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बच्चों का स्वास्थ्य पेरेंट्स के लिए सबसे महत्वपूर्ण होता है। पेरेंट्स अपने बच्चे को स्वस्थ और खुश देखना चाहते हैं। ऐसे में जन्म के बाद से माता-पिता को जिस चीज की सबसे ज्यादा चिंता लगी रहती है वो है बच्चे की हेल्थ। बच्चा जब डेवलप हो रहा होता है तो शुरुआती दौर में उसे आमतौर पर ऑंखों से संबंधित समस्या का सामना करना पड़ सकता है। ऐसे में पेरेंट्स अपने बच्चे के स्वास्थ्य को लेकर घबरा जाते हैं लेकिन बच्चों में होने वाली ऑंखों की समस्या गंभीर समस्या नहीं होती है। सही उपचार के बाद यह समस्या ठीक हो जाती है। यह एक आम दिक्कत है जिसका उपचार आसानी से संभव है। पेरेंट्स की चिंताओं को ध्यान में रखते हुए हम बच्चों में होने वाली ऑंखों की समस्या और उसके उपचार के बारे में जानकारी देंगे।
पैदा होने के बाद शुरुआती कुछ दिनों में बच्चा अपनी ऑंखों के साथ सही तरह से तालमेल नहीं बैठा पाता है और उसे कुछ समय तक विजन प्रॉब्लम होती है। ऐसे समय में ऑंखों से ज्यादा पानी आने की समस्या और क्रॉस्ड आई जैसी समस्या का सामना करना पड़ सकता है। इनमें से कुछ समस्याओं के बारे में विस्तार से नीचे बताया गया हैं।
बच्चा जन्म के बाद धीरे-धीरे बढ़ता है। यह अपने में पूरी एक प्रक्रिया होती है। बच्चों की ऑंखों में होने वाली दिक्कते ज्यादातर नसों और मांसपेशियों के पूरी तरह से विकास नहीं होने की वजह से होती हैं। जैसे-जैसे नसों का विकास हो जाता हैं, समस्याएं खत्म हो जाती हैं। अगर फिर भी ऑंखों में दिक्कत आ रही है तो उसका फौरन इलाज करवाना चाहिए। बच्चे की ऑंखों की जाँच एक साल के अंदर समय-समय पर लगातार होते रहना चाहिए।
कभी-कभी कुछ समस्याएं अनुवांशिक भी होती हैं जो पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही होती हैं। इन बीमारियों में एनोफ्थेल्मिया, एनिरिडिया, ऐल्बिनिजम जैसी दिक्कत आती हैं। गर्भावस्था के समय नशे और शराब के सेवन करने से भी बच्चों की ऑंखों पर असर पड़ सकता है।
इसमें बच्चे की ऑंख आगे-पीछे हिलती है। इसी के साथ बच्चे की ऑंखे काफी मुड़ती भी हैं।
जब बच्चा नींद नहीं आने पर भी अपनी ऑंखों पर बार-बार रगड़ रहा होता है।
इसमें ऑंखों में किसी धब्बे का दिखना, सिर्फ एक ऑंख का खुली या ज्यादा बंद होना या ऑंखे में अंतर होना शामिल है।
जब बच्चे की ऑंखों से ज्यादा पानी आ रहा हो तो यह एक संकेत हैं कि ऑंखों में जरूर कुछ न कुछ दिक्कत हो रही है।
इसे ‘पिंक आई’ भी कहते हैं। ऑंख बुखार या किसी इन्फेक्शन की वजह से गुलाबी हो जाती हैं। यह समस्या ज्यादातर तब सामने आती है जब आंसू बनाने वाली नसे ब्लॉक हो जाती हैं।
लक्षण:
इलाज:
इस में बच्चे की ऑंखे एक तरह से क्रॉस्ड जैसी लग सकती हैं। इस समस्या में ऑंखे देखकर ऐसा लगता है कि अगर नाक के बीच का हिस्सा न हो तो दोनों पुतलियां आपस में मिल जाएगी।
लक्षण:
इलाज:
वैसे तो समय के साथ यह दिक्कत खुद सही हो जाती है लेकिन कभी-कभी जब यह खुद सही नहीं होती तो इसका इलाज करवाना पड़ता है। इस परेशानी में ज्यादातर ऑंखों की सर्जरी होती है।
इसमें एक ऑंख का फोकस दूसरी ऑंख से ज्यादा होता है। इसमें एक ऑंख से तो साफ दिखाई देता है लेकिन दूसरी ऑंख से धुंधला दिखाई देता है।
लक्षण:
इलाज:
अगर एंबीलोपिया या ‘लेजी आई सिंड्रोम का समय पर पता चल जाए तो चश्में या आई ड्रॉप से यह समस्या सहीं हो जाती है। अगर फिर भी समस्या सामने आ रही है तो इसका डॉक्टर से इलाज करवाना चाहिए।
बच्चे में ऑंखी की समस्या होने पर पेरेंट्स परेशान हो जाते हैं। ऐसे में वह कुछ उपाय करके अपने बच्चे की ऑंखों को विकसित करने में सहायता कर सकते हैँ।
पेरेंट्स को अपने बच्चों की ऑंखों पर गंभीरता से नजर रखनी चाहिए। उनको देखना चाहिए कि कहीं बच्चा अपनी ऑंखों में कोई दिक्कत तो महसूस नहीं कर रहा है। बच्चे अपनी बात बोल कर नहीं बता पाते हैं ऐसे में पेरेंट्स को ही उनकी दिक्कतों को खुद देखना और समझना पड़ता है। अगर बच्चे की ऑंखों की समस्या बड़ी है तो उसे फौरन डॉक्टर के पास ले जाए। ऑंखों के मामले में लापरवाही न बरतें। बच्चे की ऑंखों की जाँच समय-समय पर करवाती रहे।
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