शहरों में रहने वाले लोग हमेशा रोजमर्रा की आपाधापी से एक ब्रेक लेकर प्रकृति के बीच रहने और इसके सुंदर वातावरण का आनंद लेने के लिए तरसते रहते हैं । आखिर वीकेंड्स किसलिए होते हैं? लेकिन, कोरोनावायरस के प्रकोप के कारण लॉकडाउन के साथ, किसी भी चीज के लिए बाहर जाना बाधित हो चुका है। जब आजकल हम अपने घरों में बंद बैठे, आसमान में धूसर बादलों को गुजरते हुए देख रहे हैं, तो प्रकृति अपने सबसे सुंदर रूप में है; वह बिल्कुल वैसी हो गई है जिसे आजतक स्वीकार करने में हम विफल रहे हैं।
इमर्सन ने एक बार कहा था, ‘जब प्रकृति को कोई काम करना होता है, तो वह ऐसा करने के लिए एक जीनियस को लाती है।’ लगभग एक तरह से, कोरोनावायरस प्रकृति का जीनियस है, भले ही वह मानव जाति के लिए खतरा हो। इस महामारी की वजह से, हमने ऐसे कदम उठाए हैं जो प्रकृति को शांति देने वाले साबित हुए हैं। तो, प्रकृति वास्तव में कैसे अपने उस रूप को वापस पा रही है? आइए जानते हैं!
कोरोना वायरस से पहले खोए अपने रूप को पाने के प्रकृति के 3 तरीके
यह बात समझना कतई मुश्किल नहीं है कि हमारी गतिविधियां प्रकृति सहित हमारे आसपास की हर चीज को प्रभावित करती हैं। जब कई देशों में सेल्फ-आइसोलेशन और सोशल डिस्टैन्सिंग लगभग अनिवार्य हो चुका है और हम एक ही जगह पर रहने के लिए मजबूर हो चुके हैं तो ये निम्नलिखित तरीकों से प्रकृति को फायदा पहुँचा रहे हैं।
1. साफ हवा
उन दिनों को याद करें जब पर्यावरण एक्टिविस्ट हवा में कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए प्रभावी तरीके का विकल्प चुनने के लिए सलाह देते थे, विरोध प्रदर्शन करते थे और यहाँ तक कि लोगों से विनंती तक करते थे। हालांकि, कुछ लोगों ने इसके बारे में सोचा और उपाय किए, लेकिन इससे बहुत ज्यादा फर्क नहीं पड़ा। अब, लॉकडाउन के साथ, हम अपनी अधिकांश गतिविधियों को घर तक सीमित करने के लिए मजबूर हो गए हैं। इस प्रकार, फॉसिल फ्यूल के जलने से, विशेष रूप से वाहनों, पॉवर प्लांट्स और कई इंडस्ट्रीज के कारण निकलने वाली कार्बन डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड गैसों की मात्रा में कमी आ गई है।
नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (नासा) और यूरोपीय स्पेस एजेंसी (ईएसए) ने हाल ही में यूरोप और चीन में क्वारंटाइन से पहले और बाद में नाइट्रोजन डाइऑक्साइड के स्तर की तुलना करने पर भारी गिरावट की रिपोर्ट की थी। कई अन्य देशों ने भी एयर क्वालिटी इंडेक्स में एक महत्वपूर्ण सुधार देखा है, यह दर्शाता है कि हम कंक्रीट के जंगलों में रहने के बावजूद ताजी हवा में सांस ले सकते हैं, और हानिकारक पार्टिकुलेट मैटर के कारण समय से पहले होने वाली मौतों से बच सकते हैं।
2. बेहतर साफ पानी
हम जो साफ पानी के बजाय बेहतर साफ पानी कह रहे हैं उसका कारण यह है कि हर तरह की गतिविधियां सामान्य रूप से जल प्रदूषण का कारण बनती हैं, जैसे शहरी, कृषि और इंडस्ट्रियल क्षेत्रों से गंदगी बहना, और पानी में सीवेज और अन्य अपशिष्ट पदार्थों की डंपिंग, अभी तक पूरी तरह से बंद नहीं हुई है। फिलहाल जो अस्थाई रूप से बंद हो गया है, वह है, सभी प्रकार का वॉटर ट्रांसपोर्टेशन, जिसमें क्रूज़, कंटेनर शिपमेंट, लोकल बोट्स, फेरी आदि शामिल हैं। इसके अलावा, समुद्र के बीच, नदियों और झीलों जैसी आकर्षक जगहों पर लोग कम हैं या लगभग नहीं हैं क्योंकि टूरिज्म पर कोरोना का प्रभाव पड़ा है। परिणाम – जल प्रदूषण के स्तर में एक छोटा लेकिन नजर में आने लायक सुधार हुआ है।
उदाहरण के लिए इटली के वेनिस शहर को ही लें। वहाँ स्वच्छ नहरों के साथ जलीय जीवन में मामूली सुधार देखा गया है। लॉकडाउन के बाद वहाँ के लोगों ने इस ‘सिटी ऑफ कैनल्स’ में क्या फर्क देखा, यह पता करने के लिए इस वीडियो को देखिए।
स्रोत– https://www.instagram.com/p/B96mZAAJ4Ji/
3. कम शोर
हाँ, हम जानते हैं, कुछ घरों में ऐसे लोग हैं जो चैटिंग से प्यार करते हैं, लेकिन हम यहाँ इसकी बात नहीं कर रहे हैं। जिस शोर के बारे में हम बात कर रहे हैं, वह मानव निर्मित है जिसे हम क्वारंटाइन से पहले हर रोज सुनते थे। सड़क, हवाई और रेल ट्रैफिक, कारखानों और लोगों के बड़े तौर पर मिलने-जुलने पर प्रतिबंध लगाए जाने के बाद से शोर के स्तर में उल्लेखनीय कमी आई है।
मानव निर्मित शोर, जब एक निश्चित स्तर से अधिक हो जाता है, तो भूमि, आकाश और पानी, हर जगह रहने वाले जानवरों के जीवन को प्रभावित कर सकता है। यह शोर व्हेल और डॉल्फिन की आवाजाही में हस्तक्षेप कर सकता है, जो इकोलोकेशन के माध्यम से घूमती हैं और पक्षियों को भी परेशान करता है जब वे घोंसले बनाने की प्रक्रिया में लगे होते हैं। चूंकि कई देशों ने घर से बाहर निकलने पर रोक लगा दी है, इसलिए वाहनों की कमी के कारण ध्वनि प्रदूषण में भी कमी आई है। आप भी अपने कानों से कुछ देर के लिए हेडफोन्स हटाइए और पक्षियों की चहचहाहट का आनंद लीजिए।
ये कुछ सुंदर तरीके हैं जिनसे कोरोनोवायरस के प्रकोप के बाद से प्रकृति में बदलाव हुए हैं। बेशक, अन्य प्रकार के प्रदूषण हैं, जैसे मिट्टी, प्रकाश, थर्मल और रेडिओएक्टिव प्रदूषण जो उसे अभी भी नुकसान पहुँचा रहे हैं। हम इसके बारे में कुछ कर सकते हैं यदि हम इस लॉकडाउन को एक मौके की तरह समझकर प्रकृति के संरक्षण के तरीकों की तलाश करें। फिलहाल की परिस्थिति को देखकर दीर्घकालिक जलवायु परिवर्तन की भविष्यवाणी करना जल्दबाजी हो सकती है, लेकिन यह संभव हो सकता है!
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