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बच्चों में काली खांसी की समस्या पिछले कुछ समय में बहुत कम हो गई थी पर अब यह फिर बढ़ने लगी है। काली खांसी को परट्यूसिस भी कहते हैं और यह छोटे बच्चों के लिए बहुत खतरनाक होता है क्योंकि यह सांस लेने की नली में स्टिकी व थिक म्यूकस उत्पन्न करता है और खांसी से बच्चे को सांस लेने में कठिनाई हो सकती है क्योंकि इस समय उसकी सांस लेने की नली पहले से ही कमजोर होती है और फेफड़ों का विकास हो रहा होता है।
मनुष्य का इम्यून सिस्टम वायरस से होने वाली किसी भी खांसी से लड़ सकता है। पर काली खांसी की समस्या को ठीक करने के लिए डॉक्टर की जरूरत पड़ सकती है क्योंकि यह वायरल नहीं बैक्टीरियल इन्फेक्शन है। काली खांसी के शुरूआती चरण में इसके लक्षण जुकाम की तरह ही होते हैं और यदि बच्चों में इसका इलाज समय से व ठीक तरह से नहीं किया गया तो यह समस्या निमोनिया में भी बदल सकती है जिससे जीवन को खतरा है।
काली खांसी लंग्स का इन्फेक्शन है जिसे बोर्डटेला परट्यूसिस भी कहते हैं। इस इन्फेक्शन की वजह से लंग्स, विंड पाइप और एयरवेज में सूजन भी आ सकती है जिसके परिणामस्वरूप बहुत ज्यादा तेज खांसी होती है। ऐसी खांसी लंबे समय तक चलती है और यह वायरल इन्फेक्शन की खांसी से ज्यादा गंभीर होती है।
काली खांसी का नाम एक अजीब चिड़िया की तेज आवाज पर पड़ा है और यदि बच्चे को यह इन्फेक्शन होता है तो उसे खांसते समय सांस लेने में दिक्कत हो सकती है। हालांकि यदि बच्चे को काली खांसी की समस्या होती है तो उसे तेज खांसने के लिए बहुत ज्यादा एनर्जी की जरूरत पड़ती है।
काली खांसी से खतरे भी हो सकते हैं। शारीरिक संपर्क या सिर्फ सांस लेने से भी इसके बैक्टीरिया हवा में फैल सकते हैं और यह इन्फेक्शन किसी भी व्यक्ति को हो सकता है। यदि कोई भी व्यक्ति बच्चे के आसपास छींकता है या खांसता है तो सांस लेने से ये बैक्टीरिया बच्चे में भी जा सकते हैं।
बच्चों को अक्सर काली खांसी की समस्या हो जाती है क्योंकि यह इन्फेक्शन बहुत तेजी से बढ़ता है और फैलता है। काली खांसी के शुरूआती लक्षण जुकाम के जैसे ही होते हैं। इसलिए बड़े लोगों में काली खांसी का पता बाद तक नहीं चलता है और ऐसे में यह इन्फेक्शन बच्चे को भी हो सकता है।
बच्चों में काली खांसी की वैक्सीन 2 साल की उम्र में लगाई जाती है। इसके बाद भी बच्चों में रोग के लिए पर्याप्त इम्युनिटी तब तक नहीं होती है जब तक उन्हें इसके कम से कम 3 इंजेक्शन न लगाए गए हों। इसलिए बच्चों को इन्फेक्शन से सुरक्षित रखने के लिए उन्हें वैक्सीन लगवाना बहुत जरूरी है और यह इन्फेक्शन किसी भी व्यक्ति में फैलना नहीं चाहिए। स्टडीज के अनुसार ज्यादातर बच्चों को काली खांसी की समस्या परिवार से ही होती है।
इसके अलावा काली खांसी होने से इम्युनिटी कमजोर होती है। इसलिए यदि बच्चे को शुरूआत में ही इसका वैक्सीन दे दिया गया है तो परट्यूसिस बूस्टर वैक्सीन का फॉलो अप करना भी जरूरी है ताकि बढ़ते बच्चे को रोगों से सुरक्षा मिल सके।
काली खांसी के लक्षण बैक्टीरियल इन्फेक्शन होने के 5 – 10 दिनों के बाद दिखाई देते हैं और कुछ मामलों में इसमें 2 से ज्यादा सप्ताह भी लग सकते हैं। काली खांसी के लक्षण कई चरणों में दिखाई देते हैं और लंबे समय तक रहते हैं। काली खांसी के शुरूआती लक्षण बाद के लक्षणों से अलग होते हैं, आइए जानें;
काली खांसी अक्सर फ्लू से शुरू होती है या इसमें जुकाम के लक्षण होते हैं, जैसे नाक बहना, छींक, खांसी जो लगभग 2 सप्ताह तक हल्की-फुल्की रहती है पर बाद में बहुत तेज और गंभीर हो जाती है। कुछ बच्चों में थोड़ा-बहुत बुखार भी होता है।
यह चरण लगभग 1 से 6 सप्ताह तक रहता है और कुछ मामलों में 10 सप्ताह तक भी बढ़ जाता है। यदि बच्चे को यह इन्फेक्शन हुआ है तो इस समय उसे बहुत तेज खांसी होगी। काली खांसी होने पर एक छोटा बच्चा लगभग 20 से 30 सेकंड तक खांसता है और फिर अगली खांसी आते तक उसे सांस लेने में कठिनाई। इस दौरान बच्चे की सांस तेज चलती है और उसे सांस लेने में ज्यादा एनर्जी की जरूरत होती है।
खांसी अक्सर रात में लगातार होती है। बहुत तेज खांसी आने पर ऑक्सीजन की कमी से बच्चे के नाखून और होंठ नीले पड़ने लगते हैं। कुछ मामलों में बच्चा उल्टी कर देता है या उसके मुंह से थिक म्यूकस निकल जाता है। खांसते समय यदि बच्चा तेज आवाज निकालता है तो यह काली खांसी का ही संकेत है।
बच्चों में काली खांसी लगभग 10 सप्ताह तक रहती है या कुछ मामलों में यह महीनों तक भी रहती है। पर यदि इसका इलाज व देखभाल समय से हो तो रिकवरी जल्दी भी हो सकती है। अक्सर किसी भी व्यक्ति को काली खांसी 3 से 4 सप्ताह के बाद ही गंभीर रूप से होती है। इसलिए यदि आपका बच्चा किसी इन्फेक्टेड व्यक्ति के संपर्क में आया है तो आपको डॉक्टर से मिलना चाहिए क्योंकि काली खांसी होने के लक्षणों से सर्दी-जुकाम का कन्फ्यूजन हो सकता है।
इन्क्यूबेशन पीरियड या इन्फेक्शन होने से काली खांसी के लक्षण दिखने तक का समय लगभग 7 से 8 दिनों का होता है और कुछ मामलों में यह 21 दिनों तक भी बढ़ सकता है।
बच्चों में काली खांसी के लिए डॉक्टर आपको निम्नलिखित ट्रीटमेंट लेने की सलाह दे सकते हैं, आइए जानें;
यदि हॉस्पिटल जाने की जरूरत है तो डॉक्टर बच्चे को एक्स्ट्रा ऑक्सीजन दे सकते हैं और सांस लेने की नली से म्यूकस साफ करके आईवी के माध्यम से तरल पदार्थ दे कर सकते हैं।
डॉक्टर द्वारा प्रिस्क्राइब किए हुए एंटीबायोटिक के कोर्स को पूरा करना बहुत जरूरी है। बच्चों में काली खांसी की समस्या को ठीक करने के लिए आप सीधे मेडिकल से कोई भी सिरप न लें क्योंकि इससे कोई भी फायदा नहीं होगा। वास्तव में खांसी से सांस लेने वाली नली प्राकृतिक रूप से साफ हो जाती है। इसलिए इसे रोकना ठीक नहीं है।
अपने बच्चे को स्वच्छ व साफ जगह पर रखें। इस बात का भी ध्यान रखें कि बच्चे का कमरा इरिटेशन से मुक्त हो, जैसे धुंआ, टोबैको स्मोक, एरोसोल, स्प्रे क्योंकि इससे बच्चे की तबियत अधिक खराब हो सकती है। आप लंग्स को साफ करने के लिए कूल-मिस्ट वेपोराइजर का उपयोग भी कर सकती हैं। बच्चे को नियमित रूप से थोड़ा-थोड़ा खाना खिलाएं ताकि खांसी आने पर उसे उल्टी न आए। इस बात का भी ध्यान रखें कि डिहाइड्रेशन से बचने के लिए अपने बच्चे को पर्याप्त मात्रा में तरल पदार्थ दें।
बच्चों में काली खांसी होने से बचाव के कुछ टिप्स निम्नलिखित हैं, आइए जानें;
बच्चे को इम्युनाइज करने के बाद भी उसमें काली खांसी होना आम है पर इसके लक्षण बहुत गंभीर नहीं होंगे। जिन बच्चों को पूरी तरह से वैक्सीन दी जाती हैं उनमें जल्दी रिकवरी होती है और इस इन्फेक्शन का बहुत हल्का प्रभाव होता है।
यदि बच्चों में काली खांसी की समस्या का ट्रीटमेंट ठीक से नहीं किया गया तो उसे निमोनिया या मानसिक रोग हो सकता है। इससे बच्चों को कन्वल्जन (एक प्रकार की ऐंठन) की समस्या भी हो सकती है। इसलिए यदि आपको बच्चे में कोई भी गंभीर समस्या के लक्षण दिखाई दें तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।
यदि काली खांसी का इलाज नहीं किया गया तो इससे बच्चे को खतरा हो सकता है। इसका इलाज शुरूआत में ही करना चाहिए। बच्चे में काली खांसी होने के संकेतों पर ध्यान दें क्योंकि इसके शुरूआती लक्षण ज्यादातर जुकाम की तरह ही होते हैं।
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