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माता पिता अपने बच्चोंं को तकलीफ में नहीं देख सकते, इसलिए उनके खानपान और सेहत की बाकी बातों के साथ-साथ बच्चोंं की डेंटल केयर का खयाल रखना भी जरूरी होता हैं। जी हाँ, हम डेंटल केयर की बात इसलिए कर रहे हैं, क्योंकि कभी कभी खराब दांतों के कारण बच्चोंं को बहुत परेशानी हो जाती है। अपने बच्चे को किसी आने वाली समस्या से बचाने के लिए पहले आपको इसके बारे में जानना बहुत जरूरी है। यह आर्टिकल आपको दांतों से जुड़ी सभी महत्वपूर्ण बातों के बारे में बताएगा और आपको बच्चों के दांतों को कैसे साफ और सुरक्षित रखना है, ये भी बताएगा।
जब बच्चा चार से छह महीने का रहता है तो उसका पहला दांत निकलना शुरू हो जाता है और उसके साथ ही उसके सड़ने का खतरा भी! हमारा मुँह बहुत सारे बैक्टीरिया के लिए एक एंट्री प्वाइंट का काम करता है। मुँह द्वारा ही बहुत से जर्म्स हमारे शरीर में प्रवेश करते है। इसलिए मुँह को साफ रखना बहुत जरूरी होता है, जिसके लिए ब्रश करना, फ्लॉस करना और कुल्ला करना अनिवार्य है। लगभग 57% बच्चोंं के दांत किशोर उम्र के होने तक सड़ने लगते हैं और 25% लोगों के दांत 65 साल की उम्र तक गिर जाते हैं। ऐसा बढ़ती उम्र के कारण नहीं बल्कि सड़न और ओरल हेल्थ के संबंध में की जाने वाली लापरवाही के कारण टूटता है। इतना ही नहीं, ओरल हेल्थ पर ध्यान न देने के कारण बांझपन की समस्या और यहाँ तक कि कैंसर होने का खतरा होता है।
नीचे कुछ ऐसी चीजें लिखी हैं जो बच्चोंं को अपने दांतों को हेल्दी रखने में मदद करती है आइए जानते हैं:
बच्चों को दिन में दो बार ब्रश करने की आदत डालें। हर बार लगभग 3 मिनट तक उन्हें ब्रश करने को कहें। सामने के दांतों को साफ करना जरूरी होता है, लेकिन पीछे के दांतों को साफ करना भी उतना ही जरूरी है।
मार्केट में बच्चोंं के लिए हजारों तरह के टूथब्रश मिलते हैं। अगर आपके बच्चे को जानवर पसंद है तो आप उसके लिए जानवर के खिलौने जैसा दिखने वाला टूथब्रश ले सकती हैं। अपने बच्चे की पसंद के हिसाब से आपको कई टूथब्रश मिल जाएंगे, मगर उसे खरीदते समय यह ध्यान रखें की उसके ब्रिसल्स नरम हों, अगर ब्रिसल्स कड़े हुई तो बच्चे के मसूड़े छिल सकते हैं और उनमें से खून भी आ सकता है। आप बच्चे के टूथब्रश को हर तीन महीनो में बदलती रहें।
दो साल से छोटे बच्चों को चावल के दाने जितना टूथपेस्ट ब्रश में लगा कर दें। और दो साल से बड़े बच्चों के लिए मटर के दाने जितना टूथपेस्ट काफी होगा। अगर बच्चा दो साल से बड़ा है और खुद से थूक सकता है तो उसे फ्लोराइड बेस्ड टूथपेस्ट दें क्योंकि इससे दांतों की सड़न कम होती है। पहले, दो साल से छोटे बच्चोंं को टूथपेस्ट नहीं दिया जाता था। मगर उनके खाने में शुगर की मात्रा बढ़ने की वजह से दो साल से छोटे बच्चों को भी टूथपेस्ट से ब्रश कराने की सलाह दी जाती है।
बच्चोंं के दांतों और मुँह की सफाई फ्लॉस के बिना अधूरी होती है। आप अपने बच्चे का दूसरा दांत निकलने के बाद फ्लॉस करने में मदद कर सकती हैं। शुरुआत में फ्लॉस स्टिक की मदद लें क्योंकि यह बच्चे के मुँह में आसानी से उपयोग की जा सकती है। एक बार जब बच्चा बड़ा हो जाए, तब वो खुद भी स्ट्रिंग फ्लॉस का इस्तेमाल कर सकता है।
डेंटिस्ट के पास जाना बच्चों को पसंद नहीं होता, मगर समय-समय पर डेंटल चेक-अप करवाना जरूरी होता है, अन्यथा दांतों में नीचे बताई गई समस्याएं हो सकती हैं:
बच्चोंं के दांतों में सड़न यानी कैविटी बहुत जल्दी हो जाती है, क्योंकि वे अधिक मीठा खाते हैं। इसलिए, डेंटिस्ट के पास जाने से दांतों की सड़न के बारे में शुरुआती दौर में ही पता चल जाएगा जो बाद में महंगे इलाज से बचा लेगा।
कुछ बच्चों के दांत आड़े-टेढ़े निकलते हैं। ज्यादातर ऐसे मामलों में लोगों के दांत ठीक हो जाते हैं, मगर कभी-कभी इस परेशानी को सही करने के लिए डेंटिस्ट की जरूरत पड़ती है। और यह जितनी जल्द हो, इसके ठीक होने की संभावना उतनी ही ज्यादा होती है।
कई टूथपेस्ट ब्रांड में फ्लोराइड होता है। हालांकि, यदि आपके बच्चे की ब्रश करने की तकनीक गलत है, तो उसे फ्लोराइड की कमी हो सकती है। डेंटिस्ट को दिखाने से इस परेशानी का पता चल सकता है और बच्चे को ऊपर से लगाने के लिए फ्लोराइड सॉल्यूशन दिया जा सकता है।
डेंटिस्ट के पास जाने से तो कई बार वयस्क भी हिचकिचाते हैं। इसलिए बच्चे को शुरुआत से ही डेंटिस्ट के पास ले जाएं और उसे सारी चीजों से परिचित कराएं। बच्चे को उस माहौल की आदत होने दें और उसके मन से डेंटिस्ट का डर निकलने में मदद करें।
अगर सोने के पहले बच्चा ब्रश नहीं करेगा तो दांतों के बीच में फंसे खाने से बनने वाले एसिड से सड़न हो सकती है। ब्रश करने के बाद बच्चोंं को रात में कुछ भी खाने या पीने न दें।
बच्चोंं के लिए दांतों का इलाज करवाना मुश्किल होता है, क्योंकि वो अस्पताल का नाम सुनते ही डर जाते हैं। मगर उनके इलाज के लिए डेंटिस्ट ही सबसे अच्छा विकल्प होते हैं। वे इस बात का ध्यान रखते हैं कि बच्चे को दर्द न हो। इसके अलावा आप भी अपनी तरफ से बच्चे को शांत करने और उनके मन से डर हटाने के लिए बहुत कुछ कर सकती हैं।
अपने बच्चे के आत्मविश्वास को बढ़ाएं और उसे यकीन दिलाएं कि सब कुछ ठीक होगा। अक्सर पहली बार डेंटिस्ट के पास जाने की घबराहट इसलिए होती है, क्योंकि उसे इसके बारे में कुछ पता नहीं होता है। जब बच्चे का इलाज हो जाए तो उससे बात करें और उसकी हिम्मत को बनाएं रखें और उसे बताएं कि सब कुछ सही हो गया है।
कोई कहानी या क्लिनिक के बारे में कोई दिलचस्प बात बता कर बच्चोंं का ध्यान भटकना कई पेरेंट्स की पसंदीदा तरकीब होती है। बहुत बार बच्चे अपने अपॉइंटमेंट के पहले घबरा जाते हैं, ऐसे में उनका ध्यान भटकाना अच्छा रहता है।
जब कोई भी तरकीब काम न करे, तो मोबाइल फोन बहुत काम आता है। बच्चोंं के मनपसंद वीडियो और गेम्स फोन में रखें और साथ में एक हेडफोन या इयरफोन भी उसके मनोरंजन के लिए साथ रखें।
अगर बच्चे के दांत एक बराबर न हों और ऊपर के दांत नीचे के दांत से न मिलते हों तो ऑर्थोडोंटिक ट्रीटमेंट यानी दांतों को एक सीध में करने इलाज की आवश्यकता होती है। हर छह महीने पर डेंटिस्ट से मिलने से ऐसी समस्या का पता जल्दी चल जाता है। कुछ डेंटिस्ट अपने काम के साथ-साथ ऑर्थोडोंटिक ट्रीटमेंट का भी काम करते हैं और कुछ उसमें माहिर होते हैं। कुछ मामलों में, इसके लक्षण स्पष्ट होते हैं, जैसे की खाते और बोलते वक्त मसूड़ों में दर्द और उभरे हुए दांत।
बच्चोंं को कम उम्र से ही दांतों की साफ-सफाई सिखाने से कैविटी से बचाव किया जा सकता है। कुछ ऐसी भी चीजें होती है जिन्हे नजरंदाज करने की वजह से ऑर्थोडोंटिक उपचार करवाने की नौबत आ सकती है। अंगूठा चूसने की आदत के वजह से भी दांत आड़े-टेढ़े निकलते हैं। इसके अलावा दूध के दांत जल्दी टूटने की वजह से भी परेशानी होती है। अगर बहुत सारे दूध के दांत समय के पहले टूट जाएं तो दांत उल्टे सीधे तरीके से निकलते है।
डेंटल केयर बच्चों के दांतों को सड़न से बचाने में मदद करती है। अपने बच्चे को हर छह महीने पर डेंटिस्ट के पास ले जाएं और उसे नियमित रूप से ब्रश करवाने की आदत डालें।
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