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ब्रेन ट्यूमर सभी उम्र के बच्चों को प्रभावित कर सकता है। यह समझना जरूरी है, कि बड़ों की तुलना में बच्चों में यह अलग तरह से दिख सकता है और उन्हें अलग तरह से प्रभावित कर सकता है। बच्चे का शरीर और मस्तिष्क अभी भी विकसित हो रहे होते हैं, इसलिए इसके लक्षण और इलाज भी अलग होते हैं। ब्रेन ट्यूमर बच्चे के न्यूरोलॉजिकल और बौद्धिक फंक्शनिंग को बड़े पैमाने पर दूरगामी नुकसान पहुंचा सकता है।
जब मस्तिष्क के सेल्स असामान्य रूप से बढ़ने लगते हैं और विभाजित होने लगते हैं, तब बहुत सारे सेल्स बन सकते हैं। मस्तिष्क में कोशिकाओं की यह गांठ ट्यूमर कहलाती है।
ब्रेन ट्यूमर का वर्गीकरण कुछ बातों को ध्यान में रखकर किया जाता है, जैसे वे किस प्रकार के सेल से बढे हैं, ब्रेन में ट्यूमर की स्थिति और उनके फैलाव और विकास की संभावित दर। इन्हें निम्नलिखित हिस्सों में विभाजित किया जा सकता है:
बच्चों में होने वाला सबसे आम ब्रेन ट्यूमर, जो कि किसी भी उम्र में हो सकता है वह है -ग्लियोमा। बच्चों में होने वाले ब्रेन ट्यूमर में से लगभग 75% मामले ग्लियोमा के होते हैं। ग्लियोमा ग्लियल सेल्स में विकसित होते हैं, जो कि मस्तिष्क के सहयोगी या चिपचिपे टिशू होते हैं। ग्लायल ट्यूमर मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं: एस्ट्रोसाइटोमा और एपेन्डायमोमा। ग्लियोमा मस्तिष्क की कार्य प्रणाली पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है और यह जानलेवा हो सकता है। ट्यूमर के प्रकारों को निम्नलिखित विभागों में बांटा जा सकता है:
माइक्रोस्कोप के अंदर देखने पर टयूमर सेल्स और टिशू कितने अनियमित दिखते हैं, इसके आधार पर ब्रेन ट्यूमर को ग्रेड्स में बांटा जाता है। माइक्रोस्कोप में दिखने वाली भिन्नता को रेफरेंस के रूप में रखकर डॉक्टर ट्यूमर के मैथमेटिकल ग्रेड का निर्धारण करते हैं। ब्रेन ट्यूमर को 1 से 4 के स्केल पर ग्रेड किया जा सकता है। स्केल 1 और 2 लो ग्रेड ट्यूमर होते हैं और स्केल 3 और 4 हाई ग्रेड ट्यूमर होते हैं। ग्रेड्स ट्यूमर के संभावित विकास और सीमा के एक प्वाइंटर होते हैं। ट्यूमर के ग्रेड्स इलाज के प्रकार और कोर्स का निर्धारण करने में भी मदद करते हैं।
लो ग्रेड ट्यूमर वे होते हैं, जिनका विकास धीमा होता है। माइक्रोस्कोप में देखने पर इसके सेल लगभग सामान्य सेल के जैसे ही दिखते हैं। आमतौर पर, ये अंदर होते हैं और दूसरे क्षेत्रों में नहीं फैलते हैं। पूरी तरह से निकालने के बाद इनके दोबारा होने की संभावना आमतौर पर बहुत कम होती है। इसकी तुलना में हाई ग्रेड ट्यूमर बहुत तेजी से बढ़ते हैं और जुड़े हुए क्षेत्रों में इनके फैलने की संभावना होती है। स्वभाव से ये एग्रेसिव और गंभीर होते हैं और इनसे निपटने के लिए इलाज के एक व्यापक सेट की जरूरत पड़ सकती है। इनका इलाज करने के बाद भी इनके दोबारा होने की संभावना होती है। लो ग्रेड ट्यूमर में हाई ग्रेड की तुलना में रोगनिदान की संभावना बेहतर होती है।
जो ब्रेन ट्यूमर अपने बनने की जगह पर आमतौर पर सीमित रहते हैं, उन्हें लोकलाइज्ड ट्यूमर कहा जाता है। इनके मस्तिष्क में दूसरे हिस्सों में फैलने की संभावना कम होती है और इनका इलाज भी तुलनात्मक रूप से आसान होता है। जिन ब्रेन ट्यूमर के आसपास के क्षेत्रों में फैलने की और हमला करने की संभावना होती है, उन्हें इनवेसिबल कहा जाता है। इन्हें पूरी तरह से निकालना कठिन होता है, इसलिए इनका इलाज भी कठिन होता है।
प्राइमरी ब्रेन ट्यूमर का विकास मस्तिष्क में होता है। सेकेंडरी ब्रेन ट्यूमर ऐसे होते हैं, जो शरीर के किसी दूसरे हिस्से में शुरू होते हैं, लेकिन धीरे-धीरे मस्तिष्क तक फैल जाते हैं। ज्यादातर पीडियाट्रिक ब्रेन ट्यूमर प्राइमरी होते हैं।
प्राइमरी ब्रेन ट्यूमर के आम प्रकार हैं:
आमतौर पर एस्ट्रोसाइटोमा 5 से 8 साल के बच्चों में देखा जाता है। इस प्रकार के ट्यूमर एस्ट्रोसाइट्स से बढ़ते हैं, जो कि तारे की आकृति के सेल्स होते हैं। ये सेल्स मस्तिष्क के सहयोगी या चिपचिपे टिशू का निर्माण करते हैं। ये मस्तिष्क के सेरेब्रम या फिर सेरेबेलम हिस्से में दिख सकते हैं। एस्ट्रोसाइटोमा ट्यूमर की ग्रेडिंग स्केल 1 से स्केल 4 में होती है, जो कि सामान्य या असामान्य सेल्स के व्यवहार पर निर्भर करता है। लो ग्रेड एस्ट्रोसाइटोमा (स्केल 1 और 2) धीमी गति से बढ़ते हैं और आमतौर पर अपनी जगह पर टिके रहते हैं। हाई ग्रेड एस्ट्रोसाइटोमा (स्केल 3 और 4) तेज गति से बढ़ते हैं और ये दूसरे क्षेत्रों में फैल सकते हैं। अधिकतर पीडियाट्रिक एस्ट्रोसाइटोमा ट्यूमर लो ग्रेड के होते हैं। इन ट्यूमर के चार ग्रेड होते हैं:
एपेन्डायमोमा एपेन्डायमल सेल्स से शुरू होते हैं, जो कि मस्तिष्क के वेंट्रीकल और स्पाइनल कॉर्ड के केंद्र में स्थित होते हैं। इस तरह के ट्यूमर को सब एपेन्डायमोमा (ग्रेड 1), मायक्सोपापिलरी एपेन्डायमोमा (ग्रेड 1), जो की धीमी गति से बढ़ते हैं, एपेन्डायमोमा (ग्रेड 2) सबसे अधिक होने वाला एपेन्डायमल ट्यूमर और अनाप्लास्टिक एपेन्डायमोमा (ग्रेड 3) जो कि काफी तेज गति से फैलते हैं, में विभाजित किया जा सकता है। इस प्रकार के ट्यूमर मस्तिष्क और स्पाइनल कॉर्ड के विभिन्न हिस्सों में विकसित होते हैं।
इस प्रकार के ट्यूमर काफी दुर्लभ होते हैं और ये ब्रेन के स्टेम टिशू में विकसित होते हैं। आमतौर पर इन्हें सर्जरी के माध्यम से निकालना काफी चुनौती भरा होता है। ब्रेन स्टेम ग्लियोमा मस्तिष्क और स्पाइनल कॉलम में शुरू होते हैं और स्थिर रूप से नर्वस सिस्टम के दूसरे हिस्सों में फैलते हैं। जब तक ये ट्यूमर आकार में बहुत बड़े नहीं हो जाते, तब तक इनके कोई लक्षण नजर नहीं आते हैं।
पीडियाट्रिक मेडुलोब्लास्टोमा गंभीर हाई ग्रेड ट्यूमर होते हैं, जो सेरेबेल्लुम में विकसित होते हैं और सेरेब्रॉस्पाइनल फ्लुइड के द्वारा फैलते हैं।
ये ट्यूमर सौम्य होते हैं और आमतौर पर मस्तिष्क या शरीर के दूसरे हिस्सों में नहीं फैलते हैं। आमतौर पर यह सॉलिड मास के मिश्रण और फ्लुइड से भरे सिस्ट होते हैं। ये मस्तिष्क के निचले हिस्से में पिट्यूटरी ग्लैंड के करीब बनते हैं।
ये ट्यूमर आमतौर पर टेस्टिकल या ओवरी में विकसित होते हैं और शरीर के दूसरे हिस्सों में भी बन सकते हैं, जैसे मस्तिष्क, छाती, पेट और स्पाइन के निचले हिस्से में। ये गंभीर या सौम्य हो सकते हैं। जर्म सेल टयूमर के प्रकार हैं – योक-सैक ट्यूमर, जर्मिनोमास, मेच्योर और इमैच्योर टेराटॉमा।
ये ट्यूमर हाई ग्रेड ट्यूमर होते हैं और इनका स्वभाव काफी आक्रामक होता है। ये ब्रेन स्टेम के पोन्स (मध्य) में बढ़ते हैं। इन ट्यूमर को निकालना बहुत कठिन होता है, क्योंकि ये ब्रेन स्टेम के नर्व सेल्स में विकसित हो जाते हैं, जो कि मस्तिष्क का जरूरी हिस्सा होते हैं, जो कि शरीर के कई मोटर फंक्शन के लिए जिम्मेदार होते हैं।
ये ट्यूमर धीमी गति से बढ़ते हैं और आंख को मस्तिष्क से जोड़ने वाले ऑप्टिक नर्व में या उसके आसपास स्थित होते हैं। जब ट्यूमर बड़ा होता है, तब यह ऑप्टिक नर्व पर दबाव डालता है और यह गंभीर रूप से आंखों की रोशनी को नुकसान पहुंचा सकता है।
बच्चों में ब्रेन ट्यूमर के कारण की स्पष्ट जानकारी उपलब्ध नहीं है। एक्सपर्ट्स का मानना है, कि नॉर्मल ब्रेन सेल्स के डीएनए में होने वाले कुछ बदलाव (म्यूटेशन) के कारण वे विभाजित होते हैं और बढ़ने होने लगते हैं। कुछ शोधकर्ताओं का मानना है, कि ट्यूमर का कारण जेनेटिक हो सकता है। बच्चे अपने माता-पिता से कुछ खास जेनेटिक समस्याएं आनुवांशिक रूप से ले सकते हैं, जो असामान्य रूप से बढ़ सकती हैं। न्यूरोफाइब्रोमैटोसिस, ली-फ्रॉमेनी, हिप्पेल-लिंडाऊ सिंड्रोम जैसे कुछ आनुवांशिक सिंड्रोम ब्रेन ट्यूमर के खतरे को बड़े पैमाने पर बढ़ा सकते हैं। रेडिएशन जैसे वातावरण से संबंधित कारण भी बच्चों में ट्यूमर का एक संभव कारण हो सकते हैं।
अलग-अलग बच्चों में ट्यूमर के अलग-अलग लक्षण दिख सकते हैं, जो कि उनकी आयु और ट्यूमर के प्रकार पर निर्भर करता है। इसके कुछ आम लक्षण इस प्रकार हैं:
चूंकि ये सभी लक्षण बच्चों में होने वाले अन्य कई आम बीमारियों के लक्षणों से मिलते जुलते हैं, ऐसे में ब्रेन ट्यूमर का पता चल पाना बहुत कठिन होता है। साथ ही इसके लक्षणों की प्रगति भी काफी धीमी हो सकती है। हालांकि लक्षणों से संबंधित किसी भी तरह की दुविधा की स्थिति में आपको तुरंत डॉक्टर से परामर्श लेने की सलाह दी जाती है।
जब बच्चे को एक विशेषज्ञ के पास रेफर किया जाता है, तब उसकी एक संपूर्ण शारीरिक जांच की जाती है। इसकी पहचान के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले टेस्ट किस प्रकार हैं:
इसमें अन्य कई पहलुओं के साथ-साथ संतुलन, नजर, तालमेल और रिफ्लेक्स की जांच की जाती है, ताकि यह पता चल सके कि मस्तिष्क के किस हिस्से में ट्यूमर होने की संभावना हो सकती है।
एमआरआई या सीटी स्कैन जैसे टेस्ट किए जाते हैं, ताकि ट्यूमर की मौजूदगी की पुष्टि की जा सके।
अगर ट्यूमर की पहचान हो जाती है, तो एक बायोप्सी (ट्यूमर से निकाला गया टिशू) की जाती है, ताकि ट्यूमर के प्रकार और ग्रेड का निर्धारण हो सके। टयूमर सेल्स का विस्तार से अध्ययन और विश्लेष किया जाता है, ताकि संभावित रोगनिदान की योजना बनाई जा सके। अगर ट्यूमर की जगह उचित हो तो उसे निकालने के लिए सर्जरी (आंशिक या पूर्ण) की सलाह दी जा सकती है।
न्यूरो सर्जन ट्यूमर की जगह, प्रकार, विस्तार और ग्रेड के आधार पर इलाज का फैसला करेंगे। इसके अलावा बच्चे की आयु और आम स्वास्थ्य के साथ-साथ विशेष इलाज या दवा के प्रति प्रतिक्रिया जैसी बातों पर विचार किया जाता है। अधिकतर मामलों में सर्जरी के साथ-साथ कीमोथेरेपी और रेडिएशन की जरूरत पड़ती है। विशेषज्ञों की एक टीम संभव सबसे बेहतर इलाज पर विचार करती है, जिसके कम से कम साइड इफेक्ट हों। पीडियाट्रिक ब्रेन ट्यूमर के इलाज में निम्नलिखित बातों का समावेश होता है:
चाइल्डहुड ब्रेन ट्यूमर के अधिकतर मामलों में सर्जरी की जरूरत होती है। इसमें बायोप्सी की जरूरत भी हो सकती है, जिसमें टिशू का एक नमूना लिया जाता है और उस पर विस्तृत अध्ययन किया जाता है। न्यूरो सर्जन सुरक्षित रूप से जितना संभव हो सके प्रभावित टिशू के ज्यादा से ज्यादा हिस्से से छुटकारा पाने के लिए सर्जरी की सलाह दे सकते हैं, ताकि मस्तिष्क में इंट्राक्रेनियल दबाव को कम किया जा सके। ट्यूमर की जगह एक प्रमुख भूमिका निभाती है। उदाहरण के लिए अगर ट्यूमर ब्रेन स्टेम में डिफ्यूज हो, तो उसे पूरी तरह से निकालना बहुत कठिन हो जाता है। ऐसे मामलों में आंशिक सर्जरी की जा सकती है।
रेडिएशन थेरेपी में हाई एनर्जी किरणों के इस्तेमाल से प्रभावित टिशू को खत्म करना या सिकोड़ देना शामिल होता है। इस थेरेपी का इस्तेमाल सावधानीपूर्वक किया जाता है, क्योंकि बच्चे का मस्तिष्क अभी भी विकासशील अवस्था में होता है और उसके दूरगामी साइड इफेक्ट दिख सकते हैं, जैसे स्ट्रोक, दौरे, देरी या सीमित विकास।
टयूमर सेल्स को निकालने के लिए दवाओं के इस्तेमाल को कीमोथेरेपी कहा जाता है। इसे आईवी कैथेटर, गोलियों या सेरेब्रॉस्पाइनल फ्लुएड में सीधे इंजेक्ट करके दिया जा सकता है। इसका उद्देश्य होता है, सेल्स के विकास को रोक देना या कम कर देना। कीमो एक सिस्टमैटिक थेरेपी है, जिसका मतलब है कि यह पूरे शरीर को डिस्ट्रेस कर सकता है। इसके टेंपरेरी साइड इफेक्ट हो सकते हैं, जैसे बाल झड़ना, मतली, थकावट आदि। लेकिन रेडिएशन की तुलना में इसके हानिकारक प्रभाव कम लंबे समय तक रहते हैं।
सर्जरी या रेडिएशन के बाद ट्यूमर या इसके इलाज के कारण होने वाले इन्फ्लेमेशन को कम करने के लिए स्टेरॉइड दिए जा सकते हैं। कभी-कभी मतली जैसे साइड इफेक्ट से निपटने के लिए कीमोथेरेपी के बाद कुछ स्टेरॉयड दिए जा सकते हैं। विशेषकर सर्जरी के बाद दौरों से बचने के लिए एंटी कन्वलंट्स भी दिए जा सकते हैं।
इलाज के कुछ आफ्टर इफेक्ट इस प्रकार हैं:
कीमोथेरेपी और रेडिएशन थेरेपी के बाद बाल झड़ सकते हैं। हालांकि कीमोथेरेपी के बाद खोए हुए बाल वापस आ सकते हैं, लेकिन रेडिएशन थेरेपी के बाद खोए हुए बाल वापस आने की संभावना नहीं होती है।
इस इलाज का अन्य दुष्प्रभाव होता है, आपके बच्चे को बीमार या मतली का एहसास होना।
रेडिएशन या कीमोथेरेपी बच्चे की नजर को बुरी तरह से प्रभावित कर सकती है। इलाज के बाद बच्चे की नजर कमजोर हो सकती है या उसे धुंधला नजर आ सकता है।
इलाज के बाद मांसपेशियों की कमजोरी के कारण गतिविधियां गंभीर रूप से प्रभावित हो सकती हैं, जिससे सुनने में, बोलने में, निगलने में या संतुलन बनाने में कठिनाई हो सकती है।
इलाज की प्रक्रिया के बाद थकान या कमजोरी का एहसास होना बहुत ही आम है।
रेडियोथेरेपी के बाद त्वचा पपड़ीदार, लाल या नाजुक हो सकती है और कुछ मामलों में इसका रंग भी गहरा हो सकता है।
इलाज के बाद फॉलोअप केयर बहुत जरूरी है, क्योंकि इसके प्रभाव तुरंत स्पष्ट नहीं होते हैं। इसके अलावा हर बच्चे में ठीक होने की प्रक्रिया अलग होती है, इसलिए बच्चे को सावधानीपूर्वक निगरानी में रखना बेहद जरूरी है। इलाज के ज्यादातर शारीरिक साइड इफेक्ट को फिजियोथेरेपी, स्पीच थेरेपी, और अन्य ऑक्यूपेशनल थेरेपी के द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है। बच्चे के मन पर पड़ने वाले संभावित प्रभाव को ध्यान में रखना जरूरी है, जिसे स्कूल और शिक्षकों और बच्चे के दोस्तों के सहयोग के साथ संभाला जा सकता है। नियमित फॉलो अप विजिट को शेड्यूल करना चाहिए, ताकि बच्चे पर इलाज के प्रभावों को मॉनिटर किया जा सके और साथ ही दोबारा ट्यूमर होने के खतरे से सुरक्षित रहा जा सके।
हर बच्चे में बीमारी और इसके इलाज के दूरगामी प्रभाव भिन्न हो सकते हैं। यह ट्यूमर की जगह और दिए गए थेरेपी के प्रकार पर भी निर्भर करता है। कुछ बच्चों को कॉग्निटिव विकास में देर का अनुभव हो सकता है, जिसमें सीखने में, याद रखने में और समस्या सुलझाने की क्षमता में कठिनाई शामिल है। कुछ मामलों में बच्चों के विकास में देर या रुकावट भी देखी जा सकती है। इलाज के कारण उनमें प्यूबर्टी की जल्द शुरुआत या देर से शुरुआत का अनुभव हो सकता है। इलाज के कारण बच्चे में सामाजिक इंटरेक्शन में आने वाले बदलाव और दूसरों से अलग होने की एक भावना के कारण भावनात्मक डिस्ट्रेस हो सकता है। इस इलाज के विजिबल शारीरिक साइड इफेक्ट के कारण साइकोलॉजिकल समस्याएं भी हो सकती हैं।
पीडियाट्रिक ब्रेन ट्यूमर का पता चलने से परिवार को गहरा झटका लग सकता है। आप ऐसे कई सपोर्ट ग्रुप की मदद ले सकते हैं, जो क्लीनिकल ट्रायल और इस फील्ड में किए गए किसी न्यू रिसर्च के बारे में जानकारी देते हैं। इस आयु के बच्चों के साथ किस तरह से निपटा जाए, इस संदर्भ में वे भावनात्मक केयर, सहयोग और सलाह भी देते हैं। वे बच्चे के ट्यूमर और उसके इलाज को मैनेज करने में मदद के लिए उपयुक्त तरीका भी बताते हैं। पेरेंट्स इस संदर्भ में स्कूल से भी बात कर सकते हैं और कुछ खास बदलाव की भी इच्छा जता सकते हैं, जिससे बच्चे की जरूरतें पूरी हो सकें, जैसे स्कूल वर्क कम होना, होमवर्क में बदलाव, टेस्टिंग सिस्टम में बदलाव, जरूरत पड़ने पर आराम या बाथरूम जाने की सुविधा देना। शिक्षक क्लास में बच्चे को सहज महसूस करा सकते हैं और दूसरे बच्चों को स्थिति को स्वीकार करने और बच्चे के साथ अच्छा व्यवहार करने में मदद कर सकते हैं।
तकनीक और मेडिकल फील्ड में आने वाले तरक्की के साथ बेहतर नतीजों के लिए उम्मीद की एक किरण दिखी है। ब्रेन ट्यूमर से निदान किए जाने वाले अधिक से अधिक बच्चों का आज सफल इलाज हो रहा है। बीमारी का पता जल्द लगाने और तुरंत मेडिकल अटेंशन देने के साथ-साथ सही इलाज और उचित फॉलो अप केयर बेहद जरूरी है।
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