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बच्चे का नामकरण एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम होता है, जिसमें पेरेंट्स, नामकरण के पारंपरिक रीति रिवाज और एस्ट्रोलॉजी यानी ज्योतिष के नियमों के अनुसार अपने न्यूबॉर्न के लिए एक नाम चुनते हैं। यह एक औपचारिक और पवित्र मौका होता है, जिसमें रिश्तेदार और करीबी मित्र शामिल होते हैं। यह एक अद्भुत परंपरा है, जिसमें परिवार और करीबी रिश्तेदार साथ मिलकर नवजात शिशु के अच्छे स्वास्थ्य और अच्छे भविष्य के लिए उसे आशीर्वाद देते हैं।
नामकरण क्या है?
नामकरण या नाम रखने का कार्यक्रम एक हिंदू परंपरा है, जो कि 16 हिंदू संस्कारों में से सबसे महत्वपूर्ण संस्कारों में से एक है। नामकरण एक संस्कृत शब्द है, जिसमें नाम का अर्थ होता है बच्चे का नाम और करण का अर्थ होता है निर्माण। कुछ परंपराओं में नामकरण को पालनारोहण के नाम से भी जानते हैं। जिसका अर्थ होता है बच्चे को एक पालने में डालना। संस्कृत में पालना का अर्थ होता है झूला और आरोहण का मतलब होता है चढ़ना। तो यह एक औपचारिक कार्यक्रम है, जिसमें पूरे रीति-रिवाजों के साथ बच्चे का नाम रखा जाता है और उसके जन्म का उत्सव मनाया जाता है। यह कार्यक्रम न केवल धार्मिक रूप से काफी महत्वपूर्ण होता है, बल्कि कानूनी और सामाजिक रुप से भी यह काफी महत्व रखता है।
नामकरण कब और क्यों किया जाता है?
पारंपरिक रूप से बच्चे के जन्म के कुछ हफ्तों के अंदर उसका नामकरण कार्यक्रम किया जाता है। आदर्श रूप से यह जन्म के 11 दिन के बाद सूतिका या शुद्धिकरण के बिल्कुल पहले किया जाता है। सूतिका वह समय होता है, जब माँ और बच्चे की बहुत देखभाल की जाती है। इसलिए नामकरण के लिए जन्म के बाद के 11वें या 12वें दिन को सबसे पवित्र माना जाता है। हालांकि, 11वें दिन नामकरण करना कोई जरूरी नहीं है और पेरेंट्स अपने पंडित या ज्योतिषी की सलाह के आधार पर कोई भी एक पावन दिन चुन सकते हैं। इसलिए नामकरण जन्म के 10 दिन के बाद और पहले जन्मदिन से पहले कभी भी किया जा सकता है। बच्चे को एक नाम और पहचान देने के लिए नामकरण किया जाता है। इस कार्यक्रम के दौरान निभाए जाने वाले रीति रिवाज बच्चे को अच्छा स्वास्थ्य, लंबी और खुशहाल जिंदगी का आशीर्वाद देने के लिए होते हैं। साथ ही, इसी दिन उसके जीवन की भविष्यवाणी भी की जाती है।
हिंदू परंपरा के अनुसार नामकरण संस्कार कहाँ और कैसे किया जाता है?
नामकरण विधि घर में या एक मंदिर में संपन्न की जा सकती है। इसका चुनाव परिवार की इच्छानुसार और समाज के द्वारा अनुसरण किए जाने वाले विधि विधान के अनुसार होता है। कुछ लोग नामकरण संस्कार को बड़े पैमाने पर करना चाहते हैं। इसके लिए वे एक विशेष बैंक्वेट हॉल या पंडाल में इसकी व्यवस्था करते हैं, जिसमें बहुत सारे लोग शामिल होते हैं, वहीं कुछ लोग अपने परिवार और करीबी रिश्तेदारों के साथ एक छोटा सा कार्यक्रम करते हैं। हिंदू परंपरा में नामकरण संस्कार एक पंडित के द्वारा संपन्न किया जाता है। नामकरण संस्कार के लिए पंडित ही एक पवित्र दिन और शुभ समय को चुनते हैं, जिसे शुभ मुहूर्त के नाम से जाना जाता है। पंडित बच्चे के अच्छे भविष्य की कामना के लिए पूजा या हवन भी करते हैं, जिसमें प्रार्थना की जाती है और मंत्र उच्चारण भी किया जाता है। साथ ही वे बच्चे की भविष्यवाणी भी करते हैं। एक पीतल की थाली में चावल के दानों को फैलाया जाता है और उस पर बच्चे के पिता एक सुनहरी छड़ी से नवजात शिशु का नाम लिखते हैं। इस चुने हुए नाम को फिर बच्चे के दाहिने कान में पिता चार बार धीमी आवाज में बोलते हैं और साथ में प्रार्थना भी की जाती है। कुछ परिवारों में बच्चे की बुआ (पिता की बहन) बच्चे के कान में उसका नाम बोलती है। उसके बाद परिवार के बाकी के सदस्यों और मित्रों को उसका नाम बताया जाता है। कुछ समुदायों में यह पवित्र संस्कार कम से कम पाँच विवाहित महिलाओं की उपस्थिति में किया जाता है। ये महिलाएं हिंदू परम्पराओं के अनुसार कई तरह के रीति रिवाज पूरा करती हैं। ये महिलाएं बच्चे के स्वागत के लिए गीत गाती हैं। कुछ परिवारों में इस कार्यक्रम के दौरान बच्चे को पालने में रखा जाता है। परिवार के सदस्य बारी-बारी से बच्चे को झुलाते हैं और उसे आशीष देते हैं। इस कार्यक्रम में मेहमानों के लिए खास भोजन की व्यवस्था भी की जाती है।
बच्चे के लिए सही नाम चुनना
हिंदुओं में ऐसी मान्यता है, कि बच्चे के नाम का अर्थ उसके चरित्र को प्रभावित करता है और उसके भाग्य की संरचना तैयार करता है। ऐसा भी मानते हैं, कि अगर नवजात शिशु का नाम ग्रहों की स्थिति से मेल ना खाए, तो वह बच्चे के लिए दुर्भाग्य लेकर आ सकता है। इसलिए बच्चे के लिए सही नाम का चुना जाना बहुत जरूरी है। आमतौर पर पंडित, जन्म की तारीख या राशि के आधार पर नामकरण करने की सलाह देते हैं। इसलिए बच्चे के जन्म की तारीख और समय के आधार पर राशि से संबंधित एक विशेष अक्षर चुना जाता है और उसी अक्षर से शुरू होने वाला नाम बच्चे को दिया जाता है। ऐसे नाम को बच्चे के लिए भाग्यशाली माना जाता है।
हिंदू मान्यता के अनुसार नाम का पहला अक्षर बहुत जरूरी होता है और इसका चुनाव जन्म नक्षत्र पर आधारित होता है। बच्चे के जन्म के समय ग्रहों की स्थिति, चंद्र राशि और नक्षत्र जिसके अंतर्गत बच्चे का जन्म हुआ हो, उसे जन्म नक्षत्र कहते हैं। बच्चे के जन्म के महीने के स्वामी के नाम के आधार पर भी उसका नाम रखा जा सकता है या फिर किसी पूर्वज के नाम के आधार पर भी बच्चे का नाम रख सकते हैं। आमतौर पर बच्चे का नाम रखने के लिए, पाँच तथ्यों पर ध्यान दिया जाता है, जो कि इस प्रकार हैं:
नक्षत्रनम (चंद्र नक्षत्र के आधार पर) ,देवात्मनम (परिवार के कुल देवी या कुल देवता के आधार पर), मासनाम (महीना), सांसारिक नाम (वैश्विक नाम), राशि नाम (राशि)
आधिकारिक नाम और ज्योतिषीय नाम
आजकल कुछ पेरेंट्स अपनी सुविधा और आराम के आधार पर एस्ट्रोलॉजिकल नाम को व्यक्तिगत रखना चाहते हैं। नामकरण संस्कार के दौरान चुना गया नाम कभी-कभी ऑफिशियल नाम बन जाता है। लेकिन आजकल एक ऑफिशियल नाम रखने का चलन है और उस नाम को छोटा रूप देकर घर पर उसी नाम से पुकारा जाता है। पेरेंट्स के नाम को आपस में मिलाकर ऐसा किया जा सकता है। कुछ समुदाय लड़कों के लिए संस्कृत अक्षरों के सम अक्षरों पर आधारित नाम भी रखते हैं, वहीं लड़कियों के लिए विषम अक्षरों पर आधारित नाम को चुना जाता है, 11 एक ऐसा अंक है, जिसे दोनों के लिए अच्छा माना जाता है।
नामकरण संस्कार के लिए सही उपहार
बच्चे के नामकरण संस्कार के उपलक्ष्य पर उपहारों के रूप में लोग बच्चे को आशीष देते हैं। हर कोई इस समारोह में सबसे बेहतरीन उपहार लेकर जाना चाहता है। आपके बजट और परिवार के साथ आपके संबंध के आधार पर कई तरह के उपहार दिए जा सकते हैं। बच्चों की जरूरत के आधार पर भी उपहार का चुनाव किया जा सकता है।
- सोने और चांदी के जेवर
- सोने और चांदी के सिक्के
- गिफ्ट कूपन
- कैश
- खिलौने
- बच्चे की एक्सेसरीज जैसे – कॉट, बाथ टब या प्रैम
- कपड़े
- बेडिंग या कंबल
- बच्चे की जरूरत का सामान, जैसे साबुन, शैंपू आदि
- गिफ्ट हैंपर
- किताबें
नामकरण संस्कार परिवार में नए बच्चे के आगमन को सेलिब्रेट करने का एक बहुत ही खास तरीका है। यह रीति रिवाज और परंपराओं के अनुसार बच्चे पर आशीष बरसाने का एक तरीका भी है। इससे बच्चे के एक अच्छे और सुंदर भविष्य की नींव रखी जा सकती है।
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