गर्भावस्था

प्रसव के बाद जोड़ों में दर्द

आपकी गर्भावस्था की पूरी अवधि के दौरान आपके शरीर से जुडी विभिन्न प्रकार की जानकारी से आप अवगत होती हैं और  इस दौरान आपमें जो बदलाव आते हैं उन्हें स्वीकार करने के लिए आपको समय मिलता है। हालांकि, बच्चे के जन्म के बाद भी कई अन्य तरह के बदलाव होते हैं। कई माताओं को सर्जरी के बाद भी अपने कूल्हों में दर्द का अनुभव होता है और बच्चे के गर्भ से बाहर आ जाने के बावजूद भी घुटनों में अजीब अस्थिरता का एहसास बना रहता है। प्रसव के बाद जोड़ों का दर्द एक अन्य लगातार होने वाला और तीव्र दर्द है जो किसी भी स्त्री को अचानक उम्र बढ़ जाने का अहसास करा सकता है।

प्रसव के बाद जोड़ों के दर्द का क्या कारण होता है?

प्रसव के बाद जोड़ों के दर्द के कुछ सामान्य कारण निम्नवत हैं:

  • प्रसव के बाद ज्यादातर माँओं में तीव्र जोड़ों के दर्द का प्राथमिक कारण गर्भावस्था के दौरान होने वाली वजन वृद्धि है। गर्भावस्था के दौरान बच्चे का वजन बढ़ता रहता है, और शरीर वजन को संभालने की पूरी कोशिश करता है। यह दर्द प्रसव के पूरा होने को स्वीकार करने की प्रक्रिया के तहत होता है।
  • पुराने दर्द और गठिया जैसी समस्याओं के कारण कुछ माँओं को गर्भधारण के बाद जोड़ों में दर्द होने की आशंका अधिक होती है। यह जोड़ों के दर्द को और बढ़ाता है।
  • यदि आप पहले से ही जोड़ों के दर्द और टेलबोन (मेरूरज्जू की सबसे छोटी हड्डी) संबंधित दर्द की समस्या से पीड़ित हैं तो ये बच्चे के प्रसव के बाद तीव्र जोड़ों के दर्द में परिवर्तित हो सकता है।
  • गर्भावस्था और प्रसव के दौरान कई हार्मोन्स स्रावित होते हैं जो माँ और बच्चे की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण हैं। ये हार्मोन शरीर के स्नायू शिथिल कर देते हैं, जिससे मां बच्चे के वजन को वहन कर सफल प्रसव करा सकती है। एक बार जब डिलीवरी पूरी हो जाती है, तो स्नायुबंधन को अपनी मूल स्थिति में लौटने के लिए कुछ समय की आवश्यकता होती है। इसके परिणामस्वरूप, जोड़ों में दर्द होता है।
  • यदि कोई महिला गर्भावस्था के दौरान नियमित व्यायाम नहीं करती है या यदि वह स्वास्थ्य या चोटों से संबंधित समस्या का सामना करती है जो उसे व्यायाम करने से रोकते हैं, तो ऐसी महिलाओं में प्रसव के बाद जोड़ों का दर्द होने की संभावना काफी अधिक होती है।

प्रसव के बाद, जोड़ों के दर्द से उबरने में कितना समय लगता है?

किसी भी दूसरी प्रकार की स्वास्थ्य समस्या से उबरने में लगने वाले समय की तरह, प्रसव के बाद अच्छी तरह ठीक होने में समय का लगना किसी भी स्त्री के व्यक्तिगत स्वास्थ्य पर निर्भर करता है। सामान्य तौर पर, जोड़ों का दर्द कुछ सप्ताह तक रहता है। कुछ चरम मामलों में, ये दर्द 4-6 महीने तक भी रहता है। यदि एक माँ को अच्छी गर्भावस्था के साथ ही एक स्वस्थ प्रसव हुआ है और वो उचित व्यायाम के साथ, योग्य खान-पान की आदतों और आहार की सिफारिशों पर वापस लौट सकती है, तो उसके दर्द से उबरने की संभावना अधिक होती है। प्रसव के बाद बेहतर देखभाल और चोटों और स्वास्थ्य की पिछली समस्याओं का ध्यान रखे जाने के साथ इस समयावधि को और कम किया जा सकता है।

शिशु को स्तनपान कराते वक्त सही दशा में बैठना, एकदम नीचे की स्थिति से शिशु को न उठाना और बहुत अधिक समय तक बच्चे को न लेकर रहने जैसी बातों का ध्यान रखने की आवश्यकता है। इन बातों का ध्यान न रखने से जोड़ों में दर्द बढ़ सकता है और गर्भावस्था के बाद ‘सैक्रोइलियक’ का दर्द हो सकता है।

घरेलू उपचार

प्रसवोत्तर जोड़ों के दर्द के लिए कोई विशिष्ट उपचार प्रक्रिया नहीं है। फिर भी, कुछ तरीके और उपाय दर्द को काफी हद तक कम करने में मदद कर सकते हैं।

  • नियमित रूप से हल्के व्यायाम का अभ्यास करें। महत्वपूर्ण ये है कि आपका शरीर सक्रिय रहे इसलिए जरुरी नहीं कि ये औपचारिक व्यायाम हो। यह प्राथमिक तौर पर जोड़ों के दर्द को नियंत्रित करता हो। तैराकी जैसे व्यायाम जो जोड़ों पर दबाव नहीं डालते, उन्हें किया जाना चाहिए। किसी भी मामले में, नियमित रुप से कोई  भी व्यायाम करने से पहले एक विशेषज्ञ के साथ परामर्श करना सबसे बेहतर है।
  • दर्द की देखभाल के लिए पुरानी प्रभावशाली गरम और ठंडे की तकनीक का सहारा लिया जा सकता है। गर्म पानी की थैली का उपयोग, टब में गर्म पानी से स्नान और बर्फ की पोटली का उपयोग करने से जोड़ों के दर्द से धीरे-धीरे राहत मिल सकती है। किसी भी सूरत में, त्वचा पर सीधे गर्म पानी की थैली या आइस पैक का उपयोग न करें। उन्हें एक तौलिए में लपेटें और फिर उस जगह पर इस्तेमाल करें जहां दर्द हो रहा है।
  • शरीर की शानदार मालिश करने जैसा आराम कुछ भी नहीं है। अपने जोड़ों की स्वयं मालिश करें या एक विशेषज्ञ से अच्छी तरह मालिश करा लें। इस प्रक्रिया में चिकनाहट के लिए आप ऐसे कुछ तेलों या मलहमों का उपयोग कर सकती हैं जो जोड़ों के दर्द को नियंत्रित करने के लिए जाने जाते हैं।
  • ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जहां कुछ महिलाओं को एक्यूपंक्चर की तकनीक के इस्तेमाल से जोड़ों के दर्द से काफी राहत मिली है। यदि आप इस तकनीक से अच्छी तरह से अवगत हैं, तो इन्हें घर पर ही किया जा सकता है। अन्यथा, यह सलाह दी जाती है कि हमेशा अपने डॉक्टर या विशेषज्ञ से परामर्श करें।

प्रसव के बाद होने वाले सभी दर्द और पीड़ा, गर्भावस्था के दौरान होने वाली प्राकृतिक प्रक्रिया का हिस्सा हैं। पूरी गर्भावस्था में 9 महीनों के दौरान शरीर में शरीर में भारी बदलाव आते हैं। एक बार जब आप विश्राम और गतिविधियों व व्यायाम को सही तरीके से संतुलित करते हुए शरीर को ठीक करने के लिए अच्छा समय देंगी, तो दर्द कम होने लगेगा और आपको राहत मिलेगी। यदि दर्द और बढ़ जाता है या आप अपने शरीर में उन परिवर्तनों को महसूस करना शुरू कर दें जो आपने पहले नहीं देखे हैं, तो किसी भी प्रसवोत्तर समस्या को दूर करने के लिए अपने डॉक्टर से संपर्क करें और बेहतर सलाह लें।

श्रेयसी चाफेकर

Recent Posts

जादुई हथौड़े की कहानी | Magical Hammer Story In Hindi

ये कहानी एक लोहार और जादुई हथौड़े की है। इसमें ये बताया गया है कि…

1 week ago

श्री कृष्ण और अरिष्टासुर वध की कहानी l The Story Of Shri Krishna And Arishtasura Vadh In Hindi

भगवान कृष्ण ने जन्म के बाद ही अपने अवतार के चमत्कार दिखाने शुरू कर दिए…

1 week ago

शेर और भालू की कहानी | Lion And Bear Story In Hindi

शेर और भालू की ये एक बहुत ही मजेदार कहानी है। इसमें बताया गया है…

1 week ago

भूखा राजा और गरीब किसान की कहानी | The Hungry King And Poor Farmer Story In Hindi

भूखा राजा और गरीब किसान की इस कहानी में बताया गया कि कैसे एक राजा…

1 week ago

मातृ दिवस पर भाषण (Mother’s Day Speech in Hindi)

मदर्स डे वो दिन है जो हर बच्चे के लिए खास होता है। यह आपको…

1 week ago

मोगली की कहानी | Mowgli Story In Hindi

मोगली की कहानी सालों से बच्चों के बीच काफी लोकप्रिय रही है। सभी ने इस…

1 week ago