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दुर्गा पूजा, हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण और पवित्र त्यौहार है, जो शक्ति और नारीत्व की प्रतीक मां दुर्गा की उपासना के लिए मनाया जाता है। इस उत्सव के दौरान, मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है और यह त्यौहार बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है। दुर्गा पूजा का यह पर्व विशेष रूप से पश्चिम बंगाल, बिहार, ओडिशा, झारखंड और असम में धूमधाम से मनाया जाता है, लेकिन भारत के अन्य हिस्सों में भी इसे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। पूजा के दौरान मां दुर्गा की आरती और भजनों का बहुत महत्वपूर्ण स्थान होता है, क्योंकि इनके माध्यम से भक्त मां दुर्गा से अपनी भक्ति और श्रद्धा प्रकट करते हैं। इस लेख में हम दुर्गा पूजा के दौरान गाए जाने वाले 16 सबसे प्रसिद्ध आरती और भजनों के लिरिक्स के साथ–साथ उनके यूट्यूब लिंक भी प्रदान करेंगे, ताकि आप घर बैठे इनका आनंद ले सकें और अपनी पूजा को और भी भक्ति से भर सकें।
दुर्गा माँ के लिए 15 सबसे लोकप्रिय आरतियां और भजन भक्तों के हृदय में भक्ति की भावना जगाते हैं। इन आरतियों और भजनों के माध्यम से मां दुर्गा की महिमा का गुणगान किया जाता है। आइए देखते हैं:
जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी,
तुमको निशदिन ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिव री, जय अम्बे गौरी।
मांग सिंदूर बिराजत, टीको मृगमद को,
उज्ज्वल से दोउ नैना, चंद्रबदन नीको, जय अम्बे गौरी।
कनक समान कलेवर, रक्ताम्बर राजै,
रक्तपुष्प गल माला, कंठन पर साजै, जय अम्बे गौरी।
केहरि वाहन राजत, खड्ग खप्परधारी,
सुर–नर मुनिजन सेवत, तिनके दुःखहारी, जय अम्बे गौरी।
कानन कुण्डल शोभित, नासाग्रे मोती,
कोटिक चंद्र दिवाकर, राजत समज्योति, जय अम्बे गौरी।
शुम्भ निशुम्भ बिडारे, महिषासुर घाती,
धूम्र विलोचन नैना, निशिदिन मदमाती, जय अम्बे गौरी।
चण्ड–मुण्ड संहारे, शोणित बीज हरे,
मधु कैटभ दोउ मारे, सुर भयहीन करे, जय अम्बे गौरी।
ब्रह्माणी, रुद्राणी, तुम कमला रानी,
आगम निगम बखानी, तुम शिव पटरानी, जय अम्बे गौरी।|
चौंसठ योगिनि मंगल गावैं, नृत्य करत भैरू,
बाजत ताल मृदंगा, अरू बाजत डमरू, जय अम्बे गौरी।
तुम ही जग की माता, तुम ही हो भरता,
भक्तन की दुःख हरता, सुख संपत्ति करता, जय अम्बे गौरी।
भुजा चार अति शोभित, खड्ग खप्परधारी,
मनवांछित फल पावत, सेवत नर नारी, जय अम्बे गौरी।
कंचन थाल विराजत, अगर कपूर बाती,
श्री मालकेतु में राजत, कोटि रतन ज्योति, जय अम्बे गौरी।
या अम्बे जी की आरती जो कोई नर गावै।
कहत शिवानंद स्वामी, सुख–सम्पत्ति पावै, जय अम्बे गौरी।
नमो नमो दुर्गे सुख करनी। नमो नमो अम्बे दुःख हरनी।
निराकार है ज्योति तुम्हारी। तिहूँ लोक फैली उजियारी॥
शशि ललाट मुख महाविशाला। नेत्र लाल भृकुटि विकराला॥|
रूप मातु को अधिक सुहावे। दरश करत जन अति सुख पावे॥
तुम संसार शक्ति लय कीना। पालन हेतु अन्न धन दीना॥
अन्नपूर्णा हुई जग पाला। तुम ही आदि सुन्दरी बाला॥
प्रलयकाल सब नाशन हारी। तुम गौरी शिवशंकर प्यारी॥
शिव योगी तुम्हरे गुण गावें। ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें॥
रूप सरस्वती को तुम धारा। दे सुबुद्धि ऋषि–मुनिन उबारा॥
धरा रूप नरसिंह को अम्बा। प्रगट भईं फाड़कर खम्बा॥
रक्षा कर प्रह्लाद बचायो। हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो॥
लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं। श्री नारायण अंग समाहीं॥
क्षीरसिन्धु में करत विलासा। दयासिन्धु दीजै मन आसा॥
हिंगलाज में तुम्हीं भवानी। महिमा अमित न जात बखानी॥
मातंगी अरु धूमावति माता। भुवनेश्वरी बगला सुख दाता॥
श्री भैरव तारा जग तारिणी। छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी॥
केहरि वाहन सोह भवानी। लांगुर वीर चलत अगवानी॥
कर में खप्पर–खड्ग विराजै।जाको देख काल डर भाजे॥
सोहै अस्त्र और त्रिशूला। जाते उठत शत्रु हिय शूला॥
नगर कोटि में तुम्हीं विराजत। तिहुंलोक में डंका बाजत॥
शुम्भ निशुम्भ दानव तुम मारे। रक्तबीज शंखन संहारे॥
महिषासुर नृप अति अभिमानी। जेहि अघ भार मही अकुलानी॥
रूप कराल कालिका धारा। सेन सहित तुम तिहि संहारा॥
परी गाढ़ सन्तन पर जब–जब। भई सहाय मातु तुम तब तब॥
अमरपुरी अरु बासव लोका। तब महिमा सब रहें अशोका॥
ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी। तुम्हें सदा पूजें नर–नारी॥
प्रेम भक्ति से जो यश गावै। दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें॥
ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई। जन्म–मरण ताकौ छुटि जाई॥
जोगी सुर मुनि कहत पुकारी। योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी॥
शंकर आचारज तप कीनो। काम अरु क्रोध जीति सब लीनो॥
निशिदिन ध्यान धरो शंकर को। काहु काल नहिं सुमिरो तुमको॥
शक्ति रूप को मरम न पायो। शक्ति गई तब मन पछितायो॥
शरणागत हुई कीर्ति बखानी। जय जय जय जगदम्ब भवानी॥
भई प्रसन्न आदि जगदम्बा। दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा॥
मोको मातु कष्ट अति घेरो। तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो॥
आशा तृष्णा निपट सतावे। मोह मदादिक सब विनशावै॥
शत्रु नाश कीजै महारानी। सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी॥
करो कृपा हे मातु दयाला। ऋद्धि–सिद्धि दे करहु निहाला॥
जब लगि जियउं दया फल पाऊं। तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊं॥
दुर्गा चालीसा जो नित गावै। सब सुख भोग परमपद पावै॥
देवीदास शरण निज जानी। करहु कृपा जगदम्ब भवानी॥
। अथ देव्याः कवचम् ।
ॐ अस्य श्रीचण्डीकवचस्य ब्रह्मा ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, चामुण्डा देवता, अङ्गन्यासोक्तमातरो बीजम्, दिग्बन्धदेवतास्तत्त्वम्, श्रीजगदम्बाप्रीत्यर्थे सप्तशतीपाठाङ्गत्वेन जपे विनियोगः ।
ॐ नमश्चण्डिकायै ॥
। मार्कण्डेय उवाच ।
ॐ यद्गुह्यं परमं लोके सर्वरक्षाकरं नृणाम्। यन्न कस्यचिदाख्यातं तन्मे ब्रूहि पितामह ॥१॥
। ब्रह्मोवाच ।
अस्ति गुह्यतमं विप्र सर्वभूतोपकारकम् । देव्यास्तु कवचं पुण्यं तच्छृणुष्व महामुने ॥२॥
प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी । तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम् ॥३॥
पञ्चमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च। सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम् ॥४॥
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः । उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना ॥५॥
अग्निना दह्यमानस्तु शत्रुमध्ये गतो रणे । विषमे दुर्गमे चैव भयार्ताः शरणं गताः ॥६॥
न तेषां जायते किंचिदशुभं रणसंकटे । नापदं तस्य पश्यामि शोकदुःखभयं न हि ॥७॥
यैस्तु भक्त्या स्मृता नूनं तेषां वृद्धिः प्रजायते । ये त्वां स्मरन्ति देवेशि रक्षसे तान्न संशयः ॥८॥
प्रेतसंस्था तु चामुण्डा वाराही महिषासना । ऐन्द्री गजसमारूढा वैष्णवी गरुडासना ॥९॥
माहेश्वरी वृषारूढा कौमारी शिखिवाहना। लक्ष्मीः पद्मासना देवी पद्महस्ता हरिप्रिया ॥१०॥
श्वेतरूपधरा देवी ईश्वरी वृषवाहना। ब्राह्मी हंससमारूढा सर्वाभरणभूषिता ॥११॥
इत्येता मातरः सर्वाः सर्वयोगसमन्विताः । नानाभरणशोभाढ्या नानारत्नोपशोभिताः ॥१२॥
दृश्यन्ते रथमारूढा देव्यः क्रोधसमाकुलाः । शङ्खं चक्रं गदां शक्तिं हलं च मुसलायुधम् ॥१३॥
खेटकं तोमरं चैव परशुं पाशमेव च । कुन्तायुधं त्रिशूलं च शार्ङ्गमायुधमुत्तमम् ॥१४॥
दैत्यानां देहनाशाय भक्तानामभयाय च । धारयन्त्यायुधानीत्थं देवानां च हिताय वै ॥१५॥
नमस्तेऽस्तु महारौद्रे महाघोरपराक्रमे । महाबले महोत्साहे महाभयविनाशिनि ॥१६॥
त्राहि मां देवि दुष्प्रेक्ष्ये शत्रूणां भयवर्धिनि । प्राच्यां रक्षतु मामैन्द्री आग्नेय्यामग्निदेवता ॥१७॥
दक्षिणेऽवतु वाराही नैर्ऋत्यां खड्गधारिणी । प्रतीच्यां वारुणी रक्षेद् वायव्यां मृगवाहिनी ॥१८॥
उदीच्यां पातु कौमारी ऐशान्यां शूलधारिणी । ऊर्ध्वं ब्रह्माणि मे रक्षेदधस्ताद् वैष्णवी तथा ॥१९॥
एवं दश दिशो रक्षेच्चामुण्डा शववाहना। जया मे चाग्रतः पातु विजया पातु पृष्ठतः ॥२०॥
अजिता वामपार्श्वे तु दक्षिणे चापराजिता । शिखामुद्योतिनी रक्षेदुमा मूर्ध्नि व्यवस्थिता ॥२१॥
मालाधरी ललाटे च भ्रुवौ रक्षेद् यशस्विनी । त्रिनेत्रा च भ्रुवोर्मध्ये यमघण्टा च नासिके ॥२२॥
शङ्खिनी चक्षुषोर्मध्ये श्रोत्रयोर्द्वारवासिनी । कपोलौ कालिका रक्षेत्कर्णमूले तु शांकरी ॥२३॥
नासिकायां सुगन्धा च उत्तरोष्ठे च चर्चिका । अधरे चामृतकला जिह्वायां च सरस्वती ॥२४॥
दन्तान् रक्षतु कौमारी कण्ठदेशे तु चण्डिका । घण्टिकां चित्रघण्टा च महामाया च तालुके ॥२५॥
कामाक्षी चिबुकं रक्षेद् वाचं मे सर्वमङ्गला । ग्रीवायां भद्रकाली च पृष्ठवंशे धनुर्धरी ॥२६॥
नीलग्रीवा बहिःकण्ठे नलिकां नलकूबरी । स्कन्धयोः खड्गिनी रक्षेद् बाहू मे वज्रधारिणी ॥२७॥
हस्तयोर्दण्डिनी रक्षेदम्बिका चाङ्गुलीषु च । नखाञ्छूलेश्वरी रक्षेत्कुक्षौ रक्षेत्कुलेश्वरी ॥२८॥
स्तनौ रक्षेन्महादेवी मनः शोकविनाशिनी । हृदये ललिता देवी उदरे शूलधारिणी ॥२९॥
नाभौ च कामिनी रक्षेद् गुह्यं गुह्येश्वरी तथा । पूतना कामिका मेढ्रं गुदे महिषवाहिनी ॥३०॥
कट्यां भगवती रक्षेज्जानुनी विन्ध्यवासिनी । जङ्घे महाबला रक्षेत्सर्वकामप्रदायिनी ॥३१॥
गुल्फयोर्नारसिंही च पादपृष्ठे तु तैजसी । पादाङ्गुलीषु श्री रक्षेत्पादाधस्तलवासिनी ॥३२॥
नखान् दंष्ट्राकराली च केशांश्चैवोर्ध्वकेशिनी । रोमकूपेषु कौबेरी त्वचं वागीश्वरी तथा ॥३३॥
रक्तमज्जावसामांसान्यस्थिमेदांसि पार्वती । अन्त्राणि कालरात्रिश्च पित्तं च मुकुटेश्वरी ॥३४॥
पद्मावती पद्मकोशे कफे चूडामणिस्तथा । ज्वालामुखी नखज्वालामभेद्या सर्वसंधिषु ॥३५॥
शुक्रं ब्रह्माणि मे रक्षेच्छायां छत्रेश्वरी तथा । अहंकारं मनो बुद्धिं रक्षेन्मे धर्मधारिणी ॥३६॥
प्राणापानौ तथा व्यानमुदानं च समानकम् । वज्रहस्ता च मे रक्षेत्प्राणं कल्याणशोभना ॥३७॥
रसे रूपे च गन्धे च शब्दे स्पर्शे च योगिनी । सत्त्वं रजस्तमश्चैव रक्षेन्नारायणी सदा ॥३८॥
आयू रक्षतु वाराही धर्मं रक्षतु वैष्णवी । यशः कीर्तिं च लक्ष्मीं च धनं विद्यां च चक्रिणी ॥३९॥
गोत्रमिन्द्राणि मे रक्षेत्पशून्मे रक्ष चण्डिके। पुत्रान् रक्षेन्महालक्ष्मीर्भार्यां रक्षतु भैरवी ॥४०॥
पन्थानं सुपथा रक्षेन्मार्ग क्षेमकरी तथा । राजद्वारे महालक्ष्मीर्विजया सर्वतः स्थिता ॥४१॥
रक्षाहीनं तु यत्स्थानं वर्जितं कवचेन तु । तत्सर्वं रक्ष मे देवि जयन्ती पापनाशिनी ॥४२॥
पदमेकं न गच्छेत्तु यदीच्छेच्छुभमात्मनः । कवचेनावृतो नित्यं यत्र यत्रैव गच्छति ॥४३॥
तत्र तत्रार्थलाभश्च विजयः सार्वकामिकः । यं यं चिन्तयते कामं तं तं प्राप्नोति निश्चितम् ।
परमैश्वर्यमतुलं प्राप्स्यते भूतले पुमान् ॥४४॥
निर्भयो जायते मर्त्यः संग्रामेष्वपराजितः । त्रैलोक्ये तु भवेत्पूज्यः कवचेनावृतः पुमान् ॥४५॥
इदं तु देव्याः कवचं देवानामपि दुर्लभम् । यः पठेत्प्रयतो नित्यं त्रिसन्ध्यं श्रद्धयान्वितः ॥४६॥
दैवी कला भवेत्तस्य त्रैलोक्येष्वपराजितः । जीवेद् वर्षशतं साग्रमपमृत्युविवर्जितः ॥४७॥
नश्यन्ति व्याधयः सर्वे लूताविस्फोटकादयः । स्थावरं जङ्गमं चैव कृत्रिमं चापि यद्विषम् ॥४८॥
अभिचाराणि सर्वाणि मन्त्रयन्त्राणि भूतले । भूचरा: खेचराश्चैव जलजाश्चोपदेशिकाः ॥४९॥
सहजा कुलजा माला डाकिनी शाकिनी तथा । अन्तरिक्षचरा घोरा डाकिन्यश्च महाबलाः ॥५०॥
ग्रहभूतपिशाचाश्च यक्षगन्धर्वराक्षसाः । ब्रह्मराक्षसवेतालाः कूष्माण्डा भैरवादयः ॥५१॥
नश्यन्ति दर्शनात्तस्य कवचे हृदि संस्थिते । मानोन्नतिर्भवेद् राज्ञस्तेजोवृद्धिकरं परम् ॥५२॥
यशसा वर्धते सोऽपि कीर्तिमण्डितभूतले । जपेत्सप्तशतीं चण्डीं कृत्वा तु कवचं पुरा ॥५३॥
यावद्भूमण्डलं धत्ते सशैलवनकाननम् । तावत्तिष्ठति मेदिन्यां संततिः पुत्रपौत्रिकी ॥५४॥
देहान्ते परमं स्थानं यत्सुरैरपि दुर्लभम् । प्राप्नोति पुरुषो नित्यं महामायाप्रसादतः ॥५५॥
लभते परमं रूपं शिवेन सह मोदते ॥ ॐ ॥५६॥
अम्बे तू है जगदम्बे काली, जय दुर्गे खप्पर वाली,
तेरे ही गुण गावें भारती, ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती।
अम्बे तू है जगदम्बे काली, जय दुर्गे खप्पर वाली,
तेरे ही गुण गावें भारती, ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती।
तेरे भक्तजनो पर माता, भीड़ पड़ी है भारी, भीड़ पड़ी है भारी,
दानव दल पर टूट पड़ो, माँ करके सिंह सवारी, करके सिंह सवारी,
सौ–सौ सिहों से भी बलशाली, हे दस भुजाओं वाली।
दुखियों के दुखड़े निवारती,
ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती।
अम्बे तू है जगदम्बे काली, जय दुर्गे खप्पर वाली,
तेरे ही गुण गावें भारती, ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती।
माँ–बेटे का है इस जग मे, बड़ा ही निर्मल नाता, बड़ा ही निर्मल नाता,
पूत–कपूत सुने है, पर ना माता सुनी कुमाता, माता सुनी कुमाता,
सब पे करूणा दर्शाने वाली, अमृत बरसाने वाली,
दुखियों के दुखडे निवारती,
ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती।
अम्बे तू है जगदम्बे काली, जय दुर्गे खप्पर वाली,
तेरे ही गुण गावें भारती, ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती।
नहीं माँगते धन और दौलत, न चाँदी न सोना, न चाँदी न सोना,
हम तो माँगें माँ तेरे चरणों में, छोटा सा कोना, इक छोटा सा कोना,
सबकी बिगड़ी बनाने वाली, लाज बचाने वाली, सतियों के सत को सवांरती,
ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती,
ओ अम्बे तू है जगदम्बे काली, जय दुर्गे खप्पर वाली,
तेरे ही गुण गावें भारती, ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती।
ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती। X4
जय जय अम्बे जय कात्यायनी। जय जग माता जग की महारानी॥
बैजनाथ स्थान तुम्हारा। वहावर दाती नाम पुकारा॥
कई नाम है कई धाम है। यह स्थान भी तो सुखधाम है॥
हर मन्दिर में ज्योत तुम्हारी। कही योगेश्वरी महिमा न्यारी॥
हर जगह उत्सव होते रहते। हर मन्दिर में भगत है कहते॥
कत्यानी रक्षक काया की। ग्रंथि काटे मोह माया की॥
झूठे मोह से छुडाने वाली। अपना नाम जपाने वाली॥
बृहस्पतिवार को पूजा करिए। ध्यान कात्यानी का धरिये॥
हर संकट को दूर करेगी। भंडारे भरपूर करेगी॥
जो भी माँ को भक्त पुकारे। कात्यायनी सब कष्ट निवारे॥
भोर भई दिन चढ़ गया, मेरी अम्बे,
हो रही जय जय कार मंदिर विच,
आरती जय माँ,
हे दरबारा वाली, आरती जय माँ,
हे पहाड़ा वाली आरती जय माँ।
काहे दी मैया तेरी आरती बनावा, X2
काहे दी पावां विच बाती मंदिर विच,
आरती जय माँ,
सुहे चोलेयाँवाली आरती जय माँ,
हे पहाड़ा वाली आरती जय माँ।
सर्व सोने दी तेरी आरती बनावा, X2
अगर कपूर पावां बाती मंदिर विच,
आरती जय माँ,
हे माँ पिंडी रानी आरती जय माँ,
हे पहाड़ा वाली आरती जय माँ।
कौन सुहागन दिवा बालेया, मेरी मैया, X2
कौन जागेगा सारी रात मंदिर विच,
आरती जय माँ,
सच्चियां ज्योतां वाली आरती जय माँ,
हे पहाड़ा वाली आरती जय माँ।
सर्व सुहागिन दिवा बलिया मेरी मैया, X2
ज्योत जागेगी सारी रात मंदिर विच,
आरती जय माँ,
हे माँ दुर्गा रानी आरती जय माँ,
हे पहाड़ा वाली आरती जय माँ।
जुग जुग जीवे तेरा जम्मुए दा राजा, X2
जिस तेरा भवन बनाया,
मंदिर विच आरती जय माँ,
हे मेरी अम्बे रानी आरती जय माँ,
हे पहाड़ा वाली आरती जय माँ।
सिमर चरण तेरा ध्यानु यश गावे,
जो ध्यावे सो, यो फल पावे,
रख बाणे दी लाज मंदिर विच,
आरती जय माँ,
सोहनेया मंदिरां वाली आरती जय माँ।
भोर भई दिन चढ़ गया, मेरी अम्बे, X2
हो रही जय जय कार मंदिर विच,
आरती जय माँ,
हे दरबारा वाली, आरती जय माँ,
हे पहाड़ा वाली आरती जय माँ।
अयि गिरिनन्दिनि नन्दितमेदिनि विश्वविनोदिनि नन्दिनुते
गिरिवरविन्ध्यशिरोऽधिनिवासिनि विष्णुविलासिनि जिष्णुनुते।
भगवति हे शितिकण्ठकुटुम्बिनि भूरिकुटुम्बिनि भूरिकृते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते
सुरवरवर्षिणि दुर्धरधर्षिणि दुर्मुखमर्षिणि हर्षरते
त्रिभुवनपोषिणि शङ्करतोषिणि किल्बिषमोषिणि घोषरते
दनुजनिरोषिणि दितिसुतरोषिणि दुर्मदशोषिणि सिन्धुसुते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते
अयि जगदम्ब मदम्ब कदम्ब वनप्रियवासिनि हासरते
शिखरि शिरोमणि तुङ्गहिमलय शृङ्गनिजालय मध्यगते।
मधुमधुरे मधुकैटभगञ्जिनि कैटभभञ्जिनि रासरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते
अयि शतखण्ड विखण्डितरुण्ड वितुण्डितशुण्द गजाधिपते
रिपुगजगण्ड विदारणचण्ड पराक्रमशुण्ड मृगाधिपते।
निजभुजदण्ड निपातितखण्ड विपातितमुण्ड भटाधिपते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते
अयि रणदुर्मद शत्रुवधोदित दुर्धरनिर्जर शक्तिभृते
चतुरविचार धुरीणमहाशिव दूतकृत प्रमथाधिपते।
दुरितदुरीह दुराशयदुर्मति दानवदुत कृतान्तमते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते
अयि शरणागत वैरिवधुवर वीरवराभय दायकरे
त्रिभुवनमस्तक शुलविरोधि शिरोऽधिकृतामल शुलकरे।
दुमिदुमितामर धुन्दुभिनादमहोमुखरीकृत दिङ्मकरे
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते
अयि निजहुङ्कृति मात्रनिराकृत धूम्रविलोचन धूम्रशते
समरविशोषित शोणितबीज समुद्भवशोणित बीजलते।
शिवशिवशुम्भ निशुम्भमहाहव तर्पितभूत पिशाचरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते
धनुरनुषङ्ग रणक्षणसङ्ग परिस्फुरदङ्ग नटत्कटके
कनकपिशङ्ग पृषत्कनिषङ्ग रसद्भटशृङ्ग हताबटुके।
कृतचतुरङ्ग बलक्षितिरङ्ग घटद्बहुरङ्ग रटद्बटुके
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते
सुरललना ततथेयि तथेयि कृताभिनयोदर नृत्यरते
कृत कुकुथः कुकुथो गडदादिकताल कुतूहल गानरते।
धुधुकुट धुक्कुट धिंधिमित ध्वनि धीर मृदंग निनादरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते
जय जय जप्य जयेजयशब्द परस्तुति तत्परविश्वनुते
झणझणझिञ्झिमि झिङ्कृत नूपुरशिञ्जितमोहित भूतपते।
नटित नटार्ध नटी नट नायक नाटितनाट्य सुगानरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते
अयि सुमनःसुमनःसुमनः सुमनःसुमनोहरकान्तियुते
श्रितरजनी रजनीरजनी रजनीरजनी करवक्त्रवृते।
सुनयनविभ्रमर भ्रमरभ्रमर भ्रमरभ्रमराधिपते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते
सहितमहाहव मल्लमतल्लिक मल्लितरल्लक मल्लरते
विरचितवल्लिक पल्लिकमल्लिक झिल्लिकभिल्लिक वर्गवृते।
शितकृतफुल्ल समुल्लसितारुण तल्लजपल्लव सल्ललिते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते
अविरलगण्ड गलन्मदमेदुर मत्तमतङ्ग जराजपते
त्रिभुवनभुषण भूतकलानिधि रूपपयोनिधि राजसुते।
अयि सुदतीजन लालसमानस मोहन मन्मथराजसुते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते
कमलदलामल कोमलकान्ति कलाकलितामल भाललते
सकलविलास कलानिलयक्रम केलिचलत्कल हंसकुले।
अलिकुलसङ्कुल कुवलयमण्डल मौलिमिलद्बकुलालिकुले
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते
करमुरलीरव वीजितकूजित लज्जितकोकिल मञ्जुमते
मिलितपुलिन्द मनोहरगुञ्जित रञ्जितशैल निकुञ्जगते।
निजगणभूत महाशबरीगण सद्गुणसम्भृत केलितले
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते
कटितटपीत दुकूलविचित्र मयुखतिरस्कृत चन्द्ररुचे
प्रणतसुरासुर मौलिमणिस्फुर दंशुलसन्नख चन्द्ररुचे
जितकनकाचल मौलिमदोर्जित निर्भरकुञ्जर कुम्भकुचे
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते
विजितसहस्रकरैक सहस्रकरैक सहस्रकरैकनुते
कृतसुरतारक सङ्गरतारक सङ्गरतारक सूनुसुते।
सुरथसमाधि समानसमाधि समाधिसमाधि सुजातरते।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते
पदकमलं करुणानिलये वरिवस्यति योऽनुदिनं सुशिवे
अयि कमले कमलानिलये कमलानिलयः स कथं न भवेत्।
तव पदमेव परम्पदमित्यनुशीलयतो मम किं न शिवे
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते
कनकलसत्कलसिन्धुजलैरनुषिञ्चति तेगुणरङ्गभुवम्
भजति स किं न शचीकुचकुम्भतटीपरिरम्भसुखानुभवम्।
तव चरणं शरणं करवाणि नतामरवाणि निवासि शिवम्
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते
तव विमलेन्दुकुलं वदनेन्दुमलं सकलं ननु कूलयते
किमु पुरुहूतपुरीन्दु मुखी सुमुखीभिरसौ विमुखीक्रियते।
मम तु मतं शिवनामधने भवती कृपया किमुत क्रियते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते
अयि मयि दीन दयालुतया कृपयैव त्वया भवितव्यमुमे
अयि जगतो जननी कृपयासि यथासि तथानुमितासिरते।
यदुचितमत्र भवत्युररीकुरुतादुरुतापमपाकुरुते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते
॥ आदिलक्ष्मि ॥
सुमनस वन्दित सुन्दरि माधवि,चन्द्र सहोदरि हेममये
मुनिगणमण्डित मोक्षप्रदायनि,मञ्जुळभाषिणि वेदनुते।
पङ्कजवासिनि देवसुपूजित,सद्गुण वर्षिणि शान्तियुते
जय जय हे मधुसूदन कामिनि,आदिलक्ष्मि सदा पालय माम्॥1॥
॥ धान्यलक्ष्मि ॥
अहिकलि कल्मषनाशिनि कामिनि,वैदिकरूपिणि वेदमये
क्षीरसमुद्भव मङ्गलरूपिणि,मन्त्रनिवासिनि मन्त्रनुते।
मङ्गलदायिनि अम्बुजवासिनि,देवगणाश्रित पादयुते
जय जय हे मधुसूदन कामिनि,धान्यलक्ष्मि सदा पालय माम्॥2॥
॥ धैर्यलक्ष्मि ॥
जयवरवर्णिनि वैष्णवि भार्गवि,मन्त्रस्वरूपिणि मन्त्रमये
सुरगणपूजित शीघ्रफलप्रद,ज्ञानविकासिनि शास्त्रनुते।
भवभयहारिणि पापविमोचनि,साधुजनाश्रित पादयुते
जय जय हे मधुसूधन कामिनि,धैर्यलक्ष्मी सदा पालय माम्॥3॥
॥ गजलक्ष्मि ॥
जय जय दुर्गतिनाशिनि कामिनि,सर्वफलप्रद शास्त्रमये
रधगज तुरगपदाति समावृत,परिजनमण्डित लोकनुते।
हरिहर ब्रह्म सुपूजित सेवित,तापनिवारिणि पादयुते
जय जय हे मधुसूदन कामिनि,गजलक्ष्मी रूपेण पालय माम्॥4॥
॥ सन्तानलक्ष्मि ॥
अहिखग वाहिनि मोहिनि चक्रिणि,रागविवर्धिनि ज्ञानमये
गुणगणवारिधि लोकहितैषिणि,स्वरसप्त भूषित गाननुते।
सकल सुरासुर देवमुनीश्वर,मानववन्दित पादयुते
जय जय हे मधुसूदन कामिनि,सन्तानलक्ष्मी त्वं पालय माम्॥5॥
॥ विजयलक्ष्मि ॥
जय कमलासनि सद्गतिदायिनि,ज्ञानविकासिनि गानमये
अनुदिनमर्चित कुङ्कुमधूसर,भूषित वासित वाद्यनुते।
कनकधरास्तुति वैभव वन्दित,शङ्कर देशिक मान्य पदे
जय जय हे मधुसूदन कामिनि,विजयलक्ष्मी सदा पालय माम्॥6॥
॥ विद्यालक्ष्मि ॥
प्रणत सुरेश्वरि भारति भार्गवि,शोकविनाशिनि रत्नमये
मणिमयभूषित कर्णविभूषण,शान्तिसमावृत हास्यमुखे।
नवनिधिदायिनि कलिमलहारिणि,कामित फलप्रद हस्तयुते
जय जय हे मधुसूदन कामिनि,विद्यालक्ष्मी सदा पालय माम्॥7॥
॥ धनलक्ष्मि ॥
धिमिधिमि धिंधिमि धिंधिमि–धिंधिमि,दुन्दुभि नाद सुपूर्णमये
घुमघुम घुङ्घुम घुङ्घुम घुङ्घुम,शङ्खनिनाद सुवाद्यनुते।
वेदपूराणेतिहास सुपूजित,वैदिकमार्ग प्रदर्शयुते
जय जय हे मधुसूदन कामिनि,धनलक्ष्मि रूपेणा पालय माम्॥8॥
तेरी गोद में सर है मैया,
अब मुझको क्या डर है मैया। X2
दुनिया नजरें फेरे तो फेरे,
दुनिया नजरें फेरे तो फेरे,
मुझपे तेरी नजर है मैया,
तेरी गोद में सर है मैया,
अब मुझको क्या डर है मैया।
मैया तेरी जय जयकार। X4
तेरा दरस यहाँ भी है,
तेरा दरस वहाँ भी है,
तेरा दरस यहाँ भी है,
तेरा दरस वहाँ भी है,
हर दुःख से लड़ने को मैया,
तेरा एक जय कारा काफी है, काफी है।
मैया तेरी जय जयकार,
मैया तेरी जय जयकार।
दिल में लगा तेरा दरबार,
मैया तेरी जय जयकार।
मैं संतान तू माता,
तू मेरी जीवन दाता। X2
जग में सबसे गहरा मैया,
तेरा और मेरा है नाता, है नाता।
मैया तेरी जय जयकार। X4
हो तेरी गोद में सर है मैया,
अब मुझको क्या डर है मैया।
दुनिया नजरें फेरे तो फेरे,
दुनिया नजरें फेरे तो फेरे,
मुझपे तेरी नज़र है मैया,
तेरी गोद में सर है मैया,
अब मुझको क्या डर है मैया।
मैया तेरी जय जयकार। X8
मेरी झोली छोटी पड़ गई रे इतना दिया मेरी माता,
मेरी बिगड़ी माँ ने बनाई सोई तकदीर जगाई,
ये बात ना सुनी सुनाई मैं खुद बीती बतलाता रे इतना दिया मेरी माता,
मेरी झोली छोटी पड़ गई रे इतना दिया मेरी माता।
मान मिला सम्मान मिला, गुणवान मुझे संतान मिली,
धन धान मिला, नित ध्यान मिला, माँ से ही मुझे पहचान मिली,
घरबार दिया मुझे माँ ने, बेशुमार दिया मुझे माँ ने,
हर बार दिया मुझे माँ ने, जब जब मैं मागने जाता, मुझे इतना दिया मेरी माता,
मेरी झोली छोटी पड़ गई रे इतना दिया मेरी माता।
मेरा रोग कटा मेरा कष्ट मिटा, हर संकट माँ ने दूर किया,
भूले से जो कभी गुरुर किया, मेरे अभिमान को चूर किया,
मेरे अंग संग हुई सहाई, भटके को राह दिखाई,
क्या लीला माँ ने रचाई, मैं कुछ भी समझ ना पाता, मुझे इतना दिया मेरी माता,
मेरी झोली छोटी पड़ गई रे इतना दिया मेरी माता।
उपकार करे भव पार करे, सपने सब के साकार करे,
ना देर करे माँ मेहर करे, भक्तो के सदा भंडार भरे,
महिमा निराली माँ की, दुनिया है सवाली माँ की,
जो लगन लगा ले माँ की, मुश्किल में नहीं घबराता रे,
मेरी झोली छोटी पड़ गई रे इतना दिया मेरी माता।
कर कोई यतन ऐ चंचल मन, तूँ होके मगन चल माँ के भवन,
पा जाए नैयन पावन दर्शन, हो जाए सफल फिर ये जीवन,
तू थाम ले माँ का दामन, ना चिंता रहे ना उलझन,
दिन रात मनन कर सुमिरन जा कर माँ कहलाता मुझे इतना दिया मेरी माता,
मेरी झोली छोटी पड़ गई, रे इतना दिया मेरी।
हे माँ, तेरे मंदिरों की…
तेरे मंदिरों की शान निराली,
द्वार तेरे रंग बरसे, महारानीये..
द्वार तेरे रंग बरसे, महारानीये…
शेरावालिये, ज्योतावालिये..
जय माँ, जय माँ!
मैया मन की मुरादें, पूरी करती,हे माँ!
मैया मन की मुरादें, पूरी करती…
सबकी माँ भरे झोलियाँ, महारानिये…
शेरोवालिये, मेहरावालिये…
शेरावालिये, ज्योतावालिये…
जय माँ, जय माँ!
लाल चनुरी, लाल चूड़ियां,
हे माँ लाल चुनरी..
लाल चनुरी चढाउ, लाल चूड़ियां,
मेहंदी लगाऊं हाथों पे,
शेरावालिये,
शेरोवालिये, मेहरावालिये,
शेरावालिये, ज्योतावालिये।
जय माँ, जय माँ।
बाजे ढोल नगाड़े, शहनाइयां,
हे माँ, बाजे ढोल ,
बाजे ढोल नगाड़े, शहनाइयां,
मैया तेरे मंदिरों में लाटावालिये,
शेरावालिये,
शेरोवालिये, मेहरावालिये,
शेरावालिये, ज्योतावालिये।
जय माँ, जय माँ।
चाँद धरती सितारों में तू है,
बास तेरा कण कण में, अम्बे रानिये,
अम्बे रानिये, ज्योता वालिये।
रघुवंशी ने अर्जी लगाईं, हे माँ,
सरजीवन ने अर्जी लगाईं,
मैया फ़रियाद सुनों जी, महारानिये,
चरणों का प्यार दे दो, महारानिये,
शेरावालिये,
शेरोवालिये, मेहरावालिये,
पहाडावालिये शेरावालिये,
जय माँ, जय माँ।
तेरी गोद में सर है मैया
अब मुझको क्या डर है मैया
तेरी गोद में सर है मैया
अब मुझको क्या डर है मैया
दुनियाँ नज़रें फेरे तो फेरे
दुनियाँ नज़रें फेरे तो फेरे
मुझपे तेरी नज़र है मैया
तेरी गोद में सर है मैया
अब मुझको क्या डर है मैया
मैया तेरी जय जयकार * 4
तेरा दरस यहाँ भी है
तेरा दरस वहाँ भी है * 2
हर दुःख से लड़ने को मैया
तेरा एक जय कारा काफी है, काफी है
मैया तेरी जय जयकार * 2
दिल में लगा तेरा दरबार
मैया तेरी जय जयकार
मैं सन्तान तू माता
तू मेरी जीवन दाता * 2
जग में सबसे गहरा मैया
तेरा और मेरा है नाता, है नाता
मैया तेरी जय जयकार * 4
हो तेरी गोद में सर है मैया
अब मुझको क्या डर है मैया
दुनियाँ नज़रें फेरे तो फेरे
दुनियाँ नज़रें फेरे तो फेरे
मुझपे तेरी नज़र है मैया
तेरी गोद में सर है मैया
अब मुझको क्या डर है मैया
मैया तेरी जय जयकार
ओ मैया तेरी जय जयकार * 4
तोह क्या जो ये पीड़ा का पर्वत
रस्ता रोक खड़ा है
तेरी ममता जिसका बल वो
कब दुनिया से डरा है
हिम्मत मैं क्यूँ हारू मैया
हिम्मत मैं क्यूँ हारू मैया
सर पे हात तेरा है
तेरी लगन मैं मगन मैं नाचूँ
गाऊँ तेरा जगराता
मैं बालक तू माता शेरवालिये,
है अटूट ये नाता शेरवालिये हो..
मैं बालक तू माता शेरवालिये,
है अटूट ये नाता शेरवालिये
शेरवालिये माँ, पहाड़ा वालिये माँ
जोता वालिये माँ, मेहरा वालिये माँ
मैं बालक तू माता शेरवालिये,
है अटूट ये नाता शेरवालिये
बिन बाती बिन
दियाँ तू कैसे काटे घोर अंधेरा
बिन सूरज तू
कैसे करदे अंतरमन में सवेरा
बिन धागों के कैसे जुड़ा है
बिन धागों के कैसे जुड़ा है
बंधन तेरा मेरा
तू समझे या मैं समझू
कोई और समझ नहीं पाता
मैं बालक तू माता शेरवालिये,
है अटूट ये नाता शेरवालिये
शेरवालिये माँ, जोता वालिये माँ
पहाड़ा वालिये माँ, मेहरा वालिये माँ
मैं बालक तू माता शेरवालिये,
है अटूट ये नाता शेरवालिये
ऊँचा है भवन, ऊँचा मंदिर
ऊँची है शान, मैया, तेरी
चरणों में झुकें बादल भी तेरे
पर्वत पे लगे शैया तेरी
हे कालरात्रि, हे कल्याणी
तेरा जोड़ धरा पर कोई नहीं
मेरी माँ के बराबर कोई नहीं
(मेरी माँ के बराबर कोई नहीं)
तेरी ममता से जो गहरा हो
ऐसा तो सागर कोई नहीं
मेरी माँ के बराबर कोई नहीं
(मेरी माँ के बराबर कोई नहीं)
मेरी माँ के बराबर कोई नहीं
(मेरी माँ के बराबर कोई नहीं)
जैसे धारा और नदिया, जैसे फूल और बगिया
मेरे इतना ज़्यादा पास है तू
जब ना होगा तेरा आँचल, नैना मेरे होंगे जल–थल
जाएँगे कहाँ फिर मेरे आँसू?
दुख दूर हुआ मेरा सारा
अँधियारों में चमका तारा
नाम तेरा जब भी है पुकारा
सूरज भी, यहाँ है चंदा भी
तेरे जैसा उजागर कोई नहीं
मेरी माँ के बराबर कोई नहीं
(मेरी माँ के बराबर कोई नहीं)
हे कालरात्रि, हे कल्याणी
तेरा जोड़ धरा पर कोई नहीं
मेरी माँ के बराबर कोई नहीं
(मेरी माँ के बराबर कोई नहीं)
तेरे मंदिरों में, माई, मैंने ज्योत क्या जलाई
हो गया मेरे घर में उजाला
क्या बताऊँ तेरी माया, जब कभी मैं लड़खड़ाया
तूने दस भुजाओं से सँभाला
खिल जाती है सूखी डाली
भर जाती है झोली ख़ाली
तेरी ही मेहर है, मेहरावाली
ममता से तेरी बढ़ के, मैया
मेरी तो धरोहर कोई नहीं
मेरी माँ के बराबर कोई नहीं
(मेरी माँ के बराबर कोई नहीं)
हे कालरात्रि, हे कल्याणी
तेरा जोड़ धरा पर कोई नहीं
मेरी माँ के बराबर कोई नहीं
(मेरी माँ के बराबर कोई नहीं)
तेरी ममता से जो गहरा हो
ऐसा तो सागर कोई नहीं
मेरी माँ के बराबर कोई नहीं * 3
माँ, मेरी माँ * 3
मेरी माँ के बराबर कोई नहीं
शम्भू की पियारी
गिरिराज की दुलारी
गिरिजग गबग गबग गबग
गरुड़ गौर वाली
तू घंटा घहराहके
घुमाके कूद घंटावाली
करत निहाल
खुशहाल फड़ वाली तू
दमक दमक दामिनी सी
चमक चला के चंडी
डपट के दरिद्रमार
दौड़–दौड़ आली तू
शान वाली शूल वाली
त्रिशूल वाली खड़ग वाली
काली तू मां काली तू मां काली
भवानी दयानी * 2
दैत्य दल विनाशनी जग उद्धारिणी
भवानी दयानी * 2
आदिविद्या हे स्वरूपिणी आदिविद्या हो तुम ही
आदिशक्ति हो तुम ही
महालक्ष्मी रूप तुम
तुम ही जग की माता
सारे जगत की तुम ही
कर्म फल प्रदाता
तुम तो महादेव की हो अर्धरूपिणी
भवानी दयानी * 4
ब्रह्मा जी करें वंदन
हरी नारायण शिव अर्चन
सुरनर मुनि गंधर्व
पूजत सब ज्ञानी
ऋषियों मनीषियों ने
महिमा बखानी
खड़ग भाल धारिणी
मां पाप तारिणी
भवानी दयानी * 2
हे तुम तो महादेव की हो अर्धरूपिणी
भवानी दयानी * 2
सिंह की सवारिणी त्रिशूल धारिणी
भवानी दयानी * 4
आरती के माध्यम से भक्त मां दुर्गा को अपनी श्रद्धा प्रकट करते हैं और उनके आशीर्वाद की कामना करते हैं।
दुर्गा सप्तशती एक पवित्र धार्मिक ग्रंथ है, जिसमें मां दुर्गा के वीरतापूर्ण कार्यों का वर्णन है। इसमें कुल 700 श्लोक हैं जिस कारण इसे सप्तशती कहते हैं।
यह स्तोत्र मां दुर्गा द्वारा महिषासुर के वध की महिमा का गुणगान करता है।
दुर्गा चालीसा मां दुर्गा की महिमा और शक्ति का वर्णन करती है और उनकी आराधना का महत्वपूर्ण हिस्सा है।
दुर्गा पूजा का सबसे उत्तम समय नवरात्रि का होता है, जब मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है।
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