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बच्चों के साथ दुर्व्यवहार उनके मन को एक गहरी चोट पहुंचाने वाला अनुभव होता है, जो उनके जीवन पर हमेशा के लिए असर डाल सकता है। यह सिर्फ बच्चे के लिए नहीं, बल्कि पूरे परिवार के लिए भी बहुत दर्दनाक होता है। जब बच्चे के साथ ऐसा कुछ होता है, तो उसका दुनिया से भरोसा उठने लगता है। कई बार बच्चे शर्म, डर या अपराध बोध महसूस करते हैं और इस वजह से वे अपने माता-पिता को कुछ बता नहीं पाते। वे यह सोचते हैं कि शायद उनके माता-पिता उन्हें समझ नहीं पाएंगे, या वे खुद अपनी बात को सही तरीके से समझा नहीं पाएंगे। इसके अलावा, अक्सर दुर्व्यवहार करने वाला (अब्यूजर) बच्चों को डराने-धमकाने की कोशिश करता है ताकि वे किसी को कुछ न बताएं।
इसलिए, माता-पिता के लिए यह बेहद जरूरी है कि वे अपने बच्चों के व्यवहार और भावनाओं में बदलाव को समझें और किसी तरह के दुर्व्यवहार के संकेतों को पहचानें। जब बच्चे को यह एहसास होगा कि उसके माता-पिता उसकी भावनाओं को समझते हैं और उसकी हर बात को गंभीरता से लेते हैं, तो यह उसके जीवन में बड़ा बदलाव ला सकता है। माता-पिता को अपने बच्चों के साथ भरोसेमंद और खुला रिश्ता बनाना चाहिए, ताकि बच्चा हर मुश्किल में उनके पास आ सके।
जब किसी बच्चे को शारीरिक, मानसिक या यौन शोषण का शिकार बनाया जाता है या उसकी देखभाल में लापरवाही की जाती है, तो इसे बच्चों का शोषण (चाइल्ड एब्यूज) कहते हैं। यह दुर्व्यवहार किसी के भी द्वारा हो सकता है – जैसे माता-पिता, करीबी रिश्तेदार या देखभाल करने वाले बेबीसिटर या क्रेश व डे केयर के कर्मचारी आदि। इस तरह के अनुभव का बच्चे की मानसिकता पर गहरा और नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। सबसे ज्यादा जोखिम में पांच साल से कम उम्र के बच्चे रहते हैं। अक्सर ऐसा होता है कि जब दोनों माता-पिता काम पर जाते हैं, तो बच्चे को किसी और के भरोसे छोड़ दिया जाता है – जैसे कि बेबीसिटर, डे केयर या किसी परिवार के अन्य सदस्य के पास। ऐसे में माता-पिता का चिंतित होना स्वाभाविक है, क्योंकि उन्हें अपने बच्चे की सुरक्षा को लेकर डर लगा रहता है।
बच्चों के साथ दुर्व्यवहार कई तरह से हो सकता है, जैसे – शारीरिक शोषण, यौन शोषण, भावनात्मक शोषण और उपेक्षा। आइए इन सभी को आसान भाषा में समझते हैं:
बच्चों के साथ शोषण और उनका अनादर कई परिस्थितियों में हो सकता है। आइए कुछ आम कारणों को सरल भाषा में समझते हैं:
ऐसे घर जहां माता-पिता या परिवार के सदस्य अक्सर झगड़ा या मारपीट करते हैं, वहां बच्चे भी दुर्व्यवहार के शिकार बन सकते हैं। अक्सर देखा गया है कि जो पुरुष अपनी पत्नियों के साथ हिंसा करते हैं, वे बच्चों के साथ भी बुरा व्यवहार करते हैं।
अगर माता-पिता शराब या किसी नशे के आदी हैं, तो यह बच्चों के साथ दुर्व्यवहार का बड़ा कारण बन सकता है। नशे की लत वाले माता-पिता अक्सर बच्चों को शारीरिक रूप से चोट पहुंचाते हैं या उनकी देखभाल में लापरवाही करते हैं। खासतौर पर 5 साल से छोटे बच्चों पर इसका सबसे ज्यादा असर पड़ता है।
अगर माता-पिता में से किसी को मानसिक बीमारी है और उसका इलाज नहीं हो रहा है, तो इससे बच्चे पर बुरा असर पड़ सकता है। जैसे, डिप्रेशन या मनोवैज्ञानिक समस्या के कारण माता या पिता बच्चों से दूर रहते हैं, या उन्हें शक होता है कि बच्चा उनके खिलाफ कुछ कर रहा है। ऐसे मामलों में बच्चे अक्सर दुर्व्यवहार का शिकार हो जाते हैं।
हर माता-पिता को अपने बच्चों की देखभाल करने का हुनर नहीं आता। कुछ लोग अनुशासन और दुर्व्यवहार में फर्क नहीं कर पाते। वे बच्चों को मारना या डराना सही समझते हैं। ऐसे माता-पिता को काउंसलिंग की जरूरत होती है, ताकि वे अपने बच्चों को बेहतर तरीके से समझ सकें।
जब माता-पिता किसी तनावपूर्ण स्थिति में होते हैं, जैसे तलाक, पैसों की तंगी, रिश्ते में परेशानी या नौकरी से जुड़ी समस्याएं, तो इसका असर उनके बच्चों पर पड़ता है। ऐसे समय में वे बच्चों की भावनात्मक जरूरतों को नहीं समझ पाते और कभी-कभी उन पर गुस्सा भी निकालते हैं।
माता-पिता जो अपने बच्चे के साथ हर समय नहीं रह सकते, उनके मन में अक्सर उसकी सुरक्षा को लेकर चिंता बनी रहती है। कई बार हम यह नहीं समझ पाते कि बच्चे के साथ कुछ गलत हो रहा है, क्योंकि हमें पता ही नहीं होता कि किन बातों पर ध्यान देना चाहिए। जैसे हर रोज बच्चे से उसका दिन कैसा बीता इस बारे में बात करें। पूछें कि स्कूल, डे केयर या कहीं और कुछ अजीब या असहज महसूस करने वाला तो नहीं हुआ। अगर वह किसी स्थिति या व्यक्ति से डर या असहजता महसूस कर रहा है, तो उसे खुलकर बताने दें। बच्चे के शरीर पर कोई चोट, निशान या घाव दिखे तो इसे हल्के में न लें। इसके अलावा, अगर बच्चा बार-बार रोता है, चिड़चिड़ा हो गया है या उसका स्वभाव अचानक बदल गया है, तो यह भी चिंता का विषय हो सकता है। अगर बच्चा किसी खास व्यक्ति या जगह से मिलने या वहां जाने से डर रहा है, तो इसे गंभीरता से लें।
बच्चे हमेशा यह नहीं बता पाते कि उनके साथ कुछ गलत हो रहा है। इसका कारण उनकी उम्र हो सकती है या वे इसे पहचानने और बताने में सहज महसूस नहीं करते। ऐसे में माता-पिता और देखभाल करने वालों को इन संकेतों पर ध्यान देना जरूरी है:
अगर बच्चे का व्यवहार अचानक बदल जाए, जैसे कि घर या डे केयर में अजीब बर्ताव करना या पढ़ाई में कमजोर होने लगना। बच्चा अपने डे केयर जाने या किसी खास व्यक्ति के साथ समय बिताने से डरने या झिझकने लगे। यदि आपको बच्चे के शरीर पर चोट, खरोंच, जलने या काटने के निशान दिखें, जिनका कोई सही कारण वो न बता पा रहा हो। यदि बार-बार काटने के निशान या जलने के निशान हों, तो यह बच्चे के शारीरिक शोषण के बारे में एक निश्चित चेतावनी संकेत होता है।
भावनात्मक शोषण झेल रहे बच्चे के व्यवहार में अचानक और बड़े बदलाव दिख सकते हैं। वह माता-पिता के प्यार और दुलार को ठुकरा सकता है या फिर जरूरत से ज्यादा उनके साथ चिपकने लगेगा। अगर कोई बहुत बातूनी बच्चा अचानक शांत हो जाए या शांत स्वभाव का बच्चा अचानक ज्यादा बोलने लगे, तो यह संकेत भी हो सकता है कि वह अंदर से परेशान है। इसके अलावा, बिना किसी स्पष्ट कारण के बार-बार पेट दर्द या सिरदर्द होना और भूख कम हो जाना भी भावनात्मक समस्या की ओर इशारा करते हैं। ऐसे में माता-पिता को बच्चे की इन भावनाओं को समझना और उसे सहारा देना बहुत जरूरी है।
यौन शोषण से गुजरा बच्चा गहरे भावनात्मक और शारीरिक आघात का शिकार हो सकता है। यह उसकी शारीरिक भाषा और शरीर पर मौजूद चोटों या निशानों से समझा जा सकता है, चाहे वे छोटे ही क्यों न हों। यदि बच्चे को बैठने या चलने में दिक्कत हो, खासकर गुदा या जननांग (एनल और प्राइवेट पार्ट) क्षेत्र में दर्द के कारण, तो यह गंभीर संकेत हो सकता है।
बुलीइंग भी बच्चों के साथ दुर्व्यवहार का एक रूप है, जो अक्सर बड़े बच्चों या साथियों द्वारा किया जाता है। यदि बच्चा खेलने जाने से कतराता है, उसके शरीर पर चोट के निशान हैं, या उसे दोस्त बनाने में मुश्किल हो रही है, तो यह बुलीइंग का मामला हो सकता है। ऐसे में बच्चे से खुलकर बात करें, उसके स्कूल और दोस्तों के बारे में जानकारी लें, ताकि उसकी परेशानी को समझा जा सके।
बच्चों के साथ हुए शोषण और उपेक्षा का असर लंबे समय तक उनके मन और शरीर पर बना रहता है। यह उनके आत्मविश्वास को चोट पहुंचाता है और उनके भविष्य के रिश्तों और कामकाज पर गहरा प्रभाव डालता है।
अगर किसी बच्चे ने बाल शोषण का दर्द झेला है, तो देखभाल करने वाले की जिम्मेदारी है कि वह बच्चे को ठीक होने में मदद करे और भविष्य में ऐसा दुर्व्यवहार फिर न हो। यहां कुछ आसान तरीके दिए गए हैं:
बच्चों के साथ होने वाले शोषण को रोकने के लिए कुछ जरूरी कदम उठाए जा सकते हैं। अगर इन बातों पर अमल किया जाए, तो यह स्थिति को बदलने में मदद कर सकता है:
जो भी व्यक्ति बच्चे के साथ शोषण करता है, उसे उसके कृत्य के लिए जवाबदेह ठहराना जरूरी है। यह बाल शोषण को रोकने का पहला कदम है। इसके बाद, इस क्षेत्र में विशेषज्ञता रखने वाले पेशेवरों की मदद लेनी चाहिए। अगर शोषण करने वाला अपनी गलती नहीं मानता, तो मामले को तुरंत नजदीकी पुलिस स्टेशन में रिपोर्ट करना चाहिए।
कई मामलों में, आपको अपने बच्चे को डॉक्टर के पास लेकर जाना पड़ सकता है। इस दौरान सही सवाल पूछना बेहद जरूरी है ताकि स्थिति को बेहतर तरीके से समझा जा सके। कुछ जरूरी सवाल:
बाल शोषण एक गंभीर और खतरनाक मुद्दा है, जिसे बेहद संवेदनशीलता के साथ और तुरंत ध्यान देने की जरूरत होती है। यह बच्चे के लिए गहरा आघात बन सकता है, इसलिए स्थिति को संभालने के लिए सभी जरूरी कदम उठाना जरूरी है। अगर समय पर शोषण के संकेत पहचान लिए जाएं, तो बच्चे को भविष्य में बड़े मानसिक और शारीरिक दुष्प्रभाव से बचाया जा सकता है।
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