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जब आपके जीवन में एक बच्चे का प्रवेश होता है, तो ऐसा लगता है, जैसे हर चीज बच्चे के इर्द-गिर्द ही घूम रही हो। बच्चे से संबंधित समस्याओं के सामने अपनी समस्याएं छोटी लगने लगती हैं और माता-पिता अक्सर ही हर छोटी चीज को लेकर सवाल पूछते हुए नजर आते हैं। हमेशा बच्चे के अच्छे स्वास्थ्य को सुनिश्चित करना ही, माता-पिता का सबसे मुख्य काम हो जाता है।
बच्चे के उचित विकास में उसका खान-पान बड़ी ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जो कि उसके पूरे बचपन के दौरान चलता है। बच्चे के डायट को लेकर उठने वाले सवाल कभी खत्म नहीं होते हैं। हालांकि, इनमें से अधिकतर सवालों के जवाब उपलब्ध होते हैं और आप अपने बच्चे के लिए सही कदम उठाने में निश्चित रूप से सक्षम होते हैं। जहां तक उसके डायट का सवाल है, तो सवाल तो होते ही हैं, चाहे बच्चे की उम्र कुछ भी हो, जैसे कि ब्रेस्टफीडिंग, लिक्विड फूड या ठोस आहार। बच्चे के सही विकास को सुनिश्चित करने के लिए उसे कुछ सप्लीमेंट देने चाहिए।
प्रोबायोटिक्स मुख्य रूप से फ्रेंडली बैक्टीरिया से बने होते हैं, जो कि शिशु के गट को कॉलोनाइज करते हैं। प्रोबायोटिक सप्लीमेंट में मौजूद बैक्टीरिया और फंगी गट में पहले से मौजूद माइक्रोऑर्गेनिज्म के साथ मिलकर काम करते हैं और किसी तरह के आक्रामक ऑर्गेनिज्म से लड़ने में मदद करते हैं। प्रोबायोटिक्स या गट बैक्टीरिया बच्चे के इम्यून सिस्टम को सपोर्ट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। लैक्टोबैसिलस, बीफिडोबैक्टेरियम, स्ट्रैप्टॉकोक्कस और सच्चरीमायसेज बौलर्डी ऐसे फैमिली फ्रेंडली बैक्टीरिया के सबसे आम प्रकार हैं।
डॉक्टर नवजात शिशुओं के लिए प्रोबायोटिक्स की सलाह नहीं देते हैं, क्योंकि इसकी जरूरत नहीं समझी जाती है। एक नवजात शिशु की आंतें स्टराइल होती हैं, इसका मतलब है कि उनके गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल ट्रैक्ट में कोई बैक्टीरिया मौजूद नहीं होते हैं। ये बैक्टीरिया ऐसे समय में जरूरी नहीं होते हैं, क्योंकि शिशु इस दौरान ब्रेस्टमिल्क के अलावा कोई भी दूसरा भोजन नहीं लेता है। बच्चे अपने पहले जन्मदिन तक, पिए गए ब्रेस्टमिल्क के माध्यम से हेल्दी गट फ्लोरा पा लेते हैं और बच्चे के खाने में मौजूद योगर्ट के कारण बच्चों के लिए प्रोबायोटिक्स को जरूरी नहीं समझा जाता है। लेकिन, अगर बच्चा गंभीर उल्टियों या डायरिया से परेशान है या अगर उसने हाल ही में लंबे समय तक एंटीबायोटिक लिए हैं, तो डॉक्टर उसे प्रोबायोटिक्स देने की सलाह देते हैं। ऐसा माना जाता है, कि इससे इंटेस्टाइनल ट्रैक्ट में हेल्दी गट फ्लोरा वापस आ जाते हैं और बच्चे का इम्यूनिटी सिस्टम फिर से मजबूत हो जाता है। इसलिए अगर बच्चे को एंटीबायोटिक्स दिए गए हों, तो उसे प्रोबायोटिक्स देना चाहिए। अगर बच्चे को इयर इंफेक्शन, एग्जिमा, बेबी थ्रश, डायपर रैश और कब्ज जैसी कोई परेशानी हो, तो भी उसे प्रोबायोटिक्स दिया जा सकता है।
बच्चों को कम उम्र से ही प्रोबायोटिक्स दिया जाना चाहिए, क्योंकि बच्चे पर इसके कोई हानिकारक प्रभाव नहीं होते हैं। लेकिन जो बच्चा केवल ब्रेस्टमिल्क ही लेता हो, उसके लिए प्रोबायोटिक्स की जरूरत नहीं होती है। आमतौर पर जब बच्चा ठोस आहार लेने की शुरुआत कर देता है, उसके बाद ही प्रोबायोटिक्स दिया जाता है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि ऐसे में बच्चा बड़े पैमाने पर वातावरण के संपर्क में आता है और इसलिए उस पर खतरनाक माइक्रो ऑर्गेज्म के हमले का खतरा होता है। फिर भी आपके बच्चे को दही और सब्जियों जैसे साधारण खाद्य सामग्रियों से भी पर्याप्त मात्रा में फ्रेंडली बैक्टीरिया मिल जाते हैं। अगर बच्चे को लगातार एंटीबायोटिक्स की जरूरत पड़ रही है, तो ऐसे में उसे कम उम्र से ही प्रोबायोटिक्स दिया जाता है, क्योंकि ये दवाएं आमतौर पर गट में इकट्ठा होने वाले बैक्टीरिया को निकालने का काम करती हैं, जिससे आपके इंटेस्टाइनल ट्रैक्ट पर इंफेक्शन और हमले का खतरा बढ़ जाता है।
प्रोबायोटिक्स का शाब्दिक अर्थ होता है ‘जीवन के लिए’ और जब गट में फ्रेंडली बैक्टीरिया के महत्व पर विचार किया जाता है, तो यह नाम बिल्कुल उचित लगता है। प्रोबायोटिक्स के सेवन से शिशुओं को कई फायदे मिलते हैं और इनमें से कुछ नीचे दिए गए हैं।
यह साबित हो चुका है कि प्रोबायोटिक बैक्टीरिया शिशुओं के डाइजेस्टिव ट्रैक्ट में होने वाले रिफ्लक्स के लक्षणों को काफी हद तक कम कर सकते हैं। प्रोबायोटिक्स में मौजूद बैक्टीरिया पेट में खाने को अच्छी तरह से पचाने में बच्चे की मदद करते हैं और रिफ्लक्स, डिस्पेप्सिया या ऐसे अन्य स्थितियों को कम करते हैं।
कॉन्स्टिपेशन एक अनहेल्दी डाइजेस्टिव सिस्टम का संकेत है, खासकर शिशुओं में। इटली की एक स्टडी इस बात की ओर इंगित करती है, कि शिशुओं को नियमित रूप से प्रोबायोटिक्स देने से उनके बॉवेल मूवमेंट में नियमितता आती है। जिन शिशुओं में लगातार कब्ज की शिकायत हो, उन्हें भी इससे लाभ मिलता है।
डायपर थ्रश या डायपर रैश एक आम स्थिति है, जो कि शिशुओं में यीस्ट के कारण होती है। लैक्टोबैसिलस और बीफिडोबैक्टेरियम जैसे फ्रेंडली बैक्टीरिया युक्त प्रोबायोटिक, ना केवल मौजूदा रैशेज को ठीक करने में मदद करते हैं, बल्कि आगे भी बच्चे को इनसे बचाने में मदद करते हैं। अधिकतर मामलों में लंबे समय तक एंटीबायोटिक्स के इस्तेमाल के कारण यह स्थिति देखी जाती है।
कभी-कभी बच्चे ब्रेस्टफीडिंग के दौरान, मां के संक्रमित निप्पल्स के द्वारा ओरल थ्रश के शिकार हो जाते हैं। यह रेश एक लंबी स्थिति में बदल सकती है और आपके बच्चे के लिए तकलीफदायक हो सकती है। अगर यह स्थिति बिगड़ जाए, तो डॉक्टर से परामर्श लेने की सलाह दी जाती है। एसिडोफिलस बैक्टीरिया युक्त प्रोबायोटिक सप्लीमेंट इस स्थिति को दूर रखने के लिए सबसे बेहतरीन होते हैं और यह सप्लीमेंट आमतौर पर पाउडर के रूप में भी उपलब्ध होता है।
विस्तृत स्टडी से यह पता चला है, कि प्रोबायोटिक बैक्टीरिया के सेवन से शिशुओं में एक्जिमा के लक्षणों से राहत मिलती है। बच्चे की त्वचा पर लाल खुजली वाले रैश, इस बीमारी की पहचान हैं और बच्चे को प्रोबायोटिक्स देकर इस स्थिति को कम किया जा सकता है।
जिन बच्चों में गैस की समस्या होती है, उनपर प्रोबायोटिक्स के इस्तेमाल के अच्छे प्रभाव देखे गए हैं और बच्चों में इसने गैस और कोलिक के लक्षणों को कम किया है। लैक्टोबैसिलस रिउटेरी युक्त प्रोबायोटिक सप्लीमेंट, डाइजेशन में मदद करते हैं और आंतों की सूजन को कम करते हैं। आंतों में नुकसानदायक बैक्टीरिया और फ्रेंडली बैक्टीरिया के बीच के संतुलन में आने वाली खराबी के कारण यह स्थिति पैदा हो जाती है और प्रोबायोटिक्स इस संतुलन को वापस बनाने में मदद करते हैं।
बार-बार पतला मल होना डायरिया की पहचान होती है। डायरिया, डाइजेस्टिव सिस्टम में गड़बड़ी का एक संकेत होता है, इसलिए जिन बच्चों को डायरिया होता है, उन्हें डॉक्टर प्रोबायोटिक्स देने की सलाह देते हैं। इन सप्लीमेंट के माध्यम से गट को रिकॉलोनाइज करने से बच्चे का डाइजेस्टिव सिस्टम फिर से फटाफट अच्छी तरह से काम करने लगता है।
क्या प्रोबायोटिक संक्रमित बच्चों के लिए सुरक्षित होते हैं? इसका जवाब है ‘हां’। फ्रेंडली बैक्टीरिया के द्वारा गट को फिर से कॉलोनाइज करने के लिए प्रोबायोटिक्स जरूरी होते हैं। बच्चे को दिए जाने वाले एंटीबायोटिक्स के कारण इनमें से अधिकतर फ्रेंडली बैक्टीरिया खत्म हो चुके होते हैं।
शिशुओं के लिए मुख्य रूप से प्रोबायोटिक्स के दो स्रोत होते हैं, जो कि नीचे दिए गए हैं:
ब्रेस्टमिल्क में नवजात शिशुओं के डाइजेस्टिव सिस्टम के लिए पर्याप्त प्रोबायोटिक होता है। ये फ्रेंडली बैक्टीरिया आंतों को कॉलोनाइज करते हैं, ताकि बच्चे का पाचन तंत्र सुचारू रूप से चलता रहे। या फिर नवजात शिशुओं के फार्मूला में आमतौर पर बीफिडोबैक्टेरियम लेक्टिस होता है, जो कि ब्रेस्टमिल्क में भी मौजूद होता है। इसे नियमित रूप से बच्चे को दिया जाना चाहिए। जो बच्चे ब्रेस्टफीडिंग की उम्र से थोड़े बड़े हैं, उन्हें हेल्दी बैक्टीरिया से भरपूर खाने की चीजें देना चाहिए। दही, एक आम प्रोबिओटिक्स का उदाहरण है, जिसमें प्रोबायोटिक बैक्टीरिया भरपूर मात्रा में मौजूद होते हैं या फिर आप अपने बच्चे को प्रोबायोटिक्स युक्त खाना दे सकते हैं।
बच्चों और शिशुओं के लिए प्रोबायोटिक सप्लीमेंट को पाउडर के रूप में खरीदा जा सकता है। इनका इस्तेमाल ना केवल आसान होता है, बल्कि बच्चों को देना भी आसान होता है। बच्चों को प्रोबायोटिक देने का सबसे आसान तरीका है, पाउडर में अपनी उंगली को डालें और बच्चे को अपनी उंगली में लगा पाउडर चूसने दें या फिर आप इसे बच्चे के नियमित भोजन में मिलाकर भी दे सकते हैं, जैसे कि, ब्रेस्ट मिल्क फार्मूला या बेबी फूड। अगर बच्चा इन प्रोबायोटिक बैक्टीरिया को खाना बंद कर दे, तो ऐसा पाया गया है कि कुछ ही दिनों में आंतों में मौजूद बैक्टीरिया की मात्रा अपनी सामान्य स्थिति तक पहुंच जाती है।
प्रोबायोटिक्स लिक्विड और पाउडर दोनों ही रूपों में उपलब्ध होते हैं और ये दोनों ही बच्चे को देने में आसान होते हैं। लिक्विड फॉर्म में उपलब्ध सप्लीमेंट को बच्चे के रेगुलर डाइट में मिलाकर दिया जा सकता है, चाहे वह ब्रेस्टमिल्क हो या ठोस आहार। इसे बच्चे को सीधा भी दिया जा सकता है। सप्लीमेंट पाउडर के रूप में है, तो आप इसमें अपनी उंगली डालकर बच्चे को अपनी उंगली चूसने को दे सकते हैं। ऐसा करने से शरीर सप्लीमेंट को तुरंत सोख लेता है।
बच्चे पर प्रोबायोटिक्स के लंबे समय तक चलने वाले साइड इफेक्ट नहीं देखे जाते हैं। हालांकि, प्रोबायोटिक्स लेने के बाद शुरुआती कुछ दिनों में कुछ समस्याएं देखी जा सकती हैं। ये माइल्ड डाइजेस्टिव समस्याएं होती हैं, जैसे गैस, ब्लोटिंग, पेट में दर्द, कब्ज या डायरिया। ये साइड इफेक्ट, गट को कॉलोनाइज करने के लिए फ्रेंडली बैक्टीरिया की अधिक मात्रा के कारण, आंतों के संतुलन में आने वाले बदलाव के कारण ऐसा देखा जाता है। अगर ये लक्षण लगातार बने रहें, तो आप प्रोबायोटिक्स की खुराक को कम कर सकते हैं और बाद में उसे धीरे-धीरे बढ़ा सकते हैं।
प्रोबायोटिक्स, बच्चों के लिए जरूरी होते हैं, क्योंकि ये बच्चे की इम्यूनिटी और डाइजेस्टिव स्थिरता को बढ़ाने में कारगर होते हैं। यह डायपर रैश, एग्जिमा, कब्ज और डायरिया जैसी आम समस्याओं को कम करते हैं और बच्चे के न्यूट्रिशन अब्सोर्प्शन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
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