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बेताल पचीसी की इस कहानी में ताम्रलिपि नगर के राजा चन्द्रसेन की कथा है। चन्द्रसेन बहुत साहसी और दयावान राजा थे। उनसे सभी मिलने के लिए उत्सुक रहते थे। एक दिन उनकी मुलाकात सत्वशील नाम के युवक से हुई जिसने उन्हें पानी पिलाया। इसके बदले उन्होंने उसे अपने महल में ही नौकरी पर रख लिया। सत्वशील राजा का बहुत करीबी हो गया था और उन्होंने उसे नगर की बेरोजगारी के बारे में बताया। तभी उन्होंने ने टापू पर वहां की राजकुमारी की मदद से वहां लड़ाई कर के जीत हासिल की और सत्वशील का किया उपकार कैसे चुकाया वो अंत तक जरूर पढ़ें।
सालों पहले की बात है, समुद्र किनारे ताम्रलिपि नाम का एक नगर हुआ करता था जहां राजा चंद्रसेन का शासन चलता था। राजा से मिलने के लिए बहुत लोग व्याकुल रहते थे। उन सभी लोगों में एक सत्वशील नाम का युवक भी था। वो युवक काम की खोज में था, इसी वजह से वह हर दिन राजा से मिलने उनके राजमहल पहुंच जाता, लेकिन उसको वहां के दरबारी भगा दिया करते थे। ऐसा काफी समय तक चलता रहा, उसके बावजूद भी सत्वशील ने हिम्मत नहीं हारी। वह हर उस स्थान पर पहुंच जाता था, जहां राजा जाते थे।
एक दिन राजा अपने सैनिकों के साथ भ्रमण पर निकले। तेज धूप और गर्मी की वजह से उन्हें बहुत तेज प्यास लगी। सैनिकों ने राजा के लिए कई जगह पर पानी ढूंढा लेकिन उन्हें पानी नहीं मिला। उसी वक्त राजा ने रास्ते पर खड़े सत्वशील को खड़ा हुआ देखा और उससे पूछा – क्या तुम्हारे पास पीने का पानी है? उसने तुरंत राजा को पानी दिया और मीठे फल भी खाने को दिए। राजा उससे बहुत खुश हो गया और बोला –
“मैं तुम्हारे उपकार के बदले कुछ भेंट देना चाहता हूं, बोलो तुम्हें क्या चाहिए?”
राजा चन्द्रसेन के सवाल पूछते ही सत्वशील ने जवाब में कहा कि महाराज मैं बहुत दिनों से काम की तलाश कर रहा हूं, आप मुझे काम दे देंगे तो आपकी बहुत दया होगी। इतना सुनने के बाद राजा ने उसे अपने दरबार में काम दे दिया और उससे कहा कि उसके द्वारा पिलाए गए पानी का उपकार वह जिंदगी भर याद रखेगा। समय गुजरता गया और सत्वशील अपनी काबिलियत से राजा का बेहद करीबी बन गया। एक दिन राजा ने सत्वशील से कहा, हमारे राज्य में बेरोजगारी बहुत बढ़ गई है और हमे उसके लिए कुछ करना पड़ेगा। युवक ने कहा, आप जैसा हुक्म करें महाराज।
राजा ने कहा –
“हमारे पास एक टापू है, जो बहुत हरा-भरा है। यदि उस टापू में कोई नई खोज की जाए तो कुछ काम बन सकता है। इसके बाद सत्वशील राजा के आदेश का पालन करते हुए उस टापू के लिए निकल गया।
सत्वशील समुद्र के रास्ते से टापू जा रहा था, उसी वक्त उसे पानी में तैर रहा एक झंडा दिखाई दिया। झंडे को लेने के लिए वह हिम्मत के साथ पानी में कूदा। पानी में कूदने के बाद सत्वशील टापू की राजकुमारी के पास सीधे पहुंच गया। उस दौरान राजकुमारी अपनी सहेलियों और दासियों के साथ संगीत गा रही थी। सत्यशील ने राजकुमारी को अपने बारे में बताया। कुछ समय बात करने के लिए राजकुमारी ने युवक को खाने के लिए निमंत्रण दिया और भोजन से पहले पास के एक तालाब में नहाने के लिए कहा। जैसे ही वह तालाब में स्नान करने के लिए कूदता है, वह ताम्रलिपि के महल के दरबार में पहुंच जाता है।
सत्वशील को अचानक से सभा में देखकर राजा चन्द्रसेन हैरान हो गए। राजा उससे पूछने लगे, अरे, तुम यहां कैसे? तब सत्वशील उसे पूरी कहानी बताता है। सब कुछ जानने के बाद राजा टापू जाने के लिए कहते हैं। वहां पहुंचने के बाद राजा उस टापू को लड़ाई कर के जीत लेते हैं। इसके बाद वहां की राजकुमारी राजा चन्द्रसेन को टापू का राजा घोषित कर देती है। टापू जीतने की खुशी में राजा चन्द्रसेन वहां की पूर्व राजकुमारी और सत्वशील का विवाह करा देते हैं। इस तरह से राजा चन्द्रसेन ने सत्वशील के पानी का उपकार चुकाया।
बेताल अपनी कहानी पूरा करते ही चुप हो गया और राजा विक्रम से बोला कि राजा चन्द्रसेन और सत्वशील, दोनों में से सबसे अधिक बलवान कौन है? विक्रम ने जवाब दिया – सत्वशील सबसे ज्यादा बलवान था। बेताल ने पूछा – क्यों? तब विक्रम ने कहा कि सत्वशील बिना सोचे समझे झंडे को देखते ही पानी में कूद जाता है। उसे खतरा भी हो सकता था, जबकि राजा को पता था कि पानी में कोई खतरा नहीं है। एक बार फिर सवाल का सही जवाब मिलते ही बेताल विक्रम के कंधे से उड़कर जंगल के किसी पेड़ पर लटक जाता है।
राजा चन्द्रसेन और नवयुवक सत्वशील कहानी से हमें ये सीख मिलती है कि मनुष्य को कभी भी हिम्मत नहीं हारनी चाहिए और अपने कर्म लगातार करते रहना चाहिए।
यह कहानी विक्रम-बेताल की मशहूर कहानियों के अंतर्गत आती है जो बहुत दिलचस्प कहानियां होती है। इन कहानियों के संग्रह को बेताल पचीसी के नाम से भी जाना जाता है।
राजा चन्द्रसेन और नवयुवक सत्वशील कहानी का नैतिक यह है कि व्यक्ति को कठिन परिस्थिति में हमेशा धैर्य और साहस से काम करना चाहिए। इससे सफलता जरूर मिलती है।
हर इंसान को चाहे कोई भी परिस्थिति हो उसमे हमेशा हिम्मत से काम लेना चाहिए और चाहे मुसीबत जितनी बड़ी क्यों न हो आपको कभी हिम्मत नहीं हारनी चाहिए।
इस कहानी का ये निष्कर्ष निकलता है मुश्किल समय में व्यक्ति को हिम्मत और साहस से काम करना चाहिए , ऐसा करने से आपका मनचाहा काम जरूर सफल होता है।
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