In this Article
- छोटे बच्चों में ब्रेस्टफीडिंग जॉन्डिस और ब्रेस्ट मिल्क जॉन्डिस क्या होता है?
- स्तनपान करने वाले बेबी में जॉन्डिस के क्या कारण होते हैं?
- स्तनपान करने वाले छोटे बच्चों में जॉन्डिस का इलाज
- स्तनपान करने वाले छोटे बच्चों में जॉन्डिस को कम करने के लिए कौन से इलाज को रेकमेंड नहीं किया जाता है?
- ब्रेस्ट मिल्क जॉन्डिस और ब्रेस्टफीडिंग जॉन्डिस की पहचान कैसे होती है?
- स्तनपान करने वाले बेबी में जॉन्डिस से कैसे बचा जाए?
- क्या बच्चे को जॉन्डिस होने के बाद भी माँ स्तनपान कराना जारी रख सकती है?
न्यूबॉर्न बच्चों में जॉन्डिस यानी पीलिया एक आम बीमारी है। जॉन्डिस बिलीरुबिन के बढ़े हुए स्तर का एक संकेत है, जो कि जन्म के बाद के पहले सप्ताह के दौरान, आमतौर पर 60% फुल टर्म शिशुओं और 80% प्रिटर्म नवजात शिशुओं में देखा जाता है। बिलीरुबिन एक नवजात शिशु में पुराने रेड ब्लड सेल के ब्रेकडाउन का एक बाय-प्रोडक्ट है। इसके बढ़े हुए स्तर के कुछ प्रमुख कारण इस प्रकार हैं:
- वयस्कों के हाई रेड ब्लड सेल कंसंट्रेशन की तुलना में, नवजात शिशुओं में रेड ब्लड सेल के जीवन की अवधि छोटी होती है, जिसके कारण बिलीरुबिन का स्तर बढ़ जाता है।
- नवजात शिशुओं को मैकोनियम के पैसेज में रुकावट का सामना करना पड़ता है, जिसके कारण बिलीरुबिन फिर से आंतों में अब्जॉर्ब हो जाता है।
- लिवर, मल के माध्यम से बिलीरुबिन को शरीर से बाहर निकालने के लिए ब्रेकडाउन करने में मदद करता है। नवजात शिशुओं में लिवर का फंक्शन अपरिपक्व होता है, जिससे बिलीरुबिन का मेटाबॉलिज्म धीमा पड़ जाता है।
छोटे बच्चों में ब्रेस्टफीडिंग जॉन्डिस और ब्रेस्ट मिल्क जॉन्डिस क्या होता है?
ब्रेस्टफीडिंग से जुड़े जॉन्डिस दो तरह के होते हैं। ब्रेस्टफीडिंग जॉन्डिस, जॉन्डिस का शुरुआती स्तर होता है, जो कि कैलोरी की कमी और/या अपर्याप्त फीडिंग के कारण होता है। विशेषकर, अगर बिलीरुबिन का स्तर बढ़ रहा हो, तो फीडिंग पैटर्न को बढ़ाकर इस तरह के जॉन्डिस से बचाव या इलाज में मदद मिलती है।
वहीं दूसरी ओर, ब्रेस्ट मिल्क जॉन्डिस देर से दिखता है और यह खुद ब्रेस्ट मिल्क में असामान्यताओं से संबंधित है। अगर स्वस्थ फुल टर्म शिशुओं में, बिलीरुबिन कंसंट्रेशन 270 एमयूएमओएल/लीटर से कम रहता है, तो ब्रेस्ट मिल्क जॉन्डिस सिंड्रोम या प्रोलांग्ड जॉन्डिस को अधिक थेरेपी की जरूरत नहीं होती है। अगर बिलीरुबिन कंसंट्रेशन 270 एमयूएमओएल/लीटर से अधिक हो या बढ़ रहा हो, तो स्तनपान को थोड़े समय के लिए रोक देना चाहिए।
ब्रेस्ट मिल्क जॉन्डिस जीवन के पहले सप्ताह के बाद होता है और बिना किसी विशेष कारण के फिजियोलॉजिकल जॉन्डिस से अधिक समय तक बना रहता है। ब्रेस्टफीडिंग जॉन्डिस जीवन के शुरुआती कुछ दिनों में होता है और यह अगले कुछ सप्ताहों में बढ़ता है और जीवन के 3 सप्ताह होने तक खत्म हो जाता है। ब्रेस्टफीडिंग जॉन्डिस से प्रभावित बच्चों में, जीवन के शुरुआती कुछ दिनों में वजन में कमी और थोड़ा डिहाइड्रेशन देखा जाता है।
स्तनपान करने वाले बेबी में जॉन्डिस के क्या कारण होते हैं?
बिलीरुबिन एक पीला पिगमेंट होता है, जो कि शरीर द्वारा पुराने रेड ब्लड सेल को रिसाइकल करने का कारण बनता है। लिवर वह अंग है, जो कि बिलीरुबिन को ब्रेकडाउन करता है, ताकि वह मल के माध्यम से शरीर से बाहर निकल सके। जीवन के शुरुआती पहले से पाँचवें दिन के बीच, नवजात शिशुओं का पीला दिखना सामान्य है। तीसरे या चौथे दिन के आसपास यह पीलापन दूर हो जाता है।
ब्रेस्ट मिल्क जॉन्डिस के कारण
ब्रेस्ट मिल्क जॉन्डिस, जीवन के पहले सप्ताह के बाद दिखता है। जहाँ इसके कारण की पूरी जानकारी नहीं है, वहीं यह संभव है, कि ब्रेस्ट मिल्क में मौजूद पदार्थ बच्चे के लिवर में मौजूद कुछ विशेष प्रोटीन को बिलीरुबिन को तोड़ने से रोकते हैं।
ब्रेस्टफीडिंग जॉन्डिस के कारण
जब शिशु को पर्याप्त ब्रेस्टमिल्क नहीं मिलता है, तो उसे ‘ब्रेस्टफीडिंग फेल्योर जॉन्डिस’ या ‘ब्रेस्ट नॉन-फीडिंग जॉन्डिस’ कहते हैं या फिर इससे ‘स्टार्वेशन जॉन्डिस’ भी कहा जाता है। यह स्थिति निम्नलिखित परिस्थितियों में बनती है:
- जब प्रीमैच्योर बच्चे (समय से पहले जन्म लेने वाले बच्चे) सही तरीके से दूध पीने में अक्षम होते हैं।
- जो शिशु एक शेड्यूल के अनुसार दूध पीने के आदी होते हैं, उनमें भी यही स्थिति देखी जा सकती है।
- जो बच्चे सही तरह से लैच करने में सक्षम नहीं होते हैं।
- जिन बच्चों को पैसिफायर दिया जाता है, जो कि ब्रेस्टफीडिंग में रुकावट पैदा करता है, विशेषकर जब उन्हें भूख लगी होती है तब।
ब्रेस्ट मिल्क जॉन्डिस परिवारों में हो सकता है और यह केवल स्तनपान करने वाले नवजात शिशुओं में से लगभग एक तिहाई बच्चों को प्रभावित करता है।
स्तनपान करने वाले छोटे बच्चों में जॉन्डिस का इलाज
ब्रेस्ट मिल्क जॉन्डिस के इलाज के तरीके और ब्रेस्ट फीडिंग जॉन्डिस के इलाज के तरीके, ओवरलैप करते हैं और इन्हें तब आजमाना चाहिए, जब बिलीरुबिन का स्तर 20 मिलीग्राम से नीचे हो (फुल टर्म स्वस्थ शिशुओं में)।
- अपने बच्चे को दिन भर में 10 से 12 बार दूध पिलाएं। इससे बॉवेल मूवमेंट बढ़ेगा और शरीर में इकट्ठा हो चुके बिलीरुबिन को बाहर निकालने में मदद मिलेगी।
- एक लेक्टेशन प्रोफेशनल की मदद से बच्चे को अच्छी तरह से लैच करने और दूध पीने में मदद करें।
- अगर आप फॉर्मूला का इस्तेमाल करती हैं, तो ब्रेस्ट मिल्क के प्रोडक्शन को मेंटेन रखने के लिए लेक्टेशन एड्स का इस्तेमाल करें। दूध की सप्लाई को बनाए रखने के लिए, आपको ब्रेस्ट मिल्क को पंप करने की जरूरत होगी। फॉर्मूला दूध और मिश्रण बच्चे को देकर ब्रेस्टफीडिंग में आने वाली रुकावट से बचा जा सकता है।
- अगर शिशु का बिलीरुबिन स्तर 20 मिलीग्राम से अधिक है, तो फोटो थेरेपी (बच्चे को एक विशेष रोशनी के नीचे एक या दो दिनों के लिए रखना) के माध्यम से बिलीरुबिन के स्तर को गिराया जाएगा, क्योंकि इससे मॉलिक्यूल की संरचना बदल जाती है और उसे तुरंत शरीर से बाहर निकाला जा सकता है। इस समय के दौरान भविष्य में ब्रेस्टफीडिंग की समस्याओं से बचने के लिए आपको लेक्टेशन एड का इस्तेमाल करने की जरूरत होगी।
स्तनपान करने वाले छोटे बच्चों में जॉन्डिस को कम करने के लिए कौन से इलाज को रेकमेंड नहीं किया जाता है?
ऐसी कुछ तकनीक हैं, जिन्हें जॉन्डिस को कम करने के लिए इलाज के तौर पर इस्तेमाल नहीं करना चाहिए:
- ब्रेस्ट मिल्क में शक्कर पानी मिलाने से स्थिति और भी बिगड़ सकती है। इससे ब्रेस्ट मिल्क इनटेक और प्रोडक्शन प्रभावित हो सकता है और आगे चलकर बिलीरुबिन के स्तर में गिरावट में देरी हो सकती है।
- स्तनपान को रोकना एक गलत तरीका हो सकता है, क्योंकि बच्चे को पोषक तत्वों की जरूरत होगी। इसकी वजह से आपको ब्रेस्टफीडिंग की फ्रीक्वेंसी और भी बढ़ा देनी चाहिए।
ब्रेस्ट मिल्क जॉन्डिस और ब्रेस्टफीडिंग जॉन्डिस की पहचान कैसे होती है?
एक लेक्टेशन प्रोफेशनल दूध पीने की फ्रीक्वेंसी को देखता है और यह जानने की कोशिश करता है, कि आपका बच्चा अच्छी तरह से लैचिंग कर रहा है या नहीं और उसके लिए दूध की सप्लाई पर्याप्त है या नहीं। त्वचा की जांच और आँखों के सफेद हिस्से की जांच के लिए, शारीरिक परीक्षण किया जाएगा, क्योंकि जॉन्डिस होने पर इनका रंग पीला हो जाता है। बिलीरुबिन के स्तर, संपूर्ण ब्लड काउंट, ब्लड स्मीयर को मापने के लिए डॉक्टर कई तरह के टेस्ट की सलाह दे सकते हैं, ताकि सेल्स की आकृति को पहचाना जा सके। इससे जॉन्डिस के अधिक खतरनाक कारणों का पता लगाने में मदद मिल सकती है। कुछ दुर्लभ मामलों में 24 घंटे के लिए शिशु का स्तनपान बंद करने और उसे फॉर्मूला दूध देने को भी कहा जा सकता है। ऐसा इसलिए किया जाता है, ताकि यह पता चल सके कि बिलीरुबिन के स्तर में गिरावट आती है या नहीं।
स्तनपान करने वाले बेबी में जॉन्डिस से कैसे बचा जाए?
जॉन्डिस को होने से रोकने का कोई विशेष तरीका उपलब्ध नहीं है, लेकिन इसकी गंभीरता को नियंत्रित जरूर किया जा सकता है।
- जन्म के शुरुआती कुछ घंटों में ब्रेस्टफीडिंग की शुरुआत करें, ताकि बच्चे के साथ मजबूत ब्रेस्टफीडिंग संबंध बनाया जा सके।
- इस बात का ध्यान रखें, कि बच्चा अच्छी तरह से लैच करना चाहिए और उसे पर्याप्त दूध मिलना चाहिए। अगर जरूरत हो, तो आप एक लेक्टेशन एक्सपर्ट से सलाह भी ले सकती हैं।
- बच्चे को जितना संभव हो सके, बार-बार दूध पिलाएं और ध्यान रखें, कि बच्चे का पेट अच्छी तरह से भरे।
- अगर कोई मजबूरी न हो, तो ब्रेस्टफीडिंग के साथ छेड़छाड़ न करें या इसमें अलग से कुछ भी डालने की कोशिश न करें।
क्या बच्चे को जॉन्डिस होने के बाद भी माँ स्तनपान कराना जारी रख सकती है?
ज्यादातर नवजात शिशु जॉन्डिस होने के बाद भी ब्रेस्टफीडिंग करना जारी रख सकते हैं। इसकी फ्रीक्वेंसी जैसे-जैसे बढ़ती है, माँ में दूध का उत्पादन भी बढ़ता जाता है। इससे बच्चे को और अधिक कैलोरी मिलती है और उसका शरीर हाइड्रेटेड रहता है। इससे बिलीरुबिन का स्तर भी कम होने में मदद मिलती है। फीडिंग में बढ़ोतरी होने से मैकोनियम को भी बढ़ावा मिलता है, जिससे मल के माध्यम से खून में मौजूद ज्यादा बिलीरुबिन को बाहर निकालने में मदद मिलती है। स्तनपान करने वाले शिशुओं में ब्रेस्ट मिल्क जॉन्डिस के कारण होने वाले प्रोलांग्ड जॉन्डिस के कारण ब्रेस्टफीडिंग को थोड़े समय के लिए रोकना पड़ सकता है। लेकिन माँ को सलाह दी जाती है, कि वह अपने दूध के उत्पादन को बनाए रखने के लिए दूध को एक्सप्रेस करती रहे और उसे फॉर्मूला में मिलाकर बच्चे को पिलाए। इससे ब्रेस्टफीडिंग में रुकावट नहीं आएगी और माँ के शरीर में दूध का उत्पादन लगातार बना रहेगा।
नवजात शिशुओं में जॉन्डिस एक आम स्थिति है। ब्रेस्टफीडिंग की प्रक्रिया को बनाए रखने के लिए और माँ के शरीर में दूध की सप्लाई को मेंटेन रखने के लिए, ब्रेस्टफीडिंग को जारी रखने पर ध्यान देना चाहिए। ब्रेस्टफीडिंग को केवल तब ही बंद करना चाहिए, जब डॉक्टर ऐसा करने को कहें और ब्रेस्टफीडिंग में किसी तरह की रुकावट से बचने के लिए वैकल्पिक तरीकों को अपनाना चाहिए ताकि दूध का उत्पादन जारी रहे।
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