सभी पेरेंट्स चाहते हैं कि उनका बच्चा स्मार्ट, सफल और खुशहाल व्यक्तित्व बने। बच्चे के पहला कदम उठाने पर ही पेरेंट्स न जाने कितने सपने देखने लगते हैं। पर जाहिर है बच्चों में विकास के कई चरण होते हैं और सबका अपना एक महत्व होता है।
जब बच्चों का विकास होता है तो यह विभिन्न चरणों यानी स्टेजेस में होता है। इन चरणों को बहुत आसानी से आयु के अनुसार विभाजित किया जा सकता है। बच्चे के बेहतर विकास को समझने व जानने और अनुकूल रूप से हैंडल करने में यह चरण पेरेंट्स की काफी मदद करते हैं। बच्चे के पूरे विकास पर ध्यान देने के लिए पेरेंट्स इससे संबंधित टिप्स और ट्रिक्स को जान सकते हैं।
विकास के दौरान बच्चों की मानसिक व शारीरिक वृद्धि होती है और विकास के ये चरण अनुवांशिक रूप से निर्धारित होते हैं। बच्चों में विकास के चरणों को जानने के बाद पेरेंट्स होने के नाते आपको अपने बच्चे के विकास में सकारात्मक रूप से सपोर्ट करना चाहिए। विकास के इन विभिन्न चरणों को जानने और बच्चे की विकास की आदतों पर नजर रखने पर आप उसे अच्छी तरह से समझ पाएंगी।
बच्चों के डेवलपमेंट के विभिन्न चरण हैं जिन्हें आयु व वृद्धि के अनुसार विभजित किया गया है। हर चरण का एक समय होता है जिसमें पेरेंट्स के सपोर्ट व देखभाल की आवश्यकता है। इसे पढ़ने के बाद आपको बच्चे के शुरूआती विकास से संबंधित व्यावहारिक, शारीरिक व भावनात्मक विशेषताओं का पता चलेगा।
बच्चों में विकास के चरणों को निम्नलिखित तरीकों से विभाजित किया गया है, आइए जानें;
एक महीने का होने के बाद बच्चा अपने डेवलपमेंट की बर्थ स्टेज पर होता है। इस दौरान वह अपने आसपास की दुनिया को महसूस करता है और हमेशा माँ से जुड़े रहना चाहता है क्योंकि उसे माँ से भोजन, गर्माहट, सुरक्षा का एहसास और देखभाल से संबंधित अन्य चीजें प्राप्त होती हैं।
यदि आप एक न्यूबॉर्न की मां हैं, तो आप उसमें विकास के कुछ खास लक्षण देख पाएंगी जैसे कि जब आप उसे सीधा पकड़ती हैं तो बच्चा अपना सिर सीधा और स्थिर रखता है।
1 से 12 महीने की आयु के बीच बच्चे की ‘बेबी डेवलपमेंट स्टेज’ होती है। बेबी डेवलपमेंट स्टेज में बच्चा इस चरण की कई विशेषताएं दिखाना शुरू करता है।
इस आयु में बच्चे अपने पेरेंट्स व परिवार के लोगों को आसानी से पहचानते हैं और उनके साथ सुरक्षित महसूस करते हैं। समय के साथ वे खुद को व्यक्त करने में ज्यादा सहज होते जाते हैं।
1 से 3 साल की आयु तक बच्चे टॉडलर डेवलपमेंट स्टेज पर होते हैं। इस चरण के दौरान बच्चे अपना व्यक्तित्व दिखाना शुरू कर देते हैं। यह बहुत जरूरी है कि आप नजर रखें क्योंकि इस चरण में बच्चा स्वतंत्र रूप से इधर-उधर चलना व घूमना पसंद करता है।
इस चरण में बच्चा 3 से 4 वर्ष का होता है और अब वह एक छोटा बच्चा नहीं रह जाता है। इस आयु में वह सब कुछ करने में सक्षम होता है, जैसे दौड़ना या बात करना। अब पेरेंट्स को बच्चे की मानसिक रूप से मदद करनी चाहिए और उसके दिमाग के विकास पर ध्यान देना चाहिए। इस बारे में आप अपने बच्चे के टीचर्स से बात कर सकते हैं और समझ सकते हैं कि स्कूल में उसे कौन सी एक्टिविटीज करने में मजा आता है।
स्कूल जाते बच्चों की आयु 6 से 12 वर्ष की होती है। इस आयु में एक बच्चा अपने आसपास की दुनिया को स्वीकार करता है और इस समय वह जो भी देखता व सुनता है उसे करने का प्रयास करता है। हालांकि यदि बच्चे का पालन व पोषण सही तरीके से हुआ है तो वह अपनी समझदारी, सोच और भावनाओं की विशेषताएं व्यक्त कर सकता है जो वास्तव में पेरेंट्स चाहते हैं। इस चरण में भी उसे पेरेंट्स की काफी जरूरत होती है।
बच्चों में शुरूआती विकास के चरण चैलेंजिंग होते हैं और अपने पैरों पर खड़े होने के लिए उन्हें हर समय पेरेंट्स की जरूरत होती है। बच्चा जो भी देखता है, सुनता है, छूता है और यहाँ तक कि सूंघता है, उससे वह व्यावहारिक रूप से प्रेरित होता है और यह पेरेंट्स की जिम्मेदारी है कि वे अपने बच्चे को ऐसे वातावरण में रखें जहाँ पर उसका विकास हो सके। हालांकि आप घर में व बाहर बच्चे के व्यवहार और हरकतों पर नजर रखें। छोटे बच्चे बिना किसी रोकटोक के सिर्फ अपनी मर्जी का करते हैं। किसी भी तरह का चांस न लें। लेकिन साथ ही इस बात का भी ध्यान रखें कि आप अपने नन्हे बच्चे की हरकतों और व्यवहार को एन्जॉय करें। याद रखें कि इन छोटी-छोटी बातों से ही उसका बचपन आपके लिए यादगार होना चाहिए।
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