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पेरेंट्स की जिम्मेदारी बहुत ही चुनौतीपूर्ण होती है, खासकर पहले बच्चे के साथ। जब बच्चा बड़ा होता है, तब न केवल आप बच्चे के शारीरिक पहलू को लेकर अलर्ट रहते हैं, जैसे उसका खान-पान आदि, बल्कि आप उसकी मानसिक कुशलता को लेकर भी चिंतित होते हैं। पेरेंट्स को उनके बच्चों को देने वाले लाड़-प्यार और सख्ती के बीच एक संतुलन बनाने की जरूरत होती है, क्योंकि इनमें से किसी की भी अधिकता होने पर बच्चों के मानसिक विकास को नुकसान हो सकता है।
इस संदर्भ में पेरेंट्स जिस पहली बाधा का सामना करते हैं, वह आमतौर पर बच्चे को स्कूल में डालने के बाद सामने आता है। निश्चित रूप से कभी न कभी आपका बच्चा स्कूल जाने से मना जरूर करेगा। इस समस्या को स्कूल रिफ्यूजल का नाम दिया जाता है और यह काफी हद तक एक आम समस्या भी है। ऐसी चुनौतियों से निपटना कठिन हो सकता है, लेकिन यह असंभव नहीं है। पेरेंट्स को बच्चे के व्यवहार के पीछे के संभावित कारणों का पता लगाना चाहिए, ताकि बच्चा स्कूल जाने को लेकर अधिक सहज महसूस कर सके। यह लेख आपको स्कूल फोबिया यानी स्कूल को लेकर लगने वाले डर के कई पहलुओं को समझने में मदद करेगा। पेरेंट्स इससे कैसे निपट सकते हैं और बच्चों को इसे मैनेज करने में कैसे मदद कर सकते हैं, यह जानने के लिए आपको यह लेख जरूर पढ़ना चाहिए।
जब बच्चा किसी कारणवश स्कूल जाने से मना करता है, तो उसे स्कूल रिफ्यूजल सिंड्रोम कहा जाता है। बच्चा स्कूल नहीं जाना चाहता है या डर या किसी अन्य कारण से स्कूल जाने से मना कर देता है। उसे स्कूल अवोइडेंस डिसऑर्डर भी हो सकता है, जो कि शारीरिक लक्षण के रूप में भी दिख सकता है, जैसे सुबह के समय बीमार होना या उदासीनता। एंग्जायटी के कारण बच्चा घर पर रहना ही अधिक पसंद करता है और स्कूल जाने के बजाय कुछ और काम करना उसे अच्छा लगता है।
बच्चे को स्कूल फोबिया होने के पीछे कई तरह के कारण हो सकते हैं और इसे बच्चे के नजरिए से समझना जरूरी है। स्कूल रिफ्यूजल सिंड्रोम के कुछ आम कारण यहाँ पर दिए गए हैं:
स्कूल एक ऐसी जगह है, जहां पर लगातार मूल्यांकन होता है और यहां पर बच्चे की हर क्षमता को मापा जाता है और उसे दर्शाया जाता है। अगर बच्चा किसी खास दिन पर स्कूल जाने से मना करता है, जैसे कि स्पोर्ट्स डे या जरूरी पब्लिक स्पीकिंग डे, तो हो सकता है कि वह किसी दबाव में परफॉर्म करने को लेकर घबराहट महसूस कर रहा हो और इसलिए वह इन सब से बचना चाहता हो।
ना सिर्फ शिशु, बल्कि बड़े बच्चे भी सेपरेशन एंग्जायटी (दूर रहने की घबराहट) का अनुभव करते हैं। जब बच्चे का पालन पोषण एक बेहद केयरिंग पेरेंट्स के द्वारा होता है, तब कम देखभाल वाले वातावरण में रहने का अनुभव बच्चे के लिए कठोर हो सकता है।
बच्चों में सीखने में कठिनाई या एकेडमिक समस्याएं आम होती हैं और इनसे जुड़ा दबाव इस हद तक बढ़ सकता है, कि बच्चा स्कूल जाने से ही बचना चाहे।
स्कूल एक ऐसी जगह है, जहां बच्चे को अन्य कई लोगों के साथ मिलना-जुलना पड़ता है, जिसमें उसके हमउम्र दूसरे बच्चे भी शामिल हैं। बच्चों के बीच सामाजिक आइसोलेशन, बुली करना या लड़ाई-झगड़े आम होते हैं। ऐसे में बच्चा स्कूल जाने से बचना चाहता है।
अगर बच्चे को किसी शिक्षक का व्यवहार पसंद ना हो, तो वह स्कूल जाना नहीं चाहता है।
माता-पिता से अलगाव, किसी पारिवारिक सदस्य की मृत्यु या तलाक जैसी दुःखद घटनाओं के कारण बच्चे स्कूल जाने से बचना चाहते हैं।
किसी नए स्कूल या किसी नई जगह में जाने से बच्चे को एडजस्ट करने में कठिनाई हो सकती है और वह स्कूल जाने के बजाय घर के कंफर्टेबल वातावरण में रहना अधिक पसंद कर सकता है।
घर पर रहने का मतलब होता है, कि बच्चे को माता पिता के साथ बिताने के लिए समय मिलता है या टीवी देखने जैसे मजेदार काम किए जा सकते हैं। ऐसे में बच्चा स्कूल में समय बिताने के बजाय घर पर रहना अधिक पसंद कर सकता है।
स्कूल फोबिया एक ऐसी चीज है, जिसे आसानी से पहचाना जा सकता है। खासकर माता-पिता इसे बहुत आसानी से नोटिस कर सकते हैं। ऐसे कुछ खास लक्षण होते हैं, जो ये दिखाते हैं, कि बच्चा स्कूल नहीं जाना चाहता है, जिसमें सीधे-सीधे मना कर देना भी शामिल है। इसके कुछ आम लक्षण यहां पर दिए गए हैं:
बच्चे के विकास में स्कूल बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। स्कूल जाने से न केवल उन्हें दुनिया के बारे में पर्याप्त जानकारी पाने का मौका मिलता है, बल्कि इससे उनके व्यक्तित्व का निर्माण भी होता है। स्कूल बच्चे को एक अनजान वातावरण में डालते हैं और उन्हें शुरू से ही वास्तविक दुनिया और वयस्क जीवन के लिए तैयार करते हैं। स्कूल ना जाने से बच्चा मानसिक और भावनात्मक विकास के मामले में पीछे रह सकता है और अंत में अपने पेरेंट्स के बिना रहना उनके लिए कठिन हो जाता है।
यहां पर कुछ उपयोगी साधन दिए गए हैं, जिनकी मदद से आप यह पता लगा सकते हैं, कि आपका बच्चा स्कूल विड्रॉल से ग्रस्त है या नहीं:
सीबीसीएल पेरेंट्स या देखभाल करने वाले लोगों के लिए एक प्रश्नावली होती है, जिससे बच्चों में व्यावहारिक और भावनात्मक समस्याओं का पता लगाया जाता है।
द स्केयर्ड टेस्ट का मतलब है, स्क्रीन फॉर चाइल्ड एंग्जायटी रिलेटेड इमोशनल डिसऑर्डर। यह एक उपकरण है, जिसका इस्तेमाल बच्चों में जनरल एंग्जायटी डिसऑर्डर, सेपरेशन एंग्जायटी डिसऑर्डर, पैनिक डिसऑर्डर और सोशल फोबिया को समझने के लिए किया जाता है।
इसका इस्तेमाल बच्चों में एंग्जायटी के स्तर और स्वभाव की जांच के लिए किया जाता है।
यह एक स्केल होता है, जिसका इस्तेमाल बच्चों और टीनएजर्स में फंक्शनिंग के स्तर की जांच के लिए किया जाता है।
इसके इलाज में बड़े पैमाने पर साइकोलॉजिकल अप्रोच, विभिन्न काउंसलिंग और संवेदना क्षमता तकनीकें शामिल होती हैं।
यह बिहेवियर थेरेपी का एक प्रकार है और इसे बच्चों में अनुचित और बुरे व्यवहार को ठीक करने के लिए किया जाता है।
बच्चे को स्कूल के लिए अपनी प्रतिक्रिया को धीरे-धीरे सुधारना सिखाया जाता है और भावनात्मक रूप से खुद पर कम कठोर होने में मदद की जाती है।
बच्चे को धीरे-धीरे तनावपूर्ण वातावरण के संपर्क में लाया जाता है और उसे स्थिति के प्रति प्रतिरोधी रिएक्शन को सुधारने के लिए और बदलावों के साथ डील करने के लिए गाइड किया जाता है।
इसमें अच्छा व्यवहार करने के लिए बच्चे को इनाम दिया जाता है, ताकि अच्छे व्यवहार की फ्रीक्वेंसी बढ़ती रहे।
प्रोजैक जैसे सेरोटोनिन रिअपटेक इन्हिबिटर, बच्चे में डिप्रेशन को ठीक करने के प्रयास में लाभकारी होते हैं, लेकिन इनका इस्तेमाल सावधानी से किया जाना चाहिए, क्योंकि बच्चे दवाओं पर निर्भर हो सकते हैं और डिप्रेशन की स्थिति और भी बिगड़ सकती है। ऐसी निर्भरता बाइपोलर डिसऑर्डर और सुसाइडल टेंडेंसी के खतरे को भी बढ़ा सकती है। अचानक दवा बंद करने से भी बच्चे में एंग्जायटी, इनसोम्निया और सिरदर्द जैसी समस्याएं हो सकती हैं।
कुछ दवाएं, जो बच्चे में हाथों से पसीना आना और तेज हृदय गति जैसे एंग्जायटी के लक्षणों में मदद करती हैं, वे भी काफी लाभकारी होती हैं। लेकिन प्रोप्रानोलोल जैसी दवाओं का इस्तेमाल बहुत ही सावधानी से करना चाहिए और अस्थमा के मरीजों पर इसका इस्तेमाल कभी नहीं करना चाहिए। इन दवाओं को अचानक बंद भी नहीं करना चाहिए, क्योंकि इससे ब्लड प्रेशर बढ़ सकता है।
अगर बच्चे में स्कूल विड्रॉल सिंड्रोम का इलाज हुआ है या चल रहा है, तो इलाज के बाद फॉलो अप बेहद जरूरी है। इलाज के बाद बच्चे पर परिवार, स्कूल के स्टाफ और इलाज करने वाले प्रोफेशनल द्वारा करीब से मॉनिटर करना जरूरी है।
यहां पर कुछ ऐसे तरीके दिए गए हैं, जिनके द्वारा स्कूल बच्चों में स्कूल से आनाकानी से निपट सकते हैं।
स्कूल के डर से ग्रस्त बच्चे के माता-पिता निम्नलिखित तरीकों पर विचार कर सकते हैं:
अगर एक प्रीस्कूलर स्कूल जाने से मना करता है, तो इसमें कुछ भी नया नहीं है। माता-पिता और शिक्षकों के द्वारा थोड़ी देखभाल और काउंसलिंग के साथ यह रूटीन आम तौर पर बेहतर हो जाता है। लेकिन अगर यह समस्या लंबी चलती रहे या फिर बिगड़ जाए, तो प्रोफेशनल ट्रीटमेंट की मदद से समस्या का निदान अभी भी किया जा सकता है।
स्कूल जाना बच्चे के लिए एक कठिन प्रक्रिया हो सकती है। इसलिए स्कूल जाने से मना करने में कुछ भी नया नहीं है। यह एक आम बात है, जो कि बच्चों के बीच दिखती है। जहां माता-पिता के द्वारा एटीट्यूड और लाइफस्टाइल में थोड़े बदलाव करके इससे निपटा जा सकता है, वहीं अगर समय के साथ यह स्कूल रिफ्यूजल बिहेवियर बिगड़ता जाता है, तो आपको प्रोफेशनल सहयोग की जरूरत पड़ सकती है।
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