कोई भी आम व्यक्ति सोरायसिस को देख कर उसे गंभीर नैपी रैश समझने की भूल कर सकता है, खासकर अगर आपके शिशु को टॉयलेट ट्रेनिंग ना दी गई हो तो। शिशुओं में सोरायसिस डायपर वाले हिस्से में हो सकता है, लेकिन यह चेहरे, छाती, पेट या सिर की त्वचा पर भी हो सकता है और इसे गंभीर डैंड्रफ समझ लेना भी बिल्कुल आम बात है। यह लेख आपको यह समझने में मदद करेगा, कि यह स्थिति क्या होती है, इसके क्या कारण होते हैं आदि।

सोरायसिस क्या है?

बच्चों में सोरायसिस त्वचा की एक आम समस्या है, जो कि शुरुआती आयु में प्रभावित कर सकती है। लेकिन अधिकतर मामलों में यह टीनएज या उसके बाद की अवस्था के पहले नहीं होती है। इसे लाल चकत्ते के द्वारा पहचाना जा सकता है, जो कि उभरे हुए होते हैं और सिल्वर पपड़ी से ढके होते हैं। ये स्किन सेल्स की ग्रोथ के कारण होते हैं, जो कि इकट्ठे हो जाते हैं और सामान्य से अधिक तेज गति से उतरते हैं। सोरायसिस घुटनों और कोहनी पर होते हैं, लेकिन ये दूसरी जगहों पर भी फैल सकते हैं, जैसे बगल, कूल्हे के आसपास और घुटने के पीछे। 

बच्चों में सोरायसिस की स्थिति दुर्लभ होती है। यह एक इन्फ्लेमेटरी स्किन कंडीशन होती है, जो बच्चों को दो रूपों में प्रभावित करती है। वे कि इस प्रकार हैं:

1. प्लाक सोरायसिस

यह बच्चों में होने वाले सोरायसिस का सबसे आम प्रकार है। यह घुटनों, सिर की त्वचा, कोहनी और कमर के निचले हिस्से में होता है और यह पपड़ीदार चांदी जैसी चमकीली सफेद परत से ढका होता है।

2. गटेट सोरायसिस

यह प्रकार बड़ों की तुलना में बच्चों में अधिक देखा जाता है। यह प्लाक सोरायसिस की तरह मोटा या पपड़ीदार नहीं होता है, लेकिन हाथों और पैरों में त्वचा पर यह छोटे डॉट जैसे जख्म की तरह दिखता है। 

सोरायसिस के सौम्य, मध्यम और गंभीर मामले होते हैं। इसके सौम्य मामलों में केवल थोड़े रैशेस होते हैं। मध्यम मामलों में शरीर के 3% से 10% इससे इससे ढक जाते हैं और सबसे गंभीर मामलों में शरीर का 10% या उससे अधिक हिस्सा ढक जाता है। कुछ मामलों में यह पूरे शरीर पर भी हो जाता है। 

आइए इन दो कैटेगरी के अंदर आने वाले सोरायसिस के कुछ और प्रकारों पर नजर डालते हैं। 

बच्चों में सोरायसिस के प्रकार

यहां पर सोरायसिस के विभिन्न प्रकार दिए गए हैं, जो बच्चों को प्रभावित कर सकते हैं: 

1. स्कैल्प सोरायसिस

स्कैल्प सोरायसिस में सिर की त्वचा, बगल और कान के पीछे के हिस्से पर सफेद-पीली त्वचा के पैच या फ्लेकी त्वचा हो सकती है। इनमें खुजली भी हो सकती है और इनका रंग भी लाल हो सकता है। स्कैल्प पर बड़े गोलाकार और खुरदरे पैच यहां-वहां देखे जा सकते हैं। 

2. एक्यूट गटेट सोरायसिस

ये त्वचा पर छोटे स्पॉट जैसे निशान होते हैं। ये आम प्लाक से छोटे और पतले होते हैं। यह बड़ों में कम और बच्चों में अधिक देखा जाता है। 2% से कम लोग इस प्रकार के सोरायसिस से जूझते हैं। 

3. फ्लेक्सुरल सोरायसिस

इसे इन्वर्स सोरायसिस के नाम से भी जाना जाता है। यह अन्य प्रकारों की तरह नजर में नहीं आता है, लेकिन यह उनकी तरह दर्द भरा होता है। यह त्वचा की सिलवटों पर होने वाला चमकदार चिकना रैश होता है। यह दुर्लभ होता है और सोरायसिस के अन्य प्रकारों में आता है, जैसे क्रॉनिक प्लाक सोरायसिस। 

4. क्रॉनिक प्लाक सोरायसिस

सोरायसिस के लगभग 90% मामले प्लाक सोरायसिस के होते हैं। बच्चों में भी यही समस्या बहुत आम होती है। 

5. नेल सोरायसिस

इसे सोरायटिक नेल डिस्ट्रॉफी भी कहा जाता है और यह नाखूनों को प्रभावित करती है। इसका अकेले बनना दुर्लभ होता है और आमतौर पर यह सोरायटिक आर्थराइटिस या प्लाक सोरायसिस जैसी मौजूदा सोरायटिक स्थितियों के बाद आती है। यह नाखून के इर्द-गिर्द होती है और हाथ के दूसरे नाखूनों को भी संक्रमित कर सकती है। 

6. फोटोसेंसेटिव सोरायसिस

यह सोरायसिस का एक दुर्लभ प्रकार है, जो कि धूप के संपर्क या पॉलीमोर्फस लाइट इरप्शन के कारण होती है। बच्चे को धूप से दूर रख कर इसे रोका जा सकता है। 

बच्चों में सोरायसिस के कारण

बच्चों में सोरायसिस होने के कुछ कारण यहां पर दिए गए हैं:

  • चूंकि जींस एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, ऐसे में अनुवांशिक कारणों से बच्चे को सोरायसिस हो सकता है।
  • सोरायसिस से प्रभावित हर तीन में से एक व्यक्ति का कोई न कोई रिश्तेदार चाहे मृत हो या जीवित, सोरायसिस से प्रभावित होता है।
  • अगर बच्चे के मां या पिता में से कोई एक भी सोरायसिस से ग्रस्त हो, तो बच्चे में भी यही स्थिति होने की 15% संभावना होती है।
  • यह जनरेशन को स्किप करके भी हो सकता है। ऐसे में अगर पेरेंट्स को सोरायसिस ना हो, तो बच्चे या उसके भाई बहनों में यह स्थिति होने की संभावना 20% होती है।

सोरायसिस के संकेत और लक्षण

आप सोरायसिस के किस प्रकार से संक्रमित हैं, इसके आधार पर सोरायसिस के संकेत और लक्षण भिन्न हो सकते हैं। बच्चों में सोरायसिस के लक्षण इस प्रकार हैं: 

  • लाल त्वचा, चांदी जैसे रंग की ढीली पपड़ी से ढके हुए प्लाक।
  • दर्द और खुजली, जिसके कारण त्वचा में दरारें और ब्लीडिंग होना।
  • बिगड़े हुए मामलों में प्लाक फैल जाते हैं और एक दूसरे में मिल जाते हैं, जिससे ये बड़े हिस्सों में फैल जाते हैं।
  • हाथ और पैर के नाखूनों का रंग बदल जाता है, ये सिकुड़ जाते हैं और नाखून की जगह से अलग हो जाते हैं।
  • स्कैल्प पर परतदार रूसी जैसे प्लाक
  • त्वचा को खुरचने पर खून आना
  • सोरायटिक आर्थराइटिस में जोड़ों की सूजन भी होती है, जिससे दर्द होता है।
  • सोरायसिस से प्रभावित 30% लोग सोरायटिक आर्थराइटिस से भी जूझते हैं।

अगर आप ये सोच रही हैं, कि बच्चों में सोरायसिस कैसा दिखता है, तो नीचे दिए गए संकेतों पर नजर रखें। 

बच्चों में सोरायसिस कैसा दिखता है?

  • बच्चों में सोरायसिस के लक्षणों में नाखूनों का रंग बदल जाना और उनकी सतह पर छोटे छोटे गड्ढे या छेद बन जाना शामिल है।
  • त्वचा पर गंभीर स्केलिंग होना।
  • डायपर डर्मेटाइटिस या प्लाक जो कि गर्दन के हिस्से में एडल्ट सोरायसिस के जैसे दिखता है।

शिशुओं में सोरायसिस दुर्लभ होता है, पर ऐसा नहीं है, कि इसका कोई मामला सामने न आया हो। बीमारी को पहचानने के लिए करीबी ऑब्जरवेशन की जरूरत होती है। 

क्या बच्चों में सोरायसिस आम है?

बच्चों में सोरायसिस के कारण बड़े होने पर बड़े मानसिक नुकसान दिख सकते हैं। अध्ययन दर्शाते हैं, कि पूरे विश्व में लगभग 0.7% बच्चे इस बीमारी से ग्रस्त होते हैं। लगभग 10 में से 1 बच्चे में 10 वर्ष की उम्र तक सोरायसिस विकसित हो जाता है। चाइल्डहुड सोरायसिस का तुरंत इलाज करना जरूरी है, क्योंकि यह बीमारी दर्दनाक और तकलीफ दायक हो सकती है। इससे आपके बच्चे को उदासी, चिंता या घबराहट का एहसास हो सकता है। समय के साथ सोरायसिस में दिल को नुकसान पहुंचाने की क्षमता भी होती है। 

सोरायसिस से ब्लड फैट, ब्लड प्रेशर और इंसुलिन के स्तर में अनहेल्दी बदलाव आ सकते हैं। जब ये सभी एक साथ हो जाते हैं, तो इसे मेटाबॉलिक सिंड्रोम कहा जाता है। इसे डायबिटीज और हृदय की समस्याओं से जोड़ा जाता है। सोरायसिस से ग्रस्त बच्चों में मोटापे के कारण दिल की समस्याओं का अधिक खतरा देखा गया है। 

क्या सोरायसिस दर्दनाक होता है?

सोरायसिस में अक्सर दर्द और खुजली होती है। सोरायसिस के विभिन्न प्रकारों के बीच एरि‍थ्रोडर्मिक सोरायसिस सोरायसिस का सबसे दुर्लभ प्रकार है। इसमें बहुत अधिक दर्द और खुजली होती है। यह सोरायसिस का सबसे गंभीर स्वरूप है, जिसमें लगभग पूरे शरीर पर लालिमा छा जाती है। यह जानलेवा हो सकता है, क्योंकि इसमें त्वचा परतों में उतर सकती है। 

क्या सोरायसिस का इलाज किया जा सकता है?

हालांकि सोरायसिस का इलाज नहीं किया जा सकता है, लेकिन विभिन्न उपायों के द्वारा इसे मैनेज किया जा सकता है। 

बच्चों में सोरायसिस के खतरे को बढ़ाने वाली स्थितियां

जहां सोरायसिस के सटीक कारणों की जानकारी उपलब्ध नहीं है, वहीं सोरायसिस को बिगाड़ने वाले कई ट्रिगर होते हैं, जो कि इस प्रकार हैं:

  • इंफेक्शन
  • स्किन इरिटेशन
  • तनाव
  • मोटापा
  • ठंडा मौसम

ट्रिगर को मैनेज करने से सोरायसिस की गंभीरता को घटाने में मदद मिल सकती है। 

क्या सोरायसिस संक्रामक होता है?

सोरायसिस एक इन्फ्लेमेशन है और यह संक्रामक नहीं होता है। जागरूकता की कमी के कारण लोगों को यह डर होता है, कि यह संक्रमण केवल छूने से फैल सकता है, जो कि सच्चाई नहीं है। इस धारणा का कारण यह है, कि लोगों को लगता है, कि यह बीमारी किसी प्रकार के वायरस, फंगस या बैक्टीरिया से होती है, लेकिन यह बीमारी इन्फ्लेमेशन और खराब इम्यून सिस्टम के कारण होने वाली समस्याओं के कारण होती है। 

कैसे पता करें कि स्थिति सोरायसिस है या एक्जिमा?

सोरायसिस में खुजली होती है और इसमें चुनचुनाहट और जलन का एहसास होता है। कुछ लोग इस एहसास को फायर-एंट के काटने के जैसा बताते हैं। कई लोग सोरायसिस को एक्जिमा समझने की गलती कर देते हैं। एक्जिमा में बहुत अधिक खुजली होती है। लोग इसमें इतनी अधिक खुजली करते हैं, कि त्वचा से खून आने लगता है। एक्जिमा में त्वचा में इन्फ्लेमेशन हो जाती है और त्वचा लाल हो जाती है, जो कि क्रस्टी या स्केली हो सकती है। आप त्वचा पर रूखे पैच देख सकती हैं, जिनका रंग कभी-कभी गहरा होता है। कुछ लोगों में इससे सूजन भी हो सकती है। यह कई तरह से सोरायसिस जैसा हो सकता है और आपको लाल पैच भी हो सकते हैं। लेकिन वे स्केली होते हैं और चांदी जैसे होते हैं और ऊपर उभरे हुए होते हैं। करीबी जांच करने पर आप देखेंगी, कि त्वचा अधिक फूली होती है और एक्जिमा से अधिक मोटी होती है। 

साथ ही, त्वचा की ये स्थितियां शरीर के दूसरे हिस्सों को भी प्रभावित कर सकती हैं। सोरायसिस घुटनों, कोहनी, चेहरे, सिर की त्वचा, पीठ के निचले हिस्से, हथेलियों, तलवों, नाखून, मुंह, होंठ, कान और त्वचा की सिलवटें पर देखे जा सकते हैं। एक्जिमा आमतौर पर शरीर के उन हिस्सों पर होता है जो मुड़ते हैं, जैसे घुटनों के पीछे, या कोहनी के अंदरूनी हिस्से पर। यह गर्दन, एड़ियों और कलाइयों पर भी देखे जा सकते हैं। बच्चों में असामान्य रूप से यह सिर की त्वचा, गालों, ठुड्डी, छाती, पीठ, पैरों और हाथों पर दिख सकते हैं। 

यहां पर सोरायसिस और एक्जिमा के कुछ संभव ट्रिगर बताए गए हैं: 

  • एक्जिमा आमतौर पर त्वचा को इरिटेट करने वाली चीजों के कारण होते हैं, जैसे डिटर्जेंट साबुन, डिसइनफेक्टेंट और मीट या उससे निकलने वाले रस के कारण। आपके बच्चे को जिन चीजों से एलर्जी हो, उनके कारण भी एक्जिमा ट्रिगर हो सकता है, जैसे धूल-मिट्टी, पालतू जानवर, पोलेन, माउल्ड, रूसी और कुछ विशेष खाद्य पदार्थ। संक्रमण, तनाव, गर्मी, पसीना, नमी और हॉर्मोनल बदलावों के कारण भी एक्जिमा हो सकता है। आमतौर पर शिशुओं और छोटे बच्चों में एक्जिमा देखा जाता है। अधिकतर मामलों में यह स्थिति बच्चे के बड़े होने पर ठीक होती जाती है। वयस्कों के इससे प्रभावित होने की संभावना बहुत कम होती है। आमतौर पर यह तनाव, हार्मोनल बदलाव या थायराइड की बीमारी जैसी अन्य स्थितियों के साइड इफेक्ट के कारण हो सकता है। एक्जिमा के साथ त्वचा का रूखापन और सेंसटिविटी भी साथ आते हैं। हो सकता है, कि आपके परिवार में कुछ ऐसे सदस्य हों, जिन्हें एक्जिमा, अस्थमा या हे फीवर हो।
  • सोरायसिस संक्रमण तनाव या त्वचा पर किसी इंजरी के कारण हो सकता है। यह इंजरी सनबर्न, स्क्रैच और वैक्सीनेशन के कारण हो सकते हैं। कुछ विशेष प्रकार की दवाएं जैसे एंटीमलेरियल, लिथियम, बाइपोलर डिसऑर्डर के इलाज के लिए इस्तेमाल की जाने वाली दवाएं आदि भी इसका कारण बन सकती हैं। आमतौर पर यह 15 से 35 वर्ष की उम्र के बीच दिखता है। हालांकि शिशुओं में यह स्थिति दुर्लभ होती है, लेकिन आप हर उम्र में इस बीमारी को देख सकते हैं। इसे स्वास्थ्य संबंधी बड़ी समस्याओं से जोड़ा जाता है। अगर आपको यह समस्या है, तो आप में दिल की बीमारियां, डिप्रेशन या डायबिटीज होने की संभावना बहुत अधिक होती है।

अब आइए सोरायसिस के डायग्नोसिस पर एक नजर डालते हैं। 

बच्चों में सोरायसिस की पहचान

बच्चों में शारीरिक जांच के द्वारा सोरायसिस की पहचान की जाती है। डॉक्टर त्वचा की जांच करते हैं और प्रभावित जगह के ऑब्जरवेशन के आधार पर डायग्नोसिस करते हैं: 

  • आमतौर पर प्लाक सिमिट्रिकली फैले होते हैं।
  • ये खासकर सिर की त्वचा, घुटने, कोहनी और त्वचा की सिलवटों जैसे के कान के पीछे, गर्दन और बगलों जैसे क्षेत्रों को प्रभावित करते हैं।
  • ये लाल होते हैं, घिरे हुए होते हैं और स्केली होते हैं।
  • परिवार में सोरायसिस का एक इतिहास होता है।

गंभीर मामलों में एक स्किन बायोप्सी जरूरी हो सकती है, ताकि सोरायसिस को ऐसी ही किसी मिलती-जुलती स्किन कंडीशन समझने की गलती ना हो। 

सोरायसिस की गंभीरता के मूल्यांकन से इलाज के सबसे उचित तरीके का चुनाव हो पाता है। इसकी गंभीरता को निम्नलिखित तरीकों से समझा जा सकता है:

  • शरीर पर सोरायसिस से प्रभावित जगह को कैलकुलेट करना।
  • सोरायसिस एरिया एंड सिवीयरिटी इंडेक्स (पीएएसआई स्कोर) का आंकलन।
  • एक प्रश्नोत्तरी की मदद से जीवन की गुणवत्ता का मूल्यांकन करना।

एक अच्छा डर्मेटोलॉजिस्ट व्यक्ति को गंभीर सोरायसिस से निपटने में मदद कर सकता है। सोरायसिस से ग्रस्त बच्चे और टीनएजर्स को पीडियाट्रिक डर्मेटोलॉजिस्ट की मदद की जरूरत होती है। इसके अलावा काउंसलिंग को भी रेकमेंड किया जाता है, क्योंकि सोरायसिस के कारण बच्चे को गंभीर सामाजिक और मानसिक नुकसान हो सकता है। 

सोरायसिस का इलाज

इसका इलाज संभव नहीं है, लेकिन ऐसे कई विकल्प हैं, जिनके द्वारा सोरायसिस को मैनेज किया जा सकता है: 

1. टॉपिकल थेरेपी

सोरायसिस से ग्रस्त सभी बच्चों में हल्के से मध्यम सोरायसिस को ठीक करने के लिए टॉपिकल थेरेपी बेहतरीन होते हैं। 

  • डॉक्टर कैल्सिपौट्रियोल जैसे मरहम रेकमेंड कर सकते हैं, जिसे प्रभावित जगह पर दिन में दो बार लगाना होता है।
  • आमतौर पर, टॉपिकल कॉर्टिकोस्टेरॉइड का इस्तेमाल छोटे कोर्स में किया जाता है, हर सप्ताह दो से तीन बार।

  • डॉक्टर बेटामेथासोन डाईप्रोपियोनेट और कैल्सिपौट्रियोल जेल/मरहम को मिलाकर हर रोज एक बार 4 सप्ताह के लिए लगाने की सलाह दे सकते हैं। बाद में जरूरत पड़ने पर कभी कभार इसका इस्तेमाल किया जा सकता है।
  • तुरंत राहत पाने के लिए डिथ्रेनोल का इस्तेमाल किया जा सकता है, लेकिन इसका इस्तेमाल करना आसान नहीं है, क्योंकि इससे कपड़ों पर निशान पड़ सकते हैं और त्वचा को इरिटेट कर सकते हैं।
  • सोरायसिस से ग्रस्त बच्चों के लिए कोलतार का इस्तेमाल किया जा सकता है, क्योंकि यह चेहरे या जननांग को प्रभावित नहीं करता है। यह स्कैल्प सोरायसिस के लिए बेहतरीन होता है, लेकिन इसकी महक अच्छी नहीं होती है।

2. फोटोथेरेपी

नैरोबैंड यूवीबी फोटोथेरेपी का इस्तेमाल आमतौर पर सोरायसिस से ग्रस्त बच्चों के लिए किया जाता है, खासकर 10 वर्ष से अधिक उम्र के बच्चों के लिए। यह गटेट सोरायसिस और प्लाक सोरायसिस के लिए उपयुक्त इलाज होता है, क्योंकि वे इस पर सबसे अच्छी प्रतिक्रिया देते हैं। हॉस्पिटल आधारित ट्रीटमेंट कोर्स में आमतौर पर मरीज को सप्ताह में तीन बार इलाज के लिए अटेंड करने की जरूरत होती है और ऐसा 12 सप्ताह तक करना पड़ता है। कुछ हॉस्पिटल पीयूवीए और ब्रॉडबैंड यूवीबी इलाज ऑफर करते हैं। 

3. मैथोट्रेक्जेट

अगर टॉपिकल ट्रीटमेंट और फोटोथेरेपी से संतोषजनक परिणाम ना दिखें, तो मेथडमैथोट्रेक्जेट टेबलेट का इस्तेमाल किया जा सकता है। इन्हें सप्ताह में एक बार प्रिस्क्राइब किया जाता है और ये उपयोगी साबित हो चुके हैं। बच्चों की तुलना में बड़ों के इलाज के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है। विभिन्न केस अध्ययन में यह पाया गया है, कि 2 वर्ष के बच्चों पर उल्लेखनीय सहिष्णुता के साथ इसके बेहतरीन प्रभाव दिखते हैं। सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए नियमित ब्लड टेस्ट जरूरी होते हैं। 

4. बायोलॉजिकल एजेंट्स

बायोलॉजिकल एजेंट्स जैसे इंट्रावेनस इन्फ्लिक्सीमाब और सबकटेनियस एटानरसेप्ट का इस्तेमाल केवल अंतिम उपाय के रूप में किया जाना चाहिए। जब बच्चों में गंभीर सोरायसिस के मामलों में अन्य किसी भी थेरेपी के प्रभाव ना दिखें, तब इसका इस्तेमाल किया जा सकता है। हालांकि ये सुरक्षित होते हैं, लेकिन इनके बुरे साइड इफेक्ट दिख सकते हैं, जैसे कि इन्फेक्शन। केस के आधार पर केवल एक डर्मेटोलॉजिस्ट की सलाह के बाद ही बायोलॉजिकल एजेंट का इस्तेमाल करना चाहिए। 

सोरायसिस को ठीक करने के लिए घरेलू उपचार

1. डाइटरी सप्लीमेंट

नेशनल सोरायसिस फाउंडेशन के अनुसार डाइटरी सप्लीमेंट सोरायसिस के लक्षणों में अंदर से आराम दिलाने में मदद कर सकते हैं। विटामिन ‘डी’, एलोवेरा और ओरेगॉन ग्रेप, मिल्क थिसल और इवनिंग प्रिमरोज ऑयल सौम्य सोरायसिस के लक्षणों को मैनेज करने में मददगार माना जाता है। यह याद रखना जरूरी है, कि ऐसे सप्लीमेंट का इस्तेमाल न किया जाए, जो आपकी मौजूदा स्थितियों में रुकावट पैदा करें। 

2. रूखी त्वचा से बचाव

अपने घर की हवा को एक ह्यूमिडिफायर की मदद से नम रखें। इससे त्वचा के रूखेपन से बचने में मदद मिलती है। सेंसिटिव स्किन के लिए मॉइश्चराइजर का इस्तेमाल करने से वह मुलायम रहती है और इस पर प्लाक बनने से बचाव होता है। 

3. खुशबू से बचाव

अधिकतर परफ्यूम और साबुन में डाय और अन्य केमिकल होते हैं, जो त्वचा को परेशान कर सकते हैं। इससे आपकी खुशबू भले ही अच्छी लग सकती है, लेकिन इसके बदले में सोरायसिस इन्फ्लेमेशन हो सकती है। इसलिए जितना संभव हो सके, बच्चों को ऐसे प्रोडक्ट से बचाना ही सबसे अच्छा होता है। आप ऐसे प्रोडक्ट का चुनाव कर सकती हैं, जो सेंसिटिव त्वचा के लिए उपयुक्त हों। 

4. स्वस्थ भोजन

सोरायसिस को मैनेज करने में खानपान एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। खाने से फैटी स्नैक्स और रेड मीट को हटाकर इनके कारण होने वाले ट्रिगर को कम करने में मदद मिल सकती है और आपको इन लक्षणों से राहत मिल सकती है। कोल्ड वॉटर फिश, नट्स, बीज एवं ओमेगा 3 फैटी एसिड के अन्य स्रोत इन्फ्लेमेशन घटाने वाली अपनी क्षमता के लिए बेहद लोकप्रिय हैं। ये सोरायसिस के लक्षणों को मैनेज करने में बेहद मददगार हैं। ऑलिव ऑयल को भी अपने फायदे के लिए जाना जाता है। इसे त्वचा पर लगाने पर आराम मिलता है। अगली बार बच्चे को शावर लेने पर सिर की त्वचा पर थोड़े ऑलिव ऑयल से मालिश करने की कोशिश करें। इससे इरिटेटिंग प्लाक को ढीला करने में मदद मिलती है। 

5. गुनगुने पानी से नहाना

जहां गर्म पानी से त्वचा को परेशानी होती है, वहीं गुनगुने पानी में एप्सम सॉल्ट,  दूध या जैतून का तेल मिलाने से खुजली में आराम मिलता है और यह प्लाक और स्केल को पेनिट्रेट करते हैं। अधिक फ़ायदों के लिए नहाने के बाद तुरंत बच्चे की त्वचा को मॉइश्चराइज करें। 

6. लाइट थेरेपी

लाइट थेरेपी में मेडिकल प्रैक्टिशनर की निगरानी के अंदर अल्ट्रावायलेट किरणें डाली जाती हैं। आमतौर पर इस थेरेपी को बार-बार और लगातार कराने की जरूरत होती है। यह याद रखना जरूरी है, कि त्वचा की टेनिंग को लाइट थेरेपी का विकल्प नहीं समझा जा सकता है। धूप से जरूरत से ज्यादा संपर्क होने से सोरायसिस बिगड़ सकता है। इसलिए डॉक्टर की गाइडेंस के साथ इस प्रक्रिया को अपनाने की सलाह दी जाती है। 

7. तनाव कम करना

सोरायसिस जैसी अधिकतर क्रॉनिक बीमारियां तनाव के कारण हो सकती हैं। अक्सर यह एक घातक रूप ले सकता है, जिसमें तनाव सोरायसिस के लक्षणों को बिगाड़ सकता है। जितना संभव हो सके, तनाव को कम करने और तनाव घटाने वाले प्रैक्टिसों को लागू करने की कोशिश करनी चाहिए, जैसे योगा और मेडिटेशन। 

सोरायसिस से ग्रस्त बच्चे जांच और इलाज के कुछ महीनों के अंदर पूरी तरह से ठीक हो सकते हैं। खासकर अगर गटेट प्लाक किसी संक्रमण के कारण हुआ हो तो। यह याद रखने की सलाह दी जाती है, कि कुछ बच्चों में लॉन्ग टर्म सोरायसिस दिख सकते हैं। कई मामलों में यह बीमारी आजीवन रह जाती है। खासकर शुरुआती लार्ज प्लाक सोरायसिस आमतौर पर बने रहते हैं और इसलिए इन्हें ठीक करना कठिन होता है। इससे सोरायटिक आर्थराइटिस जैसे कॉम्प्लिकेशंस होने की संभावना होती है। गंभीर सोरायसिस से ग्रस्त बच्चों को आमतौर पर नियमित रूप से एक्सरसाइज करने की, एक स्वस्थ जीवनशैली को फॉलो करने की और एक स्वस्थ वजन को मेंटेन रखने की सलाह दी जाती है। 

यह भी पढ़ें: 

बच्चों में खसरा (रूबेला) होना
बच्चों में गलसुआ (मम्प्स) होना
बच्चों में खाज (स्केबीज) की समस्या – कारण, लक्षण और इलाज

पूजा ठाकुर

Recent Posts

जादुई हथौड़े की कहानी | Magical Hammer Story In Hindi

ये कहानी एक लोहार और जादुई हथौड़े की है। इसमें ये बताया गया है कि…

1 week ago

श्री कृष्ण और अरिष्टासुर वध की कहानी l The Story Of Shri Krishna And Arishtasura Vadh In Hindi

भगवान कृष्ण ने जन्म के बाद ही अपने अवतार के चमत्कार दिखाने शुरू कर दिए…

1 week ago

शेर और भालू की कहानी | Lion And Bear Story In Hindi

शेर और भालू की ये एक बहुत ही मजेदार कहानी है। इसमें बताया गया है…

1 week ago

भूखा राजा और गरीब किसान की कहानी | The Hungry King And Poor Farmer Story In Hindi

भूखा राजा और गरीब किसान की इस कहानी में बताया गया कि कैसे एक राजा…

1 week ago

मातृ दिवस पर भाषण (Mother’s Day Speech in Hindi)

मदर्स डे वो दिन है जो हर बच्चे के लिए खास होता है। यह आपको…

1 week ago

मोगली की कहानी | Mowgli Story In Hindi

मोगली की कहानी सालों से बच्चों के बीच काफी लोकप्रिय रही है। सभी ने इस…

1 week ago