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कुत्तों को इंसानों का बेस्ट फ्रेंड माना जाता है और आपका बेस्ट फ्रेंड आपको नुकसान नहीं पहुंचाएगा, यह समझना वाजिब है। लेकिन, यह याद रखना जरूरी है, कि कुत्तों को भी डर लग सकता है या वे जरूरत से ज्यादा उत्साहित भी हो सकते हैं और जाने-अनजाने में आप पर या आपके बच्चे पर हमला कर सकते हैं और इसके लिए उनका तरीका वही होता है जिसमें वे माहिर होते हैं – काटना। यह भी एक सच है, कि बड़ों की तुलना में बच्चों को डॉग बाइट का खतरा अधिक होता है। ऐसी चोट के कारण रिकंस्ट्रक्टिव सर्जरी या हॉस्पिटल में भर्ती करने की जरूरत भी बच्चों को भी अधिक होती है।
आप यह पहले से नहीं जान सकती हैं कि बच्चे को कुत्ता क्यों और कब काट सकता है। कुत्ते के काटने के कुछ कारण हो सकते हैं। कुत्ते पैक एनिमल्स होते हैं और उनके ज्यादातर व्यवहार के लिए उनका प्राकृतिक स्वभाव जिम्मेदार होता है। कुत्तों के काटने की जितनी भी घटनाएं घटती हैं, उनमें से ज्यादातर घटनाओं में 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चे और वैसे कुत्ते शामिल होते हैं, जिनके साथ बच्चे का दोस्ताना व्यवहार होता है। इसके कुछ कारण यहां पर दिए गए हैं:
अगर त्वचा पर छिलने-कटने जैसे कोई भी निशान नहीं दिख रहे हों, तो आमतौर पर ऐसे में डॉक्टर से मिलना जरूरी नहीं है। लेकिन फर्स्ट एड देने के बाद, मेडिकल सलाह लेना और सावधानी बरतना सबसे अच्छा होता है। यदि एक पालतू कुत्ता बच्चे को काट ले, तो ऐसे में आपको निम्नलिखित बातों को ध्यान देना चाहिए:
कुत्ते के काटने पर बच्चे को होने वाले शारीरिक दर्द के अलावा थोड़ी भावनात्मक चोट भी लगती है।
कुत्ते के काटने को मामूली और गंभीर चोट में बांटा जा सकता है। जहां मामूली चोट में केवल डॉक्टर से चेकअप कराने और बेसिक फर्स्ट एड की जरूरत पड़ती है, वहीं गंभीर चोट में सर्जरी की जरूरत भी पड़ सकती है। चूंकि गंभीर चोट आमतौर पर सिर, गर्दन और चेहरे पर लगती है, जहां नसें और हड्डियां आसानी से प्रभावित हो जाती है, इस तरह की शारीरिक चोट को ठीक करने के लिए रिकंस्ट्रक्टिव ऑपरेशन की भी जरूरत पड़ सकती है।
कुत्ते के काटने से बच्चे को जिस मानसिक पीड़ा का अनुभव होता है, वह आजीवन रह सकती है। इससे हमेशा के लिए कुत्तों के साथ-साथ अन्य पालतू जानवरों के प्रति बच्चे का नजरिया बदल भी सकता है। इमोशनल ट्रॉमा के लिए बच्चे को जांचने और काउंसलिंग लेने से मदद मिल सकती है।
फर्स्ट एड देने के बाद, आगे आने वाली किसी भी तरह की जटिलता से बचने के लिए, चोट गंभीर हो या ना हो, डॉक्टर से परामर्श लेना सबसे अच्छा होता है। चोट की गंभीरता के आधार पर डॉक्टर आपके बच्चे को टिटनेस का इंजेक्शन, एंटी रेबीज वैक्सीन और अगर जरूरी हो तो एंटी रेबीज इम्यूनोग्लोबुलीन दे सकते हैं। रेबीज वैक्सीनेशन का स्टैंडर्ड शेड्यूल 5 डोज का होता है, जो कि 0, 3, 7, 14 और 30 दिनों पर दिए जाते हैं। यहां पर 0 का अर्थ है वैक्सीनेशन की शुरुआत का दिन। जिन लोगों को पहले वैक्सीन नहीं दी गई हो, उन्हें रेबीज वैक्सीन के 1ml की पांच खुराक दी जानी चाहिए। 5-डोज के इस कोर्स की पहली खुराक कुत्ते के काटने पर जितनी जल्दी संभव हो सके दे देनी चाहिए। उस दिन को फिर पोस्ट-एक्स्पोजर प्रोफाइलैक्सिस श्रृंखला का पहला दिन माना जाता है। इसके बाद शेष डोज पहले डोज के तीसरे, सातवें, चौदहवें और अट्ठाइसवें दिनों पर दी जानी चाहिए। इंफेक्शन से बचने या नियंत्रण करने के लिए, डॉक्टर एंटीबायोटिक भी प्रिस्क्राइब करेंगे। अगर चोट के लिए रिकंस्ट्रक्टिव सर्जरी की जरूरत हो और खासकर अगर यह चेहरे या गर्दन पर हो, तो प्लास्टिक सर्जन को भी बुलाया जाएगा।
भारत में चूंकि बड़ी संख्या में कुत्तों और बिल्लियों में रेबीज फैला हुआ है, तो ऐसे में इलाज शुरू करना और काटने वाले कुत्ते या बिल्ली को 10 दिनों के लिए निगरानी में रखना अनिवार्य है।
यहां पर कुछ सरल टिप्स दिए गए हैं, जिनकी मदद से आप अपने बच्चे को कुत्ते के काटने और उसके हमलों से सुरक्षित रख सकते हैं:
अगर आपके बच्चे को कुत्ता काट लेता है, तो घबराएं नहीं। उसे फर्स्ट एड दें और आगे की जांच के लिए उसे नजदीकी अस्पताल या डॉक्टर के क्लीनिक पर लेकर जाएं।
यह जानकारी केवल एक गाइड है और यह किसी क्वालिफाइड प्रोफेशनल की मेडिकल सलाह का विकल्प नहीं है।
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