शिशु

बच्चों में विकास के 5 मुख्य चरण

सभी पेरेंट्स चाहते हैं कि उनका बच्चा स्मार्ट, सफल और खुशहाल व्यक्तित्व बने। बच्चे के पहला कदम उठाने पर ही पेरेंट्स न जाने कितने सपने देखने लगते हैं। पर जाहिर है बच्चों में विकास के कई चरण होते हैं और सबका अपना एक महत्व होता है। 

जब बच्चों का विकास होता है तो यह विभिन्न चरणों यानी स्टेजेस में होता है। इन चरणों को बहुत आसानी से आयु के अनुसार विभाजित किया जा सकता है। बच्चे के बेहतर विकास को समझने व जानने और अनुकूल रूप से हैंडल करने में यह चरण पेरेंट्स की काफी मदद करते हैं। बच्चे के पूरे विकास पर ध्यान देने के लिए पेरेंट्स इससे संबंधित टिप्स और ट्रिक्स को जान सकते हैं। 

विकास के दौरान बच्चों की मानसिक व शारीरिक वृद्धि होती है और विकास के ये चरण अनुवांशिक रूप से निर्धारित होते हैं। बच्चों में विकास के चरणों को जानने के बाद पेरेंट्स होने के नाते आपको अपने बच्चे के विकास में सकारात्मक रूप से सपोर्ट करना चाहिए। विकास के इन विभिन्न चरणों को जानने और बच्चे की विकास की आदतों पर नजर रखने पर आप उसे अच्छी तरह से समझ पाएंगी। 

बच्चों के विकास के 5 मुख्य चरण कौन से हैं

बच्चों के डेवलपमेंट के विभिन्न चरण हैं जिन्हें आयु व वृद्धि के अनुसार विभजित किया गया है। हर चरण का एक समय होता है जिसमें पेरेंट्स के सपोर्ट व देखभाल की आवश्यकता है। इसे पढ़ने के बाद आपको बच्चे के शुरूआती विकास से संबंधित व्यावहारिक, शारीरिक व भावनात्मक विशेषताओं का पता चलेगा। 

बच्चों में विकास के चरणों को निम्नलिखित तरीकों से विभाजित किया गया है, आइए जानें;

1. जन्म

एक महीने का होने के बाद बच्चा अपने डेवलपमेंट की बर्थ स्टेज पर होता है। इस दौरान वह अपने आसपास की दुनिया को महसूस करता है और हमेशा माँ से जुड़े रहना चाहता है क्योंकि उसे माँ से भोजन, गर्माहट, सुरक्षा का एहसास और देखभाल से संबंधित अन्य चीजें प्राप्त होती हैं।

यदि आप एक न्यूबॉर्न की मां हैं, तो आप उसमें विकास के कुछ खास लक्षण देख पाएंगी जैसे कि जब आप उसे सीधा पकड़ती हैं तो बच्चा अपना सिर सीधा और स्थिर रखता है।

पेरेंटिंग टिप्स

  • इस आयु में बच्चा अपने आसपास के चेहरों को पहचानने लगेगा। 2 से 4 महीने में बच्चा आवाजें निकालने लगेगा इसलिए इस समय विकास के दौरान आप उसकी अलग-अलग आवाजों पर ध्यान दें।
  • बच्चे में धीरे-धीरे मोटर स्किल्स डेवलप होंगी जैसे, पेट के बल होते समय सिर उठाना। इसलिए जरूरी है कि आप अपने बच्चे को दूसरे सप्ताह से 20-30 मिनट के लिए टमी टाइम दें और आयु के अनुसार समय को धीरे-धीरे बढ़ाएं।
  • बच्चे में कुछ विशेष रिफ्लेक्सेस होना शुरू हो जाएंगे जैसे मुंह खोलना, सिर घुमाना, उसके हाथ में आई चीजों को पकड़ने का प्रयास करना।

2. शिशु का विकास

1 से 12 महीने की आयु के बीच बच्चे की ‘बेबी डेवलपमेंट स्टेज’ होती है। बेबी डेवलपमेंट स्टेज में बच्चा इस चरण की कई विशेषताएं दिखाना शुरू करता है। 

इस आयु में बच्चे अपने पेरेंट्स व परिवार के लोगों को आसानी से पहचानते हैं और उनके साथ सुरक्षित महसूस करते हैं। समय के साथ वे खुद को व्यक्त करने में ज्यादा सहज होते जाते हैं। 

पेरेंटिंग टिप्स

  • इस दौरान बच्चा अपने शरीर को बेहतर तरीके से समझने लगेगा। उसमें मोटर स्किल्स का विकास होगा इसलिए आप उसे टॉयज देना शुरू करें ताकि बच्चे में आवाज सुनने, स्पर्श और देखने की क्षमता में सुधार हो सके।
  • किसी चीज को पकड़ने पर बच्चा बैठने में सक्षम होगा पर वह खुद को नियंत्रित नहीं कर सकेगा। इसलिए शरीर को नियंत्रित करने में मदद के लिए आप उसकी कोर मसल्स मजबूत करें।
  • इस दौरान बच्चे को हर चीज अपने मुंह में डालने में मजा आएगा क्योंकि उसके दांत निकलना शुरू हो चुके होंगे। इस बात का ध्यान रखें कि आप उसे कोई भी हानिकारक चीज न दें क्योंकि वह इसे मुंह में डाल सकता है।
  • बच्चा इस चरण में 7 से 12 महीने का हो चुका होगा इसलिए वह अपने नाम और सामान्य शब्दों को समझने लगेगा। इस आयु में आप हर शब्द पर बच्चे की प्रतिक्रिया के ऊपर ध्यान दें।
  • इस चरण के अंत तक बच्चा इधर-उधर घूमने व खुद से बैठने लगेगा। बच्चे के पैर मजबूत होंगे और वह चलने का प्रयास करेगा इसलिए इस विकास में आप पूरी तरह से उसकी मदद करें।

3. टॉडलर का विकास

1 से 3 साल की आयु तक बच्चे टॉडलर डेवलपमेंट स्टेज पर होते हैं। इस चरण के दौरान बच्चे अपना व्यक्तित्व दिखाना शुरू कर देते हैं। यह बहुत जरूरी है कि आप नजर रखें क्योंकि इस चरण में बच्चा स्वतंत्र रूप से इधर-उधर चलना व घूमना पसंद करता है। 

पेरेंटिंग टिप्स

  • इस उम्र में बच्चा सोने के शेड्यूल को समझने लगता है और कम्फर्टेबल भी हो जाता है। इस बात का ध्यान रखें कि आप बच्चे के सोने के समय को लेकर अनुशासित रहें।
  • इस दौरान बच्चा स्वतंत्र रूप से थोड़ा बहुत चलने लगता है इस लिए आपको हर समय उस पर ध्यान देना चाहिए ताकि वह किसी भी खतरनाक चीज से न टकराए और उसे चोट न लगे।
  • बच्चा अजीब-अजीब सी चीजें करेगा पर उसमें थोड़ी बहुत मोटर स्किल्स भी होनी चाहिए। आप बच्चे को स्टेशनरी दें, जैसे फैट क्रेयॉन्स या बिल्डिंग ब्लॉक्स ताकि उसमें कॉग्निटिव और मोटर स्किल का विकास हो सके।
  • बच्चे को कुछ समय के लिए बाहर घुमाएं और भाषा व बोली का विकास करने के लिए उससे बातें करें। बच्चा छोटे-छोटे वाक्य बनाना शुरू कर देगा जो उसके लिए थोड़ा सा कठिन होगा पर अभ्यास करने से इसमें भी सुधार हो जाएगा।

4. प्री-स्कूलर का विकास

इस चरण में बच्चा 3 से 4 वर्ष का होता है और अब वह एक छोटा बच्चा नहीं रह जाता है। इस आयु में वह सब कुछ करने में सक्षम होता है, जैसे दौड़ना या बात करना। अब पेरेंट्स को बच्चे की मानसिक रूप से मदद करनी चाहिए और उसके दिमाग के विकास पर ध्यान देना चाहिए। इस बारे में आप अपने बच्चे के टीचर्स से बात कर सकते हैं और समझ सकते हैं कि स्कूल में उसे कौन सी एक्टिविटीज करने में मजा आता है। 

पेरेंटिंग टिप्स

  • इस आयु में बच्चे किसी भी चीज के बारे में बात करना पसंद करते हैं। आप अपने बच्चे को बात करने दें और आप भी उसकी छोटी-छोटी बातों का हिस्सा बनें।
  • इस आयु में बच्चा पढ़ने में सक्षम होता है। आप उसके लिए कुछ किताबें खरीद लें जो उसकी रीडिंग स्किल्स, क्रिएटिविटी और उच्चारण को बेहतर बनाने में मदद कर सकती हैं।
  • बच्चे को इधर-उधर दौड़ने दें और आवश्यक एक्सरसाइज करने दें क्योंकि इस उम्र में बच्चे में बहुत एनर्जी होती है।

5. स्कूल जाने वाले बच्चे का विकास

स्कूल जाते बच्चों की आयु 6 से 12 वर्ष की होती है। इस आयु में एक बच्चा अपने आसपास की दुनिया को स्वीकार करता है और इस समय वह जो भी देखता व सुनता है उसे करने का प्रयास करता है। हालांकि यदि बच्चे का पालन व पोषण सही तरीके से हुआ है तो वह अपनी समझदारी, सोच और भावनाओं की विशेषताएं व्यक्त कर सकता है जो वास्तव में पेरेंट्स चाहते हैं। इस चरण में भी उसे पेरेंट्स की काफी जरूरत होती है। 

पेरेंटिंग टिप्स

  • इस आयु में बच्चे की मोटर स्किल्स पूरी तरह से विकसित हो जाती हैं और उसमें बहुत ज्यादा एनर्जी रहती है। आपको उसकी एनर्जी का बेहतर उपयोग करने के तरीके खोजने चाहिए। इस बात पर ध्यान दें कि क्या बच्चे को स्पोर्ट्स पसंद हैं और उसे रोजाना एक्सरसाइज करने के लिए प्रेरित करें।
  • इस आयु में बच्चा रिश्ते बनाता है व दोस्ती करता है इसलिए आप भी उसके सामाजिक विकास में शामिल हों। यदि आपको लगता है कि बच्चा नए लोगों से बात करने में हिचकिचाता है तो आप उसे मदद करें। इस आयु में बच्चे को मानसिक व भावनात्मक सपोर्ट मिलना चाहिए ताकि उसे विकास में मदद मिल सके।
  • इस चरण के अंतिम भाग में बच्चे में सेकेंडरी सेक्सुअल विशेषताएं विकसित होने लगेंगी इसलिए आप इस पर भी ध्यान दें।
  • इस आयु में कुछ बच्चे स्वतंत्र होने की विशेषताएं दर्शाते हैं। जब तक आपका बच्चा अपना खयाल रख पाता है तब तक उसे रखने दें और खुद के लिए निर्णय लेने दें।

बच्चों में शुरूआती विकास के चरण चैलेंजिंग होते हैं और अपने पैरों पर खड़े होने के लिए उन्हें हर समय पेरेंट्स की जरूरत होती है। बच्चा जो भी देखता है, सुनता है, छूता है और यहाँ तक कि सूंघता है, उससे वह व्यावहारिक रूप से प्रेरित होता है और यह पेरेंट्स की जिम्मेदारी है कि वे अपने बच्चे को ऐसे वातावरण में रखें जहाँ पर उसका विकास हो सके। हालांकि आप घर में व बाहर बच्चे के व्यवहार और हरकतों पर नजर रखें। छोटे बच्चे बिना किसी रोकटोक के सिर्फ अपनी मर्जी का करते हैं। किसी भी तरह का चांस न लें। लेकिन साथ ही इस बात का भी ध्यान रखें कि आप अपने नन्हे बच्चे की हरकतों और व्यवहार को एन्जॉय करें। याद रखें कि इन छोटी-छोटी बातों से ही उसका बचपन आपके लिए यादगार होना चाहिए। 

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बच्चों का नैतिक विकास – चरण और सिद्धांत
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श्रेयसी चाफेकर

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