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बच्चे को दूध पिलाने के ऐसे बहुत कम विकल्प हैं जिनसे उसे ब्रेस्टफीडिंग जैसे ही फायदे मिलते हों। ब्रेस्टफीडिंग केवल बेबी फूड न होकर न्यूट्रिशन और एंटीबॉडी देने के साथ माँ और बच्चे की बॉन्डिंग बढ़ाने तक और भी बहुत सारे फायदे देता है। यह माँ और बच्चे के रिश्ते को बनाता है जिसकी वजह से यदि आपको डायबिटीज है या आपको हाल ही में इसके होने का पता चला है तो आप बच्चे को ब्रेस्टफीडिंग कराने को लेकर चिंतित हो सकती हैं। डायबिटीज के साथ ब्रेस्टफीडिंग करना और इससे संबंधित पूरी जानकारी के लिए यह लेख पढ़ें।
वास्तव में ब्रेस्टफीडिंग ही बच्चे का सबसे बेस्ट बेबी फूड है। कुछ पेरेंट्स बच्चे के लिए अन्य विकल्पों का भी उपयोग करने लगते हैं, जैसे फॉर्मूला दूध का उपयोग पर इसके कारण आपको ब्रेस्टफीडिंग की साइकिल को बाधित करने की जरूरत नहीं है चाहे आपको किसी भी प्रकार का डायबिटीज हो।
जिन लोगों को टाइप 2 डायबिटीज है ज्यादातर डॉक्टर उन्हें न्यूट्रिशन से भरपूर बैलेंस्ड डायट लेने की सलाह देते हैं और उनकी लाइफस्टाइल को बदलते हैं जिसमें रोजाना एक्सरसाइज और एक्टिविटीज करने का ऑप्शन भी होता है। हालांकि ब्रेस्टफीडिंग कराने की सलाह नहीं दी जाती होगी पर इससे डायबिटीज बढ़ने की संभावनाएं कम हो जाती हैं।
यह बच्चे और माँ दोनों के लिए है। रिसर्च के अनुसार ब्रेस्टफीडिंग कराने वाली मांओं में टाइप 2 डायबिटीज विकसित होने की संभावना 15% तक कम हुई है। यह फायदा अंतिम बच्चे के बाद लगभग 15 सालों तक भी रहता है। बच्चे के लिए टाइप 2 डायबिटीज होने का खतरा लगभग 40% तक कम होता है। यह भी सच है कि जो बच्चे ब्रेस्टफीडिंग करते हैं उन्हें मोटापे की समस्या नहीं होती है।
डायबिटीज के साथ ब्रेस्टफीडिंग कराने के कुछ फायदे निम्नलिखित हैं, आइए जानें।
यदि डायबिटिक माँ और बच्चे की बात की जाए तो ब्रेस्टफीडिंग कराने के बहुत सारे फायदे हैं जो थोड़े समय के लिए होते हैं पर कुछ फायदे जीवन भर के लिए भी रहते हैं। वे फायदे कौन से हैं, जानने के लिए आगे पढ़ें।
यहाँ पर माँ के लिए कुछ फायदे बताए गए हैं, आइए जानें;
डायबिटिक होने के बाद भी ब्रेस्टफीडिंग से बच्चे को कई फायदे मिलते हैं, आइए जानें;
गर्भवती महिलाओं में जेस्टेशनल डायबिटीज अक्सर खून में शुगर का स्तर बढ़ने पर होती है। गर्भावस्था के दौरान लगभग 10% महिलाओं में हॉर्मोन्स बदलने के कारण शुगर बढ़ती है जिससे उनमें डायबिटज होने की संभावना बढ़ जाती है। कभी-कभी इन्सुलिन का लेवल ठीक से मैच न होने की वजह से भी डायबिटीज हो सकता है और डिलीवरी होने के बाद यह अपने आप ही ठीक भी हो जाता है।
यह डायबिटीज एकदम ठीक नहीं हो जाती क्योंकि शरीर को सामान्य रूटीन में आने और शुगर लेवल कम होने में समय लगता है। शरीर में मौजूद शुगर बच्चे के लिए उपयोगी हो सकती है और इसमें ब्रेस्टफीडिंग की एक महत्वपूर्ण भूमिका होती है। यदि बच्चे की शुगर कम है तो उसके लिए यह बहुत जरूरी है। ऐसे बच्चों को बाद में ओबेसिटी होने का खतरा भी हो सकता है। हालांकि ब्रेस्टफीडिंग कराने से डायबिटीज के साथ-साथ दिल से संबंधित समस्याएं भी लगभग 50% तक कम हो सकती है। इसके अलावा ब्रेस्टफीडिंग एक प्रोसेस है जिसमें ज्यादा से ज्यादा कैलोरी बर्न होती हैं और यह माँ के वजन को पर्याप्त बनाए रखने में मदद करती है जिससे डायबिटीज होने का खतरा भी कम होता है।
कभी-कभी महिलाएं डायबिटीज बढ़ने के बाद भी बच्चे को लगातार दूध पिलाती हैं और इन चीजों पर ध्यान देना बहुत जरूरी है। चूंकि ब्रेस्टफीडिंग से शुगर का स्तर कम हो जाता है इसलिए विशेषकर यदि आप इन्सुलिन लेती हैं तो इसे ज्यादा कम न होने दें और अपना पूरा ध्यान रखें। बच्चे को दूध पिलाते समय आप थोड़ा बहुत कुछ न कुछ जरूर खाएं।
ब्रेस्टफीडिंग के दौरान माँ के शरीर में बर्न हुई कैलोरीज वजन कम करने में बहुत ज्यादा मदद करती हैं और इससे खून में शुगर भी कम हो जाती है। प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट से भरपूर न्यूट्रिशियस डायट से भी इसमें काफी मदद मिलती है। इससे ब्रेस्ट मिल्क की आपूर्ति को लगातार बनाए रखने में मदद मिलती है।
कम शुगर लेवल से पीड़ित होने की एक हाई रिस्क तब होती है जब बच्चे विकास का दौर होता है। बच्चे का डेवलपमेंट धीमा हो सकता है। चूंकि इस दौरान दूध की ज्यादा जरूरत होती है और बच्चा ज्यादा मात्रा में बार-बार दूध पीता है इसलिए यदि देखभाल नहीं की गई तो खून में शुगर का स्तर कम हो सकता है। यह इंसुलिन की डोज कम करने या ज्यादा खाना खाने से भी हो सकता है।
चूंकि शरीर में मौजूद ग्लूकोज की मदद से ही ब्रेस्ट मिल्क बनता है इसलिए बच्चे को दूध पिलाने से खून में ग्लूकोज की मात्रा कम हो जाती है। अक्सर जो महिलाएं इन्सुलिन ले रही होती हैं वो इसे ऑब्जर्व कर लेती हैं क्योंकि नियमित मॉनिटर करने पर शुगर का स्तर सामान्य से बहुत ज्यादा कम दिख सकता है। इंसुलिन की डोज पर्याप्त मात्रा में लें ताकि इसका खयाल रखा जा सके और आप में शुगर की मात्रा बहुत ज्यादा कम न हो जिसकी वजह से हाइपोग्लाइकेमिया हो सकता है।
डायबिटीज होना और ब्रेस्ट मिल्क की आपूर्ति कम होना संभव है। यह मुख्य रूप से ज्यादा इंसुलिन के कारण होता है जिससे ब्रेस्ट मिल्क का उत्पादन बंद हो जाता है। महिलाओं ने यह भी नोटिस किया है कि दूध कम मात्रा में उत्पन्न होता है और यह बच्चे के लिए पर्याप्त नहीं होता है। यह कुछ दिनों के लिए होता है और डायबिटीज नियंत्रित होने पर अपने आप ठीक हो जाता है।
चूंकि ब्रेस्टमिल्क को बढ़ाने में ग्लूकोज एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है इसलिए दूध की क्वालिटी खून में मौजूद शुगर के स्तर पर निर्भर करती है। यदि इन लेवल को बनाए रखने के लिए सही तरीकों का उपयोग किया गया है और इसकी मात्रा पर्याप्त रखी गई है तो क्वालिटी पर कोई भी प्रभाव नहीं पड़ेगा और बच्चे को बेस्ट ब्रेस्ट मिल्क मिलेगा।
चाहे आपको जेस्टेशनल डायबिटीज हो या टाइप 1 डायबिटीज, पर फिर भी बच्चे को दूध पिलाते समय निम्नलिखित कुछ टिप्स पर ध्यान जरूर दें, जैसे;
हाल ही में बनी माँ डायबिटीज के लिए अक्सर बाहरी दवा लेती है जिसमें उसे इन्सुलिन की सही डोज, जैसे मेटफॉर्मिन दी जाती है। यह दवा शरीर में शुगर लेवल से मिलती है और इससे बच्चे पर कोई भी प्रभाव नहीं पड़ता है। इसलिए इसके बारे में चिंता करने की जरूरत नहीं है।
बेशक डायबिटीज और जेस्टेशनल डायबिटीज की समस्या कोई भी नहीं चाहता है। पर यह अच्छी बात है कि ब्रेस्टफीडिंग कराने से इस समस्या को नियंत्रित रखने में मदद मिलती है। सही तरीकों का उपयोग करने और स्वास्थ्य का ध्यान रखने से बच्चे में अभी और आगे भी हेल्दी विकास होगा।
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