शिशु

ब्रेस्टफीडिंग के बारे में 15 भ्रांतियां और सच्चाई

हर नई माँ को अपने बच्चे को संभालने के लिए परिवार और प्रियजनों से दुनिया भर की हिदायतें मिलती हैं, जिनमें से कुछ उपयोगी होती हैं तो वहीं कुछ उपयोगी नहीं भी होती हैं। पहली बार माँ बनने वाली महिलाओं को अपने बेबी को ब्रेस्टफीडिंग कराने के लिए वैसे ही कई मुश्किलों और चैलेंजेस का सामना करना पड़ता है। ऐसे में उन्हें हर दूसरे व्यक्ति से मिलने वाली एक अलग सलाह या टिप्स को लेकर कन्फ्यूजन हो सकता है। मुश्किल तब आती है, जब आधे सच और अधूरे ज्ञान में छिपी कई भ्रांतियों की सच्चाई का पता चलता है। इस आर्टिकल में हमने ब्रेस्टफीडिंग से जुड़े उन तमाम मिथ्स के बारे में बताया है जो समाज में फैले हुए हैं और साथ ही उनसे जुड़ी सच्चाई क्या है इसके बारे में विस्तार से समझाया है। 

ब्रेस्टफीडिंग से जुड़ी भ्रांतियां, जिनके बारे में आपको जानकारी होनी चाहिए!

भ्रांति 1 – जिन महिलाओं के ब्रेस्ट छोटे होते हैं, उनमें बच्चे के लिए पर्याप्त दूध नहीं बनता है

सच्चाई:  

ब्रेस्ट का आकार दूध के प्रोडक्शन पर किसी भी तरह से कोई प्रभाव नहीं डालता है। बल्कि बच्चे को दूध पिलाने के लिए जिन ब्रेस्ट टिश्यू की जरूरत होती है, वे आपकी प्रेगनेंसी के साथ ही बढ़ते हैं। यह आपके द्वारा अनुभव किए जाने वाले कई तरह के शारीरिक बदलावों का एक हिस्सा होता है। मिल्क डक्ट, आकार के लिए जिम्मेदार फैटी टिश्यू में नहीं, बल्कि इन नए विकसित होने वाले टिश्यू में ही स्थित होते हैं। इस भ्रांति के बिल्कुल विपरीत अधिकतर महिलाओं के शरीर में असल में अत्यधिक मात्रा में दूध का प्रोडक्शन होता है। सच्चाई तो यह है, कि दूध का प्रोडक्शन बड़े पैमाने पर आपके मैमरी ग्लैंड के स्टिमुलेशन और दूध पीने के दौरान बच्चे के उचित लैचिंग से ही निर्धारित होता है। डिलीवरी के बाद के शुरुआती 2 सप्ताह के दौरान यह स्थापित हो जाता है। 

भ्रांति 2 – ब्रेस्टफीडिंग के दौरान दर्द होना सामान्य है

सच्चाई

हालांकि लगभग सभी नई माँएं ब्रेस्टफीडिंग की शुरुआत के समय दर्द का अनुभव करती हैं। लेकिन यह टेंपरेरी होना चाहिए और कुछ दिनों के बाद यह दर्द ठीक हो जाना चाहिए। आमतौर पर अगर यह तकलीफ लगातार बनी रहती है, तो यह अनुचित लैचिंग के कारण हो सकता है और ब्रेस्टफीडिंग का समय कम कर देने से आपको इस तकलीफ से छुटकारा नहीं मिलता है। यही कारण है, कि एक्सपर्ट नई माँओं को सही तरह से ब्रेस्टफीडिंग कराने के लिए ट्रेनिंग देने की सलाह देते हैं। 

भ्रांति 3 – शुरुआती 3 से 4 दिनों के दौरान आपका शरीर पर्याप्त दूध नहीं बनाता है

सच्चाई:  

तकनीकी रूप से यह सच है। हालांकि इसका यह संकेत गलत है, कि इन दिनों के दौरान अधिक दूध की जरूरत होती है। सच्चाई यह है, कि शुरुआती कुछ दिनों में माँएं कोलोस्ट्रम का प्रोडक्शन करती हैं, जो कि सामान्य दूध से गाढ़ा होता है और एंटीबॉडीज, एंजाइम्स, ग्रोथ फैक्टर्स और इम्यूनोग्लोबुलिंस से भरपूर होता है, जो कि नवजात शिशु की रक्षा करते हैं। सामान्य दूध की तुलना में बच्चे को कोलोस्ट्रम की कम मात्रा की ही जरूरत होती है, क्योंकि इसमें पोषक तत्व अधिक मात्रा में होते हैं। 

भ्रांति 4 – हर बार दूध पिलाने से पहले निपल्स को धोना चाहिए

सच्चाई

ब्रेस्टफीडिंग से जुड़ी भ्रांतियों और सच्चाईयों में यह भ्रांति पहली नजर में दूसरों से अधिक वाजिब नजर आती है। साथ ही जब बच्चे की बोतल को हर इस्तेमाल से पहले धोने और स्टेरलाइज करने को लेकर आम निर्देशों पर विचार किया जाता है, तब भी यह लॉजिक नेचुरल नजर आता है। बेबी फार्मूला में इन्फेक्शन से बच्चे की रक्षा करने वाले प्राकृतिक एंटीबॉडीज नहीं होते हैं। निपल्स को धोने से ब्रेस्टफीडिंग की प्राकृतिक प्रक्रिया बेवजह जटिल तो बनती ही है, साथ ही प्राकृतिक सुरक्षात्मक तेल भी निकल जाते हैं। 

भ्रांति 5 – ब्रेस्टफीडिंग प्राकृतिक गर्भनिरोधक के समान होता है

सच्चाई

अगर आप गर्भवती नहीं होना चाहती हैं, तो आपको इस तथ्य पर विश्वास नहीं करना चाहिए, कि अगर आप ब्रेस्टफीडिंग करा रही हैं, तो आप गर्भवती नहीं होंगी। यह भ्रांति तभी सच हो सकती है, जब ये तीन परिस्थितियां एक साथ मिलें: 

  • आपका बच्चा केवल ब्रेस्टफीडिंग पर ही निर्भर है (हर समय)
  • आपकी डिलीवरी के 6 महीने पूरे नहीं हुए हैं
  • आपके पीरियड्स दोबारा शुरू नहीं हुए हैं

आपके शरीर में प्रेगनेंट होने की संभावना बहुत ही कम है – यह 98% सुरक्षित है! हालांकि यह लेक्टेशन एमेनोरिया आपके शरीर में हॉर्मोन्स के संतुलन पर बड़ी मात्रा में निर्भर करता है और हर दिन ब्रेस्टफीडिंग की अवधि में होने वाली कमी जल्द ही आपके एमेनोरिया पर प्रभाव डालेगी। 

भ्रांति 6 – बोतल से दूध पिलाना ब्रेस्टफीडिंग से आसान होता है

सच्चाई

यह हर व्यक्ति की स्थिति पर निर्भर करता है। लेकिन, आमतौर पर यह सच नहीं है। अगर शुरुआत में ब्रेस्टफीडिंग अच्छी न हो, तो अक्सर इसमें समस्याएं देखी जाती हैं, जहाँ माँ और बच्चा दोनों ही लैचिंग के बारे में सही तरह से परिचित नहीं होते हैं। 

भ्रांति 7 – बच्चे को समय देख-देख कर हर 2 घंटे में दूध पिलाना चाहिए

सच्चाई

इसके पहले वाली भ्रांति की तरह ही, इस भ्रांति में भी यह व्यक्तिगत स्थिति पर निर्भर करता है। हम बड़ों की तरह ही बच्चों की भी खाने-पीने की अपनी जरूरतें होती हैं। वहीं यह भी सच है, कि कई बच्चों और माँओं को पूरे दिन और रात के दौरान हर 2 घंटे में दूध पिलाने की आदत हो जाती है। अगर आप यह जानना चाहती हैं, कि आपका बच्चा उचित मात्रा में दूध पी रहा है या नहीं, तो उसके लिए सबसे अच्छा तरीका है, उसके ‘आउटपुट’ को देखना। अगर बच्चा हर दिन छह बार डायपर गीला करता है और दो से तीन बार पॉटी करता है, तो यह उसके स्वस्थ होने का एक संकेत है। 

भ्रांति 8 – आधुनिक फार्मूला ब्रेस्टमिल्क के समान ही होते हैं

सच्चाई: 

यह गलत है। फार्मूला को ब्रेस्टमिल्क के कंटेंट की नकल करने के लिए बनाया जाता है। पर इनमें कोई भी जीवित सेल्स, एंजाइम, एंटीबॉडी या हॉर्मोन नहीं होते हैं। माँ का दूध जहाँ बच्चे की जरूरतों के अनुसार बदलता रहता है, वहीं फॉर्मूला शुरू से अंत तक वैसा ही बना रहता है। फार्मूला हर बच्चे के लिए एक जैसा ही बनाया जाता है और इसलिए यह किसी एक बच्चे की अलग जरूरत को पूरा नहीं कर सकता है। ब्रेस्टफीडिंग से जुड़े एक वेट लॉस मिथ के अनुसार ब्रेस्टफीडिंग रोकने से प्रेगनेंसी के दौरान बढ़ चुके वजन को कम करने में मदद मिल सकती है। यह बिल्कुल ही इलॉजिकल है, क्योंकि सोचने की बात यह है, कि ब्रेस्टफीडिंग कराने वाली एक माँ हर दिन केवल बच्चे को अपना दूध पिलाकर 500 या इससे अधिक कैलोरी बर्न करती है। 

भ्रांति 9 – अगर माँ को कोई इन्फेक्शन है, तो उसे दूध पिलाना छोड़ देना चाहिए

सच्चाई

इसका सच होना काफी दुर्लभ है! बुखार जैसे आम इन्फेक्शन जानकारी होने से भी पहले ही माँ के दूध के द्वारा बच्चे तक पहुँच चुके होते हैं। बच्चे की सुरक्षा ब्रेस्टफीडिंग के ऊपर निर्भर करती है, क्योंकि इन्फेक्शन से लड़ने के लिए बच्चे के पास माँ की इम्युनिटी भी होती है, चूंकि माँ का इम्यून सिस्टम पूरी तरह से विकसित होता है, जो कि बच्चे की तुलना में इन्फेक्शन से लड़ने में आसानी से एंटीबॉडीज बना सकता है और ये एंटीबॉडीज प्राकृतिक ब्रेस्टमिल्क के द्वारा बच्चे के शरीर में चले जाते हैं। 

भ्रांति 10 – ब्रेस्ट इन्फेक्शन या डक्ट ब्लॉक की स्थिति में दूध पिलाना बंद कर देना चाहिए

सच्चाई

गलत! बल्कि सच्चाई इसके बिलकुल विपरीत है। ब्लॉक्ड डक्ट को खोलने का प्राकृतिक तरीका है, कि जितना ज्यादा संभव हो, उतना ब्रेस्टफीड किया जाए। जब ब्रेस्टफीडिंग कम कराया जाता है और दूध जमा होने लगता है, अगर आपका बच्चा ठोस आहार या फार्मूला के माध्यम से अपने पोषक तत्व ले रहा है या अधिक देर तक सोने लगा है या रात भर सोने लगा है, तब मिल्क डक्ट ब्लॉक हो सकते हैं। डक्ट ब्लॉक होने से ब्रेस्ट इन्फेक्शन हो सकता है। हालांकि इन्फेक्शन होने से यह आपके बच्चे के लिए असुरक्षित नहीं हो जाता है। ब्रेस्ट इन्फेक्शन की स्थिति में आपके ब्रेस्ट में दर्द और रेडनेस आ जाती है और साथ ही फ्लू या बुखार जैसे लक्षण दिखने लगते हैं। इसके लिए आपको एंटीबायोटिक लेने की जरूरत होती है, इसलिए आपको अपने डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। 

भ्रांति 11 – अगर माँ को दवाएं लेनी है तो उसे ब्रेस्टफीडिंग बंद कर देना चाहिए

सच्चाई

अधिकतर गलत। माँ के द्वारा ली गई केवल कुछ ही दवाएं ऐसी होती हैं, जो बच्चे को नुकसान पहुँचा सकती हैं और उनके भी आमतौर पर दूसरे विकल्प उपलब्ध होते हैं। ब्रेस्टफीडिंग के दौरान माँ के द्वारा ली गई दवाओं की बहुत ही कम मात्रा बच्चे तक पहुँचती है। लेकिन जैसा कि बताया गया है, अधिकतर दवाएं सुरक्षित होती हैं और बच्चे तक इनके पहुँचने की मात्रा भी काफी कम होती है। 

भ्रांति 12 – एक्सरसाइज करने से दूध खट्टा हो सकता है

सच्चाई

इस भ्रांति के पीछे की थ्योरी यह थी, कि एक्सरसाइज करने से पैदा होने वाले लैक्टिक एसिड की अधिक मात्रा माँ के दूध के स्वाद को खट्टा कर सकती है। जहाँ यह संभव है, वहीं स्टडीज यह दर्शाती हैं, कि बच्चे इस अंतर को पहचान नहीं पाते हैं। हालांकि एक्सरसाइज के कारण आपके निप्पल के आसपास जमा पसीने के सूखने के बाद होने वाला नमकीन स्वाद आपके बच्चे को ब्रेस्टफीडिंग से दूर कर सकता है। साथ ही अपने वर्कआउट ब्रा या अंडरवायर ब्रा जैसे रिस्ट्रिक्टिव ब्रा को केवल थोड़े समय के लिए ही पहनें, क्योंकि कसे होने के कारण मिल्क डक्ट जाम हो सकते हैं। 

भ्रांति 13 – एक समय पर बच्चे को दोनों ब्रेस्ट से 20 मिनट तक दूध पिलाना चाहिए

सच्चाई

इसका कोई आधार नहीं है! आपका बच्चा हर बार एक ही मात्रा में दूध नहीं पीता है। बिलकुल वैसे ही जैसे आप भूख लगने पर अधिक खाते हैं और भूख नहीं लगने पर कम खाते हैं। साथ ही आपका बच्चा आपके निप्पल पर जितनी अच्छी तरह से पकड़ बनाता है, वह उतनी ही अधिक देर तक दूध पीता है। इसके कारण वह प्राकृतिक रूप से दोनों ब्रेस्ट से समान अवधि के लिए दूध नहीं पी सकता है। अगर आपको एक ब्रेस्ट में अधिक भारीपन महसूस हो रहा है, तो आप पंपिंग का सहारा ले सकती हैं। 

भ्रांति 14 – ब्रेस्टफीडिंग करने वाले बच्चों को अधिक विटामिन ‘डी’ की जरूरत होती है

सच्चाई: 

गलत! शिशु विटामिन ‘डी’ से भरपूर लिवर के साथ पैदा होते हैं और इन्हें ब्रेस्टमिल्क के द्वारा भी विटामिन ‘डी’ की कुछ मात्रा मिल जाती है। इसके अलावा अगर उन्हें जरूरत पड़ भी जाए, तो अल्ट्रावायलेट किरणों से उन्हें वह मिल जाता है, सर्दियों में कम रोशनी के दौरान भी। उन्हें रोज धूप की जरूरत नहीं होती है। बच्चे को विटामिन ‘डी’ के सप्लीमेंट देने की जरूरत केवल तब ही पड़ती है, जब खुद माँ को गर्भावस्था के दौरान विटामिन ‘डी’ की कमी का सामना करना पड़ता है। 

भ्रांति 15 – ब्रेस्टफीडिंग के महीनों के दौरान माँ को केवल नरम खाना ही खाना चाहिए

सच्चाई: 

अगर आपका बच्चा एलर्जी के साथ पैदा हुआ है, तो शेलफिश, मछली, सोया, मूंगफली आदि जैसे कुछ खाद्य पदार्थ, जो कि एलर्जी से जुड़े होते हैं, आपके बच्चे के पेट पर असर डाल सकते हैं। अगर खाने के स्वाद की बात की जाए, तो आमतौर पर आपके दूध के स्वाद में आने वाला अंतर इतना मामूली होता है, कि बच्चे को पता भी नहीं चलता है। इसके लिए एक फूड डायरी मेंटेन करना अच्छा है। कोई भी नया खाद्य पदार्थ लेने के बाद 2 से 12 घंटों के बीच अगर आपका बच्चा आपके दूध के स्वाद को लेकर चिड़चिड़ा बर्ताव करता है, तो इसके पीछे का कारण यह भी हो सकता है।

ब्रेस्टफीडिंग माँ और बच्चे के बीच के रिश्ते का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। जहाँ कुछ लोग आज की हमारी आधुनिक और तेज लाइफस्टाइल के लिए इसे असुविधाजनक मानते हैं, वही सच्चाई यह है, कि ब्रेस्टफीडिंग बोतल से दूध पिलाने की तुलना में कहीं अधिक आजादी भरा होता है। इसमें अपने बच्चे को दूध पिलाने के लिए एक बैग भर कर सामान साथ रखने की जरूरत नहीं होती है। मानव जाति सैकड़ों हजारों वर्षों से बिना किसी बुरे नतीजे के अपने बच्चों को ब्रेस्टफीड कराती आ रही है। यह न केवल प्राकृतिक है, बल्कि यह मातृत्व के अनुभव का एक दिव्य हिस्सा भी है। 

यह भी पढ़ें:

रात के समय बच्चे को ब्रेस्टफीड कराना
बच्चे को ब्रेस्टफीडिंग कराने के फायदे और टिप्स
ब्रेस्टफीडिंग के दौरान बच्चे को पसीना आना – कारण और रेमेडीज

पूजा ठाकुर

Recent Posts

अ अक्षर से शुरू होने वाले शब्द | A Akshar Se Shuru Hone Wale Shabd

हिंदी वह भाषा है जो हमारे देश में सबसे ज्यादा बोली जाती है। बच्चे की…

1 day ago

6 का पहाड़ा – 6 Ka Table In Hindi

बच्चों को गिनती सिखाने के बाद सबसे पहले हम उन्हें गिनतियों को कैसे जोड़ा और…

1 day ago

गर्भावस्था में मिर्गी के दौरे – Pregnancy Mein Mirgi Ke Daure

गर्भवती होना आसान नहीं होता और यदि कोई महिला गर्भावस्था के दौरान मिर्गी की बीमारी…

1 day ago

9 का पहाड़ा – 9 Ka Table In Hindi

गणित के पाठ्यक्रम में गुणा की समझ बच्चों को गुणनफल को तेजी से याद रखने…

3 days ago

2 से 10 का पहाड़ा – 2-10 Ka Table In Hindi

गणित की बुनियाद को मजबूत बनाने के लिए पहाड़े सीखना बेहद जरूरी है। खासकर बच्चों…

3 days ago

10 का पहाड़ा – 10 Ka Table In Hindi

10 का पहाड़ा बच्चों के लिए गणित के सबसे आसान और महत्वपूर्ण पहाड़ों में से…

3 days ago