना जाता है, जिसके परिणामस्वरूप रक्त शर्करा के स्तर में वृद्धि होती है और इसे परिवर्तित करने के लिए पर्याप्त इंसुलिन नहीं होता है। यह एक ऐसा समय होता है जब एक गर्भवती महिला गर्भकालीन डायबिटीज से ग्रसित होती है।  

महिलाओं में गर्भकालीन डायबिटीज होने का एक अन्य बड़ा कारण महिला का वजन भी हो सकता है। यह देखा गया है कि शरीर के इंसुलिन प्रतिरोधी होने के साथ-साथ मोटापे का सीधा संबंध है। यदि गर्भाधान से पहले गर्भवती महिला का वजन अधिक है, तो उसे गर्भकालीन मधुमेह होने की संभावना बहुत ज्यादा हो सकती है। इसलिए गर्भावस्था के दौरान वजन पर नियंत्रण रखना भी उतना ही महत्वपूर्ण होता है।

क्या आपको गर्भावस्था के दौरान डायबिटीज होने का खतरा है

भारत में हर सात में से एक महिला को गर्भावस्था के दौरान मधुमेह होने का खतरा होता है लेकिन कुछ महिलाओं को दूसरों की तुलना में अधिक खतरा रहता है। यहाँ कुछ कारक दिए गए हैं जो गर्भकालीन मधुमेह के खतरे को बढ़ाते हैं:

गर्भावस्था के दौरान डायबिटीज

  • उच्च बी.एम.आई.: गर्भावस्था से पहले जिन महिलाओं का वजन काफी होता है उन्हें डायबिटीज होने का खतरा होता है। गर्भावस्था के दौरान महिलाओं का वजन बढ़ता है और पहले से ही अधिक वजन होने के कारण शरीर के लिए रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रित करना मुश्किल हो जाता है।
  • गर्भावस्था के दौरान तेजी से वजन बढ़ना: जबकि वजन बढ़ने और गर्भकालीन डायबिटीज के बीच सटीक संबंध स्पष्ट नहीं है, विशेषज्ञों का मानना है कि यह अग्न्याशय में इंसुलिन उत्पादन के लिए जिम्मेदार बीटा कोशिकाओं को प्रभावित करके इंसुलिन उत्पादन में वृद्धि के कारण होता है। इंसुलिन को स्रावित करने के लिए बीटा कोशिकाओं की क्षमता कम हो जाती है, जिससे गर्भकालीन डायबिटीज होता है।
  • परिवार में पहले से ही किसी सदस्य को डायबिटीज होना: परिवार में पहले कभी किसी सदस्य को डायबिटीज टाइप 2 विशेष-कर भाई-बहन या माँ को हो तो इससे गर्भवती माँ को डायबिटीज का खतरा अधिक हो सकता है।
  • पहली गर्भावस्था की स्थिति: यदि आपको पिछले गर्भधारण के दौरान डायबिटीज हो चुकी है, तो डॉक्टर आपके स्वास्थ्य पर नजर रखते हैं और नियमित रूप से आपके रक्त शर्करा स्तर की जांच करते हैं क्योंकि यह समस्या आपको दोबारा से हो सकती है।
  • आयु: जो महिलाएं 25 साल या उससे अधिक उम्र की हैं तो उन्हें गर्भकालीन डायबिटीज का खतरा अधिक होता है। वास्तव में, बढ़ती उम्र के साथ गर्भकालीन डायबिटीज होने की संभावना भी बढ़ती है।
  • अन्य स्वास्थ्य समस्या: यदि गर्भवती महिला को पहले कभी पीसीओएस (पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम) की समस्या हुई है तो उन्हें गर्भावस्था के दौरान डायबिटीज होने की संभावना होती है क्योंकि इस समस्या के लक्षणों में से एक लक्षण इंसुलिन को बाधित करने की संभावना में वृद्धि होना भी शामिल है। 

गर्भावस्था के दौरान डायबिटीज को कम करने के तरीके 

गर्भावस्था के दौरान आपको डायबिटीज होने का अधिक खतरा चाहे हो या न हो, आप निश्चित रूप से इससे प्रभावित होने के खतरे को कम कर सकती हैं। डायबिटीज के प्रभाव को कम करने के लिए आपको स्वस्थ आहार व नियमित व हल्के व्यायाम करना आवश्यक है, इसे कम करने के लिए यहाँ कुछ तरीके बताए गए हैं। 

  1. नियमित भोजन में डाइट्री फाइबर शामिल करें: आप अपने नियमित भोजन में डायट्री आहार जैसे, साबुत अनाज, ताजी सब्जियों और फलों का सेवन बढ़ा सकती हैं। आप रोजाना दिनभर में लगभग 10 ग्राम तक फाइबर का सेवन बढ़ाने से गर्भकालीन डायबिटीज का खतरा लगभग 26% तक कम हो सकता है।
  2. अस्वास्थ्यकर भोजन न करें: मीठे पदार्थों का सेवन और कार्ब-युक्त भोजन का सेवन न करें। चटरपटर या जंक फूड खाकर भूख को दूर न करें।
  3. कई बार भोजन करें: एक बार में खूब सारा भोजन खा लेने से अच्छा है कि एक से ज्यादा बार थोड़ा-थोड़ा भोजन करें।
  4. समझदारी से चयन करें: विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थों को शामिल करें ताकि आपको रोजाना अपने आहार में सभी आवश्यक पोषक तत्व पर्याप्त मात्रा में मिल सकें।
  5. अपनी दिनचर्या में शारीरिक गतिविधियों को शामिल करें: गर्भावस्था के दौरान सक्रिय रहने से डायबिटीज के खतरे को कम करने में मदद मिल सकती है। गर्भवती महिलाओं को तैराकी और टहलने की अधिक सलाह दी जाती है। अपने स्वास्थ्य व गर्भावस्था की स्थिति के आधार पर ही हल्के व सरल व्यायाम चुनें। रोजाना व्यायाम की दिनचर्या को निर्धारित करने से पहले डॉक्टर से सलाह जरूर लें।
  6. वजन को नियंत्रित करें: गर्भावस्था से पहले और बाद में वजन को नियंत्रित रखने से रक्त शर्करा के स्तर को बनाए रखने में मदद मिलती है।

गर्भावस्था के दौरान डायबिटीज के लक्षण 

गर्भकालीन डायबिटीज का संकेत दे सकने वाले कोई स्पष्ट लक्षण नहीं हैं और इसलिए डॉक्टर आपकी गर्भावस्था के लगभग 24वें-28वें  सप्ताह में संपूर्ण स्वास्थ्य जांच का सुझाव दे सकते हैं, यह वह अवधि है जब महिलाओं में उच्च रक्त शर्करा के स्तर का निदान किया जाता है। यदि आप पहले से ही ऊपर दिए हुए कारकों की वजह से डायबिटीज के खतरे में हैं, तो डॉक्टर आपको बहुत पहले इस जांच की सलाह दे सकते हैं। हालांकि, गर्भावस्था के दौरान निम्नलिखित कुछ संकेत आपको गर्भकालीन डायबिटीज की चेतावनी दे सकते हैं और यदि ये लक्षण आपको नजर आते हैं तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें। 

  • पानी और अन्य तरल पदार्थ अधिक पीने के बाद भी प्यास लगना।
  • बार-बार पेशाब आना।
  • अत्यधिक थकावट महसूस होना (सामान्य रूप से गर्भावस्था की तीसरी तिमाही में महिलाओं को अधिक थकावट होती है और दिनभर में बहुत कम कार्य करने पर भी आपको अधिक थकावट महसूस हो सकती है। यह गर्भकालीन डायबिटीज की संभावना को दर्शाता है।)
  • मुंह में सूखापन होना 
  • दृष्टि में धुंधलापन होना 
  • बार-बार संक्रमण होना 

गर्भावस्था के दौरान सामान्य रूप से होने वाले कई लक्षण गर्भकालीन डायबिटीज के संकेत हो सकते हैं। गर्भावस्था और डायबिटीज होने से गर्भवती महिलाओं को अत्यधिक थकावट हो सकती है। आमतौर पर, गर्भकालीन डायबिटीज की जांच गर्भावस्था की दूसरी तिमाही में की जाती है। यद्यपि, अगर आपको उपर्युक्त लक्षणों में से कोई भी लक्षण अधिक स्पष्ट महसूस होते हैं, तो आप यह जानने के लिए डॉक्टर से चर्चा कर सकती हैं कि क्या आपको गर्भकालीन डायबिटीज की जांच करने की आवश्यकता है।

गर्भावस्था के दौरान डायबिटीज, गर्भावस्था को कैसे प्रभावित करता है 

आमतौर पर प्रसव के बाद माँ का रक्त शर्करा स्तर सामान्य हो जाता है। हालांकि, गर्भावस्था के दौरान कुछ खतरे प्रचलित हैं जिनके बारे में आपको सतर्क रहना चाहिए।

  • प्रीएक्लेम्पसिया: यदि गर्भकालीन डायबिटीज का इलाज नहीं किया जाता है तो इसका प्रभाव माँ और बच्चे, दोनों पर होता है। गर्भकालीन डायबिटीज का उपचार न करने से प्रीएक्लेम्पसिया नामक दुष्प्रभाव हो सकता है। यह समस्या गर्भावस्था की अंतिम तिमाही में होती है। प्रीएक्लेम्पसिया की दो मुख्य विशेषताएं शामिल हैं, पहली मूत्र में प्रोटीन का उच्च स्तर जो एक नियमित परीक्षण में पाया जा सकता है और दूसरी रक्तचाप में वृद्धि। समय पर इलाज न होने से यह समस्या गंभीर हो सकती है। गर्भवती महिला पर इसका हानिकारक प्रभाव पड़ सकता है, जैसे समय से पहले प्रसव और अत्यधिक दुर्लभ स्थिति में गर्भपात। 
  • मृत प्रसव: गर्भकालीन डायबिटीज से पीड़ित गर्भवती महिलाओं द्वारा शिशु को 40 सप्ताह से अधिक समय तक गर्भ में धारण करने पर खतरा बढ़ जाता है। ऐसे मामले में मृत प्रसव की संभावना बढ़ जाती है।
  • टाइप 2 डायबिटीज में वृद्धि: महिलाओं में वृद्धावस्था के दौरान टाइप 2 डायबिटीज होने की संभावना अधिक होती है।

गर्भकालीन डायबिटीज का इलाज न करने पर उपर्युक्त सभी जटिलताएं महिलाओं के स्वास्थ्य में खतरे की ओर इशारा करती हैं। इससे कई स्थितियों में संवेदनशीलता बढ़ती है। लेकिन रोजाना उचित आहार और व्यायाम करने से ज्यादातर मामलों में मदद मिल सकती है।

गर्भावस्था के दौरान डायबिटीज से बच्चे पर क्या प्रभाव पड़ता है

कभी-कभी, शिशु पर गर्भकालीन डायबिटीज का प्रभाव माँ की तुलना में थोड़ा अधिक गंभीर हो सकता है। जब इंसुलिन के स्तर के साथ गर्भनाल हस्तक्षेप करती है, तो इससे बदले में रक्त शर्करा का स्तर उच्च हो जाता है। ज्यादातर मामलों में, गर्भकालीन डायबिटीज से पीड़ित जिन महिलाओं का उपचार समय पर हो जाता है उनके स्वस्थ बच्चे होते हैं, लेकिन यदि इस समस्या का उपचार नहीं किया गया तो बच्चे पर निम्नलिखित प्रभाव पड़ सकते हैं, जैसे;

गर्भावस्था के दौरान डायबिटीज से बच्चे पर क्या प्रभाव पड़ता है

  • मैक्रोसोमिया: माँ के रक्त में शर्करा का उच्च स्तर शिशु तक भी पहुँच सकता है। शिशु में उच्च रक्त शर्करा उसके अग्न्याशय को उत्तेजित करके इंसुलिन के उच्च स्तर को स्रावित करता है, यह कभी-कभी मैक्रोसोमिया जैसी समस्या को उत्पन्न कर सकता है। यह एक ऐसी समस्या है जहाँ भ्रूण का वजन 4.08 किलो या अधिक होता है। ऐसे मामलों में सी-सेक्शन करवाने की संभावना हो सकती है। सामान्य प्रसव के दौरान शिशु मामूली चोटों, आघात या कंधे के कष्ट जैसी समस्याओं से जन्म से ही पीड़ित हो सकता है। 
  • ह्यपोग्लायसिमिक शिशु: इंसुलिन के स्तर में वृद्धि के कारण शिशु निम्न रक्त शर्करा के साथ जन्म ले सकता है, जिसे ह्यपोग्लायसिमिया भी कहा जाता है।
  • सांस लेने में तकलीफ: गर्भकालीन डायबिटीज से ग्रसित माँ से जन्म लेने वाले कुछ शिशुओं को सांस लेने में थोड़ी दिक्कत होती है। कुछ बच्चों में श्वसन संकट से संबंधित लक्षण होते हैं, जिसमें जन्म के बाद बच्चे को अतिरिक्त ऑक्सीजन देने की संभावना होती है।
  • पोषक तत्वों की कमी: शिशु में मैग्नीशियम और कैल्शियम का निम्न स्तर हो सकता है जिसके कारण उनमें मरोड़, ऐंठन, झटके जैसी समस्याएं हो सकती हैं। बच्चे को उपयुक्त पूरक (सप्लीमेंट) खिलाने से उनमें यह समस्याएं कम हो सकती हैं।
  • पीलिया का खतरा: इन शिशुओं को जन्म के बाद पीलिया होने का अधिक खतरा होता है। पीलिया का इलाज काफी सरल है किन्तु इससे बच्चे में अत्यधिक कमजोरी आ सकती है। इससे बच्चे को डॉक्टर की तुरंत आवश्यकता हो सकती है। 
  • टाइप 2 डायबिटीज: बड़े होने पर बच्चे में टाइप 2 डायबिटीज का खतरा हो सकता है।

गर्भावस्था के दौरान डायबिटीज की जांच के लिए सुझाव

ज्यादातर मामलों में गर्भकालीन डायबिटीज का परीक्षण गर्भावस्था के 24 से 28 सप्ताह के बीच किया जाता है। इसमें दो मुख्य परीक्षण होते हैं जो यह पता लगाने में मदद करते हैं कि गर्भावस्था के दौरान माँ को उच्च रक्त शर्करा या निम्न रक्त शर्करा है। परिणामों के आधार पर आगे और भी परीक्षण और अतिरिक्त जांच की जा सकती है।

ग्लूकोज का परीक्षण (जीसीटी) – भोजन के बाद किया जाने वाला परीक्षण

यह परीक्षण करवाने वाली महिलाओं को ग्लूकोज घोल दिया जाता है। एक घंटे के बाद रक्त शर्करा के स्तर की जांच के लिए उन महिलाओं के रक्त का सैंपल लिया जाता है। यदि परिणामस्वरूप उच्च स्तर इस प्रक्रिया की असमर्थता का संकेत देता है तो डॉक्टर महिला को ओजीटीटी की जांच करवाने की सलाह दे सकते हैं। 

मौखिक ग्लूकोज टॉलरेंस परीक्षण (ओजीटीटी) – उपवास परीक्षण

इस परीक्षण के लिए महिला को खाली पेट होने की आवश्यकता है। इसमें डॉक्टर रक्त का सैंपल लेते हैं और महिला को ग्लूकोज का घोल दिया जाता है। रक्त का दूसरा सैंपल एक घंटे बाद एवं तीसरा सैंपल और एक घंटे के बाद लिया जाता है। परीक्षण पूरा होने में 2 घंटे लगते हैं और महिला को सलाह दी जाती है कि वह इस अंतराल में न कुछ खाएं और न पीएं, ऐसा करने से सटीक परिणाम मिलने में मदद मिलती है। यदि रक्त शर्करा का स्तर गर्भकालीन डायबिटीज में पाया जाता है तो डॉक्टर महिला को निर्धारित दवाएं देते हैं या उन्हें संतुलित आहार खाने की सलाह दी जा सकती है।

गर्भावस्था के दौरान डायबिटीज का निदान

गर्भावस्था की शुरुआत में ही डॉक्टर गर्भवती महिला से गर्भकालीन डायबिटीज के खतरों का पता लगाने के लिए परिवार में पहले किसी को हुई डायबिटीज के बारे में कुछ सवाल पूछ सकते हैं। गर्भावस्था के दौरान किसी भी चेतावनी के संकेत पर नजर रखी जाती है और जांच भी होती है। यदि कुछ भी असामान्य नहीं दिखता है, तो सही समय पर नियमित जीसीटी निर्धारित किया जाता है। परीक्षण के परिणाम गर्भकालीन डायबिटीज का निदान करने में मदद करते हैं।

गर्भावस्था के दौरान डायबिटीज का उपचार

गर्भावस्था के दौरान डायबिटीज का उपचार

गर्भावस्था के दौरान डायबिटीज को जीवनशैली में सरल बदलाव करके आसानी से प्रबंधित किया जा सकता है। नियमित आहार में फाइबर-युक्त व कम कार्ब वाले खाद्य पदार्थों को शामिल करने से रक्त शर्करा के स्तर को कम करने में मदद मिल सकती है। ओजीटीटी के परिणामों के आधार पर, डॉक्टर आपको हल्के व्यायाम करने का सुझाव दे सकते हैं। रक्त शर्करा के अंतर में जांच के लिए आपको कुछ दिनों के बाद दोबारा से रक्त शर्करा परीक्षण करवाने के लिए कहा जा सकता है।यदि परीक्षण का परिणाम सामान्य होता है तो आपको अपने व्यायाम व आहार को जारी रखने की सलाह दी जाएगी। डॉक्टर समय-समय पर आपके शिशु के स्वास्थ्य की जांच कर सकते हैं। यदि रक्त शर्करा का स्तर कम होकर सामान्य नहीं होता है, तो इसके लिए आपको दवाइयां या इंसुलिन के इंजेक्शन निर्धारित किए जा सकते हैं।

गर्भावस्था के दौरान शर्करा के स्तर को कैसे नियंत्रित करें

शारीरिक शर्करा के स्तर को नियंत्रित करने का सरल तरीका है, अपने आहार को प्रबंधित करना। गर्भावस्था के दौरान अपने स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के लिए आप क्या खाती हैं और कब खाती हैं, यह बदलना लंबे समय के लिए फायदेमंद हो सकता है।

गर्भकालीन डायबिटीज के लिए आहार योजना

गर्भावस्था के दौरान डायबिटीज होने पर आप किस समय क्या खा सकती हैं उसका एक छोटा सा सैंपल नीचे दी हुई तालिका में है, आइए जानें;

सुबह का नाश्ता

2 से 3 कार्बोहाइड्रेट विकल्प (30 से 45 ग्राम)

प्रोटीन (मांस, मुर्गी, मछली, अंडे, पनीर, मूंगफली का मक्खन)

सब्जी या वसा, इच्छानुसार

दोपहर का भोजन

3 से 4 कार्बोहाइड्रेट विकल्प (45 से 60 ग्राम)

प्रोटीन (मांस, मुर्गी, मछली, अंडे, पनीर, मूंगफली का मक्खन)

सब्जी या वसा, इच्छानुसार

रात का खाना

3 से 4 कार्बोहाइड्रेट विकल्प (45 से 60 ग्राम)

प्रोटीन (मांस, मुर्गी, मछली, अंडे, पनीर, मूंगफली का मक्खन)

सब्जी या वसा, इच्छानुसार

देर सुबह का स्नैक्स

1 से 2 कार्बोहाइड्रेट विकल्प (15 से 30 ग्राम)

प्रोटीन (मांस, मुर्गी, मछली, अंडे, पनीर, मूंगफली का मक्खन,)

सब्जी या वसा, इच्छानुसार

दोपहर के बाद का स्नैक्स 

1 से 2 कार्बोहाइड्रेट विकल्प (15 से 30 ग्राम)

प्रोटीन (मांस, मुर्गी, मछली, अंडे, पनीर, मूंगफली का मक्खन)

सब्जी या वसा, इच्छानुसार

शाम का सैक्स 

1 से 2 कार्बोहाइड्रेट विकल्प (15 से 30 ग्राम)

प्रोटीन (मांस, मुर्गी, मछली, अंडे, पनीर, मूंगफली का मक्खन)

सब्जी या वसा, इच्छानुसार

स्रोत: https://www.allinahealth.org/health-conditions-and-treatments/health-library/patient-education/gestational-diabetes/healthy-eating-physical-activity-stress-management/basic-meal-planning

हालांकि आहार विशेषज्ञ आपके परीक्षण परिणामों के आधार पर व्यक्तिगत आहार योजना बना सकते हैं।

गर्भवती महिलाओं के लिए रक्त शर्करा का स्तर

रक्त शर्करा का सामान्य स्तर उन गर्भवती महिलाओं के लिए जिन्हें गर्भधारण से पहले डायबिटीज थी और गर्भकालीन डायबिटीज से ग्रसित महिलाओं में भिन्न होता है। यहाँ गर्भावस्था के दौरान रक्त शर्करा के स्तर पर सामान्य दिशानिर्देश हैं। याद रखें कि हर गर्भावस्था अलग होती है और सिर्फ डॉक्टर ही आपके स्वास्थ्य का ध्यान रखने में आपकी मदद कर सकते हैं।

स्रोत: http://www.webmd.com/diabetes/gestational-diabetes-guide/normal-blood-sugar-levels-chart-pregnant-women

गर्भावस्था के दौरान डायबिटीज को कैसे रोका जा सकता है

सभी आवश्यक सूचनाओं से अवगत होना और सचेत रहना ही बचाव की दिशा में पहला कदम है। इससे आपको न केवल समस्या से संबंधित सभी खतरों के कारक समझने में मदद मिलेगी, बल्कि आगे आने वाली चुनौतियों के लिए भी आप पूरी तरह से तैयार रहेंगी। अगर आवश्यक हो, तो किसी भी खतरे से बचने के लिए अपने स्वास्थ्य इतिहास के बारे में डॉक्टर से चर्चा करें और जरुरत होने पर प्रारंभिक अवस्था में डायबिटीज की जांच करवाएं। गर्भावस्था के दौरान सामान्य शर्करा के स्तर को बनाए रखने के लिए आप अपने निर्धारित व्यायाम व आहार का पालन नियमित रूप से करती रहें। कुछ महिलाओं में मीठा खाने की तीव्र इच्छा सामान्य होती है लेकिन अस्वास्थ्यकर खाने और उच्च शर्करा वाले आहार अच्छे होने से अधिक नुकसानदायक होते हैं।

प्रसव के बाद माँ और शिशु को क्या होगा

ज्यादातर मामलों में, कुछ भी नहीं! माँ अपने सामान्य स्वास्थ्य में खुद ही वापस आ जाती है। महिला में रक्त शर्करा का स्तर वापस सामान्य हो जाता है और साथ ही शिशु स्वस्थ व खुश रहता है। लेकिन सबसे खराब मामलों में जहाँ अत्यधिक रक्त शर्करा के स्तर, देर से निदान या अगर माँ पर दवाओं का असर न होने के कारण, बहुत हानि हुई है तो इसका असर माँ और शिशु पर पड़ सकता है। बाद में दोनों के लिए परीक्षण निर्धारित किए जा सकते हैं, जिनके आधार पर सुनिश्चित किया जा सकता है कि माँ को टाइप 2 डायबिटीज और शिशु को ह्यपोग्लायसिमिया है या नहीं है।

महिलाओं को अपना स्वस्थ वजन बनाए रखने और प्रसव के बाद भी स्वस्थ आहार व व्यायाम की आदतों को नियमित रूप से जारी रखना महत्वपूर्ण है। यह आगे के लिए और अगली गर्भावस्था के दौरान डायबिटीज के खतरों को कम करने में मदद करता है। प्रसव के बाद अपने लिए और साथ ही शिशु के लिए डॉक्टर से सलाह लेने की निरंतरता न छोड़ें। यह सुनिश्चित करते हुए स्तनपान जारी रखें कि आप पोषक तत्वों से भरपूर आहार का सेवन कर रही हैं। यह आपको सही वजन को प्राप्त करने में मदद करता है और शिशु व माँ के सर्वोत्तम स्वास्थ्य को भी सुनिश्चित करता है।

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