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कप फीडिंग, फीडिंग का एक असरदार वैकल्पिक तरीका है, जिसके माध्यम से ब्रेस्टफीडिंग या बोतल से दूध पीने वाले बच्चे को दूध पिलाया जा सकता है। खासकर, जब प्रीमैच्योर बच्चों की बात आती है और जब माँएं ब्रेस्टफीड कराने में सक्षम नहीं होती हैं, तब यह तरीका काम आता है। कप फीडिंग कोई नया तरीका नहीं है और पूरी दुनिया में सैकड़ों वर्षो से महिलाएं इसका इस्तेमाल करती आ रही हैं।
कप फीडिंग क्या है?
जैसा कि इसके नाम से पता चलता है, कप फीडिंग, कप के माध्यम से बच्चे को दूध पिलाने का एक तरीका है। इसके लिए ऐसे किसी भी कप का इस्तेमाल किया जा सकता है, जिसमें दूध रखा जा सकता हो। फिर चाहे वह चाय का कप हो या फीडिंग बॉटल पर लगाने वाला ढक्कन, एक शॉट ग्लास हो या फिर एक साधारण कप। बच्चे को सीधी पोजीशन में बिठाकर कप में केवल इतना ही दूध भरा जाता है, जिसमें वह आराम से दूध का घूंट भर सके। शिशु को दूध पिलाने के संबंध में वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन (डब्ल्यूएचो) बोतल और निप्पल की तुलना में कप फीडिंग को बेहतर तरीका मानता है।
किन बच्चों को कप फीडिंग की जरूरत होती है?
वैसे तो कोई भी बच्चा कप फीडिंग कर सकता है, लेकिन इसकी सलाह केवल वैसे ही मामलों में दी जाती है, जहाँ पर ब्रेस्टफीडिंग संभव नहीं होती है (क्योंकि ब्रेस्टफीडिंग सबसे ज्यादा फायदेमंद होती है)। निम्नलिखित परिस्थितियों में कप फीडिंग के बारे में विचार करना चाहिए:
- प्रीमैच्योर, कमजोर या बीमार बच्चे, जो कि ब्रेस्ट से दूध पीने में सक्षम नहीं होते हैं, ऐसे बच्चों के लिए कप फीडिंग का इस्तेमाल करके बेहतरीन नतीजे देखे जा सकते हैं।
- जिन बच्चों को उनींदापन, थकावट, उल्टे निप्पल, टंग टाइज, लैचिंग में समस्याएं जैसे विभिन्न कारणों से ब्रेस्ट से दूध खींचने में परेशानी आती है, उनके लिए जब तक ब्रेस्टफीडिंग की समस्याओं का समाधान नहीं निकल जाता, तब तक कप फीडिंग एक अच्छा ऑप्शन है।
- जब ब्रेस्टफीडिंग ठीक तरह से शुरू नहीं हुई हो और शुरुआती 6 हफ्ते के दौरान माँ को दूध एक्सप्रेस करके बच्चे को देना पड़ता हो तब इसका उपयोग हो सकता है।
- माँ के तकलीफ में होने की स्थिति में या ब्रेस्ट में दर्द या निप्पल में दरारें आदि जैसी समस्याओं के कारण वह ब्रेस्टफीडिंग नहीं करा सकती हो और एक्सप्रेस करके बच्चे को दूध देना हो तो इसका इस्तेमाल किया जा सकता है।
शिशु को कप फीडिंग कराने के फायदे
शिशु को कप फीडिंग कराना, बॉटल फीडिंग की तुलना में एक अच्छा तरीका क्यों है, इसके कुछ कारण नीचे दिए गए हैं:
1. कप फीडिंग के कारण डायरेक्ट ब्रेस्टफीडिंग में कोई रुकावट नहीं आती है
कप फीडिंग का एक सबसे बड़ा फायदा यह है, कि इससे बच्चों में निप्पल को लेकर कन्फ्यूजन नहीं होता है। निप्पल कन्फ्यूजन तब होता है, जब बच्चे को बोतल के द्वारा आर्टिफिशियल निप्पल से दूध दिया जाता है। चूंकि आर्टिफिशियल निप्पल से दूध खींचने का तरीका कुछ अलग होता है, इसमें ब्रेस्ट की तुलना में मेहनत कम करनी पड़ती है। ऐसे में बच्चे ब्रेस्ट से दूध नहीं पीना चाहते हैं और इससे ब्रेस्टफीडिंग रिलेशनशिप खराब हो जाता है।
2. कप फीडिंग से दाँतों के कतार में आने वाली असमानता और जबड़े के असामान्य विकास से बचाव होता है
ऐसा माना जाता है, कि बोतल से दूध पीने वाले बच्चे में दाँतों और जबड़े की बनावट में खराबी आ जाती है। बनावटी निप्पल से दूध खींचने का तरीका अलग होने के कारण, बच्चों के बड़े होने के साथ-साथ दाँतोंं की कतार में असामानता आ जाती है। जिससे बच्चों के बोलने, खाने और सांस लेने जैसे मुँह के फंक्शन में खराबी देखी जाती है। कप फीडिंग से इस तरह की परेशानियों और असामान्य विकास से बचाव होता है।
3. यह सुरक्षित होता है और दाँतों की कैविटी को कम करने में मदद करता है
दाँत निकल रहे सभी बच्चों को काटना और चबाना पसंद होता है और उन्हें बोतल पर लगे हुए आर्टिफिशियल निप्पल को चबाना बहुत पसंद होता है। कभी-कभी पेरेंट्स देखते हैं, कि बच्चे निप्पल को काट डालते हैं। यह खतरनाक हो सकता है, क्योंकि निप्पल का कोई टुकड़ा गले में अटक सकता है। बोतल से दूध पीने और नकली निप्पल को दाँतोंं से चबाने के कारण, बच्चों के दाँतोंं में सड़न भी देखी जाती है।
4. अधिक फीडिंग से बचाव होता है
हालांकि इसे सीखना बहुत आसान है, लेकिन कप से दूध पीने के लिए बच्चे को अधिक मेहनत करनी पड़ती है। फीडिंग के दौरान आपको कप को बच्चे के मुँह तक लाना होता है और उसे थोड़ा टेढ़ा करना होता है, जब तक दूध बच्चे के होठों तक न पहुँच जाए। उसके बाद बच्चे को अपनी जीभ की मदद से दूध को मुँह में लेने दें। इससे बोतल की तुलना में ओवरफीडिंग से बचाव होता है, क्योंकि बोतल से दूध पीने में दूध अपने आप मुँह में गिरता रहता है। यह बच्चे के लिए भी फायदेमंद होता है, क्योंकि इससे बच्चे अपने खानपान को रेगुलेट करना सीखते हैं और वे उतना ही दूध पीते हैं, जितनी कि उन्हें जरूरत होती है और इस तरह से वे जबरदस्ती दूध पीने से बच जाते हैं। कुछ फीडिंग कप इस तरह से बने होते हैं, कि आप जितना दूध बच्चे को देना चाहते हैं, उतना मापकर उसे पिला सकते हैं।
5. भविष्य में स्पेशल कप से दूध पीने की ट्रेनिंग देने की कोई जरूरत नहीं रह जाती है
सभी बच्चों को एक न एक दिन बड़ा होना होता है और कप का इस्तेमाल करना सीखना होता है। यह एक ऐसा काम है, जिससे बाद में बच्चे को ट्रेनिंग या सिप्पी कप से दूध पीने में कोई परेशानी नहीं होती है।
6. इसकी कीमत कम होती है
कप से दूध पिलाने में आपको महंगे फीडिंग बॉटल और निप्पल नहीं खरीदने होते हैं। कप को साफ करना और इसे मेंटेन करना भी आसान होता है और इसे अपने साथ कहीं भी लेकर जाया जा सकता है।
बच्चे को कप से दूध कैसे पिलाया जाए?
डॉक्टर डेमो के द्वारा बहुत अच्छे तरीके से यह सिखाते हैं। इसलिए कप फीडिंग की शुरुआत करने से पहले उनसे एक बार परामर्श जरूर लें। साथ ही यह ध्यान रखें, कि कप फीड कराने के समय आपका बच्चा जगा हुआ और चौकन्ना हो और वह सीधी पोजीशन में बैठा हो। जब बच्चा अपनी पीठ के बल लेटा हो, तब उसके मुँह में दूध बिल्कुल न डालें।
बच्चे को कप फीड कराने का तरीका
- शुरुआत करने के लिए आपको एक सॉफ्ट सिरे वाले कप की जरूरत होगी, जो कि बच्चे के होठों और जीभ के लिए चिकना हो। बच्चे को बिब लगाना न भूलें, ताकि गिरने वाले दूध से उसकी कपड़े गंदे न हों।
- कप को हल्के गुनगुने फार्मूला या ब्रेस्टमिल्क से आधा भर दें।
- बच्चे को अपनी बांहों या गोद में सीधी पोजीशन में बिठाएं। अगर जरूरी हो, तो बच्चे को स्वैडल कर दें, ताकि कप आपके हाथ से गिरे नहीं।
- कप का किनारा को बच्चे के निचले होंठ या निचले मसूड़ों के पास लाएं।
- कप को थोड़ा टेढ़ा करें, ताकि दूध कप के किनारे तक पहुँच जाए, पर उसे बच्चे के मुँह में न डालें।
- बच्चा तुरंत ही कप के किनारे से अपनी जीभ की मदद से दूध मुँह में ले लेगा।
- जब बच्चा दूध पिए, तब इस प्रक्रिया को रोकें और उसे और भी घूंट भरने दें।
- ऐसा करते समय, यह ध्यान रखें, कि बच्चे के होठों पर दबाव न डालें और इसे मुँह के अंदर न डालें।
- बच्चे को अपनी गति से दूध पीने दें और उसकी जितनी इच्छा हो, दूध के उतने घूंट भरने दें।
बच्चे को कप फीडिंग कराने के नुकसान
बच्चे को कप फीडिंग कराने के कुछ नुकसान भी होते हैं। इसकी शुरुआत करने से पहले आइये इसके बारे में जानें:
- अगर इसे सही तरह से न किया जाए, तो दूध गले में अटक सकता है या बच्चा दूध बाहर निकाल सकता है।
- बोतल, ट्यूब या सिरिंज से दूध पिलाने की तुलना में इसमें दूध गिरने के कारण अधिक बर्बाद होता है।
- कप से दूध पिलाने में समय लगता है और लंबे समय तक कप फीडिंग कराने से यह ब्रेस्टफीडिंग से बेहतर लग सकता है।
कप फीडिंग से ब्रेस्टफीडिंग तक का सफर
कप फीडिंग से ब्रेस्टफीडिंग तक का सफर, सबसे अधिक इस बात पर निर्भर करता है, कि आपने इसकी शुरुआत कब की है। सफल ब्रेस्टफीडिंग के बीच-बीच में कभी-कभी की जाने वाली कप फीडिंग बिल्कुल ठीक रहती है और इसके साथ कोई समस्या नहीं आती है। वहीं अगर आप इसका इस्तेमाल इसलिए कर रही हैं, कि आपका बच्चा ब्रेस्टफीडिंग नहीं करता है, तब आपको इसके लिए अधिक मेहनत करनी पड़ेगी। कमजोर बच्चों के मामले में यह और भी जरूरी हो जाता है (जैसे जन्म के समय वजन कम होना, प्रीमैच्योर बेबी आदि) जिन्होंने ब्रेस्टफीडिंग के लिए जरूरी ताकत पाने के लिए कप फीडिंग के साथ शुरुआत की हो। हर बार कप से दूध पिलाने से पहले और उसके बीच-बीच में या फिर जब भी आपको लगे कि बच्चे को उसमें दिलचस्पी है, उसे ब्रेस्टफीड कराने की कोशिश करें। एक बार जब बच्चे ब्रेस्ट से दूध पीना शुरू कर देते हैं, तो कप फीडिंग केवल तभी कराएं, जब उन्हें थोड़े और दूध की जरूरत हो।
कप फीडिंग के विकल्प
अगर आप अपने बच्चे को दूध पिलाने के लिए कुछ दूसरे तरीकों को आजमाने की कोशिश करना चाहते हैं, तो यहाँ पर इसके कुछ ऑप्शन दिए गए हैं:
- बच्चे को दूध पिलाने के लिए सिरिंज असरदार होती हैं और यह कप फीडिंग की तुलना में बहुत आसान होता है।
- भारतीय माँओं ने अपने बच्चों को दूध पिलाने के लिए सदियों से ‘पालड़ी’ का इस्तेमाल किया है। यह एक छोटा स्पाउटेड कप होता है, जिससे हर बार थोड़ी-थोड़ी मात्रा में दूध पिलाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है और यह सिरिंज जैसा ही असरदार होता है।
- विकल्प के तौर पर बच्चों को दूध पिलाने के लिए चाय के चम्मच का इस्तेमाल भी किया जा सकता है। अगर बच्चा शांत हो और वह बिना किसी नखरे के दूध पी रहा हो, तो ऐसी स्थिति में यह बहुत काम करता है। शुरुआती कुछ दिनों में कोलोस्ट्रम पिलाने के लिए भी यह बहुत उपयोगी होता है, जब आप सीधे चम्मच में दूध निकाल सकती हैं।
कप फीडिंग शिशुओं में ब्रेस्टफीडिंग का एक बेहतरीन विकल्प है और डॉक्टर से परामर्श लेकर इसे आजमाया जा सकता है।
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