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बोलना या संचार एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ कुछ बच्चों को परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। कुछ बच्चों में बोलने से जुड़ी समस्याएं समय के साथ दूर हो जाती हैं जबकि कुछ बच्चों को इसके लिए उपचार की आवश्यकता हो सकती है। माता-पिता होने के नाते, आपको बोलने में समस्या से जुड़े संकेतों को नजरंदाज नहीं करना चाहिए और जरूरत पड़ने पर किसी एक्सपर्ट की मदद भी लेनी चाहिए।
ऐसा तब होता है जब बच्चा बोलते समय कुछ स्वरों को छोड़ देता है। उदाहरण के लिए, बच्चा ‘मैं स्कूल जाता हूँ’ के बजाय ‘मैं कूल जाता हूँ’ कहता है।
ऐसा तब होता है जब बच्चा बोलते वक्त एक ध्वनि की जगह दूसरी ध्वनि का इस्तेमाल करता है। उदाहरण के लिए, बच्चा ‘मुझे तेत पसंद है’ कहता है, जब उसके कहने का मतलब ‘मुझे केक पसंद है’ होता है। बच्चे ने यहाँ ‘क’ की ध्वनि को ‘त’ ध्वनि से बदल दिया है। ऐसे में बच्चा ‘ज’ और ‘र’ ध्वनि की भी ‘द’ और ‘ल’ ध्वनि के साथ अदला बदली कर सकता है। उदाहरण के लिए, ‘जोर से धक्का मारा’ को वह ‘दोल से धक्का माला’ कह सकता है।
ऐसा तब होता है जब बच्चा ‘स’ और ‘र’ ध्वनि का उच्चारण ठीक से नहीं कर पाता है। इसे लिस्पिंग के नाम से भी जाना जाता है। उदाहरण के लिए, ‘रस्सी’ को ‘वस्सी’, ‘सात’ को ‘थात’ कहना आदि।
जैसे-जैसे हवा फेफड़ों से ऊपर उठती है और वोकल कॉर्ड्स को वाइब्रेट करती है, आवाज या ध्वनि निकलना शुरू हो जाती है। वॉइस फॉर्मेशन की इस प्रक्रिया को फोनेशन के नाम से जाना जाता है। जैसे ही आवाज गले, नाक या मुँह से गुजरती है, वह बदल जाती है। इसे प्रतिध्वनि या रेजोनेंस के नाम से जाना जाता है। यदि बच्चा वॉइस डिसऑर्डर से पीड़ित है, तो उसे फोनेशन या रेजोनेंस या फिर दोनों से संबंधित परेशानियां हो सकती हैं।
अ. अगर बच्चे की आवाज कठोर या कर्कश है या फिर उसके पिच में बदलाव महसूस होता है, तो उसे फोनेशन डिसऑर्डर है।
ब. अगर बच्चा बोलते वक्त नाक का इस्तेमाल करता है तो इसका मतलब है की उसे रेजोनेंस डिसऑर्डर है। इस तरह का डिसऑर्डर साउंड एनर्जी में संतुलन न होने के कारण होता है क्योंकि आवाज गले, नाक या मुँह के खाली स्थानों से होकर जाती है।
ऐसा तब होता है जब बच्चा बोलते समय झिझकता, उसे दोहराता या बोलने में ज्यादा समय लेता है, इसका मतलब होता है कि बच्चा बोलते वक्त हकलाता है। यह फ्लुएंसी मे विसंगति से होता है जिसमें बोलने का प्रवाह बिगड़ जाता है। हकलाने की स्थिति बच्चों में अक्सर तब देखी जाती है जब वे थक जाते हैं, एक्साइटेड (उत्तेजित) होते हैं या फिर किसी चुनौतीपूर्ण परिस्थिति का सामना कर रहे होते हैं।
यह डिसऑर्डर शरीर के नर्वस सिस्टम से संबंधित होता है। अगर बच्चे के दिमाग को उसके शरीर के ऐसे अंग जो स्पीच प्रोडक्शन में मदद करते है, उनके साथ कोऑर्डिनेट करने में परेशानी होती है तो वो भले ही भाषा और बोली को समझ ले मगर उसे बोलने में कठिनाई का सामना करना पड़ता है। उदाहरण के तौर पर शब्दों का कभी-कभी गलत उच्चारण, जीभ, होंठ और जबड़े से कोऑर्डिनेशन में कठिनाई आदि शामिल हैं।
बच्चों में इस परेशानी के इलाज के लिए, स्पीच थेरेपी की मदद ली जा सकती हैं। कभी-कभी, हियरिंग टेस्ट और शारीरिक जांच से बच्चों में इस परेशानी का पता नहीं चलता इसलिए स्पीच लैंग्वेज पैथोलॉजिस्ट काम में आते है। ज्यादातर स्पीच संबंधी उपचार में एक थेरेपिस्ट से परामर्श करना चाहिए, जो बच्चों को बोलते वक्त ऑब्जर्व करेगा ताकि वह उनकी परेशानी को पहचान सके और उसके हिसाब से इलाज कर सके। उपचार में साँस लेने का अभ्यास, आवाज का अभ्यास, और बच्चे के बोलते वक्त मांसपेशियों को आराम देने का प्रयास शामिल होता हैं। ये सब ओरल मोटर एक्सरसाइज का हिस्सा हैं।
माता-पिता के तौर पर आप अपने बच्चे को किसी भी परेशानी या बीमारी से लड़ने का आत्मविश्वास देकर उसके जीवन में बदलाव ला सकते हैं। इसलिए, स्पीच डिसऑर्डर के लक्षणों पर ध्यान दें और उन्हें दूर करने या कम करने के लिए जरूरी कदम उठाएं।
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