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ऐसी कई बीमारियां होती हैं, जो कि नवजात शिशु के जीवन पर गंभीर खतरा ला सकती है और नियोनेटल सेप्सिस उनमें से एक है। इस बीमारी की पूरी जानकारी होने पर इससे लड़ने में मदद मिल सकती है। इसकी शुरुआत में ही लक्षणों की पहचान हो जाने पर, इस जानलेवा बीमारी के लिए सही इलाज का निर्णय लेने में मदद मिलती है। नियोनेटल सेप्सिस क्या होता है? आइए जानते हैं।
नियोनेटल सेप्सिस नवजात शिशुओं में होने वाला एक संक्रमण है, जो बहुत तेजी से फैलता है और आपके बच्चे को नुकसान पहुंचा सकता है। ब्लड स्ट्रीम में होने वाले इस इन्फेक्शन के कारण निमोनिया, गैस्ट्रोएन्टराइटिस, मेनिनजाइटिस या पायलोनफ्राईटिस जैसी जानलेवा बीमारियां हो सकती हैं। आपके बच्चे का इम्यून सिस्टम इस संक्रमण पर प्रतिक्रिया के रूप में बच्चे के अपने टिशु और अंगों पर हमला कर देता है। नियोनेटल सेप्सिस शरीर के किसी एक हिस्से या अनेक हिस्सों पर प्रभाव डाल सकता है। यह एक दुर्लभ संक्रमण है, जो कि प्रत्येक 1000 जन्मों में से केवल 0.5 से 8.0 में देखा जाता है। लेकिन, कुछ मामलों में खतरा पैदा करने वाले कारक आम होते हैं, जैसे:
नियोनेटल सेप्सिस इंफेक्शन आमतौर पर एक बैक्टीरियल इनफेक्शन है, जो कि नियोनेटल स्टेज में बच्चों को प्रभावित करता है। इस संक्रमण के लक्षण एक से अधिक और सामान्य हो सकते हैं, जिनमें बच्चे की गतिविधियों का कम होना, दूध पीते समय उग्रता का कम होना, तापमान का बढ़ना, बेहोशी, जौंडिस, डायरिया, रेस्पिरेट्री और एबडोमिनल समस्याओं के साथ अन्य समस्याएं शामिल हैं।
नियोनेटल सेप्सिस जन्म के बाद शुरुआती 3 दिनों के अंदर या बाद में भी हो सकता है। संक्रमण के समय और स्रोत के अनुसार हम बड़े पैमाने पर नियोनेटल सेप्सिस को दो श्रेणियों में विभाजित कर सकते हैं:
इस तरह का संक्रमण जन्म के बाद 72 घंटों के अंदर शुरू हो जाता है और आमतौर पर यह इनवेसिव ऑर्गेनेज्म मेटरनल इंट्रापार्टम ट्रांसमिशन के कारण होता है। जिन बच्चों का वजन जन्म के समय कम होता है, उनके इस तरह के संक्रमण का शिकार बनने का खतरा ज्यादा होता है। कई लैब टेस्ट इस संक्रमण के होने के कारणों का पता लगा सकते हैं।
इस तरह का नियोनेटल सेप्सिस आमतौर पर वैसे बच्चों में देखा जाता है, जो हॉस्पिटल में इंटेंसिव केयर यूनिट में लंबे समय तक हॉस्पिटलाइज रहते हैं। इस तरह के संक्रमण के लक्षण जन्म के कुछ दिनों के बाद नजर आते हैं। इस तरह का संक्रमण आमतौर पर पोस्टनेटल एक्विजिशन ऑफ पैथोजन के कारण होता है।
ये दोनों ही संक्रमण एक नवजात शिशु में एक जैसी जानलेवा समस्याएं पैदा कर सकते हैं। सेप्सिस के प्रकार की पहचान जल्दी होने से इस बीमारी के सही इलाज और तत्काल इलाज में मदद मिलती है।
नियोनेटल सेप्सिस के अधिकतर मामलों में प्रमुख कारण एक बैक्टीरियल संक्रमण होता है। एक नवजात शिशु में बैक्टीरियल सेप्सिस ई. कोली के कारण होता है। इम्यूनिटी कम होने के कारण, एक नवजात शिशु में इस संक्रमण का खतरा ज्यादा होता है। नीचे नियोनेटल सेप्सिस के विभिन्न कारण दिए गए हैं:
नियोनेटल सेप्सिस के संकेतों और लक्षणों को पहचानना मुश्किल होता है। यह संक्रमण फुल टर्म और प्रीटर्म बच्चों में, बीमारी और मृत्यु के सबसे प्रमुख कारणों में से एक है। इसलिए भविष्य में समस्याओं से बचने के लिए शुरुआत में ही इस घातक बीमारी के लक्षणों की पहचान बहुत जरूरी हो जाती है। इसके कुछ लक्षण नीचे दिए गए हैं:
ऊपर दिए गए सभी संकेत और लक्षण निश्चित रूप से यह नहीं बताते हैं, कि आपके बच्चे को नियोनेटल सेप्सिस है। लेकिन ऊपर दिए गए इन लक्षणों में से कोई भी लक्षण दिखने पर, जितनी जल्दी हो सके मेडिकल मदद लेने की सलाह दी जाती है। नियोनेटल सेप्सिस से बच निकलने की दर इस बात पर निर्भर करती है, कि संकेतों और लक्षणों को शुरुआत में रजिस्टर किया गया है या नहीं।
प्रीमेच्योर बच्चों में इसकी पहचान में, सबसे कठिन काम होता है सही जांच होना। यह मुश्किल है, क्योंकि इसके लक्षण न केवल बारीक होते हैं, बल्कि इन्हें कोई अन्य बीमारी समझ लेने की भूल हो सकती है। जहां वयस्कों में लक्षणों को आसानी से पहचाना जा सकता है, वहीं छोटे बच्चों में नियोनेटल सेप्सिस की पहचान मुश्किल हो सकती है। क्योंकि, ऐसे कई अन्य स्थितियां होती हैं, जो नियोनेटल सेप्सिस की तरह ही दिखती हैं। केवल एक टेस्ट करने से सही नतीजे मिलना निश्चित नहीं होता है। इसलिए बीमारी की पहचान के लिए कई जांचों का कॉन्बिनेशन मदद कर सकता है। नियोनेटल सेप्सिस की पहचान करने में कई लैब टेस्ट कारगर साबित हो चुके हैं, इन लैब टेस्ट में निम्नलिखित जांच शामिल हैं:
जैसे ही आपका हेल्थ प्रैक्टिशनर बच्चे में नियोनेटल सेप्सिस के लक्षणों को पहचान लेता है या उसे नियोनेटल सेप्सिस का संदेह भी हो जाता है, वैसे ही इलाज शुरू हो जाता है। आपको संभवतः बच्चे को हॉस्पिटल में एक्सपर्ट्स की निगरानी में रखने की सलाह दी जाएगी। नवजात शिशु की नसों में आईबी के द्वारा एंटीबायोटिक दिए जाएंगे। बीमारी के स्थिर होने तक शिशु को कार्डियोपलमोनरी सपोर्ट और आईबी न्यूट्रिशन दिए जाएंगे। निम्नलिखित बातों की पर नियमित निगरानी रखी जाएगी:
ऊपर दिए गए इलाजों के अलावा और भी कई अन्य इलाज होते हैं, जैसे एक्सचेंज ट्रांसफ्यूजन, ग्रेन्यूलोसाइट ट्रांसफ्यूजन, आईवी इम्यून ग्लोबुलीन इन्फ्यूजन आदि। हालांकि, कई इलाज उपलब्ध हैं, लेकिन फिर भी कोई भी क्लिनिकल ट्रायल इलाज के इन तरीकों को कारगर साबित नहीं करता है।
ईओएस या नियोनेटल सेप्सिस की शुरुआत से जुड़े हुए खतरों में ऐसी दिक्कतें शामिल हैं, जिनसे बच्चे को जन्म के पहले या जन्म के तुरंत बाद मां के गर्भाशय में सामना करना पड़ सकता है। ईओएस के संभव खतरे नीचे दिए गए हैं:
एलओएस या नियोनेटल सेप्सिस की देर से शुरुआत होने में निम्नलिखित खतरे शामिल हैं:
ऊपर दी गई सभी स्थितियां अजन्मे शिशु या नवजात शिशु के लिए जानलेवा साबित हो सकती हैं। जैसे ही नियोनेटल सेप्सिस से जुड़े किसी भी तरह के खतरे रजिस्टर किए जाएं, वैसे ही तुरंत मेडिकल मदद की सलाह दी जाती है।
बचाव हमेशा इलाज से बेहतर होता है और अगर मां के तौर पर आप इस खतरनाक जानलेवा बीमारी के संभव कारणों और लक्षणों के बारे में भली-भांति परिचित हैं, तो आपका अजन्मा या नवजात शिशु नियोनेटल सेप्सिस से आसानी से बच सकता है। विभिन्न अध्ययन और रिसर्च यह दर्शाते हैं, कि अगर शुरुआत में ही नियोनेटल सेप्सिस की जांच कर ली जाए और इलाज शुरू हो जाए, तो इससे जिंदगियां बच सकती हैं। नीचे कुछ मापदंड दिए गए हैं, जिन्हें अपना कर नियोनेटल सेप्सिस से बचा जा सकता है या इन्हें आप अपने बच्चे के लिए नियोनेटल सेप्सिस केयर प्लान कह कर भी पुकार सकती हैं:
जैसे एक नवजात शिशु में कोई भी बीमारी या स्वास्थ्य संबंधी परेशानी काफी चिंताजनक होती है और नजरअंदाज करने पर जटिलताएं पैदा हो सकती हैं। उसी प्रकार नियोनेटल सेप्सिस भी खतरनाक हो सकता है। हालांकि नियोनेटल सेप्सिस एक दुर्लभ बैक्टीरियल संक्रमण है, जो कि नवजात शिशु को प्रभावित करता है। ऐसे में मां को इस जानलेवा बीमारी और बच्चे को इससे बचाने के बारे में पूरी जानकारी होना बहुत जरूरी है। पूरे विश्व में नियोनेटल सेप्सिस प्रत्येक 1000 बच्चों में से 1-10 में पाया जाता है। उपलब्ध आंकड़े दर्शाते हैं, कि इस संक्रमण में मां की मृत्यु दर 10% और नवजात शिशुओं की मृत्यु दर 26% होती है।
यह लेख नियोनेटल सेप्सिस, इसके कारण, लक्षण, प्रभावों और इससे बचाव के बारे में बताता है। पिछले दो दशकों में नियोनेटल सेप्सिस से होने वाली मृत्यु दर बढ़ी है और इस जानलेवा बीमारी की पूरी जानकारी और समय पर होने वाली मेडिकल देखरेख जिंदगियां बचा सकती है।
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