डिस्क्लेमर: चूंकि हर गर्भावस्था अलग होती है और एलर्जी सभी बच्चों को नहीं होती, यह लेख उन माँओं के लिए है, जिनके बच्चों को कुछ विशेष खाद्य पदार्थों से एलर्जी है या फीडिंग सेशन के बाद वे चिड़चिड़े हो जाते हैं। एलर्जी के मामलों में शुरुआती छह हफ्तों के दौरान इन खाद्य पदार्थों से सख्ती से बचना चाहिए। इसके बाद स्तनपान कराने वाली मां थोड़ी-थोड़ी मात्रा में इनका सेवन कर सकती हैं और फिर धीरे-धीरे अपने सामान्य खानपान को फिर से शुरू कर सकती है।
अब चूंकि आप ब्रेस्टफीडिंग की दौर में हैं, आपको कुछ ऐसे खाद्य पदार्थों का ध्यान रखना चाहिए, जो आपके बच्चे में रिएक्शन का संभावित कारण बन सकते हैं। बच्चे के लिए, ब्रेस्टफीडिंग कराने वाली मां का खानपान बहुत जरूरी होता है। स्तनपान के दौरान उचित डाइट को मेंटेन करना जरूरी है, ताकि आपके बच्चे को सभी जरूरी पोषक तत्व और मां का दूध पर्याप्त मात्रा में मिल सके।
कुछ खाद्य पदार्थ ऐसे होते हैं, जिन्हें खाने के बाद कुछ बच्चों को गैस हो जाती है और वे परेशान हो जाते हैं। अगर आप ऐसा कोई पैटर्न देखती हैं, तो बेहतर यही है, कि कुछ समय के लिए उस खाने को न खाएं। इसलिए यहां पर एक लिस्ट दी गई है, जिसमें उन सभी खानों का जिक्र है जो आपको ब्रेस्टफीडिंग के दौरान नहीं खाने चाहिए।
चॉकलेट थियोब्रोमाइन से भरपूर होती है और इसे खाने के बाद कैफीन जैसा ही प्रभाव दिखता है। हालांकि लोगों को चॉकलेट खाना बहुत पसंद होता है, तो ऐसे में ब्रेस्टफीडिंग के दौरान इसकी मात्रा को कम कर सकते हैं। अगर आपको लगता है, कि आपके चॉकलेट खाने के कारण बच्चा बहुत अधिक परेशान हो रहा है, तो बेहतर है कि इसका सेवन न किया जाए। आपको कितनी चॉकलेट खानी चाहिए यह समझने का सबसे बेहतर तरीका है, अपने बच्चे के व्यवहार को समझना। अगर मां हर दिन 750 मिलीग्राम थियोब्रोमाइन का सेवन करती है, तो बच्चा चिड़चिड़ा और परेशान दिख सकता है और उसे सोने में दिक्कत हो सकती है।
कॉफी में बहुत सारा कैफीन होता है और इसमें से कुछ कैफीन ब्रेस्ट मिल्क में भी पहुंच सकता है। बच्चे बड़ों की तरह कैफीन को पचा नहीं सकते हैं, इसलिए उनके शरीर में मौजूद इस अत्यधिक कैफीन के प्रभाव के रूप में उनमें नींद की कमी और चिड़चिड़ापन दिख सकता है। जब कैफीन की मात्रा बहुत अधिक होती है, तो दूध में आयरन का स्तर कम हो सकता है और बच्चे में हीमोग्लोबिन का स्तर घट सकता है। इसलिए इसका सबसे बेहतरीन समाधान यह है, कि एक दिन में केवल दो से तीन कप कैफीन का सेवन किया जाए। थोड़ी मात्रा में कैफीन लेना ठीक है, क्योंकि इससे बच्चे के पेशाब में कैफीन की मौजूदगी नहीं दिखती है या न के बराबर दिखती है।
सिट्रस फल विटामिन ‘सी’ के बेहतरीन स्रोत होते हैं। लेकिन अपने एसिडिक कंपोनेंट के कारण ये बच्चे के पेट को इरिटेट कर सकते हैं। चूंकि उनका गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल ट्रैक्ट अपरिपक्व होता है, इसलिए वे इन एसिडिक कंपोनेंट को झेल पाने में सक्षम नहीं होते हैं। जिसके कारण डायपर रैश, खाना उगलना, चिड़चिड़ापन और अन्य कई तरह की तकलीफ हो सकती है। हालांकि, आपको अपने खाने से सिट्रस फलों को पूरी तरह से निकालने की जरूरत नहीं है। एक दिन में एक ग्रेपफ्रूट या एक संतरा खाना बेहतर है। लेकिन अगर आप इसे अपने खाने से पूरी तरह से हटा देना चाहते हैं, तो आपको अनानास, पपीता और आम जैसे विटामिन ‘सी’ से भरपूर फलों का सेवन करना होगा।
अगर आपने रात के खाने में ब्रोकोली खाई थी, तो अगले दिन अपने बच्चे में गैस की परेशानी देखकर आपको आश्चर्य नहीं होना चाहिए। प्याज, बंद गोभी, फूल गोभी और खीरा जैसे गैस बनाने वाले खाद्य पदार्थों को भी ब्रेस्टफीडिंग के दौरान न खाना ही सबसे बेहतर है।
मां के दूध के माध्यम से, अल्कोहल मां के शरीर से बच्चे के शरीर में चला जाता है और उसके न्यूरोलॉजिकल विकास को प्रभावित करता है। आपको कम से कम दो वर्षों के लिए शराब के सेवन को पूरी तरह से बंद कर देना चाहिए। अमेरिकन एकेडमी ऑफ पेडिएट्रिक्स के अनुसार, अल्कोहल का सेवन बहुत ही सीमित होना चाहिए, जो कि स्तनपान कराने वाली मां के वजन के प्रति किलो पर 0.5 ग्राम से अधिक नहीं होना चाहिए। अल्कोहल के सेवन के 2 घंटे या उससे अधिक समय के बाद, मां बच्चे को ब्रेस्टफीडिंग करा सकती है। इससे दूध में इसके जाने की संभावना कम हो जाती है। अगर इसका स्तर इससे अधिक होता है, तो ऐसे में मिल्क-लेट डाउन रिफ्लेक्स और रिलीज ऑफ मिल्क में कमी देखी जा सकती है। अगर आप ड्रिंक करने का प्लान कर रही हैं, तो आपको अपने बच्चे को ब्रेस्टफीड कराने से पहले कम से कम 2 घंटों तक इंतजार करना चाहिए।
अगर आप पारा यानी मरक्यूरी की अधिक मात्रा वाली मछली या किसी अन्य खाद्य पदार्थ का सेवन करती हैं, तो यह ब्रेस्ट मिल्क में दिखेगा। जब ब्रेस्ट मिल्क में मरक्यूरी की अधिक मात्रा होती है, तो यह आपके बच्चे के न्यूरोलॉजिकल डेवलपमेंट को प्रभावित कर सकता है। आपको मछली और डिब्बाबंद टूना को भी सीमित मात्रा में खाना चाहिए और इसका सेवन सप्ताह में 2 बार से अधिक नहीं करना चाहिए। जिन मछलियों में पारा अधिक मात्रा में होता है, उन्हें पूरी तरह से छोड़ देना ही सबसे बेहतर है।
जब इन हर्ब्स को अधिक मात्रा में खाया जाता है, तो ये ब्रेस्ट मिल्क के प्रोडक्शन को घटा सकते हैं। इसलिए जब आप इस तरह के हर्ब्स का सेवन करती हैं, तो आपको दूध के प्रोडक्शन की मात्रा पर नजर रखनी चाहिए, विशेषकर जब आपका बच्चा ऐसे पड़ाव पर होता है, जब उसे सामान्य से अधिक दूध की जरूरत होती है। दूध के प्रोडक्शन को रोकने के लिए, अक्सर मांएं ठोस आहार देने के बाद पिपरमेंट से बनी चाय पीती हैं। सेज भी एक ऐसा ही हर्ब है, जिसके सेवन से स्तनपान प्रभावित हो सकता है।
जब तक आप अपने बच्चे को ठोस आहार देना शुरू नहीं करती, तब तक आपको मूंगफली खाने से बचना चाहिए, विशेषकर अगर आपके परिवार में मूंगफली से एलर्जी होने का मेडिकल इतिहास रहा है तो। मूंगफली में मौजूद एलर्जिक प्रोटीन, ब्रेस्ट मिल्क तक पहुंच सकते हैं और आपके बच्चे के शरीर में भी जा सकते हैं। इससे बेबी को घरघराहट, हाइव्स या रैशेस हो सकते हैं। अगर आप थोड़ी कम मात्रा में भी इसका सेवन करती हैं, तो भी इसमें मौजूद एलर्जेन्स 1 से 6 घंटे के अंदर-अंदर दूध में पहुंच सकते हैं।
लहसुन की महक, ब्रेस्टमिल्क की महक को प्रभावित कर सकती है। जहां कुछ बच्चों को यह पसंद होता है, वहीं कुछ को यह बिल्कुल नापसंद होता है। इसलिए अगर आपका बच्चा दूध पीने के दौरान अनकंफर्टेबल हो रहा है, तो इसका कारण लहसुन भी हो सकता है। कुछ बच्चों को जब लहसुन की तेज महक का पता चलता है, तब वे ब्रेस्ट को देखकर चिड़चिड़े हो सकते हैं और दूध पीने से मना कर सकते हैं।
कुछ बच्चे गाय के दूध के प्रति असहनशील होते हैं। जब मां गाय का दूध पीती है या डेयरी प्रोडक्ट्स का सेवन करती है, तब जो एलर्जेन्स ब्रेस्ट मिल्क में पहुंच जाते हैं, वे बच्चे को परेशान कर सकते हैं। डेयरी प्रोडक्ट्स के सेवन के बाद अगर आपके बच्चे में कोलिक और उल्टी जैसे लक्षण दिखते हैं, तो इसका मतलब है, कि आपको इन्हें खाना कुछ समय के लिए बंद कर देना चाहिए। दूसरे लक्षणों में, त्वचा संबंधी समस्याएं, एक्जिमा और नींद में परेशानियां शामिल हैं। जो बच्चे डेयरी प्रोडक्ट के प्रति इनटॉलरेंट होते हैं, उनमें सोया के प्रति एलर्जी भी दिखती है। इसलिए बेहतर यही है, कि ऑर्गेनिक मीट, हाई फैट डेयरी और पोल्ट्री का चुनाव किया जाए। क्योंकि इनमें कोई केमिकल, ग्रोथ हॉर्मोन, या पेस्टिसाइड नहीं होते हैं।
कुछ बच्चों को स्पाइसी खाने से परेशानी होती है। वहीं कुछ बच्चे बिल्कुल आराम से रहते हैं। बच्चों को तकलीफ देने के लिए थोड़ी सी मिर्ची भी काफी होती है। ये बच्चे काफी लंबे समय तक परेशान रह सकते हैं। इसलिए अगर आपको अपने बेबी की असुविधा महसूस होती है, तो आपको अपने खाने में मसालों की मात्रा को कम कर देना चाहिए।
कुछ शिशुओं और बच्चों में मक्का के प्रति एलर्जी होना बिल्कुल आम है। इससे शिशुओं में रैशेस और तकलीफ हो सकती है। अगर आप उसमें एलर्जिक रिएक्शन देखती हैं, तो आपको अपने खाने में से मक्का को पूरी तरह से हटा देना चाहिए।
खाने की एक और आम समस्या है – ग्लूटेन इन्टॉलरेंस। इसके नतीजे के रूप में सेंसिटिव पेट, खूनी मल और चिड़चिड़ापन दिखते हैं। अन्य सभी खाद्य पदार्थों की तरह ही, अपने भोजन में से गेहूं को हटाकर इस एलर्जी से बचा जा सकता है। कई मांएं समस्या पैदा करने वाले ज्यादातर खाद्य पदार्थों से बचती हैं और बाद में एक-एक करके इन्हें दोबारा शामिल करती हैं।
अगर आपके परिवार में एलर्जी का इतिहास रहा है, तो आपके बच्चे में भी एलर्जी होने की संभावना काफी बढ़ जाती है। अगर आपके नजदीकी परिवार में ऐसा कोई व्यक्ति है, जिसे अंडे या शेल फिश से एलर्जी है, तो ब्रेस्टफीडिंग के दौरान ऐसे खाद्य पदार्थों से बचना ही सबसे बेहतर है। अंडे से एलर्जी होना, विशेषकर एग व्हाइट्स के प्रति एलर्जी होना बहुत ही आम है।
अगर सूशी में हाई मरक्यूरी फिश न हो, तो यह सुरक्षित है, क्योंकि अधपके खाने में मौजूद लिस्टीरिया बैक्टीरिया ब्रेस्ट मिल्क के माध्यम से नहीं फैलते हैं। लेकिन, अगर आप लो मरकरी मछली युक्त सूशी खाने की प्लानिंग कर रही हैं, तो आपको यह बात याद रखनी चाहिए, कि आपको सप्ताह में 3 से अधिक बार इसे नहीं खाना चाहिए। जिन मछलियों में मरक्यूरी की मात्रा कम होती है, वे हैं सैलमन, तिलापिया, फ्लाउंडर, पोलोक, ट्राउ और कैटफिश।
आपके बच्चे को इनमें से केवल कुछ के प्रति ही एलर्जी हो सकती है या फिर हो सकता है, कि उसे इनमें से किसी भी खाने से कोई तकलीफ न हो। अब चूंकि आपको पता है, कि ब्रेस्टफीडिंग के दौरान किन खाद्य पदार्थों से बचना चाहिए, तो ऐसा जरूरी नहीं है, कि इन सभी को खाना छोड़ दिया जाए। लेकिन अपने खानपान में से किसी भी खाद्य पदार्थ को हटाने से पहले, डॉक्टर से बात करना सबसे बेहतर है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि उदाहरण के लिए, अगर आप सभी डेयरी प्रोडक्ट्स को खाना छोड़ देती हैं, तो इससे न्यूट्रिशनल इम्बैलन्स हो सकता है और आपको इसके बेहतर विकल्प के लिए एक न्यूट्रिशनिस्ट से परामर्श लेने की जरूरत पड़ सकती है।
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