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एक्सपर्ट्स मानते हैं, कि खुद सोने की क्षमता एक जरूरी गुण है, जो कि बच्चों में होनी ही चाहिए और क्राई इट आउट मेथड बच्चों को सोने की ट्रेनिंग देने के लिए एक अच्छा माध्यम है, जो कि यह काम अच्छी तरह से कर सकता है। इस तरीके के पीछे का आईडिया यह है, कि बच्चे को 6 महीने की उम्र के बाद यह पता चल चुका होता है, कि रोने पर उसे उठाया जाता है, झूला झुलाया जाता है या आराम दिया जाता है। जिससे सोने के समय उसे नींद आने में दिक्कत होती है। लेकिन क्राई इट आउट मेथड से इसमें बदलाव आता है और इस ट्रेनिंग के दौरान चार या पांच रातों के अंदर ही बच्चा सोने से पहले रोना छोड़ देता है और खुद सोना सीख जाता है।
क्राई इट आउट मेथड (सीआईओ) बच्चों के लिए तैयार की गई एक स्लीप ट्रेनिंग है, जिसमें पेरेंट्स के द्वारा गोद में उठाने या आराम पहुंचाने से पहले, कुछ खास समय के लिए बच्चों को रोने के लिए छोड़ दिया जाता है। सीआईओ में कई तरह के तरीके होते हैं और इसे अक्सर वह तरीका समझने की गलती कर ली जाती है, जिसमें बच्चे को सोने से पहले रोने के लिए पूरी तरह से अकेले छोड़ दिया जाता है। इसे ग्रेजुएट एक्सटिंक्शन कहा जाता है, जो कि इसका बिल्कुल सही नाम है, क्योंकि इसमें माता-पिता की अनुपस्थिति में बच्चे को सोने के समय खुद को शांत करना सिखाया जाता है।
फर्बर मेथड, सीआईओ के तरीकों में से सबसे लोकप्रिय तरीका है। डॉक्टर रिचर्ड फर्बर ने बच्चों में सोने की समस्याओं को सुलझाने के लिए इसका विकास किया था। 1985 में ‘सॉल्व योर चाइल्ड स्लीप प्रॉब्लम्स’ नामक बुक पब्लिश होने के बाद, यह तरीका फर्बराइजिंग के नाम से प्रसिद्ध हो गया। फर्बर कहते हैं, कि 3 से 5 महीने की आयु के बीच, जब बच्चे शारीरिक और भावनात्मक रूप से तैयार होते हैं, तब सोने के लिए उन्हें खुद को शांत करना सिखाना संभव है।
लोकप्रिय मत के विपरीत सीआईओ मेथड को अपनाने का यह मतलब नहीं है, कि आप एक बुरी मां हैं और इसलिए आप बच्चे को बेतहाशा रोने के लिए छोड़ देती हैं। बल्कि, इस मेथड को एक सेट पैटर्न में अपनाया जाता है और इसके बारे में कुछ स्पष्ट नियम हैं। सीआईओ के कई फायदे भी हैं, जिनमें से कुछ नीचे दिए गए हैं:
सीआईओ मेथड में ट्रेन किए गए शिशुओं पर, हाल ही में की गई एक स्टडी में शोधकर्ताओं को कोर्टिसोल हार्मोन का लेवल बहुत ही नीचा मिला, जिसे स्ट्रेस हॉर्मोन के नाम से भी जाना जाता है। तनाव का घटा हुआ स्तर, पूरी रात बेहतर नींद से जुड़ा हुआ होता है और नींद में कम अड़चन होती है या अड़चन नहीं आती है।
यह स्टडी जब माता-पिता में तनाव की जांच के लिए की गई तब, उनमें भी रात में रोते बच्चे को चुप कराने के लिए कई बार उठने की जरूरत न होने के कारण, स्ट्रेस कम पाया गया। इससे उनका मानसिक स्वास्थ्य बेहतर होता है और वे अपने बच्चे का पालन पोषण और भी बेहतर तरीके से कर पाते हैं।
सीआईओ मेथड कुछ दिनों में या लगभग 1 सप्ताह में अपने नतीजे दिखाने लगता है और अपने बिस्तर में जाने के बाद 15 मिनट के अंदर बच्चे सो जाते हैं। एक्सपर्ट मानते हैं, कि खुद सो पाना जीवन का एक महत्वपूर्ण गुण है और सीआईओ इसके विकास को संभव बनाता है।
लॉन्ग टर्म एनालिसिस के अनुसार लोकप्रिय मत के विपरीत क्राई इट आउट मेथड में ट्रेनिंग पाए बच्चों के व्यवहारिक व सामाजिक गुणों में कोई बदलाव नहीं दिखता है।
अमेरिकन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स क्राई इट आउट मेथड को बच्चों की स्लीप ट्रेनिंग के लिए सुरक्षित मानती है और पेरेंट्स और फिजिशियन को इसे आजमाने की सलाह देती है।
क्राई इट आउट बच्चों पर क्यों काम करती है, इसके पीछे की थ्योरी यह है, कि जब मौका दिया जाता है, तो बच्चों के लिए खुद सोना संभव है और यह एक ऐसा गुण है, जो कि कम समय में ही हासिल किया जा सकता है। जिस बच्चे को हर दिन सोने के लिए दूध पिलाया जाता है या झूला झुलाया जाता है, वह ऐसे रूटीन के साथ खुद सोना नहीं सीख पाता है। इसी कारण, अपने नियमित स्लीप साइकिल के हिस्से के रूप में जब रात को वह जागता है, तो यह एक समस्या हो सकती है। जब उसे पेरेंट्स अपने आसपास नहीं दिखते हैं, तो यह उसके लिए चिंता का एक कारण बन जाता है और वह खुद सो नहीं पाता है। वह जागता रहता है और रोता रहता है।
वहीं दूसरी ओर, जिन बच्चों को क्राई इट आउट मेथड की ट्रेनिंग दी गई होती है, वे दिन में या रात में सोने के दौरान जागने पर खुद को शांत कर सकते हैं और दोबारा सो सकते हैं, क्योंकि उन्हें खुद सोने की आदत हो जाती है। इसलिए यह तरीका रोने को लक्ष्य के रूप में देखने के बजाय एक साइड इफेक्ट के रूप में देखता है। शुरुआत में, इस ट्रेनिंग के दौरान स्थिति और भी बिगड़ी हुई लग सकती है, लेकिन बच्चे और माता-पिता के द्वारा थोड़े समय के लिए उठाई गई तकलीफ आगे चलकर बहुत फायदेमंद होती है, क्योंकि बच्चे आराम से खुद सोना सीख जाते हैं और आपको भी रात में अच्छी नींद मिलती है।
ज्यादातर पेरेंट्स, जिन्होंने इस तरीके को अपनाया है, वे बताते हैं, कि यह तीन से चार रातों के बाद काम करने लगता है और ट्रेनिंग के सातवें दिन तक पहुंचने तक बच्चा थोड़ी देर के बाद सो जाता है।
इस तरीके को 4 से 6 महीने की उम्र के बीच आजमाया जा सकता है, जब बच्चा शारीरिक और भावनात्मक रूप से पूरी रात सोने के लिए तैयार होता है।
स्टेप 1: बच्चे को उसके क्रिब में रखें, जब उसे नींद आ रही हो पर वह जागा हुआ हो।
स्टेप 2: उसे गुड नाईट कहें और वह रो रहा हो, तब भी कमरे से बाहर चली जाएं। उसे लगभग 3 मिनट के लिए रोने दें।
स्टेप 3: वापस कमरे में जाएं और शांत हल्की आवाज में बच्चे को तसल्ली देते हुए उसे थपथपाएं। पर ऐसा 2 मिनट से अधिक न करें और इस दौरान कमरे की लाइट्स बंद रखें। अगर बच्चा इस दौरान रोता रहे, तो भी कमरे से बाहर चली जाएं।
स्टेप 4: इसी रूटीन को दोबारा फॉलो करें। पर, इस समय पहले की तुलना में थोड़े अधिक समय तक बाहर रहें और फिर दोबारा कमरे में आएं। थोड़े समय रह कर वापस चले जाएं। भले ही बच्चा रो रहा हो या जाग रहा हो।
स्टेप 5: धीरे-धीरे समय को बढ़ाते हुए इस रूटीन को जारी रखें और तब तक जारी रखें, जब तक आपके कमरे से बाहर रहने के दौरान वह सोने न लगे।
स्टेप 6: अगर बच्चा रात को जागे और रोए, तो इस रूटीन को कम से कम टाइम इंटरवल के साथ फिर से शुरू करें और इंटरवल को बढ़ाते हुए इसे दोहराती रहें।
स्टेप 7: हर दिन हर विजिट के बीच के समय को बढ़ाती रहें। फर्बर के अनुसार, ज्यादातर मामलों में तीसरी या चौथी रात या एक सप्ताह तक, बच्चा अपने आप सोने लगता है। अगर आपका बच्चा कुछ दिनों के बाद भी इसे नहीं अपना पाता है, तो उसे कुछ सप्ताह का ब्रेक दें और दोबारा शुरू करें।
दिन | पहला इंटरवल | दूसरा इंटरवल | तीसरा और आगामी इंटरवल |
पहला | 3 मिनट | 5 मिनट | 10 मिनट |
दूसरा | 5 मिनट | 10 मिनट | 12 मिनट |
तीसरा | 10 मिनट | 12 मिनट | 15 मिनट |
चौथा | 12 मिनट | 15 मिनट | 17 मिनट |
पांचवा | 15 मिनट | 17 मिनट | 20 मिनट |
छठा | 17 मिनट | 20 मिनट | 25 मिनट |
सातवां | 20 मिनट | 25 मिनट | 30 मिनट |
फर्बर का सीआईओ मेथड बहुत ही लोकप्रिय है और ज्यादातर मामलों में यह कारगर होता है। हालांकि ऐसे अन्य विकल्प भी उपलब्ध हैं, जो कि आपके बच्चे को स्वतंत्र रूप से सोने में मदद कर सकते हैं। उनमें से कुछ नीचे दिए गए हैं:
फर्बर के इस प्रकार में हर 5 मिनट के अंतराल में बच्चे को चेक किया जाता है। असली फर्बर मेथड के बजाय बच्चे को आराम पहुंचाने के लिए इंतजार करने का समय 5 मिनट का रखा जाता है, जब तक बच्चा सो नहीं जाता है। इसे कंट्रोल्ड क्राई आउट मेथड भी कहा जाता है, क्योंकि जब बच्चा रोना बंद कर देता है, तब आप उसे केवल तब ही चेक कर सकती हैं, जब वह दोबारा रोना शुरू करे।
इस मेथड में बच्चे को क्रिब में रखा जाता है और एक पेरेंट बच्चे के पास एक कुर्सी में तब तक बैठा रहता है, जब तक वह सो न जाए। दूसरी रात पेरेंट क्रिब से थोड़ी दूरी पर बैठते हैं। हर रात इस दूरी को थोड़ा-थोड़ा बढ़ाया जाता है और अंत में कुर्सी को कमरे में केवल छोड़ दिया जाता है, जिससे बच्चे को झूठी तसल्ली मिलती है, कि मां या पिता कमरे में है और उसे देख रहे हैं।
यह तरीका नो टियर्स मेथड का एक रूपांतरण है, जिसमें पेरेंट अपनी कुर्सी दरवाजे से बाहर रख देते हैं और उस पर तब तक बैठे रहते हैं, जब तक बच्चा सो न जाए। अगली रात दरवाजे को खुला छोड़ दिया जाता है और कुर्सी को दरवाजे पर छोड़ दिया जाता है, पर उस पर कोई बैठता नहीं है।
इस तरीके के पीछे का आईडिया यह है, कि एक थका हुआ बच्चा जल्दी सो जाता है। मां या पिता बच्चे के पूरी तरह से थक कर सोने का इंतजार करते हैं। फिर बच्चे को उसके बिस्तर में डाल दिया जाता है और उसके सोने के समय को नोट किया जाता है। हर दिन उसी समय पर इस रूटीन को दोहराया जाता है, जिससे एक विशेष समय पर बच्चे के सोने का रूटीन सेट हो जाता है और वह बिना ज्यादा परेशानी के सोने लगता है।
यह संभवतः सीआईओ के सभी तरीकों में से सबसे सख्त तरीका है। यह तरीका फर्बर मेथड से मिलता जुलता है। नींद के शुरुआती संकेत दिखने पर, बच्चे को उसके बिस्तर में रख दिया जाता है और फिर चाहे वह कितना भी रोए, उसे रोने के लिए छोड़ दिया जाता है। इस प्रकार बच्चे को खुद सोने के लिए पूरी तरह से छोड़ दिया जाता है।
माता-पिता दोनों को एक दूसरे की मदद के लिए तैयार रहना चाहिए और स्लीप ट्रेनिंग के दौरान एक दूसरे की मदद करनी चाहिए। इसके लिए दोनों के पास पर्याप्त समय होना चाहिए और काम, बिजनेस ट्रिप या रिश्तेदारों से मिलने जैसे काम नहीं होने चाहिए। इससे शेड्यूल खराब हो सकता है। भावनात्मक रूप से दोनों पार्टनर की एक आपसी समझ होनी चाहिए, कि इस प्रक्रिया को कैसे करना है, ताकि वे कठिन समय में एक दूसरे को सपोर्ट कर सकें।
नहलाना, लोरी सुनाना या किताब पढ़कर सुनाना जैसी एक्टिविटी के साथ, सोने के समय को तय करें और इस रूटीन को मेंटेन करें। ताकि बच्चे को इसकी समझ हो जाए और वह आसानी से सो सके।
हो सकता है, कि आपका बच्चा स्लीप ट्रेनिंग के लिए तैयार न हो और शुरुआत में यह काम न करें। लेकिन कुछ सप्ताह के बाद, आपको दोबारा शुरू करना चाहिए। ऐसी कई रातें होंगी, जब बच्चा रात के बीच में उठ जाएगा और आपको पूरे रूटीन को बार-बार दोहराना पड़ेगा और इसके कारण आप रात भर सो नहीं पाएंगी।
नियमित शेड्यूल पर सोने की पूरी ट्रेनिंग मिलने के बाद भी, बीमारी या सफर के दौरान यह दोबारा शुरू हो सकता है।
लगातार करने से ही सफलता मिलेगी। एक बार यह रूटीन स्थापित हो जाए, तो यह जरूरी है, कि उसे फॉलो किया जाए। यदि बच्चा शारीरिक या भावनात्मक रूप से स्वस्थ न हो, तो कुछ समय के लिए इसे रोका जा सकता है। अगर कभी वह रात के बीच में जाग जाए और आपको उसे झुलाकर सुलाने की जरूरत महसूस हो, तो दोबारा शुरू करें। अपने साथी से इस बात पर चर्चा करें, कि ट्रेनिंग के दौरान बारी-बारी से अपनी भूमिका कैसे निभाई जाए।
इस तरीके के बहुत से फायदे तो हैं, पर कुछ नुकसान भी हैं। क्राई इट आउट मेथड के कुछ नुकसान नीचे दिए गए हैं:
अपने बच्चे के रोने को नजरअंदाज करने से, उसके दिमाग के न्यूरॉन्स में खराबी आ सकती है। जिससे लंबे समय तक ट्रॉमा के कारण हाइपरसेंसिटिविटी की समस्या हो सकती है। चूंकि बच्चों को बार-बार स्पर्श और बहुत ध्यान देने की जरूरत होती है, तो इसकी कमी के कारण, उनके नर्वस सिस्टम के फंक्शन में खराबी आ सकती है।
बच्चों में कम तनाव वाले इसके विचार को चुनौती देने वाली एक रिसर्च यह बताती है, कि सीआईओ स्लीप ट्रेनिंग से गुजर रहे बच्चों में, स्ट्रेस हार्मोन कोर्टिसोल काफी बढ़ सकता है। यह सोने के बाद भी बना रहता है और जागने के दौरान इसके नकारात्मक प्रभाव दिख सकते हैं।
रोना एक ऐसा माध्यम है, जिससे बच्चे अपने माता-पिता को अपनी जरूरतों के बारे में बताते हैं। अगर ऐसे में रोने पर पेरेंट्स से सकारात्मक प्रतिक्रिया न मिले, तो बच्चे को माता-पिता से अलगाव महसूस हो सकता है। बच्चे के जीवन के शुरुआती 2 वर्ष उनके साथ संबंधों को मजबूत बनाने के लिए बहुत जरूरी होते हैं और जो बच्चे भावनात्मक रूप से अपने माता-पिता से अलग हो जाते हैं, उनमें बड़े होने के बाद असुरक्षा की भावना हो सकती है।
सीआईओ मेथड में मां को अपने बच्चे को आराम दिलाने की मातृत्व की भावना को छोड़ना पड़ता है। इससे बच्चे को सही तरह से बड़ा करने में उनका कॉन्फिडेंस कम हो सकता है और मां और बच्चे के बीच प्यार और जुड़ाव कम हो सकता है।
सीआईओ के तरीकों से सडन इन्फेंट डेथ सिंड्रोम (एसआईडीएस) का खतरा बढ़ सकता है। बच्चे को अंधेरे कमरे में दरवाजा बंद करके अकेला छोड़ देने से कोई अनचाही दुर्घटना घट सकती है, जिससे उसकी जान जा सकती है।
फर्बर मेथड, मुख्य रूप से दिन के बजाय रात की नींद के लिए है। जब बच्चे बड़े होते जाते हैं, तो दिन में कम सोते हैं। इसलिए यह तरीका रात की नींद के लिए उपयोगी है और जिन बच्चों को सीआईओ में ट्रेनिंग दी जाती है, वे रात में खुद सो सकते हैं।
फर्बर मेथड खिलौनों और पैसिफायर या ऐसी किसी भी अन्य चीज के इस्तेमाल की सलाह नहीं देता है, जिसे बच्चे नींद का संकेत समझें। जब बच्चे अकेले होते हैं, तब ये खिलौने उनके दम घुटने का कारण बन सकते हैं और एसआईडीएस के खतरे को बढ़ा सकते हैं। हालांकि द अमेरिकन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स, सोने के समय पैसिफायर के इस्तेमाल को रेकमेंड करता है और इसका चुनाव पूरी तरह से आप पर निर्भर करता है। क्योंकि आपके बच्चे के लिए सबसे बेहतर क्या है, यह केवल आप ही जानती हैं।
क्राई इट आउट मेथड हर पैरेंट या बच्चे के लिए सही हो, ऐसा जरूरी नहीं है। लेकिन यह बहुत लोगों के लिए कारगर साबित हो चुका है। हालांकि लंबे समय के लिए अपने बच्चे का रोना सुनना आपको तकलीफ दे सकता है, लेकिन शुरुआत में थोड़ा दर्द सहने पर आपको और आपके बेबी को आगे चलकर रात की बहुत अच्छी नींद मिल सकती है।
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