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अंबिलिकल कॉर्ड (गर्भनाल) वो कड़ी होती है, जो कि मां के प्लेसेंटा और गर्भ में पल रहे बच्चे को कनेक्ट करती है। यह कॉर्ड पल्सेट करता रहता है और बच्चे तक खून, ऑक्सीजन और स्टेम सेल्स पहुंचाता है। गर्भ के जीवन से बाहरी दुनिया तक के ट्रांजैक्शन को बच्चे के लिए अतिरिक्त खून के द्वारा बेहतर बनाया जा सकता है। इसलिए नवजात शिशु के लिए डिलेड कॉर्ड क्लैंपिंग यानी देर से गर्भनाल काटना बेस्ट विकल्प है। इसके बारे में अधिक जानकारी के लिए लेख को आगे पढ़ें।
डिलेड कॉर्ड क्लैंपिंग (डीडीसी) नवजात शिशु के जन्म और अंबिलिकल कॉर्ड काटने के बीच के समय को लंबा करने का नाम है। 50-60 वर्षों से जन्म के तुरंत बाद गर्भनाल को काटने की परंपरा रही है। लेकिन कुछ लोगों का मानना है, कि यह बच्चे के स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं होता है, क्योंकि इससे बच्चा खून की बड़ी मात्रा से और अन्य फायदों से वंचित रह जाता है। वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन का मानना है, कि अगर उन्हें सांस लेने के लिए असिस्टेंस की जरूरत ना हो, तो डीसीसी फुलटर्म बच्चों के साथ-साथ प्रीमैच्योर बच्चों के लिए भी सुरक्षित है, क्योंकि अंबिलिकल कॉर्ड मां और बच्चे से जुड़ा रहने से होश में लाने के प्रयासों को बड़े पैमाने पर नुकसान हो सकता है।
पिछले कुछ वर्षों में डिलेड कॉर्ड क्लैंपिंग के संभावित फायदों ने बहुत सारा ध्यान आकर्षित किया है। हालांकि मां और बच्चे के लिए इससे कोई खतरा नहीं होता है, फिर भी इसकी प्रैक्टिस उन स्वस्थ शिशुओं और मांओं पर करनी चाहिए, जिनमें कोई जटिलताएं ना हों।
अंबिलिकल कॉर्ड की क्लैंपिंग का समय मां और बच्चे की स्थिति पर निर्भर करता है। अंबिलिकल कॉर्ड को तुरंत काटने की तुलना में देर से काटने से एक नवजात शिशु को 30% अधिक फीटल प्लेसेंटल ब्लड वॉल्यूम मिलता है। डब्ल्यूएचओ फुलटर्म और प्रीटर्म दोनों ही तरह के बच्चों में 1 मिनट से पहले इसे न काटने की सलाह देता है। इसमें इस बात का ध्यान रखना चाहिए, कि बच्चे को तुरंत पॉजिटिव प्रेशर वेंटिलेशन या रिससिटेशन की जरूरत न हो।
जन्म से पहले बच्चा और प्लेसेंटा सर्कुलेटिंग ब्लड सप्लाई को शेयर करते हैं। बच्चे को प्लेसेंटा और अंबिलिकल कॉर्ड के द्वारा ऑक्सीजन और पोषक तत्व मिलते हैं। बच्चे के फेफड़ों, लिवर, आंतों और किडनी के फंक्शन प्लेसेंटा द्वारा किए जाते हैं। इसलिए बच्चे के अंगों को खून के कम प्रवाह की जरूरत होती है। ऐसे में हर वक्त प्लेसेंटा बच्चे के ब्लड वॉल्यूम का एक महत्वपूर्ण हिस्सा कैरी करता है। प्लेसेंटा में मौजूद खून बच्चे का होता है। जन्म के बाद प्लेसेंटा जरूरी ऑक्सीजन और पोषक तत्व देता है और खून को वापस बच्चे तक पहुंचा देता है। बच्चे के जन्म का यह जरूरी हिस्सा प्लेसेंटल ट्रांसफ्यूजन कहलाता है। प्लेसेंटल ट्रांसफ्यूजन बच्चे को रेड ब्लड सेल्स, स्टेम सेल्स, इम्यून सेल्स और ब्लड वॉल्यूम उपलब्ध कराता है।
डीसीसी के कई फायदे होते हैं, जिनमें से कुछ यहां पर दिए गए हैं:
जन्म के समय अंबिलिकल कॉर्ड कुछ अधिक मिनटों तक जुड़ा रहे, तो कई वर्षों बाद बच्चे के न्यूरोडेवलपमेंट में थोड़ी बढ़ोतरी हो सकती है। जल्द गर्भनाल अलग किए जाने वाले बच्चों की तुलना में देर से गर्भनाल अलग किए जाने वाले बच्चों के सोशल स्किल्स और फाइन मोटर स्किल्स थोड़े बेहतर होते हैं।
ब्रेस्ट मिल्क में आयरन की मात्रा कम होने के कारण ब्रेस्टफीड करने वाले बच्चों को एनीमिया से बचने के लिए आयरन सप्लीमेंट देने की जरूरत हो सकती है। नवजात शिशु को दिमाग के तेज विकास और बढ़त के लिए आयरन की जरूरत होती है। एक अध्ययन में पाया गया है, कि डीसीसी जन्म के समय आयरन को बढ़ा देता है और 2 महीने की उम्र में हीमोग्लोबिन कंसंट्रेशन को बढ़ा देता है। अगर गर्भनाल को 2 मिनट देर से काटा जाए, तो 6 महीने की उम्र से पहले आयरन की कमी के विकास को रोका जा सकता है।
प्रीमैच्योर और फुलटर्म दोनों ही बच्चों में लगभग एक तिहाई ब्लड वॉल्यूम प्लेसेंटा में रहता है। यह ब्लड वॉल्यूम जन्म के समय शिशु के फेफड़ों, किडनी और लिवर को भरने के लिए जरूरी होता है। जिन बच्चों के गर्भनाल दो-तीन मिनट देर से काटे जाते हैं, उनके शरीर में आयरन की पर्याप्त मात्रा होती है और कार्डियोपलमोनरी ट्रांजिशन भी बेहतर होता है। इस बढ़े हुए ब्लड वॉल्यूम का एक और संभावित फायदा यह है, कि इससे नार्मल ब्लड क्लॉटिंग के लिए जरूरी ब्लड प्लेटलेट्स बढ़ जाते हैं।
इम्यून, रेस्पिरेटरी, कार्डियोवैस्कुलर और सेंट्रल नर्वस सिस्टम के विकास के साथ-साथ अन्य कई फंक्शन में स्टेम सेल्स एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। कठिन डिलीवरी के दौरान बच्चे के मस्तिष्क को होने वाले नुकसान को भी यह ठीक करता है। कॉर्ड कटिंग देर से करने से स्टेम सेल्स का इनफ्यूजन देखा जाता है।
जिन प्रीमैच्योर बच्चों का अंबिलिकल कॉर्ड देर से काटा जाता है, उनमें जन्म के तुरंत बाद बेहतर ब्लड प्रेशर देखा जाता है और ब्लड प्रेशर को मेंटेन रखने के लिए कम दवाओं की जरूरत होती है। उन्हें ब्लड ट्रांसफ्यूजन की भी जरूरत होती है और यह क्रिटिकल बॉवेल इंजरी – नैक्रोटाइजिंग एंटरोकोलाइटिस के खतरे को कम करता है।
कॉर्ड कटिंग तुरंत हो या देर से, इसके साथ कुछ खतरे भी जुड़े होते हैं। इसके कुछ खतरों के बारे में हमने नीचे बताया है।
इमीडिएट कॉर्ड क्लैंपिंग या आईसीसी यानी तुरंत गर्भनाल अलग करने से मां और बच्चे दोनों में जटिलताएं होती हैं। यहां पर इसके कुछ खतरे दिए गए हैं:
यहां पर डीसीसी से जुड़े कुछ खतरे दिए गए हैं:
बच्चे तक जरूरत से ज्यादा खून सर्कुलेट होने से नवजात शिशु में ब्लड हाइपर विस्कोसिटी हो सकती है, जिससे पॉलीसिथीमिया हो सकता है।
आयरन की मात्रा बढ़ने से डिसीसी बच्चों में हाइपरबिलुरुबिनेमिया की घटनाएं अधिक देखी जाती हैं, जो कि खून में बिलीरुबिन के ऊंचे स्तर के कारण होता है। गर्भ में प्लेसेंटा अतिरिक्त बिलीरुबिन को मैनेज करता है, लेकिन बच्चे के लिवर को बिलीरुबिन को प्रोसेस करना जरूरी है। इसके कारण जॉन्डिस हो सकता है और इसमें अक्सर फोटो थेरेपी की जरूरत हो सकती है।
जब जन्म के बाद फेफड़ों के छोटे अल्वेओली और एयरवेज को खुला रखने के लिए फेफड़ों को ढकने वाली लिक्विड की मात्रा पर्याप्त नहीं होती है, तब रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस होता है। इससे फेफड़ों के पास सेल डैमेज हो सकता है और खून में कार्बन डाइऑक्साइड इकट्ठा हो सकता है। इसके कारण बच्चों को वेंटिलेटर पर रखना पड़ सकता है।
फायदों और नुकसानों से यह स्पष्ट हो चुका है, कि डीसीसी के फायदे इसके नुकसान से अधिक हैं। डिलेड कॉर्ड क्लैंपिंग प्रीमैच्योर और फुलटर्म दोनों ही बच्चों के लिए फायदेमंद है। इससे शिशुओं के खून में आयरन की मात्रा अधिक होती है और ब्रेन टिशू का बेहतर ऑक्सिजनेशन होता है।
डिस्क्लेमर: यह लेख केवल जानकारी के उद्देश्य से दिया गया है। इसलिए किसी भी प्रकार का निर्णय लेने से पहले अपने डॉक्टर से संपर्क करें और डॉक्टर की सलाह के बिना कोई भी कदम न उठाएं।
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