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विक्रम बेताल की दगड़ू के सपने की इस कहानी में दगड़ू नाम के व्यक्ति के बारे में बताया गया, जो चंदनपुर नाम के गांव में रहता था। वह बहुत ही आलसी और कामचोर आदमी था। लेकिन उसकी एक खासियत थी कि वह जब भी कोई बुरा सपना देखता था वह सच जरूर हो जाता था। उसके सपनों की घटनाओं से उसके गांव वाले बहुत परेशान हो गए थे। इसलिए वह घर छोड़कर दूसरे राज्य चला गया और वहां राजा के महल में चौकीदार की नौकरी करने लगा। लेकिन यहां भी उसे सपना आया और राजा को बचाने के लिए उसने उसे पूरी कहानी बताई। राजा ने उसे बचाने के लिए कीमती तोहफे दिए और बाद में नौकरी से निकाल दिया।
कई साल पहले की बात है, चंदनपुर नाम का एक गांव था जहाँ दगड़ू नाम का एक युवक रहा करता था। दगड़ू आलस से भरा और कामचोर व्यक्ति था। उसकी इस आदत से उसकी बूढ़ी मां भी बहुत परेशान रहती थी। दगड़ू की मां अपने घर का खर्चा लोगों के कपड़े सिलकर पूरा करती थी, लेकिन दगड़ू को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता था। उसका काम सिर्फ दिन भर सोना और सपने देखना था, लेकिन अजीब बात ये थी कि वह जब भी कोई बुरा सपना देखता था वह सपना कुछ घंटो बाद सही हो जाता था।
एक दिन दगड़ू हमेशा ही तरह सो रहा था, तभी सोते वक्त उसे एक सपना आया कि एक युवती के विवाह समारोह में डाकू आ जाता और सब कुछ लूटकर ले जाता है। जब सुबह उसकी नींद खुली, तो उसने उसी लड़की को अपने घर पर देखा। वह लड़की अपनी शादी का जोड़ा लेने दगड़ू की मां के पास आई थी। लड़की को देखने के बाद दगड़ू ने उसे अपने सपने के बारे में बताया। सपने के बारे में जानने के बाद लड़की बहुत चिंतित हो गई और उसने घर जाकर घरवालों को सारी बात बता दी। घरवालों ने सपने के बारे में सुनने के बाद भी उस पर बिल्कुल भरोसा नहीं किया। लेकिन तभी कुछ घंटों बाद शादी में डाकू आए और सब कुछ लूटकर ले गए। इसके बाद लड़की के घरवालों ने दगड़ू को बहुत मारा और उसपर लुटेरों के साथ मिले होने क आरोप लगाया।
कुछ दिनों बाद दगड़ू को एक और सपना आता है। इस बार उसने सपने में देखा कि उसके पड़ोस में रहने वाली चौधराइन के नए घर में आग लग जाती है। दोपहर एक समय जब दगड़ू घर के बाहर निकलता है और देखता है कि चौधराइन अपने नए घर की खुशी में सभी मिठाई बांट रही थी और सबको गृह प्रवेश के लिए आमंत्रित भी करती है दगड़ू तुरंत भागकर उस महिला के पास जाता है और उसे सपने के बारे में बताता है। चौधराइन दगड़ू की बातें सुनकर गुस्सा होकर वहां से चली जाती है। लेकिन दगड़ू की बात सुनने के बाद उसने आग से बचने का सारा इंतजाम कर लिया था। इसके बावजूद भी महिला का नया घर आग लगने की वजह से जलकर राख हो जाता है।
ऐसी घटनाएं कई सालों तक होती रहीं। दगड़ू हर बार कोई नया सपना देखता और लोगों को उसके लिए सतर्क करता, लेकिन अंत में उसे सिर्फ लोगों का गुस्सा और नाराजगी झेलनी पड़ती थी। इसके बाद दगड़ू ने अपना गांव छोड़कर जाने का फैसला करता है। वह वहां से निकलकर दूसरे राज्य में चला गया। इस राज्य में अपना खर्चा निकालने के लिए नौकरी की तलाश करने लगा। फिर उसे उस राज्य के राजा के यहां चौकीदार की नौकरी मिल गई।
दगड़ू की नौकरी लग जाने के कुछ दिनों बाद वहां के राजा को सोनपुर गांव जाना था। तभी सोनपुर गांव जाने से पहले दगड़ू को सपना आता और सपने में वो देखता कि सोनपुर गांव में बहुत खतरनाक भूकंप आया है और वहां कोई भी जीवित नहीं बचा। सुबह होते ही राजा सोनपुर जाने की तैयारी करते हैं, तभी दगड़ू भागकर राजा के रथ के पास पहुंचता है और उन्हें सपने के बारे में बताकर उन्हें सोनपुर जाने से रोक लेता है। अगली सुबह राजा को ये सुनने को मिलता है कि सोनपुर में बहुत भयानक भूकंप आया और सभी लोग मर गए।
राजा को जैसे ही खबर मिली, उन्होंने दगड़ू चौकीदार को बुलवाया। राजा ने सोनपुर में आए भूकंप से बचाने के लिए उसे महंगे गहने दिए और फिर नौकरी से निकाल दिया। तभी बेताल ने अपनी कहानी बंद कर दी और राजा विक्रम से पूछा –
“ये बताओ राजा ने दगड़ू को गहने देकर नौकरी से क्यों निकाला ?”
राजा विक्रमादित्य ने हमेशा की तरह बहुत गंभीरता से जवाब दिया और कहा कि उसे राजा ने अपनी जान बचाने के लिए कीमती गहने दिए लेकिन नौकरी के समय सोने की वजह से उसे नौकरी से निकाल दिया। जवाब मिलते ही बेताल एक बार फिर से उड़कर पेड़ पर जाकर लटक गया।
दगड़ू के सपने की इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि किसी भी व्यक्ति को अपने काम को लेकर कोई लापरवाही नहीं करनी चाहिए क्योंकि उसके बुरे परिणाम आपको झेलने पड़ते है, भले ही उसके पीछे आपके भाव सच्चे क्यों न हों।
यह कहानी विक्रम-बेताल की मशहूर कहानियों में से एक है। इसमें यह बताया गया है कि यदि किसी का भला करने की वजह से आपका नुकसान हो रहा तब भी आपको भलाई का रास्ता नहीं छोड़ना चाहिए, लेकिन अपने काम के प्रति भी आपको ईमानदार रहना चाहिए।
दगड़ू के सपने की कहानी की नैतिकता यह है हमें कभी अपने काम में कोई लापरवाही नहीं करनी चाहिए और साथ ही किसी का भला करने से पहले खुद के बारे में भी नहीं सोचना चाहिए।
व्यक्ति को जीवन में किसी का भला करने के लिए ज्यादा सोचना नहीं चाहिए फिर चाहे उसका खुद का नुकसान हो रहा हो, क्योंकि अंत में उसके अच्छे कर्म उसे सफलता जरूर हासिल करवाते हैं।
इस कहानी से यह निष्कर्ष सामने आता है कि व्यक्ति को अपने काम को लेकर लापरवाह नहीं होना चाहिए और साथ ही किसी की भलाई करने पर यदि आपको नुकसान पहुंच रहा है तो भलाई का रास्ता नहीं छोड़ना चाहिए, क्योंकि आपके अच्छे कर्म ही आपको बेहतर व्यक्ति बनने में मदद करते हैं।
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