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बड़ों की तुलना में बच्चों का इम्यून सिस्टम उतना ज्यादा मजबूत नहीं होता है और इसलिए उनका शरीर रोगों व समस्याओं से लड़ने में सक्षम नहीं है। हालांकि नेचर ने माँओं को बच्चों में एंटीबॉडीज देने व इम्युनिटी बढ़ाने की सक्षमता प्रदान की है। ब्रेस्टफीडिंग व इम्यूनाइजेशन की मदद से बच्चों का इम्युनिटी सिस्टम मजबूत करना संभव है। यह पहले कुछ महीनों तक होना चाहिए जब बच्चा बहुत ज्यादा कमजोर होता है।
इम्यून सिस्टम क्या है?
मनुष्य का इम्यून सिस्टम प्रोटीन और सेल्स का एक कॉम्प्लेक्स नेटवर्क है जो शरीर को किसी भी इन्फेक्शन से बचाने में मदद करता है। यदि बाहरी चीजें, जैसे वायरस या बैक्टीरिया शरीर में जाते हैं तो हमारे शरीर में मौजूद वाइट ब्लड सेल्स बाहरी चीजों को डिटेक्ट करते हैं और इन्फेक्शन को खत्म करने के लिए अपने आप एंटीबॉडीज उत्पन्न करते हैं। एंटीबॉडीज वास्तव में इन्फेक्शन से लड़ने वाले प्रोटीन होते हैं इसलिए यह हमें बीमार होने से बचाते हैं। इम्यून सिस्टम का सबसे बेसिक काम यही है कि वह हमें बाहरी चीजों से बचाता है और आवश्यकता के अनुसार ही प्रतिक्रिया देता है।
न्यूबॉर्न बच्चों का इम्यून सिस्टम कब विकसित होता है?
गर्भावस्था के अंतिम चरण में प्लेसेंटा के माध्यम से माँ से बच्चे में बहुत जरूरी एंटीबॉडीज जाते हैं। इस इम्युनिटी से बच्चे को जन्म के दौरान जीवित रहने के लिए पर्याप्त सुरक्षा मिलती है। माँ की इम्युनिटी का स्तर भी एंटीबॉडीज के प्रकार और मात्रा पर निर्भर करता है जो बच्चे में पहुँचती है।
जन्म के दौरान माँ की वजायना में मौजूद बैक्टीरिया से बच्चे को फायदे मिलते हैं। इसकी वजह से बच्चे में बहुत सारे बैक्टीरिया होते हैं जो बाद में उसकी इम्युनिटी को बढ़ाते हैं। ब्रेस्टफीडिंग और इम्यून सिस्टम के विकास में बहुत गहरा संबंध है और यह बच्चे के शुरूआती महीनों में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जो बच्चे जन्म के तुरंत बाद से ही सिर्फ माँ का दूध पीते हैं उन्हें इससे इम्युनिटी का फ्रेश इन्फ्यूजन मिलता है। डिलीवरी के बाद माँओं के सबसे पहले दूध को कोलोस्ट्रम कहते हैं जिसमें इन्फेक्शन से लड़ने में सक्षम बनाने वाले शक्तिशाली एंटीबॉडीज होते हैं।
बच्चों के शरीर में माँ के एंटीबॉडीज कब तक रहते हैं?
जब प्लेसेंटा के द्वारा माँ के शरीर से बच्चे में एंटीबॉडीज जाते हैं तो उनमें पैसिव इम्युनिटी बनती है। यह अक्सर गर्भावस्था के अंतिम तीन महीनों में होता है और यह पैसिव इसलिए है क्योंकि बच्चा खुद से एंटीबॉडीज उत्पन्न नहीं करता है। माँ की इम्युनिटी के एंटीबॉडीज ही बच्चे के शरीर में जाते हैं। यदि आपको पहले कभी चिकन पॉक्स हुआ है तो बच्चे में ऐसे एंटीबॉडीज भी जाएंगे जो चिकनपॉक्स से लड़ सकें। यद्यपि यदि आपको पहले कभी यह रोग नहीं हुआ है तो बच्चा इससे सुरक्षित नहीं होगा।
न्यूबॉर्न बेबीज की इम्युनिटी हमेशा के लिए नहीं होती है और कुछ सप्ताह या महीने का होने के बाद यह कम होने लगती है। इसलिए यह बहुत जरूरी है कि बच्चे को 2 महीने का होने तक जल्दी से जल्दी आवश्यक वैक्सीन लगाए जाएं। एचआईबी (इन्फ्लुएंजा टाइप बी) और खांसी के लिए इम्युनाइजेशन पहले साल में ही हो जाना चाहिए क्योंकि इस रोग में इम्युनिटी बहुत जल्दी कमजोर होने लगती है। बच्चे को एमएमआर (मीजल्स, मंप्स, रूबेला) के लिए वैक्सीन एक साल में लगा देनी चाहिए क्योंकि माँ से मिली हुई पैसिव इम्युनिटी इतने समय तक ही रहती है।
बच्चों की इम्युनिटी कैसे बढ़ाएं
ऐसा कहा जाता है कि निराशापूर्ण स्थिति में भी एक आशा की किरण होती है और पेरेंट्स को इस बात से एक नई आस मिलती है कि जब बच्चा बीमार पड़ता है तो उसके शरीर में नए एंटीबॉडीज विकसित होते हैं। भविष्य में किसी भी बीमारी से लड़ने के लिए इसी का उपयोग होगा। तब तक बच्चे की इम्युनिटी बढ़ाने के लिए आप निम्नलिखित टिप्स को फॉलो कर सकती हैं, आइए जानें;
1. बच्चे को माँ का दूध पिलाएं
ब्रेस्टमिल्क में उचित इंग्रेडिएंट्स सही मात्रा में होते हैं, जैसे फैट, प्रोटीन, शुगर, प्रोबायोटिक और एंटीबॉडीज जो बच्चे के इम्यून सिस्टम के सपोर्ट के लिए बहुत जरूरी हैं। सभी एंटीबॉडीज माँ के शरीर में ही बनते हैं ताकि ब्रेस्टमिल्क के रूप में बच्चे तक जाने पर जर्म्स से लड़ सकें। दुर्भाग्य से पोलियो, मीजल्स जैसी समस्याओं के लिए मेडिकल ट्रीटमेंट की जरूरत पड़ती है और ब्रेस्टफीडिंग से ये समस्याएं ठीक नहीं होती हैं। कभी-कभी कुछ विशेष कॉम्प्लीकेशंस की वजह से माँएं बच्चे को दूध नहीं पिला पाती हैं और उस समय विकल्प में सिर्फ बेबी फूड ही रह जाता है।
2. सप्लीमेंट्स शामिल करें
आंतों के बैक्टीरिया इम्युनिटी के लिए जरूरी हैं और यदि एंटीबायोटिक्स लिए जाएं तो यह इतने कारगर नहीं रह जाते हैं। एंटीबायोटिक्स कोर्स के बाद इम्युनिटी बढ़ाने के लिए प्रोबायोटिक्स लेने की सलाह दी जाती है। सेफ्टी के लिए भी गर्भावस्था के दौरान या डिलीवरी के बाद भी प्रोबायोटिक्स बहुत सुरक्षित है। पर बच्चे के लिए इसके सप्लीमेंट्स लेने से पहले आप डॉक्टर से सलाह जरूर लें। आमतौर पर ब्रेस्टमिल्क और बेबी फूड बच्चे में विटामिन्स और मिनरल्स के लिए पर्याप्त हैं।
3. वैक्सीन लगवाएं
बच्चों को गंभीर समस्याओं से बचाने के लिए सबसे सुरक्षित व सेफ तरीका यही है कि उन्हें वैक्सीन लगवाई जाए। वैक्सीनेशन से इम्युनिटी पर उसी प्रकार से प्रभाव पड़ता है जैसे बैक्टीरिया और वायरस प्रभावित करते हैं। इससे यदि भविष्य में बच्चे में जर्म्स आते हैं तो उसका इम्यून सिस्टम उन्हें डिटेक्ट करने में सक्षम होगा और उसकी प्रतिक्रिया से बच्चे को कोई भी गंभीर रोग या कॉम्प्लीकेशंस नहीं होंगे और वह इनसे लड़ने में सक्षम होगा।
4. पूरा न्यूट्रिशन दें
हेल्दी डायट से बच्चों की इम्युनिटी मजबूत होती है। आप उसकी डायट में फल व सब्जियां शामिल करें ताकि बच्चे को सभी आवश्यक न्यूट्रिएंट्स मिल सकें और उसका इम्यून सिस्टम मजबूत रहे। किसी भी रोग से लड़ने के लिए विटामिन ‘सी’ और एंटीऑक्सीडेंट्स बहुत जरूरी हैं और ये इम्युनिटी को बढ़ाने वाले खाद्य पदार्थों से ही मिलते हैं, जैसे स्ट्रॉबेरीज, ग्रेपफ्रूट और अमरुद। आप 6 महीने की आयु में जब बच्चा सॉलिड फूड खाने लगे तो उसकी डायट में ब्रोकोली, पालक, टमाटर और आलू की प्यूरी व जूस भी शामिल करें।
5. बच्चे को फिजिकल एक्टिविटी में व्यस्त रखें
फिजिकल एक्सरसाइज या खेलने से भी बच्चे की इम्युनिटी मजबूत होती है। टॉडलर कुछ एक्टिविटीज कर सकते हैं, जैसे स्विमिंग, जिम्नास्टिक या आप उन्हें सिर्फ दौड़ने के लिए थोड़ी सी जगह दें। जो बच्चे फिजिकल एक्टिविटीज करते हैं उनमें बैक्टीरिया और जर्म्स से लड़ने की क्षमता होती है व वे कम बीमार पड़ते हैं।
6. बच्चे की नींद पर ध्यान दें
यह देखा गया है कि जो बच्चे आवश्यक कुछ घंटों के लिए भी नहीं सोते हैं, वे चिड़चिड़े होते हैं और जल्दी बीमार पड़ते हैं। बच्चे को दिन में उचित नैप लेनी चाहिए और रात में भी अच्छी तरह से सोना चाहिए। नींद खराब होने की वजह से भी बच्चे को इन्फेक्शन जल्दी होता है और वह बीमार पड़ता है। बच्चों का इम्यून सिस्टम मजबूत करना बहुत जरूरी है ताकि उनकी खोई हुई एनर्जी वापस आए और दिमाग तेज हो सके। आप ऐसा वातावरण बनाएं जिससे बच्चा अच्छी नींद ले सके (न्यूबॉर्न बेबीज के लिए 16 से 18 घंटे सोना जरूरी है और एक साल से अधिक के बच्चों के लिए 13 से 15 घंटे सोना जरूरी है)।
7. जर्म-फ्री वातावरण बनाएं
आस-पास साफ सफाई रखने से आप बच्चे के इम्यून सिस्टम को अटैक से बचा सकती हैं। इस बात का ध्यान रखें कि आपका घर स्वच्छ होना चाहिए। आप लगातार बच्चे के हाथ व पैर धोएं और इस बात का भी ध्यान रखें कि जो लोग बच्चे को पकड़ते हैं वे भी ऐसा ही करें। इस उम्र में बच्चे अपने मुँह में कुछ भी डालते हैं जिससे उनके शरीर में जर्म्स जा सकते हैं।
8. स्मोक फ्री जोन रखें
यद्यपि स्मोकिंग हम सभी के लिए हानिकारक है पर इससे छोटे बच्चों के स्वास्थ्य को बहुत ज्यादा जोखिम हो सकते हैं। स्मोकिंग के धुंए और गंध से बच्चे के रेस्पिरेटरी सिस्टम में अटैक आता है जिससे उसका स्वास्थ्य बिगड़ सकता है। स्मोकिंग के धुंए के संपर्क में लगातार रहने से बच्चे को कान का इन्फेक्शन, ब्रोंकाइटिस और अस्थमा भी हो सकता है।
बच्चों के लिए इम्युनिटी मजबूत करने वाले खाद्य पदार्थ
बच्चों की इम्युनिटी बढ़ाने के लिए कुछ खाद्य पदार्थ निम्नलिखित हैं जो आपके बच्चे की डायट में शामिल होने चाहिए, आइए जानते हैं;
- अदरक: इस सुपर फूड में बेहतरीन एंटी-बैक्टीरियल, एंटी-फंगल और एंटी-वायरल गुण होते हैं जो बच्चों की इम्युनिटी को बढ़ाने के लिए बहुत फायदेमंद हैं।
- बादाम: इस टेस्टी स्नैक में विटामिन ई होता है जो बच्चे के इम्युनिटी सिस्टम को मजबूत बनाता है।
- ब्रोकोली: ब्रोकोली में विटामिन ए, सी और ई के साथ-साथ कई एंटी-ऑक्सीडेंट्स मौजूद हैं और इसकी प्यूरी बनाकर आप अपने बच्चे को खिला सकती हैं।
- बोन ब्रॉथ: इसे चिकन या मछली से बनाया जाता है और यह हड्डियों को मजबूत करने में मदद करता है व बच्चे इसे पूरे मजे से खाते हैं।
- ब्रेस्ट मिल्क: स्टडीज से प्रमाणित हुआ है कि जो बच्चे सिर्फ माँ का दूध पीते हैं उनमें इन्फेक्शन का असर बहुत कम होता है और फॉर्मूला मिल्क पीने वाले बच्चों के मुकाबले वे कम बीमार पड़ते हैं। इसलिए बच्चों की इम्युनिटी बढ़ाने के लिए उन्हें माँ का दूध पिलाना बहुत जरूरी है।
प्रीमैच्योर बच्चों के इम्युन सिस्टम के बारे में
प्रीमैच्योर बच्चों को बहुत जल्दी इन्फेक्शन इसलिए होता है क्योंकि जन्म के दौरान उनका इम्यून सिस्टम पूरी तरह से विकसित नहीं हुआ होता है। अन्य की तुलना में प्रीमैच्योर बच्चों की डिलीवरी जल्दी हो जाती है इसलिए उन्हें माँ से पर्याप्त एंटीबॉडीज नहीं मिल पाते हैं। यदि आपके बच्चे का प्रीमैच्योर जन्म हुआ है तो आप उसकी इम्युनिटी को बढ़ाने से संबंधित जानकारी डॉक्टर से लें।
बच्चे के लिए बाहरी दुनिया बहुत नई है और इन्फेक्शन के लिए इम्यून होने के लिए वह कई चैलेंजेस का सामना करता है। आप अपने बच्चे पर पूरी नजर रखें और यदि आपको उसमें बुखार, डिहाइड्रेशन, सांस लेने में समस्या या त्वचा व होंठों के रंग में बदलाव के लक्षण दिखाई देते हैं तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।
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