In this Article
नई माँ के पास ज्यादा ऑप्शन नहीं होते हैं सिवाय इसके कि वो बच्चे के हिसाब से अपना शेड्यूल एडजस्ट करे। बढ़ते शिशु को फीडिंग की आवश्यकता होती है और इसलिए वह भूख लगने पर किसी भी समय जाग जाता है। हालांकि, एक बार जब बच्चा थोड़ा बड़ा हो जाता है, तो उसे बार-बार फीड कराने की जरूरत नहीं होती है और वह लंबे समय तक सोता भी है। यही वह समय है जब आप अपने बच्चे को स्लीप ट्रेनिंग देना शुरू कर सकती हैं।
बेबी स्लीप ट्रेनिंग को अगर सीधे शब्दों में समझा जाए, तो यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें बच्चे को सोने के लिए ट्रेन किया जाता है। यह बच्चे के साथ साथ आपके लिए बहुत जरूरी है ताकि आपको भी कुछ समय रेस्ट करने के लिए मिले। बच्चे का ज्यादातर ब्रेन डेवलपमेंट तब होता है जब वह सो रहा होता है, इसलिए बच्चे का पर्याप्त नींद लेना बेहद जरूरी है।
जब बच्चा 6 महीने का हो जाता है, तो आप उसको स्लीप ट्रेनिंग देना शुरू कर सकती हैं, क्योंकि इस उम्र तक बच्चे विकास के कई माइलस्टोन पार कर चुके होते हैं, जैसे पेट के बल पलटना, अंगूठा चूसना आदि। इसके अलावा, लगभग 4 से 6 महीने में बच्चे का स्लीप पैटर्न धीरे-धीरे डेवलप होने लगता है। जिसका मतलब है कि अब वह स्लीप ट्रेनिंग के लिए तैयार है। हालांकि, आप 4 महीने के बच्चे को भी स्लीप ट्रेनिंग देना शुरू कर सकती हैं यदि आपको लगता है कि आपका बेबी इसके लिए तैयार है।
ऐसे कई तरीके हैं जिनका उपयोग करके आप शिशु को स्लीप ट्रेन कर सकती हैं। हालांकि, यह बेहद जरूरी है कि आप कोई तरीका अपनाने से पहले मेथड को ठीक तरह से समझ लें। हमेशा वही ऑप्शन चुनें जो आपके बेबी को सूट करे और आपके परिवार की जरूरतों के अनुकूल हो। जरूरी नहीं है कि हर तरीका आपके बच्चे के लिए सफल साबित हो। यदि बच्चा किसी मेथड को लंबे को समय तक नहीं अपनाता है, तो आपको कोई दूसरा मेथड अपनाने के लिए अपने डॉक्टर से बात करनी चाहिए।
यहाँ छोटे बच्चों के लिए कुछ स्लीप ट्रेनिंग मेथड दिए गए हैं, जिन्हें आप अपनी और साथ ही बच्चे की आवश्यकताओं के अनुसार चुन सकती हैं।
यह तरीका उन पेरेंट्स के लिए बेहतरीन रूप से काम करता है जो अपने बच्चे को रोता हुआ नहीं देख सकते हैं। इसमें बच्चा बहुत कम या न के बराबर रोता है और बच्चे पर नेचुरल स्लीप पैटर्न के रूप में काम करता है। आपको बस अपने बच्चे को हमेशा की तरह उसे सुलाने मदद करनी है। बच्चे को फीड कराएं, अपनी गोद में लेकर धीरे-धीरे हिलाएं और लोरी सुनाएं, इससे बच्चा जल्दी सो जाता है, लेकिन धीरे-धीरे इसका समय कम करती जाएं, जब तक इसका टाइम कम होते होते एक से दो मिनट न हो जाए। इस तरीके में आपको धैर्य और समय की जरूरत होती है, लेकिन इससे आपका बच्चा अपने आप सोना सीख जाएगा।
यह मेथड बहुत सारे माता-पिता के साथ-साथ बच्चे के लिए भी मुश्किल हो सकता है, यही वजह है कि कई पेरेंट्स इस मेथड का उपयोग करने से बचते हैं। हालांकि, कई माओं ने इस मेथड को उपयोगी पाया है। क्योंकि इस तरीके की जो प्रक्रिया है वो आसान है। जब बच्चे को नींद आने लगे, तो उसे पालने में रखें और अगर वह रोता है, तो उसे उठाए बिना शांत करने की कोशिश करें। कमरे से बाहर चली जाएं और बच्चे को खुद से शांत होने दें। धीरे-धीरे उसके रोने का समय कम होने लगेगा और वो अपने आप से सोना सीख जाएगा।
इस मेथड में कंफर्टिंग शामिल है, जब-जब आपका बच्चा रोता है तब-तब आप इस मेथड को अपना सकती हैं । इस तरीके के डेवलपर विलियम सियर्स का मानना है कि बच्चे को बिना शांत किए उसे रोने देना उस पर नेगेटिव इफेक्ट डालता है। इस मेथड का उपयोग करने के लिए, आपको एक शेड्यूल बनाना होगा और कड़ाई से उसका पालन करना होगा। इस तरीके को सफल करने के लिए सुनिश्चित करें कि बच्चा दिन भर में ठीक से खाना खाता है ताकि दिन के समय में खाने और रात के समय में सोने के बीच सही कनेक्शन बन सके। आप स्लीप टाइम के लिए कोई विशेष शब्द इस्तेमाल करें और बच्चे को बेड पर ले जाने से पहले इसे कहें। अगर बच्चा बीच रात में उठ जाता है तो आप वही शब्द उसके सामने फिर दोहराएं। केवल तभी जवाब दें और उसे शांत करें जब आपका बच्चा रोने लगे और जाग जाए।
फेरबेराइजिंग मेथड को बच्चों के हॉस्पिटल के सेंटर फॉर पीडियाट्रिक स्लीप डिसऑर्डर के डायरेक्टर रिचर्ड फेरबर द्वारा डेवलप किया गया है। यह तरीका कुछ बातों के साथ स्लीप टाइम से जुड़ा हुआ है, जैसे गोद में हिलाना या नहलाना। इसके बाद, आप बच्चे को पालने में लिटा कर उसे गुडनाईट कहें और बाहर चली जाएं। अगर बच्चा रोने लगता है, तो आप उसे शांत कराने के लिए 5 या 10 मिनट के इंटरवल के बाद उसके पास जा सकती हैं। हालांकि, उसे गोद में उठाएं नहीं है। उसे एक या दो मिनट के लिए शांत करें और फिर से बाहर चली जाएं। यदि वह रोता है, तो आप उसे फिर से चेक करें, हर 10 से 15 मिनट के अंतराल के बाद बच्चे को चेक करती रहें और ऐसा तब तक जारी रखें जब तक वह खुद से सो नहीं जाता है।
इस मेथड के पीछे का जो आईडिया है उसमें बच्चे को यह यकीन दिलाया जाता है कि आप हमेशा उसके सामने मौजूद हैं। बच्चे के पालने के पास एक कुर्सी रखें और जब तब बच्चा सो न जाए तब तक उसके पास बैठे रहें । अगर बच्चा रोने भी लगता है, तब भी उससे बात न करें। हर रात बच्चे के पालने से अपनी कुर्सी को दूर करती रहें जब तक आप दरवाजे तक न पहुंच जाएं और फिर आपको कमरे में रहने की जरूरत नहीं है। आपके लिए यह मेथड थोड़ा मुश्किल हो सकता है, अगर आप अपने बेबी को बिलकुल रोते हुए नहीं देख सकती हैं। इस मेथड को ठीक से काम करने में कुछ दिन लग सकते हैं। हालांकि, यह उन पेरेंट्स के लिए एक अच्छा ऑप्शन हो सकता है जो अपने बच्चे को रोते हुए अकेला नहीं छोड़ना चाहते।
यह मेथड बहुत सीधा और सरल है। इसमें जब बच्चा सोने के दौरान रोता है तो उसे पालने से उठा लें। जब वह शांत हो जाए, तो पालने में वापस लिटा दें। आप तब तक यह तरीका अपनाएं जब तक बच्चा सो न जाए। इस मेथड से बच्चे को भी राहत रहती है कि आप उसके पास हैं। हालांकि, इस दौरान आपको धैर्य रखने की जरूरत होती है और सभी बच्चों के लिए यह मेथड उपयोगी हो ऐसा जरूरी नहीं है।
हर बच्चे को स्लीप ट्रेनिंग के लिए अलग-अलग समय लगता है, जो बच्चे के स्वभाव पर निर्भर करता है। कुछ बच्चे इसे दूसरों की तुलना में तेजी से अपना लेते हैं। ज्यादातर स्लीप ट्रेनिंग कम से कम एक हफ्ते तक जारी रखनी चाहिए और लगातार प्रैक्टिस करते रहना चाहिए।
जरूरी नहीं है कि हर बच्चे पर हर मेथड काम करे। हालांकि, आप जो भी मेथड अपनाएं, उसमें कुछ टिप्स और सावधानियां जरूर बरतें, जो आपके बच्चे को स्लीप ट्रेन करने में मदद करेगा। यहाँ आपको कुछ बेहतरीन तरीके दिए गए हैं, जो बच्चे को स्लीप ट्रेनिंग देने में मदद करेंगे।
हालांकि बच्चे को स्लीप ट्रेनिंग देना आवश्यक नहीं है, लेकिन इस मेथड से बच्चा अपने आप सोना सीख जाता और आपको भी रात में सोने का मौका मिलता है। हालांकि, यह समझना जरूरी है कि हर बच्चा अलग होता है, जो अलग-अलग तरीके पर अलग तरह से रिएक्ट कर सकता है। एक मेथड जो एक बच्चे पर काम कर रहा है वो दूसरे पर भी काम करे ऐसा जरूरी नहीं है। कई पेरेंट्स पाते हैं कि किसी भी मेथड का उपयोग न करना उनके लिए ज्यादा बेहतर रूप से काम करता है और बच्चा रात में नेचुरली सोता है। अपने बच्चे के डेवलपमेंट की तुलना दूसरों से न करें। यदि आपका बेबी रात में लंबे समय तक नहीं सोता है, तो आपको अपने डॉक्टर से बात करनी चाहिए।
यह भी पढ़ें:
शिशुओं में स्लीप रिग्रेशन से कैसे निपटें
शिशु को कितनी नींद की आवश्यकता होती है
बच्चों में स्लीप एपनिया: कारण, निदान और उपचार
हिंदी वह भाषा है जो हमारे देश में सबसे ज्यादा बोली जाती है। बच्चे की…
बच्चों को गिनती सिखाने के बाद सबसे पहले हम उन्हें गिनतियों को कैसे जोड़ा और…
गर्भवती होना आसान नहीं होता और यदि कोई महिला गर्भावस्था के दौरान मिर्गी की बीमारी…
गणित के पाठ्यक्रम में गुणा की समझ बच्चों को गुणनफल को तेजी से याद रखने…
गणित की बुनियाद को मजबूत बनाने के लिए पहाड़े सीखना बेहद जरूरी है। खासकर बच्चों…
10 का पहाड़ा बच्चों के लिए गणित के सबसे आसान और महत्वपूर्ण पहाड़ों में से…